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मूँछें ऊँची : मूँछें नीची – शिक्षाप्रद कथा

लगभग दो-ढाई सौ साल पहले की बात है। आगरा शहर की एक व्यस्त और घनी आबादी वाली पुरानी बस्ती में भीड़-भाड़ वाली सड़क पर चतुरलाल नाम के बनिये की दुकान थी।

उस दुकान से कुछ आगे ही एक अखाड़ा था, जहाँ एक बददिमाग पठान फन्ने खान नई उम्र के लड़कों और नौजवानों को पहलवानी के गुर सिखाया करता था। 

 

फन्ने खान पहलवानी में तो उस्तादों का उस्ताद और बड़ा हेकड़बाज़ आदमी था, लेकिन बुद्धि से निरा कमज़ोर था। किसी से भी सीधे मुँह बात नहीं करता था। किसी की अकड़ सहन नहीं करता था। कोई उसकी कोई बात काट दे या पलटकर जवाब दे दे तो सीधा उसके गाल पर हाथ छोड़ देता था। उसे बिना बात झगड़ने की भी बुरी आदत थी। चूँकि कुश्ती लड़ने में आसपास तो क्या – दूर-दूर तक के गाँव-कस्बों-शहर में उसके जोड़ का कोई पहलवान नहीं था और वह हमेशा अपने लम्बे मजबूत और तेल पिलाये लट्ठ को लिये घूमा करता था! 

 

फन्ने खान को  खुद पर बड़ा घमण्ड था और ताकतवर तो वह था ही, साथ ही गुस्सा हर समय उसकी नाक पर धरा रहता था, इसलिये निकटवर्ती बस्तियों के अधिकाँश लोग उससे डरते थे।

 

इसका कारण यह भी था – गली-मोहल्ले का कोई आदमी अगर गर्दन सीधी किये फन्ने खान के सामने से गुजर जाता तो झट से वह उसकी गुद्दी पर धौल जमा देता और एक भद्दी सी गाली देकर कहता -“उस्ताद के सामने अकड़कर चलता है। एक करारा हाथ पड़ गया तो अल्लाह-मियाँ से मुलाक़ात हो जायेगी।“: 

 

फन्ने खान के दोस्त बन्ने खान और नन्हें खान उसे बहुत समझाते कि “भाई मियाँ, यूँ हर किसी से पंगा मत लिया करो। माना कि तुम एक शेर हो लेकिन कभी कोई सवा सेर टकरा गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।”

 

पहलवान फन्ने खान की बीवी भी अक्सर उसे समझाती थी, लेकिन फन्ने खान इतना क्रोधी और ज़ाहिल था कि बीवी को ही पीट देता। बीवी ज़रीन अपने शौहर से बहुत दुखी थी। अक्सर वह अपनी सखी-सहेलियों से कहती -“मेरा मरदुआ तो इतना उज्जड है कि दूसरा कोई उसके सामने मूँछें भी ऊँची कर ले तो फाड़ खाने को दौड़ता है। ज्यादा तंग आ गयी तो एक दिन इसे छोड़-छाड़ कर भाग जाऊँगी।” 

 

लेकिन हमारे भारत देश में पिछली शताब्दी तक नारियाँ -कितनी ही बेचारियाँ हुईं हों, पति के खिलाफ कभी नहीं गयीं। ज़रीन भी अपने पति से खफा रहने, ज़िल्लतें सहने के बावजूद अपनी बदकिस्मती से उसे छोड़कर कभी नहीं भागी। यहाँ तक कि तीन बच्चों की माँ भी बन गयी। और माँ बनने के बाद उस ज़माने की हर औरत अपने सड़े से सड़े पति को सहन कर लिया करती थी। 

 

चतुर बनिया चतुरलाल बहुत ही मस्तमौला प्रवृत्ति का था। हरेक से बड़े प्यार से बोलना, अच्छे से बोलना, कभी गुस्सा न करना, बल्कि गुस्से वाली बातें भी हँसते-हँसते कह देना उसकी ख़ास आदत थी। वह अपने मोहल्ले में इतना लोकप्रिय था कि कभी किसी एक को पुकार लेता तो चार जनें दौड़े चले आते।

 

बनिये चतुरलाल की पत्नी कौशल्या बड़ी ही धर्मपरायण स्त्री थी! हर एकादशी के दिन वह पण्डित को बुलाकर सत्यनारायण भगवान की कथा करवाती थी! 

 

उस दिन घर भर के लोगों को सुबह सुबह उठकर स्नान आदि नित्य कार्यों से निवृत्त होना पड़ता था! 

 

चतुरलाल के लिये सभी नियमों से ऊपर एक नियम यह भी था कि वह भगवान सत्यनारायण की कथा सम्पन्न होने से पहले अपनी दुकान नहीं खोल सकता था! 

 

तो ऐसी ही एक एकादशी के दिन एक खास बात यह और हुई कि उस दिन चतुरलाल को अपना बचपन याद आ गया और उसे याद आया कि उसकी माँ के जीवित रहते, जब उनके घर भगवान सत्यनारायण की कथा होती थी तो उसकी माँ उसे कैसे आंखों में काजल लगाकर, करीने से बाल काढ़ कर, राजा बाबू बना देती थी और वह अपने बालों पर हाथ फेरकर कितना खुश होता था! 

