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जुबैदा की कहानी (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा

जुबैदा की कहानी (अलिफ लैला) - शिक्षाप्रद कथा

जुबैदा ने खलीफा के सामने सिर झुकाकर निवेदन किया, “हे आलमपनाह! मेरी कहानी बड़ी ही विचित्र है, आपने अभी तक इस प्रकार की कोई कहानी नहीं सुनी होगी| मैं और वे दोनों काली कुतियां, तीनों सगी बहनें हैं और ये दो स्त्रियां जो मेरे साथ बैठी हैं, मेरी सौतेली बहनें हैं| जिस स्त्री के कंधों पर काले निशान हैं उसका नाम अमीना है, जो अन्य स्त्री मेरे साथ है उसका नाम साफी है और मेरा नाम जुबैदा है| अब मैं आपको बताती हूं कि मेरी सगी बहनें कुतियां किस तरह बन गईं|”

तत्पश्चात जुबैदा अपना वृत्तांत सुनाने लगी, “पिता के मरने के बाद हम पांचों बहनों ने उनकी सम्पत्ति को आपस में बांट लिया| मेरी सौतेली बहनें अपना-अपना भाग लेकर अपनी मां के साथ रहने लगीं और हम तीनों अपनी मां के पास रहने लगीं क्योंकि उस समय हमारी माएं जिंदा थीं|

मेरी दोनों बहनें मुझसे बड़ी थीं| उन्होंने विवाह कर लिए और अपने-अपने शौहरों के घर जाकर रहने लगीं|

एक बार मेरी बहन के पति के मन में व्यापार के लिए विदेश जाने की इच्छा हुई| यह सोचकर मेरी बड़ी बहन के पति ने अपना सारा माल बेच डाला| और मेरी बहन का रुपया भी उन रूपयों में मिलाकर व्यापार के इरादे से अफ्रीका चला गया| साथ में वह मेरी बहन को भी ले गया| किंतु वहां जाकर उसने व्यापार के बजाय भोग-विलास करना आरंभ कर दिया|

कुछ ही दिनों में उसने अपना और मेरी बहन का सारा धन उड़ा डाला| इतना ही नहीं, उसने मेरी बहन के कीमती कपड़े और गहने आदि भी बेच खाए| फिर उसने किसी बहाने से मेरी बहन को तलाक दे दिया और घर से भी निकाल दिया| मेरी बहन अत्यंत दीन-हीन हालत में हजार दुख उठाती हुई बगदाद पहुंची| चूंकि और कोई ठिकाना नहीं था| अत: वह मेरे घर आई|

मैंने उसका स्वागत सत्कार किया और उससे पूछा कि तुम्हारी यह दुर्दशा कैसे हुई?

तब उसने अपनी करुण कथा सुनाई, जिसे सुनकर मैं बहुत रोई| फिर मैंने उसे स्नान कराया और अपने अच्छे कपड़े निकालकर उसे पहनाए|

मैंने उससे कहा, “अब तुम आराम से यहीं रहो| तुम मेरी मां की जगह हो| भगवान ने मुझ पर बड़ी दया की है कि तुम्हारे जाने के बाद मैंने रेशमी वस्त्रों का व्यापार किया| जिससे मुझे बहुत लाभ हुआ है| अब जो कुछ मेरे पास है, वह भी अपना ही समझो और तुम भी मेरे साथ मिलकर वाही व्यापार करो|”

मेरी बहन को यह सुनकर बड़ी राहत मिली| उसके बाद से हम दोनों बहनें सुख से रहने लगीं| अकसर ही हम लोग अपनी तीसरी बहन को याद करते कि वह न जाने कहां होगी, बहुत दिनों से हमें उसका कोई समाचार नहीं मिला था, लेकिन अचानक एक दिन वह मंझली बहन भी बड़ी बहन के समान दीन-हीन अवस्था में मेरे पास पहुंची, क्योंकि उसके पति ने भी उसकी सारी सम्पत्ति को उड़ा डाला था और उसे तलाक देकर अपने घर से निकाल दिया था, अत: वह भी गिरती-पड़ती बगदाद पहुंचकर मेरे घर में शरण लेने के लिए आई थी|

