कुछ वर्षों पुरानी कहानी है, जब देश में रियासतें थी, पर इस कथा की सीख आज भी अमर है| एक राजा के दीवाने थे; काम करते-करते बूढ़े हो गए| वह राजा के पास पहुँचे|
बहुत पहले की बात है | एक गरीब किसान एक गांव में रहता था | उसके पास एक बहुत छोटा सा खेत था जिसमें कुछ सब्जियां उगा कर वह अपना व अपने परिवार का पेट पालता था |
विश्वामित्र के जाने के उपरांत राजा हरिश्चंद्र सोच में डूब गए कि ‘अब मै क्या करूं? इस अनजान नगर में कोई मुझे ॠण भ नहीं दे सकता| अब तो एक ही उपाय है की मै स्वयं को बेच दूं|’
संत-महात्मा और उनको पहचानने वाले बहुत ही दुर्लभ है| आज तो दम्भ, पाखण्ड और बनावटीपन इतना हो गया कि असली संत-महात्मा को पहचानना अत्यन्त ही कठिन कार्य हो गया है| पर सच्चे जिज्ञासु को पता लगता है| भगवान् कृपा करते है, तभी उनको पहचाना जा सकता है| अब उनकी पहचान क्या हो? हम उनकी पहचान नहीं कर सकते, हम तो अपनी पहचान कर सकते है|
श्री कृष्ण और अर्जुन बचपन के मित्र थे| एक बार दानियों की चर्चा हो रही थी| श्रीकृष्ण जी ने वार्तालाप के प्रसंग में कहा- “इस युग में कर्ण जैसा दूसरा दानी नहीं|” अर्जुन अपने बड़े भाई सम्राट युधिष्ठर से बड़ा परोपकारी एवं धर्मनिष्ठ दूसरे किसी को भी नहीं मानते थे|
एक चरवाहे का बेटा चीमो हर रोज अपनी भेड़ें चराने के लिए मैदान में जाया करता था | वह रोज सुबह भेड़ों को लेकर हरे-भरे मैदानों की ओर चल पड़ता था | सूरज डूबने से पहले ही वह घर को वापस चल देता था |
राजा को उदास और दुखी देख शैव्या ने कहा, “स्वामी! आप अपने को इस प्रकार लांछित न करें| झूठे लोग श्मशान की भांति वर्जित होते हैं| झूठे मनुष्य के समस्त अग्निहोत्र, अध्ययन, दान और पुरुषार्थ निष्फल हो जाते हैं|
एक सेठ था| उसके सात बेटे थे| उन सातों में छः का विवाह हो चूका था| अब सातवें बेटे का विवाह हुआ| उसका विवाह जिस लड़की से हुआ, वह अच्छे समझदार माँ-बाप की बेटी थी| माँ-बाप ने उसकी अच्छी शिक्षा दी हुई थी|
प्राचीनकाल में एक व्यापारी था | जिसका नाम था नजूमी | उसने अपने पिता का व्यापार कुछ समय पहले संभाला था |
एक गांव में एक जार रहता था | उसके तीन बेटे थे | वह चाहता था कि उसके बेटों का विवाह बहुत सुंदर और सुशील लड़कियों से हो | परंतु अपनी इच्छानुसार लड़कियां मिलना आसान नहीं था |
अत्यधिक विचलित होकर राजा हरिश्चंद्र उठ खड़े हुए और लोगो को पुकार-पुकार कर कहने लगे, “नगरवासियों! मेरी बात सुनो| यह मत पूछियेगा कि मै कौन हूं|
एक महात्मा थे| वे पैदल घूम-घूमकर सत्संग का प्रचार किया करते थे| वे एक गांव में जाते, कुछ दिन ठहरकर सत्संग करते और फिर वहाँ से दूसरे गांव चल देते| घूमते घूमते वे एक गांव में पहुँचे| गांव में सब जगह प्रचार हो गया कि महाराज जी पधारे हैं, आज अमुक जगह सत्संग होगा| सत्संग के समय बहुत से भाई बहन इकट्ठे हुए|
इंग्लैंड के एक गांव में मार्शल नामक फलों का व्यापारी रहता था | उसका व्यापार बहुत अच्छा था | मार्शल का बेटा थामस पढ़-लिख कर अपने पिता के व्यवसाय में हाथ बंटाने लगा था | वह खूब मेहनती और होशियार था | पिता को अपने पुत्र की काबिलियत पर गर्व था |
ब्राह्मण वेशधारी विश्वामित्र ने शैव्या को अपने साथ चलने को कहा| तभी रोहिताश्व ने अपनी माँ का आंचल पकड़ लिया| यह देखकर विनम्र दिखने वाला ब्राह्मण चिल्लाया, “ऐ लड़के! साड़ी का पल्ला छोड़ दे| मैंने तेरी माँ को ख़रीदा है, तुझे नहीं|”
एक बहुत धनी सेठ था| वह सुबह जल्दी उठकर नदी में स्नान करके घर आकर नित्य-नियम करता था| ऐसे वह रोजाना नहाने नदी पर आता था| एक बार एक अच्छे संत विचरते हुए वहाँ घाट पर आ गये| उन्होंने कहा-‘सेठ! राम-राम!’ वह बोला नहीं तो बोले-‘सेठ! राम-राम!’ ऐसे दो-तीन बार बोलने पर भी सेठ ‘राम-राम’ नहीं बोला| सेठ ने समझा कि कोई मांगता है|