 

उस एकादशी के दिन चतुरलाल अपनी दुकान खोलने के बाद, अपने बालों पर हाथ फेरते हुए बचपन की यादें ताजा कर रहा था कि कम्बख्त हाथ खिसककर बालों से मूंछों पर आ गया! 

चतुरलाल की मूंछें बहुत घनी और बड़ी-बड़ी थीं! चतुरलाल बेध्यानी में अपनी मूंछें ऐंठने लगा! दूसरे शब्दों में कहें तो यूँ समझिये कि वह मूंछों के दोनों किनारों को गोलाई में उमेठकर मूंछों पर ताव देने लगा, जैसे राजपूत क्षत्रिय अपनी मूंछें शान से ऊंची करते हुए अपनी मूंछों पर ताव देते हैं! 

 

बनिया चतुरलाल मूंछों पर ताव दे ही रहा था कि संयोग से पहलवान फन्ने खान पठान अपना लम्बा और मजबूत लट्ठ लिये सरसों का तेल खरीदने बनिये की दुकान पर आ पहुँचा!

आते ही फन्ने खान पठान चिल्ला कर बोला -“ओये लाले की जान, जल्दी से हमको एक पैसे का कड़ुवा तेल दे दे! हमको अपने लट्ठ को तेल पिलाना है!”

 

बनिया चतुरलाल उस समय आईने में अपना चेहरा देखकर, अपनी मूंछों को ऐंठते हुए अपने बचपन की यादें ताजा कर रहा था कि पहलवान पठान की कड़वी कर्कश आवाज़ ने उसे चौंका दिया! 

 

चतुरलाल ने आईना सामने से हटाकर मूंछों पर ताव देते हुए फन्ने खान की ओर देखा! और उसने देखा, सो देखा, पहलवान पठान ने जो देखा कि बनिया चतुरलाल उसके सामने ही अपनी मूंछों को ताव दे रहा है तो सनक गया और ताव खाकर बोला -“ओये लाले की जान, तुम साला, हमको दिखाकर हमारे सामने अपनी मूंछों ऊंची करता है! खबीस की औलाद, नीचे कर मूंछें.,!”

 

एक तो बनिया चतुरलाल स्वभाव से ही मनमौजी और निडर था, दूसरे भगवान सत्यनारायण की कथा का प्रसाद खाकर आया था तो ऐंठ गया फन्ने खान के आगे और उसकी बात पर बड़े प्यार से उसे समझाते हुए बोला -“पहलवान जी,  ये मूंछें आदमी की आन होती हैं! आदमी की शान होती हैं  और बन्दापरवर, ये ही मूंछें बनिये चतुरलाल की जान होती हैं तो कैसे झुका दूं जान को! ना, मूंछें तो ऊंची ही रहेंगी!”

 

“क्या…?” फन्ने खान कड़क उठा -“खबीस की औलाद, तुम हमारे सामने मूंछें ऊंची करता और हम ही से बोलता – मूंछें तो ऊंची ही रहेंगी!”

 

“हां, पहलवान जी…!” बनिये चतुरलाल ने ऊपर से नीचे अपनी नड़िया हिलाई! 

“क्या…?” फन्ने खान फिर से चिल्लाया -“तुम हमारे सामने अपना खोपड़ी भी हिलाता है! अबे मच्छर, जल्दी से मूंछें नीची कर, वरना अभी मसल दूंगा!”

पहलवान पठान फन्ने खान को गुस्से में देख, चतुरलाल को मज़ा आने लगा! वह इन्कार में दायें बायें सिर हिलाते हुए बोला -पहलवान जी, हमारे भगवान और आपके खुदा ने दो हाथ आपको दिये हैं, दो हाथ हमें भी दिये हैं! दो पैर आपको दिये हैं! दो पैर हमें भी दिये हैं! बटेर जैसी दो आंखें आपको दी हैं तो  सुन्दर सा काजल लगाने के लिए दो आंखें हमें भी दी हैं! जाओ, जाओ, हमारा दिमाग मत खाओ! कहीं हमें गुस्सा न आ जाये!”

“क्या…?” अब की बार फन्ने खान गला फाड़कर चिल्लाया -“तुम साला चूहा फन्ने खान हाथी पर गुस्सा करेगा! तुम्हारी यह हिम्मत..! हम अभी तुमको चीर-फाड़ डालेगा और तुम्हारा बोटी-बोटी चील-कौवे को खिला देगा!”

बनिया फिर हंसा -“जाओ पहलवान जी, गुस्सा ताजमहल के पीछे थूक आओ, क्योंकि गुस्सा हमें भी आता है और हमारा गुस्सा बहुत खराब होता है!”

अब फन्ने खान तू तड़ाक पर आ गया और गरजकर बोला -“ओये लाले की जान, तेरी इतनी हिम्मत, तू पहलवान फन्ने खान को ललकारे! उतर नीचे! बाहर आ अपनी दुकान से! हम अभी तेरे को मज़ा चखाता है!”

