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चमत्कारी बकरी – शिक्षाप्रद कथा

लालाराम एक कंजूस-मक्खीचूस सुनार था! हमेशा सोने चांदी के जेवरों में डण्डी जरूर मारता था! 

लोगों से जेवर खरीदते हुए दो तोले की चीज़ का वजन डेढ़ तोले ही तोलता, जबकि बेचते हुए दो तोले के ढाई तोले बना देता! 

लेकिन उस कस्बे और आस पास के सभी गाँव-कस्बों में वह अकेला ही सुनार था, इसलिये आस-पास के सभी गाँवों और कस्बों में उसकी तूती बोलती थी! 

एक दिन उसके पास, दूर गाँव का एक किसान आया और बोला – “लालाजी, आती सर्दी में बिटिया की शादी करनी है तो दो तोले तक का कोई गले का सैट दिखाओ, जिसमें कान के बुन्दे, नाक की नथनी और हाथ के हल्के- हल्के कड़े भी हों!”

लालाराम ने तेवर दिखाये -“पागल हुआ है! इतनी सारी चीज़ें भला दो तोले में बन सके हैं…?”

“देख लाला…!” किसान ने कहा -“लड़की की शादी करनी है और उसे जेवर भी सारे देने हैं, पर मेरे पास दो तोले सोने के लायक ही पैसा है! हाँ, इसके अलावा मेरे पास बड़ी करामाती बकरी है, जो कभी मुझे एक साधू ने दी थी, तू अगर चाहे तो मैं तुझे वो बकरी दे दूंगा!”

“बकरी…!” लालाराम चिल्लाया -“भला मैं क्या करूँगा बकरी का…?*

“अरे लाला, वो बकरी कोई मामूली बकरी नहीं है! वो इन्सानों की तरह बातें करती है!”

“अरे तो मैं उससे बातें करके क्या करूँगा?” लालाराम सुनार ने कहा! 

“देख ले लाला…!” किसान बड़ी दीनता से बोला-“बेटी की शादी में मदद करेगा तो बहुत पुण्य मिलेगा!”

“ठीक है…!” लालाराम कुछ सोचकर बोला-“तू पैसे अभी दे जा! कल बकरी भी ले आइयो और जेवर ले जाइयो!”

किसान लालाराम को अपने पास जेवरों की जितनी मुनासिब कीमत थी,  देकर चला गया! 

उस दिन लालाराम ने सोने में थोड़ी मिलावट कर किसान की बेटी के लिए सब जेवर तैयार कर दिये! 

अगले रोज किसान बकरी लेकर आया ! बकरी के गले में एक घण्टी और पट्टा था। बकरी बड़ी हट्टी-कट्टी थी। लालाराम ने बकरी को ऊपर से नीचे तक देखा और बोला -“किसान भाई, तूने कहा था  न, बकरी इन्सानों की तरह बोलती है तो इससे कुछ बुलवा कर तो दिखा!”

किसान ने बकरी की ओर देखा और प्रेम से बोला -“बकरी माता, राम राम!”

“राम राम…!” बकरी ने कहा!

“बकरी माता, बिटिया की शादी के लिये मैं तुम्हें इस सुनार को दे रहा हूँ तो कोई नाराजगी तो नहीं है!”

“नहीं, कोई नाराजगी नहीं है!” बकरी ने कहा- “पर सुनार को वो सब भी बता दो, जो साधू महाराज ने तुम्हें बताया था!”

“ठीक है!” किसान ने कहा, फिर वह लालाराम सुनार से बोला-“भाई लालाराम, इस बकरी को कभी कोई तकलीफ मत देना! मारना पीटना नहीं! और इसकी मर्जी के बिना इसे किसी और को मत देना! बेचना भी मत…! मैंने भी इस बकरी से पहले ही पूछ लिया था कि बेटी के जेवरों की खातिर सुनार को दे दूँ? इसने कहा दे दो, तभी मैं इसे तेरे पास लेकर आया हूँ!”

सुनार ने माना कि वह बकरी को कोई कष्ट नहीं देगा और उसकी मर्जी के बिना उसे किसी को बेचेगा भी नहीं!”

किसान बकरी सुनार के हवाले कर, अपनी बेटी के लिये तैयार किये जेवर लेकर चला गया! 

जैसे ही किसान गया, बकरी ने सुनार से कहा- “तुमने किसान को धोखा दिया है! उसे नकली जेवर देकर असली का मूल्य वसूल किया है, यह अच्छी बात नहीं है!”