 

मैंने उसका भी बड़ी बहन की भांति स्वागत-सत्कार किया और उसे खूब दिलासा दिया| फिर एक दिन इन दोनों ने मुझसे कहा कि हमारे रहने से तुम्हें कष्ट भी होता है और हम पर तुम्हारा पैसा भी खर्च होता है, इसलिए हम लोग फिर से विवाह करेंगी|

मैंने कहा, “यदि मेरी असुविधा भर से तुम्हें यह खयाल पैदा हुआ कि विवाह कर लेना चाहिए तो यह बेकार है क्योंकि ईश्वर की कृपा से व्यापार में मुझे इतना लाभ हो रहा है कि हम तीनों बहनें जीवनपर्यन्त आनन्द और सुखपूर्वक से रह सकती हैं| तुम्हें मेरे पास कोई कष्ट न होगा| तुम्हारी विवाह करने की इच्छा को सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य है| तुम दोनों ने अपने-अपने पतियों के हाथों इतने कष्ट उठाए हैं, फिर भी उसी मुसीबत में पड़ना चाहती हो? अच्छे पतियों का मिलना दुष्कर है इसलिए तुम विवाह का विचार छोड़ दो|”

इस प्रकार मैंने उन्हें बहुत समझाया| लेकिन वे दोनों अपनी बात पर अड़ी रहीं| वे मुझसे बोलीं, “तू हमसे अवस्था में कम है, किंतु बुद्धि में अधिक है| अब जितने दिन रह लिया, उससे अधिक हम तेरे घर में न रहेंगी क्योंकि आखिर तू हमें अपनी आश्रिता ही समझती होगी और अपने हृदय में हमारा सम्मान दासियों से अधिक नहीं करती होगी|”

उनकी यह बात सुनकर मुझे न केवल आश्चर्य हुआ बल्कि दुख भी बहुत हुआ| मगर मैंने दुख को दबा लिया और आश्चर्य जाहिर करके कहा, “यह तुम लोग क्या कर रही हो? मैं तो तुम्हें आज भी वैसे ही अपने से बड़ी और सम्मानीय समझती हूं, जैसा पहले समझती थी| मेरे पास जो भी धन सम्पत्ति है, वह तुम्हारी ही है|” यह कहकर मैंने उन्हें गले लगाया और बहुत दिलासा दी|

फिर हम तीनों मिलकर पहले की तरह रहने लगीं|

एक वर्ष के पश्चात भगवान की दया से मेरा व्यापार ऐसा चमका कि मेरी इच्छा हुई कि उसे अन्य नगरों तक बढ़ाऊं| अत: मैंने जहाज पर सामान लादकर किसी अन्य देश में भी व्यापार जमाने की सोची| मैं व्यापार की वस्तुओं और अपनी दोनों बहनों को लेकर बगदाद से बुशहर में आई और एक छोटा-सा जहाज खरीदकर मैंने अपने व्यापार की वस्तुओं को उस पर लाद दिया और चल पड़ी| वायु हमारे अनुकूल थी, इसलिए हम लोग फारस की खाड़ी में पहुंच गए और वहां हमारा जहाज हिंदुस्तान के लिए चल पड़ा|

बीस दिन बाद हम लोग एक टापू पर पहुंचे जिसके पिछले भाग में एक बहुत ऊंचा पर्वत था| द्वीप में समुद्र के किनारे ही एक बड़ा और सुंदर नगर बसा था|

