लव-कुश द्वारा हनुमान बंदी (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
श्रीरामश्वमेध का अश्व भ्रमण करता हुआ महर्षि वाल्मीकि के पुनीत आश्रम के समीप पहुंचा| प्रातःकाल का समय था| सीतापुत्र लव मुनि कुमारों के साथ समिधा लेने वन में गए थे| वहां उन्होंने यज्ञाश्व के भाल पर स्वर्ण-पत्र पर अंकित पंक्तियां पढ़ते ही घोड़े को तुरंत पकड़कर एक वृक्ष से बांध दिया| उसी समय शत्रुघ्न के सेवक वहां पहुंच गए| वे मुनि बालकों से अश्व बांधने वाले व्यक्ति का पता पूछ ही रहे थे कि लव ने कहा – “इस सुंदर अश्व को मैंने बांधा है| इसे छुड़ाने वाला मृत्यु का ग्रास बनेगा| अतः इससे दूर ही रहो|”
“बेचारा बाल है|” यह कहकर शत्रुघ्न के सैनिक आगे बढ़ ही रहे थे कि लव ने अपने बाणों से उनकी भुजाएं काट डालीं| सेवक व्याकुल होकर शत्रुघ्न के पास भागे| उन्होंने शत्रुघ्न जी से कहा – “राजन्! प्रभु श्रीराम की मुखाकृति के तुल्य एक बालक ने हमारी यह दुर्दशा की है और उसी ने अश्व को भी बांध लिया है|”
शत्रुघ्न कुपित होकर बालक को दंडित कर अश्व छुड़ा लाने के लिए चतुरंगिणी सेना के साथ अपने सेनापति कालजित् को भेजा| सेनापति लव को देखकर समझाने का प्रयत्न करने लगे, किंतु लव ने कहा – “मुझे इस घोड़े की आवश्यकता नहीं, किंतु इसके भाल पर सुवर्ण-पत्र पर अंकित पंक्तियां मुझे युद्ध करने के लिए विवश कर रही हैं| तुम सुवर्ण-पत्र यहां छोड़कर अश्वसहित सुरक्षित लौट सकते हो, अन्यथा युद्ध अनिवार्य है|”
लेकिन कालजित् ने लव की बात अनसुनी कर दी और लव के साथ युद्ध करने लगा| किंतु वह लव के द्वारा मार डाला गया| उसकी अजेय वाहिनी को भी लव के असंख्य नुकीले तीरों से व्याकुल होकर पीछे हट जाना पड़ा| पर लव युद्ध करते ही रहे| भीषण संग्राम हुआ| प्रायः सभी वीर मार डाले गए|
फिर तो हनुमान, पुष्कल आदि के साथ स्वयं शत्रुघ्न जी समर भूमि में उपस्थित होकर सीता कुमार लव से युद्ध करने लगे| महावीर शिरोमणि भरत नंदन पुष्कल कुछ ही देर में लव के बाणों से आहत होकर धराशायी हो गए| उन्हें मुर्च्छित देखते ही हनुमान जी लव से युद्ध करने लगे| उन्होंने लव पर अनेक वृक्षों एवं शिलाओं से प्रहार किया, किंतु लव ने अपने बाणों से उन सबको काटकर तिनके के समान टुकड़े-टुकड़े कर दिए| तब हनुमान जी ने लव को अपनी पूंछ में लपेट लिया और आकाश में उड़ चले| लव ने अपनी सर्वशक्तिशाली जननी का स्मरण कर हनुमान जी की पूंछ में मुष्टि प्रहार किया| उससे हनुमान जी अत्यंत व्याकुल हो उठे और लव उनकी पूंछ से मुक्त हो गए| उन्होंने कुपित होकर हनुमान जी पर इतने तीक्ष्ण बाणों की वर्षा की, जिसे वे सहन न कर सके और पीड़ा से व्याकुल होकर मुर्च्छित हो गए|
यह देखकर स्वयं शत्रुघ्न जी रथ पर आरूढ़ होकर सीतापुत्र से लोहा लेने के लिए आगे बढ़े| लव को पराजित करना, अत्यंत कठिन था, किंतु शत्रुघ्न जी का एक भयानक बाण उनके वक्ष में प्रविष्ट हो गया, जिससे वे घायल होकर चेतना-शून्य हो गए| लव के धरती पर गिरते ही शत्रुघ्न जी की सेना में हर्ष व्याप्त हो गया| शत्रुघ्न जी ने लव को अपने रथ में डालकर बंदी बना लिया|
मुनि कुमारों से शत्रु द्वारा लव के पकड़े जाने का समाचार सुनकर माता सीता व्याकुल हो गई, किंतु लव के बड़े भाई कुश ने उन्हें धैर्य बंधाया और वे माता से समस्त अस्त्र-शस्त्र एवं उनका अमोघ आशीर्वाद लेकर अपने अनुज लव को मुक्त करने रनभूमि की ओर चल पड़े|
