Homeशिक्षाप्रद कथाएँसिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा

सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा

सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा

अपनी दूसरी यात्रा के बाद मैं खूब आराम की जिंदगी बसर करने लगा था| नौकर-चाकर और दूसरे सभी सुख आराम मुझे हासिल थे| मैं अपने परिवार के साथ इतना सुखी था कि अब तो समुद्री यात्राओं के दौरान उठाए गए जानलेवा कष्टों की याद भी मुझे नही आती थी|

“सिंदबाद जहाजी की तीसरी यात्रा” सुनने के लिए Play Button क्लिक करें | Listen Audio

बस अब तो दो ही काम थे- सुख भोगना और गरीबों की मदद करना|

हालांकि मैं कोई बहुत बड़ा दानी नही हूँ मगर मेरा अपना मानना है कि जब हम किसी गरीब, मजलूम या जरुरतमंद की मदद करते है तो इससे अल्लाह खुश होता है और हमारे इन्हीं अच्छे कामों के बदले वो हमारी हिफ़ाजत करता है|

दोस्तों! हालांकि मुझे किसी किस्म की कोई कमी अब नही थी, मगर फिर भी कुछ दिनों के बाद एक ही स्थान पर रहने से मैं ऊबने लगा| मुझे फिर से समुद्री यात्राओं की याद आने लगी|

मुझे लगने लगा कि मेरी जिंदगी में एक अजीब-सा, बोरियत भरा ठहराव आ गया है| मेरी तबीयत भी आरामतलबी की वजह से कुछ नाशाद रहने लगी थी| मैंने सोचा की एक जगह पर रुका हुआ तो पानी भी सड़ जाता है, फिर मैं तो इंसान हूँ| गर्ज ये कि इस तरह की आरामतलबी से मैं घबरा गया|

फिर एक दिन मैं अपने व्यापारी को दोस्तों से मिलने गया| खैरियत-सलामती जानने के बाद मैंने उनसे पूछा कि अब वे कब रवाना हो रहे है, तो उन्होंने बताया कि दो दिन बाद ही उनका काफ़िला रवाना होने वाला है|

मुझे यह जानकर बहुत खुशी हुई और मैंने भी उनके साथ चलने की इच्छा ज़ाहिर की तो वे बेहद प्रसन्न हुए|

इसके बाद मैं घर आया, फिर थोक बाज़ार में निकल गया ताकि परदेश में बेचने के लिए कुछ अच्छा माल खरीद सकूँ| दो दिन तक मैंने काफ़ी खरीदारी की, तीसरे दिन मैं अपने सौदागर साथियों के साथ बसरा रवाना हो गया| हमारा जहाज़ बसरा से ही चलना था|

इस बार जहाज़ ने बिल्कुल ही दूसरा रास्ता पकड़ा| इस बार हमारा जहाज़ पहले पड़ाव से पहले ही काफ़ी चला| हम एक छोटे से देश पर जाकर रुके| यह देश बहुत छोटा था, लेकिन आबादी अधिक थी| वहाँ हम कुछ समय ठहरे और अपना माल बेचा| बहुत-सा माल बेचने के बाद हमने वहाँ से और माल खरीदा| इस पड़ाव पर हमें अच्छा मुनाफ़ा हुआ था| इसके बाद हम आगे बढ़ गए| जहाज़ एक बार फिर समुद्र के बीच में आ गया|

सभी कुछ सही-सलामत था| हमारा सफ़र भी बड़ी शांति से चल रहा था| मगर एक दिन जब हम दोपहर का खाना खाने के बाद अपने केबिनों में आराम कर रहे थे, तो अचानक समुद्र में तूफ़ान आ गया| समुद्र की लहरें भयानक रुप धारण कर चुकी थी और वो इतनी ऊँची-ऊँची उठ रही थी कि हमारा जहाज़ बुरी थरथराने लगा| हवाएँ इतनी तेज थी की जहाज़ की पालें फट गई| जहाज़ तो लहरों पर ऐसे उछल रहा था जैसे गेंद उछलती है|

हम घबराकर अपने-अपने केबिन से बाहर निकल आए| डैक पर आकर हमने उस भयानक मंजर को देखा तो हमारे मुहँ से ‘अल्लाह-अल्लाह’ निकलने लगा| हमने अपने समुद्री सफ़र के दौरान ऐसा भयानक तूफ़ान कभी नही देखा था| कई बार लहरों ने इस ताकत से जहाज़ को टक्करें मारी कि लगा, जहाज़ अब पलटा की तब पलटा|

