नया जन्म

एक डाकू था| वह जंगल में छिपा रहता था और उधर से जो भी निकलता था, उसको लूटकर अपनी गुजर-बसर करता था| एक दिन नारद उधर से निकले| डाकू उन पर हमला करने को आया| नारद ने उसे देखकर अपनी वीणा पर गाना आरंभ कर दिया| डाकू चकित होकर आगे बढ़ा|

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जब वह नारद के पास पहुंचा तो नारद उसे देखकर हंस पड़े| डाकू को अब और भी ज्यादा आश्चर्य हुआ| अब तक उसने ऐसा कोई आदमी नहीं देखा था, जो उसे देखकर न डरे क्योंकि उसके हमला करते ही लोग भागने की कोशिश करते थे या उसके सामने सिर झुका देते थे, लेकिन यह आदमी न तो भाग रहा था और न ही सिर झुका रहा था| उसे विस्मित देखकर नारद ने पूछा – “क्यों, क्या चाहते हो?”

डाकू ने कहा – “तुम्हें लूटना चाहता हूं| यही मेरा धंधा है|”

नारद बोले – “अच्छा, यह बताओ कि तुम अपनी स्त्री से पूछकर आए हो कि वह तुम्हारे इस पाप में भागीदार है या नहीं?”

डाकू ने कहा – “भागीदार क्यों नहीं होगी?”

नारद बोले – “मैं यहीं रुका हूं| तुम जाकर एक बार पूछ तो आओ|”

डाकू ने उनकी बात मान ली| वह दौड़ा-दौड़ा घर गया| पत्नी ने पूछा – “मैं जो पाप करता हूं, उसमें तुम हिस्सेदार हो?”

स्त्री ने कहा – “नहीं, तुम जो लूटकर माल लाते हो, उससे मैं तुम्हारी घर-गृहस्थी चला देती हूं| पाप से मेरा क्या संबंध है?”

डाकू की आंखें खुल गईं| लूट के माल में सबका साझा था, पर पाप में वह अकेला भागीदार था|

वह लौटकर आया और नारद के पैर पकड़कर रोने लगा| बोला – “मैं पापी हूं| मेरा उद्धार करो|”

नारद ने कहा – “तुमने अपनी भूल को समझ लिया, तुम्हारा नया जन्म हो गया| तुम्हारे सारे पाप दूर हो गए|” उस दिन से डाकू ने बुरा काम छोड़ दिया| यही डाकू आगे चलकर महर्षि वाल्मीकि बने|

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