Homeशिक्षाप्रद कथाएँसिंदबाद की दूसरी समुद्री यात्रा का वृत्तांत (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा

सिंदबाद की दूसरी समुद्री यात्रा का वृत्तांत (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा

सिंदबाद की दूसरी समुद्री यात्रा का वृत्तांत (अलिफ लैला) - शिक्षाप्रद कथा

मित्रो! पहली यात्रा में मुझ पर जो विपत्तियां पड़ी थीं, उनके कारण मैंने निश्चय कर लिया था कि अब व्यापार यात्रा न करूंगा और अपने नगर में सुख से रहूंगा| किंतु निष्क्रियता मुझे खलने लगी| यहां तक कि मैं बेचैन हो गया और फिर इरादा किया कि नई यात्रा करूं और नए देशों, वादियों, पहाड़ों आदि को देखूं|

इस निर्णय पर पहुंचते ही मैंने दूसरे दिन से ही व्यापारिक वस्तुएं खरीदनी शुरू कर दीं, फिर जल्दी ही मैं यात्रा पर भी निकल गया| यह यात्रा काफी सुखद रही थी| हम कई मुल्कों के बंदरगाहों पर गए और वहां के बाजारों से माल की खरीद-फरोख्त की| अभी तक मालिक की कृपा से हमारे सामने किसी किस्म की परेशानी खड़ी नहीं हुई थी और व्यापार में मुनाफा भी काफी हुआ था|

फिर-एक दिन हमारा जहाज एक हरे-भरे टापू पर जाकर रुका| वहां तरह-तरह के फलों के बाग थे| जहाज से उतरकर हमने कुछ समय वहां आराम करने का मन बनाया| खूब फल खाकर हम लोगों ने वहीं पेड़ों के नीचे लेट-बैठकर कुछ समय आराम किया, फिर सभी का विचार बना कि उस टापू पर घूमकर देखा जाए|

हम लोग टापू के भीतर को ओर चल दिए| अचानक तब हमें काफी हैरानी हुई जब हम टापू में काफी अंदर तक आ गए और वहां हमें कोई टापूवासी दिखाई न दिया| हम सोचने लगे कि क्या इस टापू पर कोई नहीं रहता?

इसी उत्सुकता में मैं अपने साथियों से अलग होकर एक अन्य दिशा में बढ़ने लगा| मेरा खयाल था कि यदि इस तरफ बस्ती होगी तो उसे सबसे पहले खोजने को श्रेय मुझे ही मिलेगा और मैं अपने साथियों को भी चौंका देना चाहता था|

मैं अभी कुछ दूर ही आगे बढ़ा था कि वहां छोटे-छोटे पहाड़ों का सिलसिला शुरू हो गया| थोड़ा और आगे बढ़ने पर मुझे एक झरना दिखाई दिया| वहां भी घने वृक्ष थे, जिनकी छांव बेहद ठंडी थी| वहां का वातावरण बड़ा ही खुशगवार था, इसीलिए मैंने वहीं एक वृक्ष के नीचे बैठकर आराम करने को मन बनाया| मैं एक ऐसे वृक्ष की जड़ में बैठ गया जहां नर्म-नर्म घास थी| मैं जैसे ही वहां बैठा, वैसे ही मेरा लेटने का मन हुआ| और फिर लेटते ही मुझे नींद आ गई|

जब मेरी आंख खुली तो बिना आसपास देखे मैं उठकर तेजी से जहाज की दिशा में भागा| सूरज की दिशा बदल जाने से मुझे आभास हो गया था कि मैं काफी देर तक सोता रहा हूं|
मेरे कदमों में बला की तेजी आ गई|

दरख्तों से निकलकर जैसे ही मैंने खुले मैदान में कदम रखा, मेरा कलेजा धक् से रह गया|

टापू के किनारे पर दूर-दूर तक जहाज दिखाई नहीं दे रहा था|

एक पल के लिए तो मैं अपने स्थान पर जड़ होकर रह गया, मगर दूसरे ही पल मेरे शरीर में जैसे बिजली सी भर गई|

मैं जान छोड़कर समुद्र की तरफ भागा और लगभग गिरता पड़ता किनारे पर पहुंचा| मगर मेरी हालत में किसी किस्म की तबदीली नहीं आई क्योंकि वहां दूर-दूर तक जहाज का कोई पता नहीं था|

