किष्किन्धाकाण्ड 00 (1-30)
श्लोक – कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ
शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।
श्लोक – कुन्देन्दीवरसुन्दरावतिबलौ विज्ञानधामावुभौ
शोभाढ्यौ वरधन्विनौ श्रुतिनुतौ गोविप्रवृन्दप्रियौ।
कर्तव्य व कर्म का महत्व (सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 3 शलोक 1 से 36)
श्लोक – मूलं धर्मतरोर्विवेकजलधेः पूर्णेन्दुमानन्ददं
वैराग्याम्बुजभास्करं ह्यघघनध्वान्तापहं तापहम्।
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 4 शलोक 1 से 42
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 5 शलोक 1 से 29
तुम्ह प्रिय पाहुने बन पगु धारे। सेवा जोगु न भाग हमारे॥
देब काह हम तुम्हहि गोसाँई। ईधनु पात किरात मिताई॥
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 6 शलोक 1 से 47
राम सुना दुखु कान न काऊ। जीवनतरु जिमि जोगवइ राऊ॥
पलक नयन फनि मनि जेहि भाँती। जोगवहिं जननि सकल दिन राती॥
सम्पूर्ण श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 7 शलोक 1 से 30
केवट कीन्हि बहुत सेवकाई। सो जामिनि सिंगरौर गवाँई॥
होत प्रात बट छीरु मगावा। जटा मुकुट निज सीस बनावा॥