सुनार चकित हो उठा! उसने बकरी से पूछा-“तुम्हें यह सब कैसे मालूम?”

“मुझे सब मालूम है!” बकरी ने कहा-“बेइमानी और दुष्टता छोड़ दो, वरना एक दिन सब कुछ खो बैठोगे!”

“अरे पागल, अगर ईमानदारी से काम करूँगा तो मैं तो लुट जाऊँगा! बरबाद हो जाऊँगा! मुझे अक्ल मत दे! और हाँ, कल मैं आस पास के सारे गाँव के लोगों को इकट्ठा करके उन्हें बताऊँगा कि मेरे पास बोलने वाली बकरी है, जो भी चाहे मेरे यहाँ आकर उससे बात कर सकता है! हर आने वाले से मैं दस दस रुपये वसूलूंगा!”

‘ठीक है! जो भी आयेगा, मैं उससे बात कर लूँगी, पर तुम ज्यादा लालची मत बनो!” बकरी ने कहा! 

“चुप कर, मुझे उपदेश मत दे!” सुनार ने बकरी को फटकारा-“मैं तेरा मालिक हूँ या तू मेरी मालकिन? मैंने तुझे किसान से खरीदा है!”

“नहीं, तुमने नकली जेवर देकर किसान को ठगा है, मगर यह बात मैंने किसान को इसलिये नहीं बताई, क्योंकि उसकी बेटी की शादी उन नकली जेवरों से भी हो जायेगी! उसके होने वाले दामाद के घर के सभी लोग बहुत अच्छे हैं! उन्हें किसान की बेटी के अलावा कुछ नहीं चाहिये! जेवर तो किसान इसलिये बनवाना चाहता था, ताकि शादी के समय उसकी बेटी परियों जैसी सुन्दर लगे!” बकरी ने कहा! 

“अच्छा-अच्छा! अब चुप कर और सो जा…! कल बहुत लोग आयेंगे – तुझसे बातें करने!” सुनार ने कहा! 

“पहले मेरे लिये घास का इन्तजाम करो, मुझे बहुत भूख लगी है!” बकरी ने कहा! 

सुनार ने बकरी के लिये घास का इन्तजाम किया और एक मुनादिये को पैसे देकर आसपास के गाँवों में मुनादी करवा दी कि उसके पास एक बोलने वाली बकरी है, जो भी बकरी को देखना चाहे, उससे बातें करना चाहे, वह दस रुपये में आकर देख और बातें कर सकता है! 

बोलने वाली बकरी की खबर ने सुनार के घर भीड़ लगा दी! बकरी ने भी सुनार को निराश नहीं किया! जो भी उससे बातें करने आता, वह उससे खूब बातें करती! अगले दस-बारह दिनों तक सुनार ने खूब कमाई की, लेकिन उसके बाद लोगों का आना धीरे धीरे कम होने लगा! दो तीन महीने बीतते बीतते सुनार की बकरी को देखने आने वालों का सिलसिला बिल्कुल खत्म हो गया, क्योंकि आसपास के गाँवों-कस्बों के लगभग सभी लोग सुनार की बकरी को देख चुके थे! 

उन दिनों सुनार के आसपास के गाँव में किसी के यहाँ कोई और बकरी नहीं थी! गाय- भैंसें तो बहुत थीं, बकरियाँ नहीं थीं! 

ऐसे में एक दिन सुनार को उसके किसी मित्र ने बताया कि पास के गाँव के एक कसाई को एक बकरी चाहिये, जिसकी वह बहुत ही अच्छी कीमत देने को तैयार है! 

सुनार को बकरी से कमाई होनी बन्द हो चुकी थी, इसलिए बकरी को घास खिलाना भी उसे भारी लगने लगा था! एक दिन उसने सोचा कि कल वह पास के गाँव जाकर बकरी को कसाई को बेच देगा! 

बकरी को सुनार के दिल की बात जैसे पता चल गई! वह सुनार से बोली-“तुम मुझे कसाई को बेच देना चाहते हो?”

“हाँ तो, और क्या करूँ! अब तू किसी काम की तो रही नहीं!” सुनार बिदक कर बोला! 

“मैं तुम्हें जमीन में गड़े सोने का खज़ाना दिलवा सकती हूँ!” बकरी ने कहा! 