लगता था, वे मुझे छोड़कर चले गए हैं| हो सकता है कि उन्होंने मुझे खोजने की कोशिश की हो, मगर न मिलने पर मुझे मर-खप गया समझकर चले गए हों|

मैं बेचैन हो उठा कि वे मुझे इस तरह छोड़कर कैसे चले गए? फिर मैं पलटकर अपने पीछे देखने लगा कि शायद मेरी तरह कोई और भी जहाजी वहां रह गया हो| मगर नहीं, मेरे जैसा कोई दूसरा बदनसीब वहां नहीं था|

दोस्तो! मैं मुसीबत के समय कभी हिम्मत नहीं हारता था| उस समय भी मैंने हिम्मत नहीं हारी| अब हालात ये थे कि मेरा जहाज जा चुका था और उस अनजान टापू पर मैं अकेला था|

सूरज तेजी से पश्चिम की तरफ बढ़ रहा था और अब कुछ ही देर में शाम और फिर रात को जाने वाली थी|

रात होने पर न जाने यहां का माहौल क्या हो, अत: इससे पहले ही मुझे अपने लिए रात गुजारने की कोई मुनासिब जगह खोजनी थी|

मैं एक दरख्त पर चढ़ गया और दूर-दूर तक देखने लगा| मगर वहां न तो कहीं कोई बस्ती थी और न ही कोई कबीला| पेड़ों का यह सिलसिला भी थोड़ी दूर तक था, उसके बाद छोटे-छोटे पहाड़ और पहाड़ों के बाद वीरान टापू| अजीब किस्म का टापू था यह| इसके इस हिस्से पर तो हरियाली थी और दूसरा सिरा बिलकुल सपाट और बदरंग था| टापू के बाद दूर-दूर तक पानी के सिवा और कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था| पानी का इतना बड़ा जखीरा देखकर मेरे पेट में हौल के गोले उठने लगे| क्या करूं? कहां जाऊं? मेरी अक्ल कुंद हो गई| कुछ भी नहीं सूझ रहा था|

ऐसे मैं मैंने अपनी कमर पर बंधी चमड़े की चौड़ी पेटी खोली| ऐसी पेटियां हम सभी जहाजियों के पास होती थीं जिनमें हम मुसीबत के समय के लिए खाना और शराब की शीशियां रखते थे| मैंने शराब की एक शीशी निकाली और गटागट एक ही सांस में उसे खाली कर दिया| मेरे सीने में आग-सी भर गई मगर मैं जानता था कि इस आग के बाद जब मुझ पर नशा छा जाएगा तो मुझमें काफी हिम्मत पैदा हो जाएगी और मैं बेहतर ढंग से अपने बचाव का कोई रास्ता निकाल सकूंगा| अल्लाह जाने रात वहां क्या होता| मैंने तो ऐसा भी सुना था कि ऐसे द्वीपों पर रातों को बुलाएं भी आ जाती हैं या जिनात वगैरह खौफनाक मंजर पेश करते हैं और यदि बाहरी दुनिया से कोई आदमजाद इनकी दुनिया में चला आता है तो ये बलाएं उसे कच्चा चबा जाती हैं|

मेरे इस खयाल की तस्दीक इस बात से भी होती थी कि वहां फलों से लदे-फंदे दरख्तों की देखभाल करने वाला कोई आदमजाद मुझे वहां दिखाई नहीं दिया था, तो जाहिर था कि ये जिनात ही उनके रखवाले थे| उन नामालूम जिनातों को लेकर मैंने अपने मन में कई कहानियां बुन डाली थीं जिनका पता नहीं कोई वजूद भी था या नहीं| धीरे-धीरे मुझ पर नशा-सा छाने लगा तो मेरा डर कुछ कम हुआ| मेरी आंखों में भी कुछ ज्यादा ही चौकन्नापन और पैनापन आ गया| यकबयक मेरी नजर बहुत दूर धरती पर पड़ी एक सफेद चीज पर पड़ी| मुझे लगा कि किसी ने जमीन पर कोई कपड़ा सुखाया हुआ है|

उसे देखकर मेरी कुछ हिम्मत बंधी और मैं जल्दी-जल्दी पेड़ से उतरने लगा| मैंने उस तरफ बढ़ने का इरादा किया था|

