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शुद्ध हरिकथा

महाराष्ट्र में समर्थ गुरु रामदास बाबा एक बहुत विचित्र संत हुए हैं| इस्म्के समंध में एक कथा प्रसिद्ध है| ये हनुमानजी के भक्त थे और इनको हनुमानजी के दर्शन हुआ करते थे| एक बार बाबा जी ने हनुमान जी से कहा कि ‘महाराज! आप एक दिन सब  लोगों को दर्शन दें|’ हनुमान जी से कहा कि ‘तुम लोगों को इकट्ठा करो तो मैं दर्शन दूंगा|’ बाबा जी बोले कि ‘लोगों को तो मैं हरिकथा से इकट्ठा कर लूँगा|’

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हनुमान जी ने कहा कि ‘शुद्ध हरिकथा करना|’ हरिकथा से लोग आते हैं, शुद्ध हरिकथा से मैं आ  जाउँगा|’ बाबा जी बोले कि ‘शुद्ध हरिकथा ही करूँगा|’

संत तथा राजगुरु होने के कारण बाबा जी का ऐसा प्रभाव था कि वे जहाँ जाते, वहीं हजारों की संख्या में लोग इकट्ठे हो जाते| उन्होंने एक शहर में जाकर कहा कि आज रात शहर के बाहर अमुक मैदान में हरिकथा होगी| समाचार सुनते ही हरिकथा की तैयारी प्रारम्भ हो गयी| प्रकाश की व्यवस्था की गयी, दरियाँ बिछायी गयीं| समय पर बहुत-से लोग इकट्ठे हो गये| सब गाने-बजाने वाले आकर बैठ गये और कीर्तन प्रारम्भ हो गया| बीच-बीच में बाबा जी भगवान् की कथा कह देते और फिर कीर्तन करने लगते|  ऐसा करते-करते वे केवल कीर्तन में ही मस्त हो गये| लोगों को यह आशा थी की बाबाजी कथा सुनायेंगे, पर वे तो कीर्तन  ही करते चले गये| लोगों के भीतर असली भाव तो था नहीं; अतः ‘यह कीर्तन तो हम घर पर ही कर लिया करते हैं; यहाँ कबतक बैठे रहेंगे!’ ऐसा कहकर  वे धीरे-धीरे उठकर जाने लगे| वास्तव में वे घर पर कीर्तन करते नहीं थे| घर में कीर्तन करने की बात तो वहाँ से उठने का बहाना था| बाबा जी के पास में बैठे लोग कान पर जनेऊ टांगकर उठ गये! थोड़ी देर में सभी लोग उठकर चले गये| धीरे-धीरे गाने-बजाने वाले भी  खिसक गये|  बाबा जी तो आँखे बंद करके अपनी मस्ती में कीर्तन करते ही रहे| क्योंकि वे हनुमान जी की आज्ञा के अनुसार शुद्ध हरिकथा के रहे थे| प्रकाश की व्यवस्था करने वाले भी चले गये| अब दरिवालों को मुश्किल हो गयी कि बाबा जी तो मस्ती से नाच रहे हैं, दरी कैसे उठायें! उन्होंने  भी अटकल लगायी| जब बाबा जी नाचते-नाचते उधर गये तो इधर की दरी इकट्ठी कर ली और जब वे इधर आये तो उधर की दरी इकट्ठी कर ली और चल दिये| जब सब चले गये, तब हनुमान जी प्रकट हो गये| बाबा जी ने हनुमानजी से  बोले कि महाराज! सबको दर्शन दे!’ हनुमान जी बोले-‘सब है कहाँ?’ वहाँ और कोई तो और था ही नहीं, केवल बाबा जी ही थे|

इस प्रकार भावपूर्वक केवल भगवन्नाम संकीर्तन करना ‘शुद्ध हरिकथा’ है| इस शुद्ध हरिकथा भगवान् साक्षात् प्रकट हो जाते हैं|