“सच…!” सुनार उछल पड़ा -“कहाँ है? किधर है? जल्दी बता खजाना!”

“लेकिन खजाना मैं तुम्हें सिर्फ एक बार ही दिलवा सकती हूँ! वो भी तुम अगर मुझे यह वचन दो कि जीते जी मुझे कभी किसी को नहीं बेचोगे!” बकरी ने कहा! 

“ठीक है, नहीं बेचूँगा!” सुनार ने बकरी को विश्वास दिलाया! 

“तुम्हारे घर के बाहर जो नीम का पेड़ है! उससे दो कदम दायें एक फुट नीचे पुराने सोने के सिक्कों से भरा एक घड़ा है!” बकरी ने बताया! 

उसी रात बकरी की बताई जगह से सुनार ने सोने के सिक्कों से भरा घड़ा निकाल लिया! लेकिन घड़ा सचमुच मिल गया तो सुनार के दिल में लालच बढ़ गया! बोला- “अब तू मुझे और खजानों के पते बता!”

“मैंने तुम्हें पहले ही बता दिया था कि एक से ज्यादा खजाने का पता मैं नहीं बता सकूँगी!” बकरी ने कहा! 

“तो मैं तुम्हें कसाई को बेच दूँगा!” सुनार ने कहा! 

“ऐसा मत करना, वरना तुम बरबाद हो जाओगे!” बकरी ने चेतावनी दी! 

“अरे बरबाद तो मैं तब होऊंगा, जब तुझ निठल्ली को रोज रोज घास खिलाऊंगा! खजानों का पता बता, वरना मैं तुझे कल ही कसाई को बेच दूँगा!” सुनार ने कहा! 

“मुझे बेचकर तुम बहुत पछताओगे!” बकरी ने फिर से चेतावनी दी! 

मगर बहुत सारा धन मुफ्त में मिल गया तो सुनार को बकरी की सेवा करना, उसे घास खिलाना अखरने लगा! उसने बकरी की उचित कीमत लेकर उसे कसाई के हवाले कर दिया! 

लेकिन कसाई ने बकरी को मारने काटने के लिये नहीं खरीदा था! उसका आठ वर्षीय बेटा काफी समय से बीमार चल रहा था! किसी पहुँचे हुए वैद्य ने उसे बताया कि अगर वह रोज सुबह शाम अपने बेटे को बकरी का दूध पिलायेगा तो उसका बेटा बहुत जल्दी स्वस्थ हो जायेगा! 

मगर बकरी खरीदने के बाद कसाई को लगा कि यह दूध तो देती ही नहीं तो उसने सोचा कि यह बकरी तो बेकार खरीदी! अब इसे काटकर इसका माँस बेचकर पैसे पूरे करता हूँ!”

बकरी कसाई के मन की बात जान गई! बोली -“तुम मुझे मारना चाहते हो?”

“हाँ…!” कसाई ने कहा! 

“मत मारो…!” बकरी ने कहा-“कल से मैं रोज चार सेर दूध दिया करूँगी!”

और अगले दिन से बकरी रोज चार सेर दूध देने लगी, जोकि आज के चार लीटर दूध के बराबर होता था। 

कुछ दिनों बाद ही बकरी का फिछला मालिक सुनार रोता-पीटता कसाई के पास आया और बोला -“भाई, मुझे मेरी बकरी वापस दे दो! बकरी को बेचते ही मैं लुट गया! बरबाद हो गया! एक रात चोरों ने मेरे घर का सारा धन, सोना-चांदी सब चुरा लिया! मैं बरबाद हो गया!”

“नहीं!” कसाई सख्ती से बोला – “मैंने पैसा देकर बकरी खरीदी है और यह रोज चार सेर दूध देती है! इसे तो मैं मरते दम तक कभी नहीं बेचूँगा!”