अगर वहां कोई कपड़ा सूख रहा था तो मेरा खयाल था कि उसके आसपास ही उस कपड़े को इस्तेमाल करने वाले कुछ आदमी भी होंगे| ये अलग बात थी कि इतने ऊंचे से निगहबानी करने पर भी मुझे उस टापू पर कोई आदमजाद दिखाई नहीं दिया| मगर जब तक सांस, तब तक आस, यही सोचकर मैं तेजी से उस तरफ बढ़ने लगा|

पेड़ों के झुंडों से निकलकर जब मैं खाली मैदान में पहुंचा तो उस चीज की सूरत साफ होने लगी| मेरा यह खयाल गलत साबित हुआ था कि वह कोई कपड़ा था| दरअसल, वह एक बहुत बड़ी गेंद सी थी| वह झोंपड़ी जितनी बड़ी गेंद थी जिसे देखकर मुझे अंदेशा हुआ कि शायद उसमें कोई रहता हो| शायद यहां ऐसे ही मकानों को चलन हो|

मैं और तेजी से उस तरफ बढ़ा|

करीब जाकर मैंने देखा कि वहां कोई नहीं था| सांय-सांय करती हवा के सिवा वहां किसी की मौजूदगी का अहसास नहीं होता था|

मैंने उस गेंद को छूकर देखा| उसकी दीवारें बेहद पतली थीं| फिर उस गेंद का दरवाजा ढूंढ़ने के खयाल से मैं उसके चारों तरफ घूम गया, मगर चक्कर पूरा करने के बाद मेरी नजर में कोई दरवाजा न आया| न ही उसमें कहीं कोई सुराख था| मैं बड़ा हैरान हुआ कि या खुदा, ये क्या शै है?

मैंने उस पर चढ़ने का खयाल किया, मगर उस पर हाथ फेरते ही मेरा यह खयाल भी धरा रह गया| दरअसल, वह इतना चिकना था कि उस पर पैर टिकना नामुमकिन था| अब मैं उस गोले की लम्बाई-चौड़ाई का मुआयना करने लगा| वह करीब तीस गज लम्बा था और सात-आठ गज चौड़ा भी जरूर होगा|

दरअसल, जब वहां आकर भी मुझे कहीं सिर छिपाने का ठिकाना दिखाई नहीं दिया और मेरी वहां तक आने की मेहनत बेकार जाती दिखाई दी तो मुझे अपने आप पर ही गुस्सा आ गया| सूरज तेजी से डूब रहा था और इससे पहले कि वह बिलकुल डूब जाता और वहां फैला सुरमई उजाला स्याह हो जाता, उससे पहले ही मुझे रात गुजारने का कोई माकूल इन्तजाम करना था, जहां रात भर मेरे सामने कोई खतरा पेश न आए|

परेशान होकर मैं इधर-उधर देख ही रहा था अचानक वहां चारों तरफ अंधेरा छा गया जैसे किसी ने सूरज के सामने परदा खींच दिया हो|

मैंने घबराकर ऊपर की तरफ देखा तो मेरे हलक से एक हौलनाक चीख उबल पड़ी|

दहशत के मारे मेरा जिस्म सूखे पत्ते की तरह कांप गया|

मुझे लगा कि अब जिंदगी की शाम होने वाली है| दरअसल, एक जहाज जैसी चिड़िया पंख फैलाए ठीक मेरे सिर पर मंडरा रही थी| उसके पंख किसी हवाई जहाज के डैनों जैसे थे और शरीर का आकार भी उससे किसी सूरत कम न था| डर के मारे मैंने चीखना चाहा, मगर चीख नहीं सका| मेरी आवाज हलक में ही घुट गई| नशा तो न जाने कब का हिरन हो चुका था, अब तो हलक भी सूख गया था| मगर एक अच्छी बात ये थी कि मेरे होशो-हवास गुम नहीं हुए थे|

आसमान की तरफ चेहरा उठाए मैं उस करिश्मे को देखने लगा| जब मैंने उसे गौर से देखा तो पता चला कि वह गिद्ध था| उसके भारी आकार और पंखों ने सूरज को ढक लिया था| उसकी आंखें घड़े के से आकार की गोल और उभरी हुई थी| चोंच का रंग ऐसा लाल था जैसे वह उसे खून के दरिया में डुबोकर उड़ा हो| उसके पंजे काफी बड़े थे, उनका फैलाव बड़ के पेड़ की छतरी जितना था और पैरों की गोलाई किसी भी सूरत में बड़ के तने से कम नहीं थी| उसके नाखून तलवारों जितने लम्बे और पैने थे| सफर के दरमियान एक सौदागर ने मुझे बताया था कि दुनिया में एक टापू ऐसा भी है जहां छोटी ह्वेल मछलियों जितने बड़े गिद्ध रहते हैं और मुझे लग रहा था कि इस समय मैं उसी टापू पर था|

अचानक ही उस गिद्ध को देखकर मुझे खयाल आया कि इसका अण्डा कितना बड़ा होता होगा| बस, अण्डा शब्द दिमाग में आते ही मैं अपनी जगह से छिटक गया और आंखें फाड़-फाड़कर उस सफेद गेंद को देखने लगा| हो न हो, वह सफेद गेंद उस गिद्ध का अण्डा ही थी| मेरे पसीने छूट गए क्योंकि ऐसे खूंखार जानवर अगर अपने घोंसले या अण्डों के पास किसी दूसरे शख्स को देख लेते हैं तो फौरन ही हमलवार हो जाते हैं| अगर इस पहाड़ जैसे पक्षी ने मुझ पर हमला कर दिया तो मैं तो एक झपट्टे में ही नक्की हो जाता| इस खयाल ने मेरे मन में हौल पैदा कर दी|

मैंने वहां से भागना चाहा, मगर भाग न सका क्योंकि मेरी नजरें बराबर उस गिद्ध पर जमी हुई थीं और वह तेजी से नीचे उतर रहा था|

अगर मैं अण्डे की ओट से निकलकर दरख्तों की तरफ भागने की कोशिश करता तो शर्तिया उसने मुझे देख लेना था और उसके बाद मेरा खयाल था कि मैं चंद सांसें भी मुश्किल से ही ले पाता|

इसलिए मैंने धरती पर बैठकर अपने आपको अण्डे की ओट में छिपाने में ही अपनी खैर समझी|

तभी पंखों की कान फाड़ देने वाली फड़फड़ाहट और आंधी की सी तेज हवा ने वातावरण का कलेजा दहला दिया|

‘या खुदा|’ मेरे मुंह से कांपते-से अलफाज निकले, ‘मदद…|’

फिर मैंने अण्डे की ओट से ऊपर की तरफ देखा, वह उस अण्डे पर आकर बैठ चुका था, लेकिन कमाल की बात यह थी कि अण्डा सूत भर भी अपनी जगह से नहीं हिला था| फिर मेरी नजर अपने सिर पर लटकते उसके एक नाखून पर पड़ी| उसके पंजे की उस उंगली का वह नाखून तलवार की तरह मेरे सिर पर लटका रहा था| अगर वह थोड़ा और नीचे होता और जैसे लापरवाही से मैं सिर बाहर निकालकर ऊपर को उठा था, उस हालत में वह धारदार नाखून मेरी खोपड़ी में घुस जाता|

उसका शरीर अण्डे से भी कई गुना बड़ा था| फिर मैंने उसे आराम से पैर मोड़कर अण्डे पर बैठते देखा|

मैं समझ गया कि ये मादा गिद्ध अब पूरी रात यहां आराम करेगी और सुबह उड़ जाएगी| उसके उड़ जाने का खयाल दिमाग में आते ही मेरे मन में खयाल आया कि क्या ही अच्छा हो कि यह पक्षी मुझे भी यहां से उड़ाकर अपने साथ ले जाए| कम-से-कम इस वीरान घाटी से तो मैं आजाद हो ही जाऊंगा| मगर उस पक्षी ने मुझे थोड़े ही कहना था कि चल भई सिंदबाद, मैं तुझे इस घाटी से बाहर निकाल दूं| उसे तो अगर यह मालूम भी हो जाता कि मैं यहां मौजूद हूं तो उसने तो मेरी तिक्का-बोटी कर देनी थी| उसके साथ-साथ यहां से उड़ चलने का कोई जुगाड़ मुझे ही करना था| इसलिए मैं सोचने लगा|

सोचते-सोचते

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