HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 132)

बीरबल से किसी बात पर नाराज हो गए बादशाह अकबर और गुस्से में बीरबल से कह दिया कि तुरन्त यहां से चले जाओ और दुबारा कभी हमारे राज्य की धरती पर पैर मत रखना वरना मृत्युदण्ड दे दिया जाएगा|

एक किसान के पास एक गाय और एक घोड़ा था| वे दोनों एक साथ जंगल में चरते थे| किसान के पड़ोस में एक धोबी रहता था| धोबी के पास एक गधा और एक बकरी थी| धोबी भी उन्हें उसी जंगल में चरने को छोड़ देता था| एक साथ चरने से चारों पशुओं में मित्रता हो गयी| वे साथ ही जंगल में आते और शाम को एक साथ जंगल से चले जाते थे|

अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र था| श्रीकृष्ण की बहन सुभद्रा इनकी माता थी| यह बालक बड़ा होनहार था| अपने पिता के-से सारे गुण इसमें विद्यमान थे| स्वभाव का बड़ा क्रोधी था और डरना तो किसी से इसने जाना ही नहीं था| इसी निर्भयता और क्रोधी स्वभाव के कारण इसका नाम अभि (निर्भय) मन्यु (क्रोधी) ‘अभिमन्यु’ पड़ा था|

अमेरिका ने दूसरे विश्व-महायुद्ध में जापान के विरुद्ध अनुबम का प्रयोग किया| 1945 की गर्मियों में जापान खंडहरों का देश बन गया| लाखों आदमी मारे गए थे, जो बच गए थे उनके माँस के लौथड़े रह गए थे|

केशव और राघव दो पड़ोसी थे| उनके मकान के सामने ही एक आम का पेड़ था| उन दोनों के बीच पेड़ के मालिकाना हक को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया| बात काफी आगे बढ़ गई और न्याय के लिए दोनों बादशाह अकबर के पास पहुंचे|

समुद्र तट के किसी नगर में एक धनवान वैश्य के पुत्रों ने एक कौआ पाल रखा था| वे उस कौए को बराबर अपने भोजन से बचा अन्न देते थे| उनकी जूँठन खाने वाला वह कौआ स्वादिष्ट तथा पुष्टिकर भोजन खाकर खूब मोटा हो गया था| इससे उसका अहंकार बहुत बढ़ गया| वह अपने से श्रेष्ठ पक्षियों को भी तुच्छ समझने और उनका अपमान करने लगा|

संध्या का समय था| सूर्य अस्त हो चुका था| ब्राह्मण कुमारों के वेश में पांडव द्रौपदी को साथ लिए हुए अपनी मां के पास गए| कुंती कुम्हार के घर में, कमरे का दरवाजा बंद करके भीतर बैठी हुई थी|

कभी-कभी बादशाह अकबर दरबार में जब हंसी-मजाक के मूड में होते तो उल-जलूल सवाल पूछ लिया करते थे| इसी कड़ी में एक दिन बादशाह ने कहा – “आज मेरा हंसने का बहुत मन कर रहा है, अगर कोई मुझे हंसा देगा तो मैं उसे सौ मोहरें इनाम में दूंगा लेकिन अगर नहीं हंसा पाया तो पचास मोहरें के तौर पर देनी होंगी|”

बहुत समय पहले की बात है, एक घने वन में क्रूर बहेलिया अपने शिकार की खोज में इधर-उधर भटक रहा था| सुबह से शाम तक भटकने के बाद एक कबूतरी जैसे-तैसे उसके हाथ लग गई| कुछ ही क्षणों बाद तेज़ वर्षा होने लगी| सर्दी से काँपता हुआ बहेलिया वर्षा से बचने के लिए एक पेड़ के नीचे आकर बैठ गया| कुछ देर बाद वर्षा थम गई|

द्रोणाचार्य का जीवन बड़े सुख से व्यतीत हो रहा था| उन्हें हस्तिनापुर राज्य की ओर से अच्छी वृत्ति तो मिलती ही थी, अच्छा आवास भी मिला हुआ था| राजकुटुंब के छोटे-बड़े सभी लोग उन्हें मस्तक झुकाया करते थे| स्वयं देवव्रत भी उनका बड़ा आदर किया करते थे|