लगभग दो-ढाई सौ साल पहले की बात है। आगरा शहर की एक व्यस्त और घनी आबादी वाली पुरानी बस्ती में भीड़-भाड़ वाली सड़क पर चतुरलाल नाम के बनिये की दुकान थी।
नंदनवन में एक बड़ी चतुर और तेज तर्रार लोमड़ी ने एक जमीनी गुफा मे अपना ठिकाना बना रखा था!
“आशीष ! यह तुम उलटे हाथ से क्या करे रहे हो ?” अपनी गन साफ़ करते हुए कर्नल देवराज चौहान ने अपने बेटे आशीष को एक कलरिंग बुक के फुलपेज स्केच पर आयल पेस्टल से कलर करते हुए देखकर पूछा।
पुराने ज़माने में रोहतासगढ़ में कन्हैया नाम का एक किसान था, जिसके पास बहुत थोड़ी सी ज़मीन थी,
करीमगंज में लड्डन शाह नाम का एक बड़ा ही तेज तर्रार और अपने फन में माहिर दर्जी रहता था, जिसे करीमगंज के लोग प्यार से लड्डू मास्टर कहते थे!
आपने किस्मत, भाग्य, मुकद्दर पर बहुत सी कहानियाँ सुनी होंगी, पर हमारी कहानी सभी कहानियों से कुछ अलग है!
अंगूरी चाची जहाँ बहुत ही खूबसूरत हट्टी-कट्टी थीं, वहीं उनके पति परमेश्वर विभूति नारायण मिश्रा जी दुबले पतले सींकिया पहलवान थे!
चन्द्रगुप्त और चाणक्य के जमाने में दक्षिण के मैदानी क्षेत्र में एक बहुत छोटा राज्य था – कुसुमगढ़!
राजा भरतसेन के दोनों पुत्र अमरसेन और समरसेन जुड़वाँ पैदा हुए थे।
सुजानगढ़ के राजा सुजानसिंह के राज्य के खजाने में लगभग तीन सौ से भी अधिक सालों से, भगवान कृष्ण की सोने चाँदी की बनी हीरे जवाहरात जड़ी बत्तीस मूर्तियाँ थीं। हर मूर्ति वेशकीमती थी।
बहुत पुराने समय की बात है! मगध देश की राजधानी पाटलिपुत्र में एक बहुत ही धनवान सेठ धनीराम रहता था! धनीराम के दो बेटे थे!
“एक-दो-तीन-चार…….।” जयंतीलाल पाँच-पाँच सौ के नोटों की गिनती कर रहा था। तीस की संख्या पर वह रुक गया।
राजा त्रिगुणसेन के राजमहल में बहुत से नौकर थे, उन में से दो नौकर उसे बहुत प्रिय थे – शीतलराम और झगड़ूराम। राजा के अपने व्यक्तिगत कक्ष की देख-रेख वही दोनों नौकर किया करते थे। झगड़ूराम का काम प्रतिदिन राजा के विशाल कक्ष के फर्श और दीवारों की सफाई का था, जबकि कक्ष में मौजूद पलंग, स्टूल, कुर्सियों और सजावट के सभी खूबसूरत सामानों की सफाई और उन्हें चमकाने का काम शीतल का था।
लालाराम एक कंजूस-मक्खीचूस सुनार था! हमेशा सोने चांदी के जेवरों में डण्डी जरूर मारता था!
एक बहुत ही कुरूप कुबड़ा मूर्तिकार था ! लोग कहते थे – वह बहुत बदसूरत है, कभी कोई लड़की न तो उससे शादी करेगी, ना ही प्यार करेगी ! मूर्तिकार को भी लड़कियों से बहुत चिढ़ थी ! वह लड़कियों से सदैव दूरी बनाये रखता था !
एक लड़की विवाह करके ससुराल में आयी| घर में एक तो उसका पति था, एक सास थी और एक दादी सास थी| वहाँ आकर उस लड़की ने देखा कि दादी सास का बड़ा अपमान, तिरस्कार हो रहा है! छोटी सास उसको ठोकर मार देती, गाली दे देती|
प्रजापति महर्षि कश्यप की कई पत्नियां थीं| उनमें से एक नाम दनु था| दनु की संतान दानव कहलाई| उसी दनु के बड़े पुत्र का नाम दंभ था|
प्राचीन काल में रत्नभद्र नाम से प्रसिद्ध एक धर्मात्मा यक्ष गंधमादन पर्वत पर रहता था| उनके पूर्णभद्र नामक एक पुत्र उत्पन्न हुआ|
एक बार इंद्र सहित देवताओं ने भगवान शिव की परीक्षा करनी चाही| वह देवों के गुरु वृहस्पति के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंचे|
एक श्रेष्ठ पुत्र की प्राप्ति हेतु भगवान शिव से आज्ञा लेकर पार्वती ने एक वर्ष तक चलने वाले पुण्यक व्रत का समापन किया|
पूर्वकाल में नर्मदा नदी के तट पर नर्मपुर नामक एक नगर था| वहां विश्वानर नामक एक मुनि रहते थे| वे परम शिव भक्त व जितेंद्रिय थे|
विवाह संपन्न होने के बाद शिव अपनी नवविवाहिता पत्नी पार्वती को साथ लेकर कैलाश पर्वत लौट आए| वहां नंदी ने पहले से ही तैयार कर रखी थी|
विवाह संपन्न होने के बाद शिव अपनी नवविवाहिता पत्नी पार्वती को साथ लेकर कैलाश पर्वत लौट आए| वहां नंदी ने पहले से ही तैयार कर रखी थी|
कर्ण को युद्ध में मार गिराने के लिए अर्जुन पाश्पतास्त्र प्राप्त करना चाहता था|
एक समय पृथ्वी पर लगातार बारह वर्षों तक भयंकर अकाल पड़ा| अकाल के समय न कहीं नभ पर बादल दिखाई दिए और न ही धरा पर कहीं हरियाली|
पूर्वकाल में शिलाद नामक एक धर्मात्मा मुनि ने अपने पितरों के आदेश से मृत्युहीन एवं अयोनिज पुत्र की कामना से भगवान शिव की कठोर तपस्या की|
एक बार भगवती पार्वती के साथ भगवान शिव पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे| भ्रमण करते हुए वे एक वन-क्षेत्र से गुजरे|
एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर वेदों का रहस्य पार्वती को समझाने लगे| पार्वती बड़े ध्यान से सुन रही थीं, किंतु बीच-बीच में वे ऊंघने भी लगती थीं|
दैत्यराज बलि के सौ पुत्र थे| जिनमें वाणासुर सबसे बड़ा था|
ऋषि उपमन्यु बड़े प्रेम-व्रती थे| दिन-रात अपने प्रेम के प्रसून शिवजी के चरणों पर चढ़ाया करते थे| न खाने की सुधि, न विश्राम की चिंता|