शापोद्धारक हनुमान (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
भगवान श्रीराम के अश्वमेध का अश्व घूमता हुआ हेमकूट पर्वत के एक विशाल उद्यान में पहुंचा ही था कि वहां अकस्मात उसका सारा शरीर अकड़ गया| वह हिल-डुल भी नहीं सकता था| अश्व-रक्षकों के मुख से यह संवाद सुनते ही शत्रुघ्न जी तुरंत अपने सैनिकों के साथ अश्व के समीप पहुंचे| वहां पुष्कल ने उसे हिलाने-डुलाने और उठाने का अत्यधिक प्रयास किया, किन्तु अश्व तो जड़-सा हो गया था| वह तनिक भी नहीं हिला|
अत्यंत चिंतित होकर शत्रुघ्न जी ने अपनी मंत्री सुमति से पूछा – “मंत्रिवर! अब क्या करना चाहिए?”
सुमति ने उतर दिया – “स्वामी! अब तो प्रत्यक्ष और परोक्ष समस्त बातों को जानने वाले किसी ऋषि-मुनि को ढूंढना उचित प्रतीत होता है|”
शत्रुघ्न के आदेश्नासुर सेवक तपस्वी ऋषि का पता लगाने दूर-दूर तक दौड़ पड़े| कुछ ही देर में उन्हें परम तपस्वी शौनक ऋषि के पवित्र आश्रम का पता चला| शत्रुघ्न जी ने हनुमान जी और पुष्कल आदि के साथ वहां जाकर अपना परिचय देते हुए तपोमूर्ति मुनि के चरणों में प्रणाम किया|
प्रसन्नतापूर्वक अर्घ्य, पाद्य आदि से शत्रुघ्न जी का स्वागत करने के बाद महामुनि शौनक ने उनका समाचार पूछा तो शत्रुघ्न जी ने अत्यंत विनयपूर्वक यज्ञाश्व के आश्चर्यजनक गात्र-स्तंभ का समाचार सुनाते हुए उनसे प्रार्थना की – “मुनिनाथ! सौभाग्यवश हमें आपका दर्शन हो गया| आप कृपापूर्वक हमारी इस विपत्ति का निवारण कीजिए|”
कुछ देर तक ध्यान करने के बाद शौनक जी ने कहा – “राजन! प्राचीनकाल की बात है| एक ब्राह्मण के अपराध पर ऋषियों ने उसे राक्षस होने का शाप दे दिया| ब्राह्मण की करुण प्रार्थना पर ऋषियों ने पुनः कहा कि जिस समय तुम श्रीराम के अश्व को अपने वेग से स्तब्ध कर दोगे, उस समय तुम्हें श्रीराम की कथा सुनने का अवसर मिलेगा| जिससे इस भयंकर शाप से तुम्हारी मुक्ति हो जाएगी| उसी राक्षस ने अश्व का गात्र-स्तंभ किया है| अतएव तुम लोग कीर्तन के द्वारा अश्व के साथ उसे भी मुक्ति प्रदान करो|”
शत्रुघ्नजी ने हनुमान, पुष्कल तथा अन्य सबके साथ महामुनि के चरणों में सादर प्रणाम किया और फिर वे हेमकूट पर्वत के उद्यान में अश्व के समीप चले गए| वहां जाकर श्रीराम भक्त हनुमान जी अश्व को अत्यंत प्रीतिपूर्वक भयानक दुर्गतियों के नाशक अपने आराध्य श्रीराम का पावन चरित्र सुनाने लगे| अंत में उन्होंने कहा – “देव! आप श्रीराम के कीर्तन के पुण्य से अपने विमान पर सवार होइए और स्वेच्छानुसार अपने लोक में विचरण कीजिए| अब आप इस कुत्सित योनि से मुक्त हो जाएं|”
हनुमान जी के वचनों को सुनते ही देवता ने प्रकट होकर उनका आभार प्रकट किया और फिर वे विमान पर बैठकर स्वर्ग चले गए| साथ ही यज्ञ के अश्व का भी गात्र-स्तंभ निवारण हो गया और वह प्रसन्नतापूर्वक रमणीय उद्यानों में भ्रमण करने लगा|
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