लेकिन अल्लाह का शुक्र था कि जहाज़ पलटा नही था, हालांकि यह तूफ़ान कई दिनों तक जारी रहा| और जब तूफ़ान थम गया तो एक नई उलझन पैदा हो गई|

हमारा जहाज़ रास्ता भटक गया था| वह भटककर एक ऐसे टापू के पास पहुँच गया जिसके बारे में कई भयानक और रूह फ़ना कर देने वाले किस्से जुड़े हुए थे| उस जगह पहुँचकर हमारा कप्तान भी काफ़ी डरा हुआ था|

दरअसल, चिंता की बात यह थी कि हमारा जहाज़ इस कदर टूट-फूट गया था कि अब उसे आगे बढ़ाना मुमकिन नही रह गया था| अल्लाह-अल्लाह करके तो हम इस टापू पर पहुँचे थे, अब अगर इसे इसी हालत में आगे बढ़ाया जाता तो कोई भी भयानक हादसा हो सकता था| यह भी हो सकता था कि हमारा जहाज़ रास्ते में ही टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर जाता और हम सबकी कब्रें समुद्र में ही बन जाती| इसलिए मज़बूरी में हमें उस टापू के किनारे ही जहाज़ रोकना पड़ा|

तब कप्तान ने हमें आगाह करते हुए बताया कि इस टापू पर आदमखोर लोग रहते है, इसलिए हम सब तरफ़ से चौकस और होशियार रहे| उसने यह भी बताया कि वे लोग बहुत बड़ी तादाद में आकर हमला कर देते है और उनसे जीत पाना नामुमकिन होता है| साथ ही यह भी हिदायत दी कि अगर वे लोग हमला करने आ पहुँचे तो हम लोग किसी तरह का कोई विरोध न करें और न ही दूसरा ऐसा कोई काम करे जिससे वे नाराज़ हो जाएँ, क्योंकि अगर वे नाराज़ हो गए तो हम लोगों को तो ज़िंदा छोडेंगे ही नही हमारे जहाज़ के टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे|

इसे मैं अपनी बदनसीबी ही कहूँगा कि वह अभी हमें समझा ही रहा था कि तभी टापू के एक सिरे पर से एक जबरदस्त शोर-सा उठा| हम सब चौंककर उधर ही देखने लगे| पहली नज़र में तो हमें कुछ दिखाई नही दिया, मगर फिर एकाएक ही हम बुरी तरह थर्रा गए| छोटे-छोटे हज़ारों बौने, हाथों में हथियार लिए हमारी तरफ़ बढ़े आ रहे थे| वे दूर से आते हुए चीटियों की फ़ौज सी लग रहे थे| उनकी शक्लें बड़ी भयानक थी और सारे शरीर पर लंबे-लंबे बाल थे|

“वो आ गए|” कप्तान के मुहँ से काँपती सी आवाज़ निकली|

कुछ ही देर में उन्होंने हमें चारों तरफ़ से घेर लिया| उनमें से कुछ फुर्ती से हमारे जहाज़ पर चढ़ गए| चंद पलों बाद ही हमारे जहाज़ के चप्पे-चप्पे पर उनकी मौजूदगी दिखाई देने लगी| जहाज़ के लठ्ठों और रस्सियों के सहारे वे इतनी फुर्ती से जहाज़ पर चढ़े थे की हमारी आँखें आश्चर्य से फटी रह गई थी|

जब उन्होंने जहाज़ का चप्पा-चप्पा छान मारा और नीचे मौजूद हम लोगों के अलावा उन्हें जहाज़ में कोई और शख्स दिखाई न दिया तो वे उतनी ही फुर्ती से नीचे उतर आए जितनी फुर्ती से ऊपर चढ़े थे| फिर उन्होंने आपस में ही अपनी भाषा में एक-दूसरे से कुछ कहा और उसके बाद हमारे गिर्द पड़ा उनका दायरा कम होने लगा| टापू में भीतर की तरफ़ जाने वाली दिशा में खड़े बौनों ने हटकर रास्ता छोड़ दिया|

यह इस बात का इशारा था कि हम उस तरफ़ बढ़े क्योंकि रास्ता छोड़ने के बाद उन लोगों का रुख भी उस तरफ़ हो गया था और वे आगे बढ़ने लगे थे| कप्तान के इशारे पर हम भी ख़ामोशी से आगे बढ़े| उनकी चालें बहुत तेज थी| जल्दी ही वे हमारे इतने करीब आ गए कि हमें आगे की तरफ़ धकेलने लगे| हालांकि हम बेहद तेज चल रहे थे, मगर उनका मुकाबला नही कर पा रहे थे| ऐसे में झुँझलाकर उन्होंने हमें पीटना शुरु कर दिया| हमारे साथियों में से कुछ लड़खड़ाकर गिर भी पड़ते थे तो ऐसे में वे उन्हें ठोकरें मारते और उठाकर तेज चलने के लिए धक्का देते|