सुनार को जब यह पता चला कि बकरी रोज़ चार  सेर दूध देव् रही है तो वह अपनी छाती पीटने लगा -“हाय, मैं लुट गया। बर्बाद हो गया। “

इस पर बकरी कड़क कर बोली -“मैंने तुमसे पहले ही कहा था कि मुझे बेचोगे तो बरबाद हो जाओगे! ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता, पर तुमने किया ज्यादा लालच! अभी तुम्हें और भी कष्ट भुगतना होगा! अभी तुम्हें तुम्हारे पापों की पूरी सज़ा नहीं मिली है और अब ज्यादा नौटंकी मत करो, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ कभी नहीं जाने वाली। ”  

सुनार जैसे रोता-पीटता आया था, वैसे ही रोता पीटता वापस लौट गया। 

कसाई के गाँव से वापस अपने कस्बे की तरफ जाते हुए सुनार का सामना एक लकड़बग्घे से हो गया और लकड़बग्घे ने सुनार की टांग चबा डाली! गाँव के लोगों ने सुनार को एक वैद्य के यहाँ पहुँचाया! वैद्य ने सुनार की जान तो बचा दी, पर सुनार लालाराम हमेशा के लिये लंगड़ा हो गया! बहुत ज्यादा लालची होने की उसे बड़ी ही सख्त सज़ा मिली थी! 

उधर कसाई का बेटा स्वस्थ हुआ तो कसाई बकरी का दिल से आदर करने लगा और उसे माँ जैसा सम्मान देने लगा! उसे भरपूर हरी-हरी घास खाने को देता और उसे रोज नहलाता- धुलाता! उसके बदन की मालिश करता और हमेशा उसे बकरी माता कहकर पुकारता।  

बकरी कसाई के प्यार से बहुत खुश रहने लगी! एक दिन वह कसाई से बोली- तुम बहुत अच्छे आदमी हो, यह जानवरों को काटकर उनका माँस बेचने का धन्धा छोड़ क्यों नहीं देते?”

“नहीं छोड़ सकता!” कसाई लाचारी से बोला-“मुझे और कोई काम आता ही नहीं!”

“अगर तुम यह धन्धा छोड़ने का वचन तो मैं तुम्हारे लिये बहुत कुछ कर सकती हूँ!” बकरी ने कहा – तुम भगवान के भक्त भी बन सकते हो!”

“मुझ जैसा पापी भगवान का भक्त बन सकता है! नहीं,  मुझे यकीन नहीं होता!” कसाई ने कहा!

“तुम अगर मेरा कहना मानोगे तो आज जो लोग तुम्हारे पेशे की वजह से तुम्हें हेय समझते हैं, एक दिन तुम्हारा बहुत सम्मान करेंगे!” बकरी ने कहा! 

“तुमने मेरे बेटे के प्राण बचाये हैं बकरी माता! तुम, मेरे और मेरे बेटे के लिये माँ समान हो! तुम्हारा हर शब्द मेरे लिये ब्रह्मवाक्य है! मैं तुम्हारी हर बात मानूँगा!” कसाई ने कहा! 

“तो सुनो,  तुम्हारे घर के पिछवाड़े में एक सूखा कुंआ है! बरसों पहले एक चोर ने उसे चुराया हुआ धन छुपाने का स्थान बना रखा था! उस गुप्त स्थान के बारे में किसी को बताये बिना चोर एक दिन बीमार होकर मर गया! तब से उस सूखे कुंए में बहुत सारा धन बेकार पड़ा है! तुम उस सारे धन को कुंए से निकाल लाओ और उसका उपयोग कर अपने घर का पीछे का एक कमरा छोड़कर सारा घर तुड़वा दो और एक नया घर बनवाओ! जब तुम घर तुड़वा कर पक्की नींव डालने के लिये खुदाई करवाओगे तो तुम्हें आगे के एक स्थान से विष्णु भगवान की बहुत ही सुन्दर प्रतिमा मिलेगी! तुम सभी खुदाई मजदूरों के द्वारा यह बात सारे गाँव में फैलवा देना कि तुम्हारे घर से भगवान प्रकट हुए हैं! इसलिये भविष्य में तुम कोई बुरा काम नहीं करोगे और अपना सारा जीवन भगवान की भक्ति में लगाओगे!” बकरी ने कहा! 

“आप जैसा कह रही हैं,  मैं वैसा ही करूँगा बकरी माता!” कसाई ने कहा! 

