विश्वभर में 14 फ़रवरी को वेलेटाइन डे अलग-अलग तरह से और अलग-अलग विश्वास के साथ मनाया जाता है| पश्चिमी देशों में इस दिन को बहुत धूमधाम से मनाया जाता है| जहाँ पर इसे प्यार के इजहार का दिन भी माना जाता है| इस दिन का हर धड़कते हुए दिल को बहुत बेसब्री से इंतजार होता है| प्रेमी और प्रेमिकाओं के लिए इस दिन की बहुत एहमियत है| और इस दिन को अत्यन्त खुशी का प्रतीक माना जाता है| इस दिन की रौनक अपने ही शबाब पर होती है| प्यार का इजहार करने के लिए परवाने फूलों के गुलदस्ते और भी प्यार से संबंधित चीजें देकर अपने प्रिय को खुशी जाहिर करते हैं|
महाशिवरात्रि के परम –पवन पर्व पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं| यह दिन बहुत धूमधाम से मनाया जाता है और यह माना जाता है कि इसी दिन शिवजी ने कालकूट नाम का विष पिया था जो की समुन्द्रमंथन के दौरान अमृत से पहले समुन्दर से निकला गया था| जबकि कुछ विद्वानों का यह भी मत है की आज के ही दिन शिवजी और माता पार्वती विवाह सूत्र मे बंधे थे|
एक समय की बात है| एक जांजलि नामक तपस्वी ब्रहामण थे| अपने तपोबल से उन्हें संपूर्ण लोकों को देखने की शक्ति प्राप्त हो गई थी|
एक बार की बात है| काशी निवास करते हुए शंकराचार्य अपने विधार्थियों के साथ धार्मिक कार्यों को विधिपूर्वक पूरा करते हुए गंगा की ओर जा रहे थे कि रास्ते के सामने एक चाण्डाल चार कुत्तों के साथ आ गया|
भारतभूमि में एक शासक थे राजा रन्तिदेव| जन-कल्याण एवं आत्म-शुद्धि के लिए उन्होंने 48 दिन का व्रत किया|
एक समय की बात है|
अंगारों की तरह दिखते पलाश के फूल, आम के पेड़ों पर आये बौर, हरियाली से ढकी धरती और चारो और पीली सरसों बसंत ऋतु के शुभ आगमन की बधाई देते हैं वास्तव में बसंत पंचमी ऋतु परिवर्तन का ऐसा त्यौहार है, जो अपने साथ मद-मस्त परिवर्तन लेकर आती है|
एक शेर जिस गुफ़ा में रहता था उसी गुफ़ा में एक चूहे ने बिल बना रखा था| वह चूहा हमेशा शेर को परेशान करता रहता- वह कभी शेर के बाल कुतर देता, कभी पीठ पर नाचने-कूदने लग जाता- कभी-कभी तो वह शेर को काट भी लेता था| शेर उससे बहुत ही दुखी था|
यह एक पौराणिक कथा है। कुबेर तीनों लोकों में सबसे धनी थे। एक दिन उन्होंने सोचा कि हमारे पास इतनी संपत्ति है, लेकिन कम ही लोगों को इसकी जानकारी है। इसलिए उन्होंने अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन करने की बात सोची। उस में तीनों लोकों के सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया।
एक गाँव में चार पक्के मित्र रहते थे| उनमें से एक दर्जी था, एक सुनार, एक ब्राह्मण और एक बढ़ई था| "विकट समस्या" सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio Your browser does not support the audio element. एक बार चारों ने निर्णय लिया कि विदेश में जाकर कुछ धन कमाया जाएँ| वे चारों ही साथ-साथ रवाना हो गए| चलते-चलते जब दिन ढल गया तो वे एक गाँव के पास किसी मंदिर में ठहर गए| रात
एक बार बलराम सहित ग्वाल-बाल खेलते-खेलते यशोदा के पास पहुँचे और यशोदाजी से कहा- माँ! कृष्ण ने तो आज मिट्टी खाई है। यशोदा ने कृष्ण के हाथों को पकड़ लिया और धमकाने लगी कि तुमने मिट्टी क्यों खाई है।
समुंद्र के किनारे एक टिटहरी दंपति रहता था| समय बीतने पर जब टिटहरी ने गर्भधारण किया तो उसने अपने पति से कहा, ‘स्वामी! आप तो जानते ही है कि यहाँ समय-समय पर ज्वार-भाटा आता रहता है| इससे मुझे अपने बच्चों के बह जाने की आशंका है| मेरा आपसे अनुरोध है कि आप किसी अन्य सुरक्षित स्थान पर चलिए|’
हिम्मतनगर में धर्मबुद्धि और कुबुद्धि नामक दो निर्धन मित्र रहते थे| दोनों ने दूसरे देश में जाकर धन कमाने की योजना बनाई और अपने साथ काफ़ी सामान लेकर विभिन्न क्षेत्रों में खूब भ्रमण किया और साथ लाए सामान को मुंहमाँगे दामों पर बेचकर ढेर सारा धन कमा लिया| दोनों मित्र अर्जित धन के साथ प्रसन्न मन से घर की ओर लौटने लगे|
