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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

सिखों के छठे गुरु हरगोविंद जी भी इसी दिन कारावास से मुक्त हुए थे। आप पाँचवें गुरु श्री गुरु अर्जुनदेव जी के इकलौते पुत्र थे। सिखों पर मुगलराज्य के कोप की दिनोंदिन वृद्धि होती जाती थी।

किसी घने वन में एक बहुत बड़ा शेर रहता था| वह रोज शिकार पर निकालता और एक नहीं, दो नहीं, कई-कई जानवरों को काम तमाम कर देता| जंगल के जानवर डरने लगे कि अगर शेर इसी तरह शिकार करता रहा तो एक दिन ऐसा आयेगा कि जंगल में कोई भी जानवर नहीं  बचेगा|

किसी गाँव में एक किसान रहता था| उसके चार पुत्र थे| चारों भाई आपस में लड़ते झगड़ते रहते थे| चारों भाई अपनी तरफ से गलत काम करते रहते थे| एक दूसरे की शिकायत अपने किसान पिता से लगाकर तुरंत पकड़े भी जाते थे| किसान अपने चारों पुत्रों की इन गति-विधियों से बहुत दुःखी था| उसको चिंता सताने लगी जिसके कारण वह बीमार हो गया|

दीपावली भगवान महावीर की पुण्यतिथि भी है। उनका जन्म भारत के बिहार के प्रांत के एक राजवंश में करीब ढाई हज़ार वर्ष पूर्व हुआ था। भारत की सामाजिक और धार्मिक दुर्व्यवस्था को देखकर इनके ह्रदय में अपार दुःख होता था।

किसी नदी के किनारे एक बहुत बड़ा पेड़ था| उस पर एक बन्दर रहता था| उस पेड़ पर बड़े मीठे-रसीले फल लगाते थे| बन्दर उन्हें भर पेट खाता और मौज उड़ाता| वह अकेला ही मजे में दिन गुजार रहा था|

प्रायः देखा गया है कि जानवरों में कुत्ता सबसे ज्यादा लालची होता है| वह रोटी के टुकड़े के लिए एक द्वार से दूसरे द्वार पर भटकता रहता था| उसको भर पेट भोजन कभी नहीं मिलता था| अपितु कभी-कभी डंडे भी खाने पड़ते थे|

कहते हैं कि राजा बलि के कारागर में श्री लक्ष्मी जी सब देवताओं के साथ बंधन में थीं। आज के दिन ही कार्तिक कृष्ण अमावस्या को भगवान विष्णु जी ने वामन अवतार धारण कर उन सबको बंधन से छुड़ाया था। बंधन मुक्त होते ही सभी देवता भगवती श्री लक्ष्मी जी के साथ क्षीर-सागर में जाकर सो गए थे।

बद्रीनारायण में एक साधु की अँगुली में पीड़ा हो गयी| किसी ने कहा कि यहाँ अस्पताल है, जहाँ मुफ्त में इलाज होता है| आप वहाँ जाकर पट्टी बँधवा लें| उस साधु ने उत्तर दिया कि अँगुली की पीड़ा तो मैं सह लूँगा, पर मैं किसी को पट्टी बाँधने के लिये कहूँ-यह पीड़ा मेरे से सही नहीं जाती!

एक बार की बात है| किसी जंगल में एक लोमड़ी रहती थी| वह बहुत चालाक थी| एक दिन उस लोमड़ी को बड़ी तेज भूख लगी|

इसी दिन समुद्र मंथन के समय क्षीर सागर से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और भगवान विष्णु को अपना पति स्वीकार किया था। कथा इस प्रकार है-

एक राजा था| उसकी कोई सन्तान नहीं थी| एक बार नगर में एक अच्छे सन्त आये| राजा उनके पास गया और सन्तान के लिये प्रार्थना की| सन्त ने कहा कि राजन! तुम्हारे प्रारब्ध में सन्तान लिखी नहीं है|

एक वन में खरगोश और कछुआ रहते थे| दोनों गहरे मित्र थे| एक दिन वे सैर के लिए निकले| खरगोश तेज चलता और कछुआ धीरे-धीरे| खरगोश को कछुए की चाल पर हँसी आ गई| वह बोला, क्या तुम बीमार हो जो चींटी की चाल चल रहे हो| आओ मेरे साथ दौड़ का मुकाबला करो|

जब श्रीरामचंद्र जी लंका से वापस आए तो इसी अमावस्या को उनका राजतिलक किया गया था। अयोध्या के राजा दशरथ के चार पुत्र थे- राम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न। श्रीराम को उनकी माता कैकेयी की माँग पर राजा ने १४ वर्ष का वनवास दिया।

एक सेठ था| वह बहुत ईमानदार तथा धार्मिक प्रवृत्तिवाला था| एक दिन उसके यहाँ एक बूढ़े पण्डित जी आये| उनको देखकर सेठ की उनपर श्रद्धा हो गयी|

एक बार की बात है| उज्जैन से झालरापाटन शहर में एक बारात आई थी| पूरे गाजे-बाजे के साथ बारात श्री लालचन्द मोमियां के यहाँ जा रही थी|

महात्मा बुद्ध ने सत्य-अहिंसा, प्रेम-करुणा, सेवा और त्याग से परिपूर्ण जीवन बिताया| जीवन-भर वह धर्म प्रचार के लिए, संघ को सुदृण करने के लिए प्रयत्नशील रहे| इस लंबी जीवन-यात्रा के बाद वह जब वह अंतिम यात्रा के लिए, निर्वाण के लिए प्रस्तुत हुए, तब उनका प्रिय शिष्य आनन्द रोने लगा| वह बोला- “गुरुदेव, आप क्यों जा रहे हैं? आपके निर्वाण के बाद हमें कौन सहारा देगा?”

देवी रूक्मिणी का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्री कृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थी. राधा जी के जन्म में और देवी रूक्मिणी के जन्म में एक अन्तर यह है कि देवी रूक्मिणी का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधा जी का शुक्ल पक्ष में. राधा जी को नारद जी के श्राप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रूक्मिणी से कृष्ण जी की शादी हुई. राधा और रूक्मिणी यूं तो दो हैं परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं.

एक सन्त के पास एक व्यक्ति सत्संग के लिये आया करता था| उस व्यक्ति का विवाह हो गया तो उसका सत्संग में आना कम हो गया| जब सन्तान हो गयी तो तो सत्संग में आना बहुत कम हो गया|

राजा ब्रह्मादत्त वाराणसी या काशी में शासक थे| उनके अमात्य बोधिसत्व थे| एक बार राजमहल की रानियाँ कपड़े और गहने उतार और उन्हें दासी को सौंपकर सरोवर में स्नान करने लगी| दासी को ऊंघती देखकर एक बंदरिया मुक्ताहार ले भागी| जागने पर मुक्ताहार न देखकर दासी चिल्लाई- “एक आदमी मुक्ताहार लेकर भाग गया|”

एक समय की बात है| अचानक ओलों की वर्षा से सारी फसल नष्ट हो गई| कुरू प्रदेश में एक गाँव में हाथीवान रहते थे|

विदर्भ के राजा भीष्मक की कन्या रूक्मिणी थी, रूक्मिणी के भाई थे रूक्म।

एक राजा को बोध (तत्त्वज्ञान) हो गया| उसने राजदरबार में अपने मंत्रियों से पूछा कि किसी को कोई दुर्लभ वस्तु मिल जाय तो वह क्या करे?

एक किसान के पास एक मुर्गी थी| वह प्रतिदिन एक सोने का अंडा दिया करती थी|

नारद मुनि नारायण, नारायण का जाप करते हुए पहुँच गये अपने प्रभु के लोक, यानि कि वैकुण्ठलोक। वहाँ शेष शैया पर भगवान विष्णु विश्राम कर रहे थे, और विष्णुप्रिया भगवती लक्ष्मी चरण कमल चापन में मग्न थीं। नारद मुनि थोडा ठहरे, फिर सोचा कि प्रभु के विश्राम मे विघ्नडारक न बन जाऊँ, इसलिये चुपचाप चल पड़ने को उद्यत हुए। प्रभु को अपने भक्त का इस तरह से जाना नागवार गुजरा, और उन्होंने नारद मुनि को रोका…

शबरी भगवान् की परम भक्त थी| पहले वह ‘शबर’ जाति की एक भोली-भाली लड़की थी| शबर-जाति के लोग कुरूप होते थे|

प्राचीन समय की बात है| एक साधु बहुत बूढ़े हो गए थे| उनके जीवन के आखिरी क्षण निकट आ पहुँचे| आखिरी क्षणों में उन्होंने अपने शिष्यों को अपने पास बुलाया| जब उनके पास सब आये, तब उन्होंने अपना पोपला मुहँ पूरा खोल दिया और शिष्यों से बोले- “देखो, मेरे मुँह में कितने दाँत बच गए हैं?”

एक बार भगवान शंकर पार्वती जी एवं नारदजी के साथ भ्रमण हेतु चल दिए । वे चलते चलते चैत्र शुक्ल तृतीया को एक गाँव में पहुचे। उनका आना सुनकर ग्राम की निर्धन स्त्रियाँ उनके स्वागत के लिए थालियो में हल्दी अक्षत लेकर पूजन हतु तुरतं पहुँच गई । पार्वती जी ने उनके पूजा भाव को समझकर सारा सुहाग रस उन पर छिडक दिया। वे अटल सुहाग प्राप्त कर लौटी।

भगवान् श्रीकृष्ण ने सांदीपनि ऋषि से विद्याध्ययन किया था| सांदीपनि उनके विद्यागुरु थे| वे सांदीपनि ऋषि जब बाल्यावस्था में अपने गुरु के पास पढ़ते थे, तब उन्होंने गुरु की बहुत सेवा की थी|

एक क्रूर राजा अपनी प्रजा पर बहुत अत्याचार करता था| इसीलिए प्रजा हमेशा उसका अहित चाहती थी| प्रजा को लगता है कि राजा या तो मर जाये या फिर उससे उसका राज्य छिन जाये|

आजादी से पूर्व की बात है| महात्मा गाँधी बिहार के नगर चम्पारन में अपनी पत्नी कस्तूरबा के साथ बैठे चरखा कात रहे थे| अचानक शोर की आवाज आई|