बड़ी लकीर… छोटी लकीर (बादशाह अकबर और बीरबल)
बादशाह अकबर ने कागज पर कलम से एक लकीर खींचकर बीरबल से कहा – “बीरबल इस लकीर को बिना मिटाए, बिना छड़े कैसे छोटा किया सकता है?”
बादशाह अकबर ने कागज पर कलम से एक लकीर खींचकर बीरबल से कहा – “बीरबल इस लकीर को बिना मिटाए, बिना छड़े कैसे छोटा किया सकता है?”
अपनी दूसरी यात्रा के बाद मैं खूब आराम की जिंदगी बसर करने लगा था| नौकर-चाकर और दूसरे सभी सुख आराम मुझे हासिल थे| मैं अपने परिवार के साथ इतना सुखी था कि अब तो समुद्री यात्राओं के दौरान उठाए गए जानलेवा कष्टों की याद भी मुझे नही आती थी|
एक गाँव में एक फकीर आए। वे किसी की भी समस्या दूर कर सकते हैं। सभी लोग जल्दी से जल्दी अपनी समस्या फकीर को बताकर उपाय जानना चाहते थे। नतीजा यह हुआ कि हर कोई बोलने लगा और किसी को कुछ समझ में नहीं आया। अचानक फकीर चिल्लाए. ‘खामोश’। सब चुप हो गए। फकीर ने कहा, “मैं सबकी समस्या दूर कर दूंगा। एक साथ बोलने के बजाय सब लोग एक-एक कागज पर अपनी समस्या लिख लाएं और मुझे दें।
किसी बस्ती में एक बालक रहता था| वह बड़ा निडर था| घूमते-घूमते वह अक्सर बस्ती के बाहर नदी के किनारे चला जाता था और थोड़ी देर वहां रुककर लौट आता था| उसके बाबा उसे बहुत प्यार करते थे| उन्हें लगा कि किसी दिन वह नदी में गिर न जाए! इसलिए एक दिन उन्होंने अपने बेटे से कहा – “बेटे, तुम अकेले नदी के किनारे मत जाया करो|”
एक सुनार के मकान में आग लग गई| अब बहुत भयंकर थी, सबकुछ धू-धू कर जल रहा था| सुनार असहाय खड़ा देख रहा था| तभी उसने जोर से कहा – “भाईयों, इस मकान के अन्दर मेरी जिंदगीभर की कमाई के लाखों के जेवर एक बक्से में पड़े हैं, कोई तो उसे निकाल लाओ|”
श्यामदस बहुत ही निर्धन व्यक्ति था| एक बार उसे स्वप्न आया की उसने अपने मित्र रामदास से सौ रुपये उधार लिए हैं| प्रात: जब वह उठा तो उसे इस स्वप्न का फल जानने की इच्छा हुई, उसने कई लोगों से स्वप्न की चर्चा कि|
गुरू धौम्य का बहुत बडा आश्रम था। आश्रम में कई शिष्य थे। उनमें अरूणि गुरू का सबसे प्रिय शिष्य था। आश्रम के पास खेती की बहुत ज़मीन थी। खेतों में फसल लहलहा रही थी। एक दिन शाम को एकाएक घनघोर घटा घिर आई और थोडी देर में तेज वर्षा होने लगी। उस समय ज्यादातर शिष्य उठ कर चले गए थे। अरूणि गुरूदेव के पास बैठा था।
एक स्त्री थी| उसे बहुत गुस्सा आता था| जरा-सी कोई बात होती कि उसका पारा चढ़ जाता और वह कहनी-अनकहनी सब तरह की बातें कह डालती|
बादशाह अकबर ने दरबार में प्रस्ताव रखा कि दो माह को एक माह में बदल दिया जाए| दरबारियों से इस पर राय मांगी गई तो सभी ने बादशाह की चापलूसी करते हुए इस प्रस्ताव का समर्थन किया किंतु बीरबल खामोश था|
एक व्यक्ति चाहकर भी अपने दुर्गुणों पर काबू नहीं कर पा रहा था. एक बार उसके गाँव में संत फरीद आये.