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सच्चे ऋषि की खोज

एक बार की बात है| एक राजा थे| उनका नाम जानश्रुति था| उनकी तीन पीढ़ियाँ जीवित थी| वह विख्यात ज्ञानी थे|

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उन्होंने यात्रियों के ठहरने के लिए और भोजन के लिए जगह-जगह पर धर्मशालाएँ बनवा रखी थी| उनका यश चारों तरफ फैल रहा था| एक बार कई साधु-संत राजा की स्तुति और गौरव-गाथा गा रहे थे, इतने में एक महात्मा ने कहा- “तुम एक सामान्य से राजा की स्तुति कर रहे हो, उससे तो गाड़ी वाला, रैक्व ऋषि ही बहुत अधिक ज्ञानी है|

देखने में वह बहुत सीधा-साधा है, लेकिन बड़े-बड़े ऋषि मुनि भी उसका लोहा मान लेते हैं|” अपने दूतों को राजा ने आदेश दिया कि वे गाड़ीवान रैक्व ऋषि का पता लगाएँ| उस ऋषि का पता बड़े-बड़े नगरों और अट्ठालिकाओं में नहीं लगा| खाली हाथ लौटने पर राजा ने कहा- “सच्चे महात्मा महलों और नगरों में नहीं मिलते; वे वृक्षों की छाया में, नदियों के तट पर या गुफाओं में मिलते हैं|” इस बार ढूँढने पर एक बैलगाड़ी की छाया में अपनी काया को खोजते हुए गाड़ीवान रैक्व ऋषि मिल गए| भारी प्रलोभन और राज-शक्ति भी उसे राजा के यहाँ जाने के लिए प्रेरित नहीं कर सकी|

अंत में राजा भारी धन धांय दक्षिणा हज़ार घोड़े और अपनी कथा ले कर रहे हो मुनि के चरणों में पहुँचा और बोला यह सब धन संपत्ति में पेट भर वेट कर रहा हूँ यह कन्या आपकी|”

अंत में राजा भारी धनधान्य, दक्षिणा हज़ार गौएँ और अपनी कथा लेकर रैक्व मुनि के चरणों में पहुँचा और बोला- “यह सब धन-संपत्ति मैं भेंट कर रहा हूँ| यह कन्या आपकी सेवा करेगी|”

मुनि बोले- “हे शूद्र|” इन गोओं को लाया है, यह धन-संपत्ति लाया है| खैर, तू अपनी पुत्री भी लाया है| सम्मान रखने के लिए मुझे तुम्हारी इच्छा पूरी करनी होगी|” उस गाड़ीवान ने राजा की ब्रह्मा-सम्बन्धी सभी जिज्ञासाओं का समाधान किया| मुनि न तो किसी राजा के दान का भिखारी था और न श्रेष्ठियों, व्यापारियों और जनता की सहायता का| उसका अपना अवलम्बन गाड़ी था, उसी की सहायता से वह अपना भरण-पोषण करता था और स्वावलम्बन के सहारे सच्चे तत्वचिंतन में लीन रहता था| संभवतः इसीलिए वह अपने युग का सबसे लोकप्रिय तत्वचिंतक बन गया था| हर व्यक्ति को आत्मनिर्भर होना चाहिए| किसी की सहायता नहीं माँगनी चाहिए|

हनुमान: