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द्रौपदी के साथ पाण्डव वनवास के अंतिम वर्ष अज्ञातवास के समय में वेश तथा नाम बदलकर राजा विराट के यहां रहते थे| उस समय द्रौपदी ने अपना नाम सैरंध्री रख लिया था और विराट नरेश की रानी सुदेष्णा की दासी बनकर वे किसी प्रकार समय व्यतीत कर रही थीं|

बादशाह अकबर के साले साहब हर बार बीरबल से मात खाने के बाद भी दीवान बनने के सपने देखते रहते थे और इसके लिए वह अपनी बहन से कहते और बहन अपने मियां यानी बादशाह से| आब जोरू का भाई होने के कारण बादशाह को हर बार उसका एक नया इम्तहान लेना पड़ता था|

शकुनि गांधारराज सुबल का पुत्र था| गांधारी इसी की बहन थी| वह गांधारी के स्वभाव से विपरीत स्वभाव वाला था| जहां गांधारी के स्वभाव में उदारता, विनम्रता, स्थिरता और साधना की पवित्रता थी, वहीं शकुनि के स्वभाव में कुटिलता, दुष्टता, छल और दुराचार का अधिकार था| वह जीवन के उदात्त मूल्यों की तरफ कभी भी आकृष्ट नहीं हुआ|

महाराज एकनाथ महाराष्ट्र के एक महान् संत थे| वे गोस्वामी तुलसीदास के समकालीन एक ग्रहस्थ संत थे; मराठी साहित्य का उन्हें प्राण कहा जाता था| उन्होंने ‘भागवत् एकादश स्कंध,- ‘भावार्थ रामायण,- ‘आनन्द लहरी- आदि अनेक ग्रंथ लिखे थे| एक बार रातभर जागते रहे| रात्रि का तीसरा पहर हो गया, तब भी एकनाथ अपने हिसाब में एक पाई की भूल खोज रहे थे| अंत में वह परेशान हो उठे|

एक व्यक्ति दरबार में तोता बेचने आया| वह तोता बहुत ही अच्छी नस्ल का था और बहुत ही अच्छा बोलता भी था| अकबर को तोता पसंद आ गया और उन्होंने उसे खरीद लिया|

शल्य ही बहन माद्री का विवाह पाण्डु से हुआ था| नकुल और सहदेव उनके सगे भांजे थे| पांडवों को पूरा विश्वास था कि शल्य उनके पक्ष में युद्ध में उपस्थित रहेंगे| महारथी शल्य की विशाल सेना दो-दो कोस पर पड़ाव डालती धीरे-धीरे चल रही थी| शल्य पांडव पक्ष की ओर से लड़ने जा रहे थे|

अकबर ने बीरबल पर व्यंग्य करते हुए कहा – “बीरबल, तुम सिर्फ बातों के तीरंदाज हो, अगर तीन-कमान पकड़कर तीरदांजी करनी पड़े तो हाथ-पांव फूल जाएंगे|”

बादशाह अकबर की अंगूठी गुम हो गई| बादशाह ने बहुत तलाश की किंतु अंगूठी नहीं मिली| उन्होंने इस बात का जिक्र बीरबल से किया तो उसने पूछा – “हुजूर, आपको याद है, आपने अंगूठी कब उतारी थी?”

वनवास के समय पाण्डव द्वैत वन में थे| वन में घूमते समय एक दिन उन्हें प्यास लगी| धर्मराज युधिष्ठिर ने वृक्ष पर चढ़कर इधर-उधर देखा| एक स्थान पर हरियाली तथा जल होने के चिह्न देखकर उन्होंने नकुल को जल लाने भेजा| नकुल उस स्थान की ओर चल पड़े| वहां उन्हें स्वच्छ जल से पूर्ण एक सरोवर मिला, किंतु जैसे ही वे सरोवर में जल पीने उतरे, उन्हें यह वाणी सुनाई पड़ी, “इस सरोवर का पानी पीने का साहस मत करो| इसके जल पर मैं पहले ही अधिकार कर चुका हूं| पहले मेरे प्रश्नों का उत्तर दो, तब पानी पीना|”

एक राजा था| उसने सुना कि राजा परीक्षित् ने भगवती की कथा सुनी तो उनका कल्याण हो गया| राजा के मन में आया कि अगर मैं भी भागवती की कथा सुन लूँ तो मेरा भी कल्याण हो जायगा|