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1 [वै] एतस्मिन्न अन्तरे तत्र महावीर्यपराक्रमः
आजगाम महासत्त्वः कृपः शस्त्रभृतां वरः
अर्जुनं परति संयॊद्धुं युद्धार्थी स महारथः

भगवान श्रीराम वनवास काल के दौरान संकट में हनुमान जी द्वारा की गई अनूठी सहायता से अभिभूत थे। एक दिन उन्होंने कहा, ‘हे हनुमान, संकट के समय तुमने मेरी जो सहायता की, मैं उसे याद कर गदगद हो उठा हूं।

एक औरत एक आदमी को साथ लेकर बादशाह अकबर के दरबार में उपस्थित हुई और अपना दुखड़ा रोने लगी – “हुजूर, मैं लुट गई, इस आदमी ने मेरे सारे गहने लूट लिए हैं, अब आप ही इंसाफ करें|”