गिरते-पड़ते इस समय हम एक जंगल में आ गए थे| जंगल बड़ा ही भयानक था| जंगल में ही हमें एक किला दिखाई देने लगा| कुछ देर बाद हम उस किले के फाटक के पास गए| काले बौनों ने हमें फाटक के भीतर धकेल दिया और फिर फाटक बंद करके चले गए|

वह किला अंदर से काफ़ी बड़ा था| उसकी इमारत काफ़ी पुरानी थी और काले पहाड़ सरीखी दिखाई दे रहे थे| वहाँ सन्नाटा छाया हुआ था| हम किले की तरफ़ बढ़े और जैसे ही किले के ख़ास दरवाजे पर पहुँचे, वह अपने आप खुल गया| दरवाजा खुलते ही बदबू का दिमाग को फाड़ देने वाला एक तेज झोंका हमारी नाक से टकराया| मगर फिर भी हम अंदर दाखिल हो गए|

हम दरवाजे में दाखिल होकर जैसे ही दूसरी तरफ़ पहुँचे तो हमारे हलक से चीखें निकल पड़ी| वहाँ एक तरफ़ एक बहुत बड़ी भट्टी थी जिसमें अंगारे दहक रहे थे| उसके पास ही लोहे के बड़े-बड़े सरिए रखे थे| एक तरफ़ इंसानी खोपड़ियाँ और हड्डियों के ढेर पड़े थे| हमें समझते देर नही लगी कि यह किसी राक्षस का ठिकाना है| और यह भी हमसे छिपा नही रह गया था की अब हमारा क्या हाल होने वाला है| हमारे सबके चेहरे दहशत के मारे इस कदर पीले पड़ गए जैसे उसमें मौजूद खून की आखिरी बूँद तक निचोड़ ली गई हो| हमारे शरीर बेजान से हो गए और हम लड़खड़ाकर जहाँ के तहाँ गिर पड़े| हमारे कुछ साथी तो बैठकर रोने ही लगे थे|

दूसरों की तो पता नही, मगर दिमाग फाड़ देने वाली उस बदबू ने मेरी यह हालत कर दी थी कि मुझ पर बेहोशी-सी छाने लगी थी और कुछ देर बाद मैं सचमुच बेहोश हो गया था| कुछ देर बाद जब मेरी आँख खुली तो वहाँ का मंजर वैसा ही था| मगर समय काफ़ी गुजर चुका था| सूरज ढल रहा था और शाम होने वाली थी| वातावरण धीरे-धीरे सुरमई होता जा रहा था, जो अँधेरे की तरफ़ इशारा कर रहा था|

मेरे साथी सौदागरों में से कुछ तो अभी भी बेहोश थे| कुछ मेरी तरह अभी जागे थे| कुछ पाला मारे फूलों की तरह मुरझाए बैठे थे| कुछ ऐसे थे जो अपने मुकद्दर को कोस रहे थे| साफ़ जाहिर था की अब सब जीवन की आशा छोड़ चुके थे|

अचानक! एक भयानक दहाड़ ने वहाँ के माहौल को कंपकंपा कर रख दिया|

हम सब बुरी तरह डरकर चीखने लगी और जिधर से आवाज़ आई थी उधर ही देखने लगे| मेरे जो साथी बेहोश पड़े थे, उनकी भी बेहोशी टूट गई थी|

अचानक दहाड़ फिर उभरी| और फिर जो मंजर हमारे सामने आया, उसे देखकर हमारी सांसे रुक गई| हलक से निकलने को बेताब चीखें हलक में ही घुटकर रह गई| वहाँ एक गुफ़ा भी थी जिसकी तरफ़ हममें से किसी का भी ध्यान अभी तक नही गया था और इस वक्त उसके दरवाजे पर एक दैत्य खड़ा था|

वह दैत्य इतना भयानक था कि उसकी याद आते ही आज भी मेरी रुह काँप जाती है| दैत्य क्या उसे तो छोटा-मोटा पहाड़ कहना ही ज्यादा मुनासिब होगा| दहाड़ते हुए राक्षस ने एक कदम आगे बढ़ाया तो ऐसा लगा जैसे धरती थर्रा गई हो| मगर वह सिर्फ़ दो कदम चला और हमारे सिरों पर आ खड़ा हुआ| उसका एक कदम बीस फुट नापता था| अपने सिर पर उसे खड़ा देखकर हमारी सांसे रुक गई| हलक सूख गए जबकि वह अपनी छाती पीट-पीटकर खुशी ज़ाहिर कर रहा था|

