दो मित्र थे| दोनों में बहुत ही गहरी मित्रता थी| लोग भी उनकी मित्रता की मिसाल दिया करते थे|
भारत त्यौहारों का देश है। विभिन्न त्यौहारों पर अलग-अलग पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. इसी प्रकार धनतेरस पर भी यमराज की एक कथा बहुत प्रचलित है। कथा कुछ इस प्रकार है।
बादशाह अकबर ने बीरबल को आदेश दिया कि वह चार मूर्खों को एक सप्ताह में दरबार में हाजिर करे… और वह चारों एक से बढ़कर एक होने चाहिए|
अमरुद के एक पेड़ पर तोता-मैना का जोड़ा रहता था| उसी पेड़ की जड़ में एक बूढ़ा साँप भी रहता था| साँप बहुत ही कमज़ोर हो गया था| कई बार तो वह अपने भोजन की तलाश में भी नही जा पाता था| इसलिए तोता ही उसके लिए भोजन जुटाकर उसके बिल के पास रख देता था| साँप भी जानता था कि तोता उसका ख्याल रखता है|
बडे़ होने पर कृष्ण ने कंस का वध किया, नाना उग्रसेन को गद्दी पर बैठाया, देवकी के मृत पुत्रों को लेकर आए और माता-पिता को कारागार से मुक्ति दिलाई। कन्हैया के मित्र तो गोकुल के सभी बालक थे, लेकिन सुदामा उनके कृपापात्र रहे। अकिंचन सुदामा को वैभवशाली बनाने में दामोदर ने कोई कसर बाकी नहीं रखी। श्रीकृष्ण के जीवन में राधा प्रेम की मूर्ति बनकर आईं। जिस प्रेम को कोई नाप नहीं सका, उसकी आधारशिला राधा ने ही रखी थी।
अकबर ने बीरबल का मजाक बनाने के उद्देश्य से महल के बाहर बने एक हौज में 20 अंडे डलवा दिए और 20 ही दरबारियों को वहां खड़ा करके हुक्म दिया – “एक-एक कर कूदो और एक-एक अंडा निकाल लो|”
एक बार राजा पुरंजय ने राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। इसमें दूर-दूर से ऋषि-मुनि बुलाए गए। यज्ञ प्रजा की सुख-शांति के लिए किया जा रहा था। राजा पुरंजय अत्यंत प्रजावत्सल थे। उनके राज्य में जो भी कार्य किए जाते, वे प्रजा के हितों को ध्यान में रखकर ही किए जाते थे। सभी आमंत्रित ऋषि-मुनियों का राजा ने यथोचित सत्कार किया। तत्पश्चात यज्ञ आरंभ हो गया।
रमानाथ और दीनानाथ में गहरी दोस्ती थी| दोनों ही एक-दूसरे पर जान छिड़कने का दम भरा करते थे| एक दिन दोनों घने जंगल से होकर गुजर रहे थे कि मार्ग में उन्हें एक भालू आता दिखाई दिया| वह उनकी तरफ़ ही आ रहा था| रमानाथ तेजी से भागकर निकट के पेड़ पर चढ़ गया| उसने अपने मित्र दीनानाथ की तनिक भी चिंता नही की| वह बोला, ‘भाई दीनानाथ! जान है तो जहान है| तुम भी अपने बचाव का रास्ता खोजो|’
महर्षि भृगु ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे। उनकी पत्नी का नाम ख्याति था जो दक्ष की पुत्री थी। महर्षि भृगु सप्तर्षिमंडल के एक ऋषि हैं। सावन और भाद्रपद में वे भगवान सूर्य के रथ पर सवार रहते हैं।
बादशाह अकबर अक्सर दरबार में ठिठोली हेतु कोई-न-कोई सवाल पूछ लिया करते थे| एक बार उन्होंने पूछा कि कौन-सा शस्त्र सर्वश्रेष्ठ होता है?
एक बार वरुण के पुत्र भृगु के मन में परमात्मा को जानने की अभिलाषा जाग्रत हुई। उनके पिता वरुण ब्रम्ह निष्ठ योगी थे। अत: भृगु ने पिता से ही अपनी जिज्ञासा शांत करने का विचार किया। वे अपने पिता के पास जाकर बोले- ‘भगवन्!
किसी गाँव में चार मित्र साथ-साथ रहते थे| उनमें से तीन मित्र बड़े विद्वान थे|
बादशाह अकबर को किस्से-कहानियां सुनने का भी शौक था और वे अक्सर किसी-न-किसी दरबारी को कहानी सुनाने को कह देते थे| एक दिन दरबारियों ने बादशाह अकबर के कान भरे कि बीरबल को भी कई कहानियां आती हैं|
जोगे तथा भोगे दो भाई थे। दोनों अलग-अलग रहते थे। जोगे धनी था और भोगे निर्धन। दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था। जोगे की पत्नी को धन का अभिमान था, किन्तु भोगे की पत्नी बड़ी सरल हृदय थी।
बादशाह अकबर ने बीरबल से दो सवाल पूछे – “आदमी बीमार क्यों हुआ? साग अच्छा क्यों नहीं बना?”
नंदन वन में वृक्ष पर चिड़ियों का एक जोड़ा सुखपूर्वक रहता था| समय बीतने के साथ चिड़िया ने अंडे दिए| चिड़िया दिनभर अंडो पर बैठकर उन्हें सेती थी और चिड़ा भोजन जुटाता था|
बादशाह अकबर ने दरबार में सवाल किया – “सबसे उजला क्या है?”