पहलवान पठान के तेवर देख, अब चतुरलाल को झटका सा लगा, पर फिर भी जरा भी उत्तेजित हुए बिना वह बोला-“पहलवान जी, शान्त हो जाइये! लड़ाई – भिड़ाई में कुछ नहीं रखा! हम दोनों लड़ेंगे तो दोनों में से एक पक्का मारा जायेगा और जो भी मारा जायेगा, उसके मरने के बाद उसका परिवार सड़क पर आ जायेगा! घर के लोगों को भीख मांगनी पड़ेगी और मैं नहीं चाहता कि मेरे मरने के बाद मेरे परिवार को भीख मांगनी पड़े, इसलिये सोचता हूँ आप से लड़ने से पहले अपने परिवार को खत्म कर आऊं, तब लड़ूं! लेकिन पहलवान जी, हम दोनों की लड़ाई में अगर आप हार गये और मारे गये तो क्या होगा! आपके परिवार को तो भीख मांगनी पड़ेगी या आप कहो तो आपकी बीवी और आपके बच्चों को मैं अपने घर नौकर रख लूंगा!”

“क्या? खबीस की औलाद, तू हमारा बीवी बच्चों को नौकरी देगा! गुलाम बनायेगा!”चिल्लाया पठान फन्ने खान! 

” क्या करूँ! आप मर जाओगे और आपकी बीवी और बच्चे जीवित रहेंगे तो इन्सानियत के तकाज़े से मुझे उनकी मदद करनी पड़ेगी! आखिर आप हमारे पड़ोसी भी तो हो!”

“अरे तो हम उनको तेरे यहाँ नौकरी करने के लिये जिन्दा ही नहीं छोड़ेगा!” गुस्से में मनभनात फन्ने खान तुरन्त अपने घर की ओर दौड़ गया! 

घर पहुँचते ही उसने अपनी बीवी जरीन और बच्चों को पीट पीटकर मार डाला और फिर खून सना लट्ठ लिये बनिये की दुकान पर आ धमका! आते ही लट्ठ ज़मीन पर पटक पटककर वह चिल्लाने लगा -“बाहर आ बनिये के बच्चे, बाहर आ खबीस की औलाद!”

बनिये चतुरलाल की दुकान पर उस समय अनेक ग्राहक आ चुके थे और वह उन्हें सौदा देने में मशगूल था! उसने पहलवान पठान फन्ने खान के चीखने चिल्लाने पर ध्यान ही न दिया और अपनी दुकानदारी में मस्त रहा, किन्तु फन्ने खान की चीख-पुकार, शोर-शराबे से बनिये चतुरलाल की दुकान के बाहर काफी भीड़ इकट्ठी हो गयी! 

लोगों ने फन्ने खान से बात पूछी तो गुस्से के मारे पागलपन की ज़द में पहुँचा फन्ने खान चीख उठा -“ये साला, दो कौड़ी का बनिया, मच्छर की औलाद हमारे सामने, फन्ने खान पठान के सामने मूंछें ऊंची करता!”

ग्राहकों को सौदा देकर निपटाने के बाद चतुरलाल ने बड़े भोलेपन से फन्ने खान को आवाज़ देकर पूछा -“पहलवान जी, क्या बात है? क्यों गर्म तवे पर पड़ी तेल की बूंद से उबल रहे हो!”

“तू साला, मच्छर, पठान से मुकाबला करेगा! आ जा, बाहर आ जा! कर मुकाबला!” फन्ने खान चिल्लाया! 

“माफ करना पहलवान जी, कहाँ आप हाथी और शेर और कहाँ मैं एक चींटी और मच्छर! मेरा आपका तो कोई झगड़ा ही नहीं है! या है झगड़ा तो बताओ!”

“है…झगड़ा है.. !” फन्ने खान चिल्लाया -“तूने हमारे सामने मूंछें ऊंची कीं!” 

“बस, इतनी सी बात…!” बनिये चतुरलाल ने दोनों कोनों से तलवार की तरह ऊंची तनी हुई अपनी मूंछों को एकदम झुका कर नीचे कर दिया और बोला -“अब तो झगड़ा खत्म! पहलवान जी, आप जीते, मैं हारा!”

 

अपनी बीवी और बच्चों की खोपड़ियां खोलकर, उन्हें परलोक पहुँचा कर आया फन्ने खान तुरन्त गश खाकर गिर पड़ा! 

 

और जब वह उठा, आगरा शहर के कोतवाल और सिपाहियों ने अपनी मासूम बीवी और बच्चों के कत्ल के इल्ज़ाम में उसे घेरे में ले लिया था! 

MORAL:

इन्सान को गुस्से में भी अपना आपा नहीं खोना चाहिये! बल्कि गुस्से में अक्ल के इस्तेमाल की ज्यादा ज़रूरत होती है! इस हास्य कथा के द्वारा हमने यही समझाया है कि गुस्से में हमेशा आदमी मूर्खताएं करता है और खुद को ही नुक्सान पहुँचाता है!