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एक दिन राजा विक्रमादित्य दरबार को सम्बोधित कर रहे थे तभी किसी ने सूचना दी कि एक ब्राह्मण उनसे मिलना चाहता है। विक्रमादित्य ने कहा कि ब्राह्मण को अन्दर लाया जाए। जब ब्राह्मण उनसे मिला तो विक्रम ने उसके आने का प्रयोजन पूछा।

बादशाह अकबर अक्सर बीरबल की पगड़ी की तारीफ किया करते थे, क्योंकि वे पगड़ी बहुत ही बढ़िया ढंग से बांधा करता था, किंतु मुल्ला दोप्याजा को इससे जलन होती थी| मुल्लाजी ने तय कर लिया कि वह भी एक दिन इतनी अच्छी तरह से पगड़ी बांधेंगे कि उसकी तारीफ बादशाह को करनी ही पड़ेगी|

जब भगवान विष्णु योगध्यान मुद्रा में तपस्या में लीन थे तो बहुत अधिक हिमपात होने लगा। भगवान विष्णु हिम में पूरी तरह डूब चुके थे। उनकी इस दशा को देख कर माता लक्ष्मी का हृदय द्रवित हो उठा और उन्होंने स्वयं भगवान विष्णु के समीप खड़े हो कर एक बेर (बदरी) के वृक्ष का रूप ले लिया और समस्त हिम को अपने ऊपर सहने लगीं। माता लक्ष्मीजी भगवान विष्णु को धूप, वर्षा और हिम से बचाने की कठोर तपस्या में जुट गयीं । कई वर्षों बाद जब भगवान विष्णु ने अपना तप पूर्ण किया तो देखा कि लक्ष्मीजी हिम से ढकी पड़ी हैं। तो उन्होंने माता लक्ष्मी के तप को देख कर कहा कि हे देवी! तुमने भी मेरे ही बराबर तप किया है सो आज से इस धाम पर मुझे तुम्हारे ही साथ पूजा जायेगा और क्योंकि तुमने मेरी रक्षा बदरी वृक्ष के रूप में की है सो आज से मुझे बदरी के नाथ-बदरीनाथ के नाम से जाना जायेगा। इस तरह से भगवान विष्णु का नाम बदरीनाथ पड़ा।

वट सावित्री व्रत ज्येष्ट मास की कृष्ण पक्ष की अमावस्या को सम्पन्न किया जाता है| यह स्त्रियों का महत्वपूर्ण पर्व है| इस दिन सत्यवान, सावित्री तथा यमराज की पूजा की जाती है| सावित्री ने इसी व्रत के प्रभाव से अपने मृतक पति सत्यवान को धर्मराज से छुड़ाया था|