एक समय की बात है जब बालक शुकदेव बचपन में ही वन के लिए चलने लगे, तब उनके पिता व्यास बोले- “अभी तो तुम्हारे सब संस्कार पूरे नहीं हुए, यहाँ तुम घर-परिवार को छोड़ते हो?” बालक शुकदेव ने कहा- “मैं इन्हीं संस्कारों से तो संसार में अटका हुआ हूँ|
होरोशियों नेलसन एक दरिद्र लड़का था| जब उसके मामा मारीच साक्लेंग एक समुंद्री जलयान के कप्तान बने, तब उनके भांजे ने पत्र लिखकर उनसे प्रार्थना की कि वह उन्हें किसी नौकरी पर लगा दे|
ब्राह्मण वेशधारी विश्वामित्र एक बूढ़ी औरत के पास उसकी देखभाल करने के लिए शैव्या और रोहिताश्व को छोड़कर वापस विश्वामित्र के रूप में राजा हरिश्चंद्र के पास आए|
एक गांव में करैलची नाम का एक किसान रहता था | उसकी आमदनी इतनी अच्छी थी कि अपनी पत्नी और बेटी का पेट आसानी से पाल सके | करैलची ने अपनी बेटी किराली को बहुत लाड़-प्यार से पाला था | किराली अपने पिता को बहुत प्यार करती थी |
एक पंडित काशी से पढकर आये| ब्याह हुआ, स्त्री आयी| कई दिन हो गये| एक दिन स्त्री ने प्रश्न पूछा कि ‘पंडित जी महाराज! यह बताओ कि पापका बाप कौन है?’ पंडित जी पोथी देखते रहे, पर पता नहीं लगा, उत्तर नहीं दे सके| अब बड़ी शर्म आयी कि स्त्री पूछती है पापका बाप कौन है? हमने पढ़ाई की, पर पता नहीं लगा| वे वापस काशी जाने लगे| मार्ग में ही एक वैश्या रहती थी|
सूर्यास्त होने में अभी थोड़ा समय बाकि था| राजा हरिश्चंद्र अपने आपको बेचने के लिए नगर में निकल पड़े| परन्तु उन्हें किसी ने नहीं ख़रीदा| तब वे श्मशान घाट पर जा पहुचें| वंहा धर्म ने चाण्डाल का रूप बनाया और राजा के सामने आकार बोला, “अरे! तुम कौन हो और यंहा क्यों आए हो?”
शहनाज बेगम अपने गरीब माता-पिता की आखिरी संतान थी | उसके छह भाई-बहन थे जो उससे बड़े थे | उसके माता-पिता ने उसके भाई-बहनों का विवाह कर दिया था |
महाराष्ट्र में समर्थ गुरु रामदास बाबा एक बहुत विचित्र संत हुए हैं| इस्म्के समंध में एक कथा प्रसिद्ध है| ये हनुमानजी के भक्त थे और इनको हनुमानजी के दर्शन हुआ करते थे| एक बार बाबा जी ने हनुमान जी से कहा कि ‘महाराज! आप एक दिन सब लोगों को दर्शन दें|’ हनुमान जी से कहा कि ‘तुम लोगों को इकट्ठा करो तो मैं दर्शन दूंगा|’ बाबा जी बोले कि ‘लोगों को तो मैं हरिकथा से इकट्ठा कर लूँगा|’
उसी समय क्रोध में भरे हुए विश्वामित्र वंहा आ पहुहें और बोले, “क्या बात है हरिश्चंद्र! क्या तुम मेरी दक्षिणा देना नहीं चाहते?”
सर्दियों के दिन थे | कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी | इस सर्दी में किसी को भी घर से बाहर निकलना अच्छा नहीं लगता था | एक दिन एक व्यापारी को किसी काम से शहर जाना पड़ा | वह अपने घोड़े पर सवार होकर चल दिया | सर्दी के मारे घोड़ा भी बहुत धीमी चाल चल रहा था |
संत महात्माओं को हमारी विशेष गरज रहती है| जैसे, माँ को अपने बच्चे की याद आती है| बच्चे को भूख लगते ही माँ स्वयं चलकर बच्चे के पास चली आती है, ऐसे ही संत-महात्मा सच्चे जिज्ञासुओं के पास खींचे चले जाते हैं| इस विषय में एक कहानी सुनी है-
कहते हैं कि ‘विपत्ति ही संपति की जननी है| परीक्षा के पलों में ही मनुष्य के महत्व का पता चलता है| जिसके जीवन में कठिनाईयां नहीं आतीं, उसकी आत्म-शक्ति और धैर्य की परीक्षा नहीं हो सकती|’
अनोवा और ग्रीट्स बहुत पक्के मित्र थे | वे एक दूसरे पर जाने छिड़कने को तैयार रहते थे | उन्हीं दिनों उनको मोरियो नामक एक व्यक्ति मिला | वह भी उन लोगों से मित्रता बढ़ाने लगा |
डाकुओं का एक दल था| उनमें जो बड़ा-बूढ़ा डाकू था, वह सबसे कहता था कि ‘भाई, जहाँ कथा-सत्संग होता हो, वहाँ कभी मत जाना, नहीं तो तुम्हारा काम बंद हो जाएगा|
उधर रानी दिन-रात ब्राह्मण के घर काम में जुटी रहती थी| ब्राह्मण उसके बेटे रोहिताश्व को भी काम बताता रहता था| एक दिन उसने रोहिताश्व को बगीचे से पूजा के फूल लेन को भेजा, जहां एक विषैले सर्प ने उसे डस लिया|