हनुमान जी बड़े आश्चर्य में थे| अब तक श्रीराम ने उनकी किसी भी बात पर कभी ‘ना’ नहीं की थी| किंतु उस दिन न जाने क्यों वह बार-बार हनुमान जी के प्रस्ताव को ठुकरा रहे थे|
समुद्र पार जाने के लिए पुल के निर्माण का काम प्रगति पर था| राम की सेना उत्साह से फूली नहीं समा रही थी| भालू-वानर भाग-भागकर काम कर रहे थे|
लंका युद्ध की समाप्ति के पश्चात श्रीराम सभी वानरों तथा राक्षसों के साथ अयोध्या की ओर पुष्पक विमान द्वारा चले|
एक दिन की बात है कि भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तीनों भाई माता जानकी के पास पहुंचे| माता जानकी ने पूछा – “आज तीनों भाई एक साथ कैसे पधारे?”
जगजननी जानकी और जगत्त्राता प्रभु श्रीराम को अयोध्या के सिंहासन पर आसीन देखकर सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया|
एक बार हनुमान जी ने अपने प्रभु श्रीराम से अपनी माता अजना के दर्शनार्थ जाने की आगया मांगी| प्रभु ने उन्हें सहर्ष आज्ञा प्रदान कर दी|
श्रीरामश्वमेध का अश्व भ्रमण करता हुआ महर्षि वाल्मीकि के पुनीत आश्रम के समीप पहुंचा| प्रातःकाल का समय था|
श्रीराम के अश्वमेध का अश्व भ्रमण करता हुआ प्रख्यात कुंडलपुर के समीप पहुंचा| वहां के अत्यंत धर्मात्मा नरेश का नाम सुरथ था|
भगवान श्रीराम के अश्वमेध का अश्व घूमता हुआ हेमकूट पर्वत के एक विशाल उद्यान में पहुंचा ही था कि वहां अकस्मात उसका सारा शरीर अकड़ गया|
महाराज वीरमणि देवपुर नामक नगर के नरेश थे|
भगवान श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ के अश्व के साथ शत्रुघ्न की सेना चक्रांका नगरी के समीप पहुंची| उस नगरी के नरेश धर्मात्मा सुबाहु थे|
हनुमान अगस्त्य जी की प्रेरणा से भगवान श्रीराम ने अश्वमेध यज्ञ करने का संकल्प किया|
लंकाधीश रावण क्रोध से दांत किटकिटा रहा था| उसके सारे प्रमुख बलशाली योद्धा युद्ध में मारे जा चुके थे|
श्रीराम और रावण युद्ध चरमसीमा पर पहुंच चुका था| एक-एक करके रावण के अनेक सेनापति, पुत्र मेघनाथ, भाई कुंभकर्ण समेत कई राक्षस मारे जा चुके थे|
राम और रावण की सेनाओं में भयंकर युद्ध चल रहा था| रावण का पुत्र मेघनाथ लक्ष्मणके सम्मुख युद्ध में रत था|
भगवान श्रीराम ने अपने प्रतिज्ञा पूरी की| उन्होंने बालि का वध करके सुग्रीव को भयमुक्त करके किष्किंधा का राज्य सौंप दिया|
सूर्यदेव से शिक्षा प्राप्त करके हनुमान जी वापस कांचनगिरी पर पहुंचे| माता अंजना, पिता केसरी उन्हें सम्मुख पाकर बहुत हर्षित हुए|
माता अंजना अपने पुत्र की मानसिक स्थिति देखकर कभी कभी उदास हो जातीं और वानरराज केसरी तो प्रायः चिंतित ही रहा करते|
बालक हनुमान बड़े ही चंचल और नटखट थे| एक तो प्रलयंकर शंकर के अवतार, दूसरे कपि-शावक, उस पर देवताओं द्वारा प्रदत्त अमोघ वरदान|
बालक पर सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है माता के जीवन एवं उसकी शिक्षा का| आदर्श माताएं पुत्र को श्रेष्ठ एवं आदर्श बना देती हैं|
माता अंजना अपने प्राणप्रिय पुत्र हनुमान का लालन-पालन बड़े ही मनोयोगपूर्वक करतीं| कपिराज केसरी भी उन्हें अत्यधिक प्यार करते|
हजारों वर्ष पहले कांचगिरि (सुमेरु पर्वत) पर वानरराज केसरी निवास करते थे| उनकी पत्नी का नाम अंजना था, जो वानरराज कुंजर की पुत्री थीं| पति-पत्नी दोनों बहुत सुखी थे|
मित्रो! पहली यात्रा में मुझ पर जो विपत्तियां पड़ी थीं, उनके कारण मैंने निश्चय कर लिया था कि अब व्यापार यात्रा न करूंगा और अपने नगर में सुख से रहूंगा|
खलीफा हारूं रशीद के शासन काल में एक गरीब मजदूर रहता था, जिसका नाम हिन्दबाद था|
“जहांपनाह! मेरी मां मुझे लेकर अपने घर में आई ताकि उसे अकेलापन न खले, फिर उसने मेरा विवाह इसी नगर के बड़े आदमी के बेटे के साथ कर दिया|
युवक बोला, “मेरे पिता इस नगर के बादशाह थे| उनका राज्य बड़ा विस्तृत था| किंतु बादशाह और उसके सभी अधीनस्थ लोग अग्निपूजक थे|
जुबैदा ने खलीफा के सामने सिर झुकाकर निवेदन किया, “हे आलमपनाह! मेरी कहानी बड़ी ही विचित्र है, आपने अभी तक इस प्रकार की कोई कहानी नहीं सुनी होगी|
मेरा नाम अजब है और मैं महाऐश्वर्यशाली बादशाह किसब का बेटा हूं| पिता के स्वर्गवास के बाद मैं सिंहासनारूढ़ हुआ और उसी नगर में रहने लगा, जिसे मेरे पिता ने अपने राजधानी बनाया था|
किसी नगर में एक भला आदमी रहता था| उसका पड़ोसी उसके प्रति ईर्ष्या और द्वेष रखता था|
मैं एक बड़े राजा का पुत्र हूं| बचपन से ही मेरी विद्यार्जन में गहरी रुचि थी| मेरे पिता ने दूर-दूर से प्रख्यात शिक्षक बुलाकर मेरी शिक्षा के लिए रखे|