फिर अचानक वह झुका और उसने मुझे अपनी मुठ्ठी में दबोच लिया और गौर से मेरा मुआयना करने लगा| उसका मुझे नज़रों से तौलने का अंदाज बिल्कुल ऐसा था जैसे बकरा खरीदने से पहले कोई कसाई उसे नज़रों से तौलता है कि इसमें कितना गोश्त होगा| मेरी तो घिग्गी बन गई थी|

मगर फिर अचानक उसके चेहरे के भाव बदले| उसने ऐसा मुहँ बनाया मानो मैं उसे पसंद नही आया था| फिर उसने मुझे एक तरफ़ फेंक दिया और आँखें फाड़-फाड़कर बाकी लोगों का मुआयना करने लगा| फिर उसने झुककर कप्तान को उठा लिया| बस कप्तान को बुरी तरह बिलख-बिलखकर रोने लगा| दरअसल, मैं अपने दल का सब से दुबला-पतला आदमी था और कप्तान हममें सबसे अधिक मोटा-ताजा था| मेरे जैसे दो-तीन आदमी उस अकेले में से बन सकते थे|

उसे अपनी आँखों के सामने करके दैत्य खुशी ज़ाहिर करने वाले अंदाज में सिर हिलाने लगा| फिर अचानक वह झुका और सरियों के ढेर में से एक सरिया उठाकर उसने कप्तान के पेट में घुसेड़ दिया| कप्तान तो बुरी तरह चीख ही रहा था, दैत्य की ये वहशियाना हरकत देखकर हम भी दहशत के मारे चीखने लगे| न केवल चीखे बल्कि अपनी-अपनी जगह से उठकर हम वहाँ से दूर भागे| मगर दैत्य ने हमारी तरफ़ देखा भी नही, उसने लोहे की एक सलाख जिसके एक सिरे पर कप्तान का शरीर था, उसे दहकती भठ्ठी में झोंक दिया|

कप्तान की चीखें और अधिक तेज हो गई| फिर धीरे-धीरे उसने दम तोड़ दिया| हम दूर खड़े खौफ़ से थर-थर काँपते उस दैत्य की हरकत देख रहे थे| और फिर हमारे देखते-देखते वह दैत्य कप्तान का शरीर भूनकर खा गया| उसके बाद वह वापस अपनी गुफ़ा में चला गया| हम सभी जहाजी पत्थर बने खड़े थे| रात धीरे-धीरे गहराने लगी थी| हम सब इकठ्ठे होकर उस भट्टी के पास आ गए जिसमें उस राक्षस ने हमारे कप्तान को भूनकर खा लिया था| दरअसल, ठंड पड़ने लगी थी और वह भट्टी हमें काफ़ी राहत पहुँचा रही थी|

अचानक हम सभी एक बार फिर चौंक पड़े| अजीब सी खर्र…खर्र की आवाजें वातावरण में गूँजने लगी थी| हमें समझते देर नही लगी कि ये राक्षस के खर्राटों की आवाजें है| उन खर्राटों की आवाज़ को सुनकर हम एक नज़र उसे देखने के ख्याल से गुफ़ा की तरफ़ बढ़े| गुफ़ा में जाकर हमने देखा कि पत्थर की एक लंबी-चौड़ी स्लेट पर वह राक्षस सोया पड़ा था| हम उसे देख कर दबे पाँव बाहर आ गए| डर के मारे हमने आपस में बात तक नही की थी| हमें अंदेशा था कि अगर वह जाग गया तो गुस्से में आकर हम सबको कच्चा ही न चबा जाए|

हम अलाव के पास बैठकर आपस में बातें करने लगे| मुझे यह देखकर बेहद अफ़सोस हुआ कि मेरे सभी सौदागर साथी और जहाज़ के सभी कारिन्दे बड़ी निराशा भरी बातें कर रहे थे| वे लोग अपने जीवन की आस छोड़ चुके थे| मगर मैं इतनी जल्दी हिम्मत हारने वालों में से नही था|

दरअसल, उस राक्षस को सोते देखकर मेरे दिमाग में कोई दूसरी ही खिचड़ी पकने लगी थी| जहाँ वे मौत की कल्पनाएँ कर रहे थे, वही मैं जिंदगी का रास्ता तलाश कर रहा था|

और जब मैंने उनके मुँह से यह बात सुनी कि जिंदा आग में भुनने से तो अच्छा है कि हम लोग समुंद्र में डूबकर अपनी जान दे दे, तो मुझे बड़ा गुस्सा आया|

मैंने उनसे कहा, “इस तरह की बातें सोचना बुजदिली है, कायरता है|”

“तो तुम ही बताओ सिंदबाद की हम क्या करे?”

