अध्याय 3
1 [वै]
सथिते मुहूर्तं पार्थे तु धर्मराजे युधिष्ठिरे
आजग्मुस तत्र कौरव्य देवाः शक्रपुरॊगमाः
मैं तो तेरी जोगन रे ; हे घनश्याम मेरे !
तेरे बिन कोई नहीं मेरा रे ; हे श्याम मेरे !!
“Bhishma said, ‘Proceeding by many delightful forests and lakes andsacred waters, the Brahmana at last arrived at the retreat of a certainascetic.
1 [भम]
समरन्ति वैरं रक्षांसि मायाम आश्रित्य मॊहिनीम
हिडिम्बे वरज पन्थानं तवं वै भरातृनिषेवितम
एक पेड़ की शाख पर कौवों का एक जोड़ा रहता था| उसी पेड़ के नीचे एक साँप ने भी बिल बना रखा था| मादा कौआ जब अंडे देती तो वह साँप उस अण्डों को खा जाता| ऐसा कई बार हो चुका था लेकिन वे सिवाय अफ़सोस करने के कुछ नही कर पाते|
1 वैशंपायन उवाच
तथैव राजा कौन्तेयॊ धर्मपुत्रॊ युधिष्ठिरः
धृष्टद्युम्नमुखान वीरांश चॊदयाम आस भारत
“Vaisampayana said, ‘That bull among the Bharatas, Arjuna, hearing thesewords of the Gandharva, was inspired with feelings of devotion and stoodshes (???–JBH), killing deer and wild boars. Once on a time, while outin quest of deer, the king became weak with exertion and thirst.