मैं जहाज पर बैठे-बैठे बहुत ऊब गई थी, इसलिए अपनी बहनों को जहाज पर ही छोड़कर एक डोगी पर बैठकर तट पर गई| नगर के द्वार पर काफी संख्या में सेना नियुक्त थी और कई सिपाही चुस्ती से अपनी जगहों पर खड़े थे| उनकी वेशभूषा और रंग रूप बड़ा ही भयभीत कर देने वाला था| मैं कुछ डरी किंतु मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि उनके हाथों में कोई हरकत नहीं होती थी, इतना ही नहीं उनकी पलकें भी नहीं झपकती थीं| मैं पास पहुंची तो देखा कि वे पत्थर के थे और वहां की हर चीज पत्थर की थी| बाजार की दुकानें बंद थीं| भाड़ों में से भी धुंआ निकल रहा था और न घरों से| चुनाचें मैं समझ गई कि यहां सब लोग पत्थर के हो गए होंगे|

मैंने नगर के एक ओर बड़ा-सा मैदान देखा, जिसके एक तरफ एक बड़ा फाटक था और उसमें सोने के पत्तर लगे थे| खुले फाटक से मैं अंदर गई तो एक बड़ा-सा दरवाजा देखा, जिस पर रेशमी परदा लटक रहा था| स्पष्टत: ही वह राजमहल लगता था|

मैं परदा उठाकर अंदर गई तो देखा कि कई चोबदार वहां मौजूद थे| कुछ खड़े थे, कुछ बैठे थे| किंतु सबके सब पत्थर के थे| मैं और अंदर गई, फिर वहां से तीसरे भवन में प्रविष्ट हुई| सभी जगह देखा मगर जीता-जागता कोई मनुष्य वहां नहीं था, जो भी था, वह पत्थर का बना हुआ था|

चौथा मकान अत्यन्त सुंदर बना था, उसके द्वार और जंजीरें सभी सोने के बने हुए थे| मैंने समझ लिया कि यह कक्ष रानी का निवास स्थान होगा| अंदर जाकर देखा तो एक दालान के अंदर एक सजा हुआ कमरा था जिसमें एक पत्थर की स्त्री सिर पर रत्नजड़ित मुकुट पहने बैठी थी| मैंने समझ लिया कि यह रानी ही होगी| उसके गले में एक नीलम का हार पड़ा था| जिसका हर एक दाना सुपारी के बराबर था|

मैंने पास जाकर देखा तो पाया कि इतने बड़े होने पर भी वे रत्न बिलकुल गोल और चिकने थे| वहां के बहुमूल्य रत्नों और वस्त्रों को देखकर मुझे आश्चर्य हुआ| वहां फर्श पर गलीचे बिछे हुए थे और मसनद और गद्दे आदि भी बहुमूल्य वस्त्रों से बने हुए थे| मैं वहां से और अंदर गई| कई मकान बड़े सुदंर दिखाई दिए| उन सबसे होती हुई मैं एक विशाल भवन में पहुंच गई, जहां सोने का एक सिंहासन पृथ्वी से काफी ऊंचा रखा था और उसके चारों ओर मोतियों की झालरें लटक रही थीं|

एक अजीब बात यह थी कि उस सिंहासन के ऊपर से प्रकाश की लपटें जैसी निकल रही थीं| मुझे कौतूहल हुआ और मैंने ऊपर चढ़कर देखा तो पाया कि एक छोटी तिपाई पर एक हीरा रखा है जिसका आकार शुतुरमुर्ग के अंडे जैसा है और उसमें इतनी चमक थी कि उस पर निगाह नहीं ठहरती थी| प्रकाश की तेज किरणें उसी विशालकाय हीरे से निकल रही थीं| फर्श पर चारों ओर तकिए रखे थे और एक ओर मोम का दीया जल रहा था|