“हमें इस राक्षस को मारने की कोई तजवीज सोचनी होगी|”

“क्या?” मेरी बात सुनकर वे सब स्तब्ध रह गए| एक पल के लिए उन्हें विश्वास ही नही हुआ कि ऐसा कुछ भी हो सकता है|

“तुम सब वही करो जो मैं कहता हूँ|’ मैंने कहा, फिर उन्हें अपनी तजवीज बताई|

मेरी बात सुनकर वे तैयार हो गए और उठकर सलाखें गर्म करने लगे|

जब सलाखें तप कर लाल हो गई, तो एक-एक ने एक-एक सलाख उठा ली| मेरे हाथ में भी दो सलाखें थी और मैं सबसे आगे था| हम दबे पाँव उस गुफ़ा में दाख़िल हुए जिसमें वह आदमखोर सोया हुआ था| कुछ ही पलों में हमने उसे चारों तरफ़ से घेर लिया| मैं उसके सिर की तरफ़ खड़ा था| हम सभी ने उस पर एक साथ वार करना था| अचानक मेरे हाथ ऊपर उठे, बाकी सबने भी वैसा ही किया|

फिर एक झटके से मेरे हाथ नीचे गिरे और लोहे की वे तपती सलाखें मैंने उसकी आँखों में घुसेड़ दी| बाकी लोगों ने भी अपनी-अपनी सलाखें उसके शरीर के उस हिस्से में पैवस्त कर दी, जो हिस्सा उनके सामने था| राक्षस बुरी तरह तड़पा और किसी जंगली भैंसे के डकारने जैसी आवाज़ उसके हलक से खारिज हुई| वह बुरी तरह छटपटाकर हाथ-पैर फैंकने लगा| वह अपने हाथों से अपने उन दुश्मनों को पकड़ना चाहता था, जिसने उसकी वैसी हालत की थी, मगर अल्लाह का शुक्र था कि हममें से कोई भी उसके हत्थे नही चढ़ा था|

“भागो! अपने काम को अंजाम देते ही मैं चीखा था|

और उसके बाद, हम सब दरवाजें की तरफ़ झपट पड़े थे| हम जैसे ही गुफ़ा से बाहर निकलकर मैदान में पहुँचे तो हमने उसे गुफ़ा के दरवाजें पर देखा| उसकी आँखें जरुर फूट गई थी लेकिन इसके बावजूद उसकी हिम्मत नही टूटी थी| हम जान-छोड़कर किले से बाहर निकले और समुद्र के किनारे की तरफ़ भागे| उसका खौफ़ हमारे दिलो-दिमाग पर इस क़दर तारी था कि अब हमारी पलटकर पीछे देखने की हिम्मत भी नही हो रही थी|

कुछ ही देर में हम समुद्र के किनारे पर पहुँच गए| जहाज़ पर दो-तीन हल्की नावें बँधी थी|

हमने जहाज़ पर चढ़ने के लिए एक पल भी जाया नही किया और उन नावों को खोलकर उन्हें पानी में धकेला और गिरते-पड़ते उनमें सवार होकर समुद्र के रास्ते भाग निकले| हालांकि यह काम भी सीधा-सीधा मौत को दावत देने जैसा था, मगर इसमें मौत से लड़कर हम जीत भी सकते थे और यह मौका हमें किले में हासिल होने वाला नही था| समुद्र में कुछ दूर जाने पर हमें किनारे की तरफ़ से भयानक शोर सुनाई दिया| हमने पलटकर उधर देखा तो उस राक्षस को वही खड़े पाया जहाँ से कुछ देर पहले हमारी नावें रवाना हुई थी| उसके साथ दो राक्षस और भी थे और वे तीनों मारे गुस्से के बुरी तरह डकरा रहे थे|

फिर अचानक उनमें से एक राक्षस ने बड़ा भारी पत्थर उठाकर हमारी नावों पर फेंका| उसे देखकर दूसरा राक्षस भी वैसा ही करने लगा| बड़े-बड़े पत्थर हमारी नावों को निशाना बनाकर फेंके जाने लगे|

