किसी बियाबान जंगल में एक साधु रहता था| उसकी कुटिया छोटी-सी थी| कंद-मूल-फल खाकर वह अपना गुजारा करता था तथा दिन-रात ईश्वर के ध्यान में लीन रहता था|
एक बार अमेरिका के राष्ट्रपति जॉर्ज वॉशिंगटन नगर की स्थिति का जायजा लेने के लिए निकले। रास्ते में एक जगह भवन का निर्माण कार्य चल रहा था। वह कुछ देर के लिए वहीं रुक गए और वहां चल रहे कार्य को गौर से देखने लगे। कुछ देर में उन्होंने देखा कि कई मजदूर एक बड़ा-सा पत्थर उठा कर इमारत पर ले जाने की कोशिश कर रहे हैं। किंतु पत्थर बहुत ही भारी था, इसलिए वह इतने मजदूरों के उठाने पर भी उठ नहीं आ रहा था।
प्राचीन काल में गुलिक नामक एक व्याध था| वह बड़ा क्रूर था| वह पराये धन को हड़पने में सदा तत्पर रहता था| धन के लिए प्राणियों की, मनुष्यों की हत्या करने में भी उसके मन में हिचक न थी| वह सदा इसी अवसर की प्रतीक्षा में रहता था कि पराई स्त्रियों का अपहरण कर लूँ, कपटपूर्वक धन हरण कर लूँ, पशु-प्राणियों की हत्या कर दूँ|
एक राजा था| उसकी एक लड़की थी| जब राजकुमारी बड़ी हुई तो रानी को उसके विवाह की चिंता होने लगी| राजा के महल में एक जमादारिन सफाई करने आती थी| एक दिन रानी को उदास देखकर उसने उनकी उदासी का कारण पूछा, तो रानी ने कहा – “क्या कहूं? लड़की बड़ी हो गई है| उसके ब्याह की चिंता मुझे रात-दिन खाए जा रही है|”
एक बार अवंतिपुर में साधु कोटिकर्ण आए। उन दिनों उनके नाम की धूम थी। उनका सत्संग पाने दूर-दूर से लोग आते थे। उस नगर में रहने वाली कलावती भी सत्संग में जाती थी। कलावती के पास अपार संपत्ति थी। उसके रात्रि सत्संग की बात जब नगर के चोरों को मालूम हुई तो उन्होंने उसके घर सेंध लगाने की योजना बनाई।
प्राचीन काल में रुक्मांगद नामक एक प्रसिद्ध सार्वभौम नरेश थे| भगवान् विष्णु की आराधना ही उनका जीवन था| वे चराचर-जगत् में अपने आराध्य भगवान् हषीकेश के दर्शन करते तथा पद्मनाभ भगवान् की सेवा की भावना से ही अपने राज्य का संचालन करते थे| वे सभी प्राणियों पर क्षमा भाव रखते थे|
रैदास नाम के एक बड़े भगवद्भक्त थे| वे काशी में रहते थे| गंगा के घाट के पास ही उनकी झोंपड़ी थी, जिसमें वे अपनी पत्नी के साथ रहते थे और झोंपड़ी के बाहर बैठकर जूते गांठते रहते थे|
यह घटना उस समय की है, जब डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन मद्रास के एक ईसाई मिशनरी स्कूल के छात्र थे। वह बचपन से बेहद कुशाग्र एवं तीव्र बुद्धि के थे। कम उम्र में ही उनकी गतिविधियां व उच्च विचार लोगों को हैरानी में डाल देते थे।
बादशाह अकबर अपने दरबारियों और कुछ अंगरक्षकों के साथ नौका-विहार कर रहे थे| बीरबल भी उनके साथ था| नाव जब बीच नदी में पहुंची तो अकबर ने एक तिनका दिखाकर कहा – “कहते हैं डूबते को तिनके का सहारा, आज देखते हैं यह तिनका किसका सहारा बनता है| जो भी इस नदी को तिनके के सहारे पार कर लेगा मैं उसे दिल्ली का बादशाह बना दूंगा|”
एक बार महर्षि आपस्तम्बने जल में ही डूबे रहकर भगवद् भजन करने का विचार किया| वे बारह वर्षों तक नर्मदा और मत्स्या संगम के जल में डूबकर भगवत्स्मरण करते रह गए|
महर्षि याज्ञवल्क्य का शास्त्र ज्ञान और ब्रह्मज्ञान अपूर्व है| यज्ञवल्क के वंशज होने के कारण इनका नाम याज्ञवल्क्य पड़ा| इनके पिता का नाम ब्रह्मा था|
भगवान् बुद्ध की धर्म-सभा में एक व्यक्ति रोज जाया करता था और उनके प्रवचन सुना करता था|
एक फकीर कहीं जा रहे थे। रास्ते में उन्हें एक सौदागर मिला, जो पांच गधों पर बड़ी-बड़ी गठरियां लादे हुए जा रहा था। गठरियां बहुत भारी थीं, जिसे गधे बड़ी मुश्किल से ढो पा रहे थे। फकीर ने सौदागर से प्रश्न किया, ‘इन गठरियों में तुमने ऐसी कौन-सी चीजें रखी हैं, जिन्हें ये बेचारे गधे ढो नहीं पा रहे हैं?’
बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा – “बीरबल! क्या हमारी सारी प्रजा ईमानदार है?”
बगदाद के खलीफ़ा हारून रशीद एक दिन महल में उदास बैठे थे| तभी उनका वज़ीर जाफ़र किसी काम से वहाँ पहुँचा| बादशाह को चिंतित देखकर वह चुपचाप हाथ बाँधकर एक और खड़ा हो गया|
किसी नगर में एक व्यापारी रहता था| व्यापारी ने अपने व्यापार से खूब कमाई की| जिससे उसकी तिजोरियां धन-दौलत से भर गईं| चारों ओर उसका नाम हो गया|
एक संत थे। उन्होंने अपने चार शिष्यों को बुलाकर कहा देश की पवित्र नदियों का जल लेकर आओ। चारों शिष्य अलग-अलग दिशाओं में नदियों का जल लेने के लिए चल दिए।
बीरबल के साथ सैर कर रहे बादशाह अकबर की नजर एक कुत्ते पर पड़ी जो सूखी और जली हुई रोटी चबा रहा था| जलने के कारण वह रोटी काली पड़ गई थी| यह देखकर अकबर ने बीरबल से कहा – “देखो बीरबल, बेचारा कुत्ता ‘काली’ को खा रहा है|”
पहले मैं दमशिक नगर में हकीमी किया करता था| अपनी चिकित्सा के कारण वहाँ मेरी बड़ी प्रतिष्ठा हो गई थी| एक दिन वहाँ के हकीम ने मुझसे कहा, “फलां मकान में एक रोगी है, वह वहाँ आ नही सकता| उसको वही जाकर देखो|”
एक डाकू था| वह जंगल में छिपा रहता था और उधर से जो भी निकलता था, उसको लूटकर अपनी गुजर-बसर करता था| एक दिन नारद उधर से निकले| डाकू उन पर हमला करने को आया| नारद ने उसे देखकर अपनी वीणा पर गाना आरंभ कर दिया| डाकू चकित होकर आगे बढ़ा|
एक बूढा व्यक्ति था। उसकी दो बेटियां थीं। उनमें से एक का विवाह एक कुम्हार से हुआ और दूसरी का एक किसान के साथ।
एक व्यापारी को नींद न आने की बीमारी थी। उसका नौकर मालिक की बीमारी से दुखी रहता था।
लापरवाही से तलवार पकड़ने के कारण एक बार अकबर के अंगूठे का ऊपरी हिस्सा थोड़ा-सा कट गया, जिसके कारण वे दर्द से कहरा उठे| यह देखकर बीरबल ने कहा – “भगवान जो करता है, अच्छा ही करता है|”
अनाज के मुसलमान व्यापारी ने अपनी कहानी सुनानी प्रारंभ की-
एक राजा था| उसके राज्य में कभी भी उपद्रव नहीं होते थे| प्रजा बहुत सुखी थी| उसके राज्य से सटा एक दुसरे राजा का छोटा-सा राज्य था, लेकिन उसमें आए दिन लड़ाई-झगड़े होते रहते थे| लोग आपस में लड़ते रहते थे| उसकी प्रजा बहुत ही दुखी थी, जिसकी वजह से राजा भी बहुत परेशान था|
बादशाह अकबर अपने पुत्र सलीम तथा बीरबल के साथ नगर भ्रमण कर रहे थे| चलते-चलते अकबर ने अपनी भारी अचकन उतार कर बीरबल को पकड़ा दी| थोड़ी देर बाद सलीम ने भी वैसा ही किया|
पुराने जमाने में तातार देश के समीपवर्ती नगर काशनगर में एक दर्जी रहता था जो अपनी दुकान में बैठकर कपड़े सीता था| एक दिन वह अपनी दुकान पर काम कर रहा था कि एक कुबड़ा एक दफ्म (बड़ी खंजरी जैसा बाजा) लेकर आया और उसकी दुकान के नीचे बैठकर गाने लगा| दर्जी उसका गाना सुनकर बहुत खुश हुआ|
मैं मिस्त्र की राजधानी काहिरा का निवासी हूँ| मेरा बाप दलाल था| उसके पास काफ़ी पैसा हो गया| उसके मरने के बाद मैंने भी वही व्यापार आरंभ किया| एक दिन मैं अनाज की मंडी में अपने दैनिक व्यापार के लिए गया तो मुझे अच्छे कपड़े पहने एक आदमी मिला| उसने मुझे थोड़े-से तिल दिखाकर पूछा, “ऐसे तिल क्या भाव बिकते है?”
एक महात्मा हिमालय में रहते थे| वे हमेशा प्रभु का ध्यान करते रहते थे और दर्शननार्थियों को उपदेश दिया करते थे| एक दिन पढ़े-लिखे लोगों की एक टोली उनके पास पहुंची उन्होंने कहा – “महाराज, हम दुनिया को नहीं छोड़ना चाहते| उसी में रहकर आत्मिक उन्नति करना चाहते हैं| कोई उपाय बताइए|”
‘स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’ और हम इसे लेकर रहेंगे- का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक बाल्यावस्था से ही कुछ उच्च सद्गुणी- सत्य भाषण एवं अदभूत साहस से परिपूर्ण थे|