उसे देखकर मैंने जाना कि वहां कोई जीवित मनुष्य होगा, क्योंकि दीया बगैर जलाए नहीं जलता| मैं घूमते-घूमते दफ्तर खानों और गोदामों में गई जिनमें बड़ी मूल्यवान वस्तुएं रखी थीं| इन सबको देखकर मुझे ऐसा आश्चर्य हुए कि मैं जहाज और अपनी बहनों को भूल गई और इस रहस्य को जानने के लिए उत्सुक हुई कि इस जगह के सारे लोग पत्थर के क्यों बन गए?
इसी तरह घूमने-फिरने में मुझे समय का भान न रहा और रात हो गई| मैं परेशान हुई कि अंधेरे में कहां जाऊंगी| अत: जिस कक्ष में हीरा रखा था, मैं उसी में चली गई| मैं वहां जाकर लेटी रही और सोचा कि सुबह होने पर अपने जहाज पर चली जाऊंगी| किंतु यह अद्भुत और निर्जन स्थान था, इसलिए मुझे नींद न आई|

आधी रात को मुझे कुछ ऐसी आवाज आई जैसे कोई मधुर स्वर में कुरान का पाठ कर रहा हो| मैं यह जानने के लिए उत्सुक हुई कि यह जीवित मनुष्य कौन है| मैं मोम का दीपक उठाकर चल दी और कई कमरों को लांघने के बाद उस कमरे में पहुंची जहां से कुरान पाठ की आवाज आ रही थी|

वहां जाकर मैंने देखा कि एक छोटी-सी मस्जिद बनी है| इससे मुझे याद आया कि परमेश्वर के धन्यवाद-स्वरूप मुझे नमाज पढ़ना जरूरी है| वहां मैंने देखा कि दो बड़े-बड़े मोम के दिए जल रहे हैं और वहां एक अत्यंत रूपवान नवयुवक बैठा हुआ कुरान पाठ कर रहा है और पूरा ध्यान उसमें लगाए है|

उस युवक को देखकर मुझे बेहद प्रसन्नता हुई क्योंकि पत्थर के मनुष्यों की भीड़ देखने के बाद मैंने वह अकेला आदमी देखा था जो जीता जागता था| मैंने मस्जिद में जाकर नमाज पढ़ी| फिर स्पष्ट ध्वनि में वजीफा पढ़ने लगी और अल्लाह को धन्यवाद देने लगी कि हमारी समुद्री यात्रा कुशलतापूर्वक बीती और इसी प्रकार आशा है कि मैं कुशलतापूर्वक अपने देश वापस पहुंच जाऊंगी|

उस नवयुवक ने मेरी आवाज सुनकर मेरी ओर देखा और कहा, “हे सुंदरी! मुझे बताओ कि तुम कौन हो और इस सुनसान नगर और इस महल में कैसे आ गई हो? इसके बाद मैं तुम्हें अपनी बात बताऊंगा कि मैं कौन हूं और यह भी बताऊंगा कि इस नगर के निवासी पत्थर के क्यों बन गए हैं|”

मैंने उसे अपना हाल बताया कि किस तरह मेरा जहाज बीस दिन की यात्रा के बाद यहां तट पर पहुंचा, जहां से अकेली उतरकर मैं किस तरह इस महल में आई और यहां क्या देखा? मैंने उससे यह भी कहा कि जैसा आपने अभी वायदा किया है, मुझे अपना हाल बताएं और यहां की अद्भुत बातों का भी रहस्योद्घाटन करें|

उस युवक ने मुझे कुछ देर प्रतीक्षा करने को कहा, फिर उसने कुरान का निर्धारित पाठ पढ़ना खत्म करके कुरान को एक जरी के वस्त्र में लपेटा और उसे एक आले में रख दिया|

मैं उस जवान को देखती रही और उसका सुंदर रूप देखकर उस पर मोहित हो गई| उसने मुझे अपने पास बिठाया और कहा, “तुम्हारी नमाज और भक्ति से जाहिर होता है कि तुम हमारे सच्चे धर्म पर पूर्णत: विश्वास करती हो| अब मैं अपना पूरा हाल बताता हूं|”

जुबैदा उसकी कहानी सुनने के लिए सतर्क होकर बैठ गई|

 

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