इधर रथ पर बंधे लव की चेतना लौट आई थी| उन्होंने अपने बड़े भाई को समर भूमि में उपस्थित देखा तो अपने को रथ से छुड़ाकर युद्ध के लिए कूद पड़े| फिर तो कुश ने पूर्व दिशा से और लव ने पश्चिम दिशा से शत्रुघ्न की सेना को घेरकर मारना आरंभ कर दिया| शत्रुघ्न अत्यंत कुपित होकर कुश से युद्ध करने लगे, किंतु कुश ने प्रतिज्ञापूर्वक तीन बाणों से उन्हें मुर्च्छित कर दिया| अब महाराज सुरथ सम्मुख आए, पर वे भी कुश के बाणों से मुर्च्छित हो गए|
यह देखकर हनुमान जी ने अत्यंत क्रोध से एक विशाल शाल का वृक्ष उखाड़कर कुश के वक्ष पर प्रहार किया| कुछ ने माता सीता का स्मरण कर एक भयानक संहारास्त्र उठाया और उसे हनुमान जी पर चला दिया| उस दुर्जय शस्त्र को हनुमान जी सह न सके और मुर्च्छित होकर पृथ्वी पर गिर पड़े|
सितापुत्र लव और कुश के भयानक प्रहार से शत्रुघ्न जी की सेना व्याकुल होकर पलायन करने लगी| तब वानरराज सुग्रीव अपने सैनिकों को प्रोत्साहित करते हुए कुश पर विशाल शिलाओं और वृक्षों से प्रहार करने लगे| किंतु वीर कुश ने उन्हें भी शीघ्र ही वरुण पाश से दृढ़तापूर्वक बांध लिया सुग्रीव धरती पर गिर पड़े| कुश विजयी हुए| उधर लव ने भी पुष्कल, अंगद, प्रतापाग्रय और वीरमणि आदि वीरों को पराजित कर दिया|
लव और कुश दोनों भाई हनुमान जी और सुग्रीव को अच्छी तरह बांधकर मनोरंजन के लिए अपने आश्रम पर ले चले| माता सीता ने अपने पुत्रों को सकुशल लौटे देखा तो अत्यंत प्रसन्न होकर उन्हें हृदय से लगा लिया, किंतु हनुमान जी और सुग्रीव पर दृष्टि पड़ते ही वे अधीर होकर कहने लगीं – “पुत्रो! ये दोनों वानर परम पराक्रमी एवं अत्यंत सम्मान के पात्र हैं| ये लंका को भस्म करने वाले अंजनानंदन हनुमान एवं ये वानर-भालुओं के अधिपति सुग्रीव हैं| तुमने इन्हें क्यों बांध लिया? इन्हें सभी छोड़ो|”
माता सीता के आदेश से हनुमान जी और सुग्रीव का बंधन खोलते हुए लव-कुश ने कहा – “मां! अयोध्या के प्रसिद्ध राजा दशरथ के श्रीराम नामक कोई पुत्र अश्वमेध यज्ञ कर रहे हैं| उन्होंने अश्व भी छोड़ा है, जिसके ललाट पर बंधे हुए सुवर्ण-पत्र पर लिखा है – सच्चे क्षत्रिय इस अश्व को पकड़ें, अन्यथा मेरे सम्मुख नतमस्तक हों| उस राजा की धृष्टता से हमने घोड़े को पकड़ लिया और श्रीराम के भाई शत्रुघ्न सहित उनकी विशाल वाहिनी को भी मार डाला है|”
यह सुनकर माता सीता ने दुख से व्याकुल होकर कहा – “पुत्रो! तुम लोगों ने यह बड़ा अनुचित किया| तुम्हें पता नहीं, वह अश्व तुम्हारे पिता का ही है| तुम शीघ्र ही उस अश्व को भी छोड़ दो|”
लव-कुश ने विनयपूर्वक निवेदन किया – “मां! हम लोगों ने महर्षि के उपदेशानुसार क्षत्रिय – धर्म का ही पालन किया है| अब उस उत्तम अश्व को छोड़ देते हैं|”
परम सती जनकनंदिनी ने अपने जीवन धन श्रीराम जी का ध्यान करते हुए कहा – “यदि मैं मन, वाणी और कर्म से रघुनाथ जी के अतिरिक्त अन्य किसी का स्मरण नहीं करती तो शत्रुघ्न सहित उनकी सारी सेना पुनः जीवित हो जाए|”
उसी समय शत्रुघ्न जी के साथ उनकी सारी सेना जीवित हो गई| माता सीता ने हनुमान जी से पूछा – “हनुमान! तुम जैसा अतुलित बलधाम एवं परम पराक्रमी वीर एक बालक से कैसे पराजित हो गया?”
हनुमान जी ने हाथ जोड़कर माता जानकी से निवेदन किया – “मां! हम पराजित कहां हुए| पुत्र-पिता की आत्मा होता है| इस प्रकार ये दोनों कुमार तो मेरे स्वामी ही हैं| मेरे करुणानिधान भगवान ने हम लोगों का अहंकार देखकर ही यह लीला रची है|”
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