शनि के नाम से ही हर व्यक्ति डरने लगता है। शनि की दशा एक बार शुरू हो जाए तो साढ़ेसात साल बाद ही पीछा छोड़ती है। लेकिन हनुमान भक्तों को शनि से डरने की तनिक भी जरूरत नहीं। शनि ने हनुमान को भी डराना चाहा लेकिन मुंह की खानी पड़ी आइए जानें कैसे…
अकबर ने दरबार में सवाल किया – “सूर्य और चंद्रमा के प्रकाश से कौन दूर है?”
भगवान श्रीराम वनवास काल के दौरान संकट में हनुमान जी द्वारा की गई अनूठी सहायता से अभिभूत थे। एक दिन उन्होंने कहा, ‘हे हनुमान, संकट के समय तुमने मेरी जो सहायता की, मैं उसे याद कर गदगद हो उठा हूं।
एक औरत एक आदमी को साथ लेकर बादशाह अकबर के दरबार में उपस्थित हुई और अपना दुखड़ा रोने लगी – “हुजूर, मैं लुट गई, इस आदमी ने मेरे सारे गहने लूट लिए हैं, अब आप ही इंसाफ करें|”
पाण्डु की दो पत्नियां थीं – माद्री और कुंती| दोनों रूपवती और गुणवती थीं| दोनों के हृदय में धर्म और कर्तव्य के प्रति अत्यधिक निष्ठा थी| दोनों पाण्डु को अपने जीवन का सर्वस्व समझती थीं| दोनों में परस्पर बड़ा प्रेम था| माद्री अवस्था में कुछ बड़ी थी| अत: कुंती उसे अपनी बड़ी बहन समझती थी|
सतयुग और त्रेता युग बीतने के बाद जब द्वापर युग आया तो पृथ्वी पर झूठ, अन्याय, असत्य, अनाचार और अत्याचार होने लगे और फिर प्रतिदिन उनकी अधिकता में वृद्धि होती चली गई| अधर्म के भार से पृथ्वी दुखित हो उठी| उसने ब्रह्मा, विष्णु और शिव के पास पहुंचकर प्रार्थना की कि वे उसे इस असहनीय भार से मुक्त करें|
दुर्योधन के अंत के साथ ही महाभारत के महायुद्ध का भी अंत हो गया। माता गाँधारी दुर्योधन के शव के पास खडी फफक-फफक कर रो रही हैं। पुत्र वियोग में “गाँधारी का भगवान कृष्ण को श्राप देना, भगवान कृष्ण का श्राप को स्वीकार करना और गाँधारी का पश्चताप करना”। इसका बडा ही मार्मिक वर्णन किया है धर्मवीर भारती जी ने (गीता-कविता से संकलित)
अकबर और बीरबल शाम के समय घोड़े पर बैठे नगर की सैर कर रहे थे| तभी बादशाह अकबर को मजाक सूझा और उन्होंने बीरबल से कहा – “भई अस्य पिदर सुमास्त|”
प्राचीन काल में मथुरा में एक प्रतापी नृपति राज्य करते थे| उनका नाम शूरसेन था| वे भगवान श्रीकृष्ण के पिता वसुदेव के पिता था| वे बड़े धर्मात्मा एवं प्रतिज्ञापालक थे| शूरसेन के एक अनन्य मित्र थे, जिनका नाम कुंतिभोज था| कुंतिभोज के पास सबकुछ तो था, किंतु संतान नहीं थी| वे संतान के अभाव में दिन-रात दुखी और चिंतित रहा करते थे| शूरसेन ने कुंतिभोज के दुख को देखकर उन्हें वचन दिया था कि वे अपनी प्रथम संतान उन्हें दान में दे देंगे|
एक बार नंदकिशोर ने सनतकुमारों से कहा कि चौथ की चंद्रमा के दर्शन करने से श्रीकृष्ण पर जो लांछन लगा था, वह सिद्धि विनायक व्रत करने से ही दूर हुआ था। ऐसा सुनकर सनतकुमारों को आश्चर्य हुआ।
दरबार में किसी बात पर बहस हो रही थी| बहस के दौरान बीरबल कुछ ऊंची आवाज में बोल गया, जो बादशाह अकबर को अच्छा नहीं लगा| उन्होंने बीरबल से कहा – “बीरबल, यह अच्छी बात नहीं है, तुम्हारा व्यवहार दिन-ब-दिन बिगड़ता ही जा रहा है पहले तो तुम ऐसे न थे, तुम्हें अब क्या हो गया है?”
ईरान में आक्रमणकारियों के आक्रमण से प्राण-रक्षा के लिए पारसी अग्निपूजक सातवीं शताब्दी में भारत के गुजरात प्रदेश में पहुँचे| गुजरात में उन दिनों राजा जाधव राणा का शासन था|
महाभारत विश्व का सबसे बड़ा महाकाव्य है। इसमें एक लाख से ज्यादा श्लोक हैं। महर्षि वेद व्यास के मुताबिक यह केवल राजा-रानियों की कहानी नहीं बल्कि धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की कथा है। इस ग्रंथ को लिखने के पीछे भी रोचक कथा है। कहा जाता है कि ब्रह्मा ने स्वप्न में महर्षि व्यास को महाभारत लिखने की प्रेरणा दी थी।