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पातिव्रत-धर्म का महत्व

जिस तरह माता-पिता पुत्र के लिये परमात्मा की मूर्ति होते हैं, उसी तरह पत्नी के लिये पति परमात्मा की मूर्ति होता है| जिस तरह केवल माता-पिता की सेवा से सभी सिद्धियाँ प्राप्त हो जाती हैं, उसी तरह केवल पति की सेवा से सभी सिद्धियाँ मिल जाती हैं|

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पूर्वकाल की बात है, मध्यदेश में सैव्या नाम की एक पतिव्रता ब्राह्मणी थी|

वह पति को परमात्मा ही समझकर उसकी सेवा में निरन्तर लगी रहती थी| पूर्वजन्म के पाप से उसके पति के शरीर में कोढ़ हो गया था| उसके मन में भी विकार भरे रहते थे| फलस्वरूप वह सैव्या को फटकारता भी रहता था, किंतु सैव्या प्रेम की मूर्ति थी| पति की मार को भी प्यार समझती थी|

एक दिन उसके पति ने वैश्या को जाते देखा| वैश्या बड़ी सुन्दर थी| वह उसे पाने के लिये व्यग्र हो उठा और लम्बी-लम्बी साँसें खींचने लगा| उसकी साँसों को सुनकर पतिव्रता दौड़कर उसके पास पहुँची और पूछने लगी-‘आपको क्या कष्ट है? बताइये, मैं उसे दूर करुँगी| आप ही मेरे सब कुछ हैं| मैं आपके दुःख को सहन नहीं कर सकती|’ पति ने बताया-जिसे न पाने से मुझे कष्ट है, उसे तुम दे नहीं सकती| अभी-अभी एक वैश्या इस मार्ग से गयी है| उसे देखकर उसे पाने की इच्छा मुझे सता रही है| उसे पाये बिना मैं मर भी सकता हूँ|’ पतिव्रता ने पति को धीरज बँधाया और कहा-‘मैं आपका मनोरथ पूर्ण करुँगी|’ दूसरे दिन प्रातःकाल पतिव्रता गोबर और झाड़ू लेकर वैश्या के घर जा पहुँची| उसके आँगन तथा गली में झाड़ू लगाकर गोबर से लीप दिया| किसी की दृष्टि पड़ने के पहले ही वह घर आ गयी| तीन-चार दिनों तक यह क्रम चलता रहा| वैश्या को पता नहीं चल पाता था कि यह सफाई कौन कर जाता है| उसके नौकर-चाकर भी उद्विग्न थे| अन्त में सभी लोगों ने मिलकर योजना बनायी कि आज रात को जागकर सफाई करनेवाले का पता लगाया जाय| अगले दिन ज्यों ही सैव्या झाड़ू लगाने लगी, त्यों ही वैश्या ने उसे देख लिया| सैव्या अपने पतिव्रता धर्म के कारण विख्यात हो चुकी थी| उसे सब लोग जानते थे| वैश्या भी सैव्या को पहचान गयी| वह दौड़कर उसके पास पहुँची और कहने लगी-‘आप मुझे नरक में क्यों डालना चाहती हैं?’ सैव्या ने नम्रता से कहा-‘मैं आपकी सेवा अपनी इच्छा की पूर्ति के लिये कर रही हूँ| जबतक आप प्रसन्न नहीं होंगी, मैं आपकी सेवा करती रहूँगी|’ वैश्या ने सैव्या से कहा-‘आप सोना, चाँदी, कपड़ा आदि जो चाहें उसे माँग लें| मैं सब कुछ देने को तैयार हूँ| इसके लिये सेवा की आवश्यकता न थी|’ पतिव्रता ने कहा-‘मुझे धन आदि की इच्छा नहीं है| मुझे तो आपसे ही काम है|’ इसके बाद पतिव्रता ने लजाते-लजाते अपने पति की इच्छा सुना दी| दुर्गन्धयुक्त कोढ़ी मनुष्य के साथ संसर्ग की बात सोचकर वैश्या के मन में बड़ी घृणा हुई| फिर भी सैव्या से डरकर उसने केवल एक रात के लिये उसके पति से मिलना स्वीकार कर लिया|

पतिव्रता का पति कोढ़ से लंगड़ा भी हो गया था| वह चलकर वैश्या के पास नहीं पहुँच सकता था, अतः सैव्या उसे कंधे पर चढ़ाकर वैश्या के घर ले चली| रात अँधेरी थी| आकाश में घटाएँ घिरी थीं| रास्ते में उसके पति का सड़ा-गला अंग माण्डव्य मुनि के शरीर से जा टकराया| मुनि की समाधि भंग हो गयी| समाधि भंग होने से उन्हें शूली का भयानककष्ट होने लगा| चोर समझकर राजा के सिपाहियों ने उन्हें भूल से शूली पर चढ़ा दिया था| तीव्र वेदना से पीड़ित होकर माण्डव्य ऋषि ने शाप दे दिया-‘जिसने मुझे असहाय वेदना का अनुभव कराया है, वह सूर्योदय होते-होते भस्म हो जाय|’ शाप देते ही कोढ़ी पृथ्वी पर गिरकर बेहोश हो गया|

पतिव्रता से अपने पति की दुर्दशा देखी नहीं गयी| उसने कहा-‘आज से सूर्य का उदय ही न हो|’ इतना कहकर पति को घर ले आयी और सेवा करने लगी| इधर सूर्य के न उदय होने से संसार में हाहाकार मच गया| लोग समझ नहीं पाते थे कि ऐसा क्यों हो रहा है| अन्त में ब्रम्हा जी देवताओं के साथ सैव्या के पास पहुँचे| उसे समझाया कि तुमने संसार के विनाश की बात क्यों सोची? जब सूर्य उदय नहीं होगा, तब संसार कैसे बचेगा? पतिव्रता ने कहा-‘मेरे लिये पति ही सब कुछ हैं| मुनि के शाप से इनकी मृत्यु न हो इसलिये मैंने सूर्य को शाप दिया है| ब्रम्हा ने कहा तुम सूर्योदय हो जाने दो, तुम्हारे पति को मैं जिलाकर स्वस्थ कर दूँगा| पतिव्रता के ‘हाँ’ कहते ही सूर्योदय हो गया| सूर्योदय हो गया| सूर्योदय होते ही सैव्या का पति राख का ढेर हो गया और शीघ्र ही उस राख से स्वस्थ एवं सुन्दर रूप में वह ब्राह्मण प्रकट हुआ| उसी समय आकाश से विमान उतरा, जिस पर वह पतिव्रता पति के साथ बैठकर स्वर्गलोक चली गयी|’

संत की ऊ