हालांकि कोई भी पत्थर हमारी नाव पर नही गिरा, मगर उन बड़े पत्थरों के पानी में गिरने के कारण पानी इस कदर उछला कि उसकी भयानक लहरों ने हमारी नावों की चाल खराब कर दी|

कुछ पत्थर हमारी नावों के ऊपर से गुजर कर सामने की तरफ़ आकर गिरे तो हमारी रुह फ़ना हो गई| ज़ाहिर था कि हम उसके निशाने की जद से बाहर नही थे| किसी भी समय कोई पत्थर हमारी नाव पर गिरकर उस के टुकड़े-टुकड़े कर सकता था| मगर ऐसी नौबत नही आई और एक दूसरा ही काम हो गया|

कुछ हमारे घबरा जाने और कुछ लहरों के बेतरतीब होने की वजह से हमारी नाव उलट गई| मेरी नाव पर पाँच आदमी सवार थे| हम पाँचों में से एक तो लहरों में बह गया और बाकी लोग डूबने-उतराने लगे| तभी एक पत्थर दूसरी नाव पर आकर गिरा| उस पर बैठे लोग और वह नाव टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गई| हमें अब एक-दूसरे को देखने की नही बल्कि अपनी जान बचाने की फ़िक्र थी|

मैंने उस टूटी हुई नाव का एक तख्ता पकड़ लिया| मैं जोर-जोर से पैरों से पानी काटते हुए वहाँ से दूर होता चला गया| काफ़ी दूर जाकर जब मैंने पलटकर देखा तो अपने दो साथियों को भी उसी प्रकार तख्तों के सहारे तैरकर अपने पीछे आते देखा| और फिर कुछ ही देर में हम एक टापू पर पहुँच गए|

उस टापू पर जाकर हमने राहत की सांस ली और पेड़ों पर लगे फल-फूल खाकर उन्हीं पेड़ों के नीचे पसर गए| हम मौत से लड़कर यहाँ तक पहुँचे थे| हमारे शरीर बुरी तरह टूट चुके थे और अब कुछ खाने के बाद तो हममें एक कदम आगे बढ़ने की ताकत भी बाकी नही थी| हमें लेटते ही नींद आ गई|

जब पहाड़ों के टकराने और किसी के चीखने जैसी दर्दनाक आवाज़ सुनकर मेरी आँख खुली तो मैं बुरी तरह घबराकर चीख उठा| दरअसल, हमारे एक साथी को अज़गर ने दबोच लिया था| खोपड़ी की तरफ़ से उसका आधा शरीर अज़गर के मुँह में था और टाँगें बाहर थी| अभी वो जिंदा ही था क्योंकि उसकी टाँगें बुरी तरह फड़फड़ा रही थी| मैं और मेरा साथी दहशत के मारे चीखते हुए वहाँ से दूर भागे| भागते-भागते हम काफ़ी दूर निकल आए एक पेड़ पर चढ़ गए|

मेरा वह साथी शरीर से कुछ मोटा था, इसलिए न तो वह ढंग से भाग सका था और न ही पेड़ पर अधिक ऊपर चढ़ पाया था| मैंने उससे कहा भी कि वह थोड़ा और ऊपर आ जाए क्योंकि पेड़ पर जहाँ वह रुक गया था, वहाँ तक अज़गर कि या किसी भी दूसरे जानवर की पहुँच आसान हो सकती थी, मगर उसकी हिम्मत इंच भर हिलने की नही थी| वह जहाँ का तहाँ बैठा बुरी तरह हाँफ रहा था| उसने मुझे हाथ से इशारा करके बताया कि वह जहाँ बैठा था, वही ठीक था| मैं पेड़ की डाल से चिपक गया और आँखें मूँद ली|

अल्लाह ही जानता था कि तीसरी यात्रा में हमें और क्या-क्या परेशानियाँ उठानी पड़ेगी| इस मनहूस यात्रा में कोई खास कारोबार भी नही हुआ था और हमारे साथी भी मारे गए थे और जहाज़ भी तबाह हो गया था|

अभी मुझे आँखें बंद किए कुछ ही गुजरे थे कि किसी अज़गर के फुँफकारने की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी| मैंने आँखें खोलकर देखा तो नीचे एक अज़गर बैठा भयानक अंदाज में फुँफकार रहा था और मेरा वह साथी टपके आम की तरह नीचे गिर रहा था| दरअसल, भयानक अज़गर की फुँफकार सुनकर वह बुरी तरह घबरा गया था और उसी झोंक में नीचे जा गिरा था| मैं जानता था कि उसका क्या हश्र होने वाला है, मगर बावजूद इसके मै वो मंजर देखने की ताब न ला सका और मैंने घबराकर आँखे बंद कर ली| मेरे साथी की हौलनाक चीखें, फिर ख़ामोशी| थोड़ी देर बाद मैंने आँखें खोलकर देखा तो अज़गर वापस जा रहा था| मेरे साथी का कही पता नही था| मैं एक गहरी सांस लेकर रह गया|

उसके बाद दूसरे दिन सुबह ही मैं उस पेड़ से उतरा| मैं रात भर एक मिनट के लिए भी सो नही पाया था क्योंकि रात भर अज़गर की भयानक फुँफकारें मुझे सुनाई देती रही थी| इस टापू पर खतरनाक किस्म के साँपों का कब्जा था| यह बात समझते ही मैंने पक्का फैसला कर लिया था कि सूरज की पहली किरण के साथ ही मुझे ये टापू छोड़ देना है| मैं पेड़ से उतरकर तेजी से किनारे की तरफ़ भागा|

किनारे पर पहुँचते ही मेरी नज़र समुद्र में दूर से गुजरते एक जहाज़ पर पड़ी| मैंने फौरन अपनी पगड़ी खोली और उसे हवा में लहराने लगा| कुछ देर बाद मैंने देखा कि जहाज़ की दिशा बदल गई है| जहाज़ का रुख अब मेरी तरफ़ हो गया था और ज़ाहिर था कि मैं उनकी नज़रों में आ चुका था|

और अल्लाह का लाख-लाख शुक्र था कि मैं सही-सलामत जहाज़ पर पहुँच गया| कप्तान ने उस खतरनाक द्वीप पर मेरी मौजूदगी का कारण जानना चाहा तो मैंने उसे अपना नाम नही बताया और सिर्फ़ इतना ही कहा कि मैं एक व्यापारी हूँ और हमारा जहाज़ डूब गया है|

खैर, इस नए जहाज़ पर मेरी यात्रा शुरु हुई| वह जहाज़ कई बंदरगाह पर रुका और उसके व्यापारियों ने हर जगह कारोबार किया| जब जहाज़ वापस बगदाद के लिए लौटने लगा तो कप्तान ने मुझे बुलाया और बोला, “सुनो दोस्त! सभी सौदागर अपना माल बेचने जाते है और तुम जहाज़ में बैठे बोर होते रहते हो| धन-दौलत भी तुम्हारे पास नही है, इसलिए मेरी एक सलाह मानो कि कुछ धंधा करो| मेरे पास एक व्यापारी का कुछ माल पड़ा है| जिस व्यापारी का यह माल है वो मर चुका है, तुम उसे ले जाकर बाज़ार में बेच दो| तुम्हारी मेहनत के बाद जो रुपया बचेगा, वह पैसा मैं बगदाद के हाकिम को सौंप दूँगा ताकि वह उस पैसे को उसके सच्चे हकदार को दे सके|”

मैं उस कप्तान को पहचानने की कोशिश करने लगा और उसकी आवाज़ से मैंने उसे पहचान लिया| दरअसल, वो उस जहाज़ का कप्तान था जिसमें मैंने अपनी दूसरी यात्रा की थी| यही जहाज़ मुझे उस समय छोड़कर चला गया था जब मैं खा-पीकर सो गया था| बाद में एक पक्षी के पैरों में बंधकर मैं हीरों की घाटी पहुँच गया था| मगर इस समय वह कप्तान मुझे नही पहचान पाया था|

मेरी ‘हाँ’ सुनकर वह मुझे नीचे तहखाने में ले गया और खलासी से बोला, “सिंदबाद जहाजी का जो माल पिछले दो साल से जगह घेरे पड़ा है, उसे इस शख्स को सौंप दो| उसे बेचकर जो पैसा बचेगा, उसे हम हाकिम के जरिए सिंदबाद के वारिसों तक पहुँचा देंगे|”

“कप्तान साहब! क्या ये माल सचमुच सिंदबाद जहाजी का है?” मैंने हैरानी से पूछा|

“हाँ भई! करीब दो साल पहले मर गया बेचारा| बड़ा नेकदिल सौदागर था| तुम वह अपने नाम लिखवा लो|”

“मगर सिंदबाद मर कैसे गया?”

“मरा नही था| दरअसल वो एक बीहड़ टापू पर छूट गया था| ये दो साल पुरानी बात हो गई|”

“तो क्या पता वो जिंदा हो?”

