कौन बड़ा
विश्वविजय का सपना लेने वाला यूनान का सम्राट सिकंदर महान् बहुत अधिक अभिमानी था| वह यह सहन नहीं कर सकता था कि कोई उसके सम्मुख गर्व से सिर उठाए|
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एक बार उसे जीवन में एक सच्चे वीतराग तपस्वी साधु देवजानस से मिलने का सुयोग मिला| साधु देवजानस किसी सार्वजनिक स्थान पर लेटा हुआ था| वहाँ समीप से ही सम्राट सिकंदर को जाना था| सिकंदर के अंगरक्षक सिपाही आए| उन्होंने आकर कहा- देवजानस, दुनिया जीतने वाला बादशाह सिकंदर आ रहा है, तू उठ जा और उसका स्वागत कर|” देवजानस लेटा रहा; न तो उठा और न स्वागत के लिए खड़ा हुआ| थोड़ी देर में सिकंदर के अनेक सिपाही आए, दूसरे अंगरक्षक भी आए, परंतु साधु वैसे ही लेटा रहा| अंत में स्वयं सिकंदर आ पहुँचा| उसने साधु से कहा- “देवजानस, जानता नहीं, दुनिया जीतने वाला यूनान का बादशाह सिकंदर तेरे सामने खड़ा है और तू उसे प्रणाम नहीं करता?”
इस पर देवजानस ने कहा- “मेरे दो गुलाम हैं- एक इच्छाएँ और दूसरा लालच| मैंने इन्हें अपने नियंत्रण में रखा हुआ है| मेरे इन दासों ने तुझे अपने वश में किया हुआ है| अब बता कि जब तू मेरे गुलामों के वश में है तो मैं उनके गुलाम सिकंदर का कैसे स्वागत अभिवादन करूँ?”
सिकंदर को उस तेजस्वी साधु की उक्ति का कुछ जवाब देते नहीं बना| वह उस लेटे हुए साधु को देखता हुआ अपनी सेना के साथ आगे निकल गया|
इस कहानी से हमें शिक्षा मिलती है कि मनुष्य को अपनी इच्छाओं का गुलाम नहीं होना चाहिए|