“तो ठीक है, जाओ और उस सूखे कुंए से सारा धन निकाल लाओ।” बकरी ने आदेश दिया। 

कसाई ने बकरी की आज्ञा का पालन किया और उसी रात अपनी पत्नी को साथ लेकर, अपने घर के छत पर जाने के लिए प्रयोग की जाने वाली लकड़ी की सीढ़ी और एक लालटेन तथा दो मोटी चादरें लेकर उस सूखे कुंए तक पहुँचा। 

सीढ़ी कुंए के अंदर लगाकर वह कुंए में उतरा। उसकी पत्नी लालटेन लिए कुंए के बाहर से ही कुंए में रोशनी पहुँचाती रही।  कुंए में सचमुच बहुत सारा धन था। कसाई ने धीरे-धीरे वो सारा धन कुंए से बाहर से बाहर निकाल लिया। फिर उस धन को मोटी चादरों में बाँध पति-पत्नी वापस घर लौट आये।

अगले दिन कसाई ने मकान बनाने वाले राजमिस्त्री और मजदूरों को बुलवाया तथा सारा घरेलू सामान और बेटे व बकरी को पीछे के कमरे में रखकर, आगे से घर तुड़वाना आरम्भ कर दिया।

और जैसा कि बकरी ने कहा था – शाम होते-होते खुदाई में विष्णु भगवान की बड़ी ही शानदार मूर्ति निकल आई। मूर्ति को पानी से नहलाने के बाद साफ़ कपडे से पोंछा गया तो एक बेहद चमकदार-शानदार खूबसूरत सुनहरी मूर्ति सबके सामने थी।   

कसाई ने उसी क्षण सभी मज़दूरों से कहा -“वाह, मेरे घर  तो भगवान प्रकट हुए हैं। अब से मैं ककभी किसी जानवर को नन्हीं मारूँगा। जानवरों  का माँस नहीं बेचूँगा। कोई बुरा काम नहीं करूँगा और अपने घर में ही इन विष्णु भगवान का मंदिर बनाकर रोज़ सुबह-शाम इनकी पूजा करूँगा।”

उन दिनों पुण्य कार्यों में मदद के लिये हर इंसान आगे आ जाता था। जैसे ही कसाई के गाँव और आसपास के गाँव में कसाई के यहां विष्णु भगवान की मूर्ति मिलने की खबर फ़ैली, हर कोई अपनी श्रद्धा के अनुसार एक-दो ईंट लेकर आने लगा। हर ईंट लानेवाला कसाई से कहता -“भाई, भगवान का मन्दिर बना रहे हो तो हमारे नाम की ईंट भी लगवा दो, थोड़ा पुण्य हमें भी मिल जाये। 

कसाई ने किसी को निराश नहीं किया और मन्दिर पूरा होने पर सबको पहली प्रार्थना और  आने का निमंत्रण दिया। मज़दूर भी दुगुने जोशोखरोश से मन्दिर और कसाई का  घर बनाने में लग गये। 

कसाई के पास धन की तो अब कोई कमी नहीं थी। 

बहुत जल्दी ही अगले हिस्से में कसाई का मन्दिर और पीछे की ओर कसाई का आलीशान घर तैयार हो गया। उसके मन्दिर के  उदघाटन दिवस पर आसपास के सभी गाँवों के असंख्य लोग उपस्थित हुए। 

कसाई रोज़ सुबह शाम विष्णु भगवान की पूजा करने लगा। कुछ ही समय में वह कसाई भक्तराज के नाम से विख्यात हो गया और मन्दिर में रोज़ हज़ारों रुपयों का चढ़ावा आने लगा, लेकिन बकरी माता की रोज़ सुबह शाम सेवा करने का नियम हमेशा कायम रहा। 

फिर एक दिन अचानक बकरी ने कसाई से कहा -“भक्तराज, मैं बहुत दिन तुम्हारे साथ रह ली। अब मैं वापस उन्हीं साधू महाराज के पास जाना चाहती हूँ, जिन्होंने मुझे एक किसान को सौंपा था।  

इस पर कसाई सर नवाकर साष्टांग करते हुए आदरपूर्वक बोला _”आप आज्ञा करीबन बकरी माता। आप जहां कहेंगी, मैं आपको वहीं छोड़ आऊँगा।”

“नहीं, तुम मुझे आज़ाद छोड़ दो। मैं स्वयं साधू महात्मा के यहाँ चली जाऊँगी।” बकरी ने कहा। 

कसाई ने बकरी के गले से घण्टी और पट्टा निकालकर  उसे आज़ाद छोड़ दिया और हमेशा भगवान का भजन करते हुए अपनी पत्नी और बेटे के साथ सुख से रहने लगा।

दूसरी ओर सबका बुरा सोचने वाला लालची सुनार लालाराम दुख भरे जीवन बिताता हुआ, बहुत सारी बीमारियों का शिकार होकर बहुत जल्दी मर गया।