“अल्लाह करे ऐसा हो, मगर उस दिन के बाद हमने तो उसे नही देखा| अगर जिंदा होता तो क्या दोबारा कभी सफ़र न करता|”

“आपका सोचना अपनी जगह दुरुस्त है कप्तान साहब! मगर यह भी सच है कि सिंदबाद जहाजी आज भी जिंदा है|”

“जिंदा है?” कप्तान हैरानी से मुझे देखने लगा, “क्या तुम जानते हो उसे? अगर वो जिंदा है तो कहाँ है? हमारी कंपनी में आकर उसने अपने माल का दावा क्यों नही किया?”

“दरअसल, उस टापू से किसी तरह निकलकर वह हीरों की घाटी में पहुँच गया था और वहाँ से करोड़ों के बेशकीमती हीरे उसके हाथ लग गए थे, इसलिए उसने इस तरफ़ ध्यान नही दिया|”

“अच्छा? मगर तुम ये सब बात कैसे जानते हो?”

इस पर मैं मुस्कुरा उठा और बोला, “मुझे गौर से देखिए कप्तान साहब! वह सिंदबाद जहाजी मैं ही हूँ, जो अपनी इस तीसरी यात्रा में भी भटक गया हूँ|”

मेरी बात सुनकर कप्तान चकित रह गया और पहचानने के ख्याल से आँखें फाड़-फाड़कर मुझे देखने लगा| मैं मुस्कुरा रहा था| फिर अचानक उसने मुझे अपनी बाहों में भर लिया और बोला, “ओह सिंदबाद! खुदा का शुक्र है कि तुम जिंदा हो| मुझे माफ कर दो दोस्त! मैं अपने आपको आज तक गुनाहगार समझकर कोसता रहा हूँ| यह बात कमबख्त मन से निकलती ही नही थी कि तुम्हारी मौत का जिम्मेदार मैं हूँ| मगर आज मेरे दिल का बोझ हल्का हो गया| अब भाई! तुम अपना ये माल संभालो|”

इस प्रकार, नसीब ने दूसरे तरीके से मुझ पर मेहरबानी की| कहाँ तो मुझे अपनी जान के भी लाले पड़े हुए थे और कहाँ अब मेरा हज़ारों-लाखों का माल मुझे वापस मिल रहा था| मैंने माल लाकर उसे बाज़ार में बेचा और कुछ माल और खरीदा|

फिर हमारा जहाज़ सिलहट द्वीप से अन्य द्वीपों में पहुँचा| जहाँ से हम लोगों ने दाल-चीनी आदि खरीदी| हमने दूर-दूर की यात्रा की| एक जगह हमने इतने बड़े कछुए देखे, जिनकी लंबाई-चौड़ाई पचास-पचास हाथ की थी और अजीब मछलियाँ भी, जो गाय की तरह दूध देती थी| कछुओं का चमड़ा बहुत कड़ा होता है| उसकी ढालें बनाई जाती है| हमने एक और अजीब किस्म की मछलियाँ देखी, इनका रंग और मुहँ ऊँट जैसा होता है|

घूमते-घूमते हमारा जहाज़ बसरा के बंदरगाह में पहुँचा| वहाँ से लौटकर बगदाद आया तो मैं अपनी दौलत में और अधिक इजाफ़ा कर चुका था| कुशलतापूर्वक अपने घर आ जाने पर मैंने खुदा का शुक्रिया अदा किया| इस खुशी में मैंने बहुत सा धन भिखारियों तथा निर्धनों की सहायतार्थ दिया|

इस यात्रा में मुझे इतना लाभ हुआ, जिसकी गिनती नही की जा सकती| मैंने दान आदि करने के अतिरिक्त कई सुंदर भवन तथा आराम की चीज़ें खरीदी|

बस साथियों! यही है मेरी तीसरी यात्रा की कहानी| अब आप लोग कुछ नाश्ता वगैरह ले, उसके बाद कल यहाँ फिर तशरीफ़ लाएँ| कल मैं आप लोगों को अपनी चौथी यात्रा की कहानी सुनाऊँगा| कल के लिए आप मेरा दावतनामा कबूल फरमाएँ| उसके बाद सिंदबाद हिंदबाद को सौ दीनारों की थैली इनाम में दी और नाश्ते आदि के बाद सम्मान के साथ सबको विदा किया|

अगले दिन ठीक समय पर सभी मेहमान सिंदबाद की हवेली आ पहुँचे| आज भी सबसे पहले आने वालों में हिंदबाद ही था| सिंदबाद ने सबको खाना और उम्दा शराब से नवाज़ा, फिर शुरु हुआ चौथी यात्रा की कहानी का दौर|

समस्या