एक समय की घटना है| श्री रामकृष्ण परमहंस रोज बहुत लगन से अपना लोटा राख या मिट्टी से मांजकर खूब चमकाते थे|
एक दिन साँवले सलोने बालश्रीकृष्ण रत्नों से जड़ित पालने पर शयन कर रहे थे। उनके मुख पर लोगों के मन को मोहने वाली मंद हास्य की छटा स्पष्ट झलक रही थी। कुटिल दृष्टि न लग जाए इसलिए उनके ललाट पर काजल का चिह्न शोभायमान हो रहा था। कमल के सदृश उनके दोनों सुंदर नेत्रों में काजल विद्यमान था।
एक बार की बात है| उज्जैन से झालरापाटन शहर में एक बारात आई थी| पूरे गाजे-बाजे के साथ बारात श्री लालचन्द मोमियां के यहाँ जा रही थी|
भाद्रपद कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रात के बारह बजे मथुरा के राजा कंस की जेल मे वासुदेव जी की पत्नि देवी देवकी के गर्भ से सोलह कलाओ से युक्त भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था ।
एक जंगल था, जिसमे सभी जानवर भाईचारे तथा प्रेम से रहते थे| जंगलराज जैसी वहाँ कोई बात नही थी| शेर और बकरी एक ही घाट पर पानी पीते थे|
प्रत्येक प्राणी को मन-वचन-कर्म से निर्भय होना चाहिए| पता खड़का और बंदा सरका का जीवन-दर्शन रखने वाला प्राणी और जातियाँ जीवन-संघर्ष में यशस्वी नहीं हो सकती|
ऐसा माना जाता है कि प्रभु श्रीराम की रावण के ऊपर विजय प्राप्त करने के पश्चात ईश्वर की आराधना के लिये हनुमान हिमालय पर चले गये थे।
जंगल का राजा शेर, बूढ़ा और कमजोर हो गया था| अब वह पहले की तरह जानवरों का शिकार नहीं कर सकता था| कभी-कभी तो उसे दिन-दिनभर भूखा रहना पड़ता| दिनों-दिन वह अधिक कमजोर और बूढ़ा होता जा रहा था|
शामगढ़ नगर का निवासी सोमिलक जुलाहा बहुत ही कुशल शिल्पी था| वह राजाओं के पहनने योग्य अनेक सुंदर, चित्र-विचित्र और बहुमूल्य रेशमी वस्त्र बुना करता था| लेकिन फिर भी उसका हाथ तंग ही रहता|
बार की घटना है| भारत में अंग्रेजी राज्य के यशस्वी लेखक एवं राष्ट्रीय नेता श्री सुंदरलाल जी एक बार पूना गए| यह श्रीमद्भगवद्गीता की कर्मयोग की व्याख्या करने वाले भारतीय चिंतक एवं राष्ट्र नेता लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के व्यक्तिगत जीवन की एक झलक लेना चाहते थे|
रामायण के सुन्दर-काण्ड में हनुमानजी के साहस और देवाधीन कर्म का वर्णन किया गया है। हनुमानजी की भेंट रामजी से उनके वनवास के समय तब हुई जब रामजी अपने भ्राता लछ्मन के साथ अपनी पत्नी सीता की खोज कर रहे थे।
पहाड़ी की तलहटी में बना सुंदरपुर नामक एक गाँव था| सुंदरपुर में वैसे तो सुख-शांति का वास था लेकिन वहाँ के सरपंच की पत्नी कुमति बड़े ही दुष्ट स्वभाव की स्त्री थी| उसके कुटिल स्वभाव से सभी घरवाले परेशान थे| अपनी सीधी-सादी बहू सुकन्या को तो वह कुछ ज्यादा ही परेशान करती थी|
एक बार की बात है| एक राजा थे| उनका नाम जानश्रुति था| उनकी तीन पीढ़ियाँ जीवित थी| वह विख्यात ज्ञानी थे|
हनुमान जी के धर्म पिता वायु थे, इसी कारण उन्हे पवन पुत्र के नाम से भी जाना जाता है। बचपन से ही दिव्य होने के साथ साथ उनके अन्दर असीमित शक्तियों का भण्डार था।
पंडित रामशंकर यजमानी करके दूसरे गाँव से अपने घर कि ओर लौट रहे थे| वे बहुत प्रसन्न थे क्योंकि दक्षिणा में उन्हें बकरी मिली थी| पंडित रामशंकर की ख्याति आसपास के गाँवों में फैली हुई थी|
एक बार की बात है| काशी (वाराणसी) की घटना है| एक बार स्वामी विवेकानंद काशी की एक तंग गली से गुजर रहे थे कि बंदरों के एक समूह ने उनका सामान छीन लिया| बंदर गुर्रायें तो स्वामी जी घबरा गए| वह कुछ चिल्लाकर पीछे हटने लगे कि बंदर उन पर टूट पड़े, उनके कपड़े फाड़ दिए| स्वामी जी भागने लगे तो बंदर किलकारियाँ मारते उनका पीछा करने लगे|
जन्म:
हनुमान जी का जन्म त्रेता युग मे अंजना(एक नारी वानर) के पुत्र के रूप मे हुआ था। अंजना असल मे पुन्जिकस्थला नाम की एक अप्सरा थीं, मगर एक शाप के कारण उन्हें नारी वानर के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा। उस शाप का प्रभाव शिव के अन्श को जन्म देने के बाद ही समाप्त होना था।