HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 93)

‘जहाँपनाह! मरने वाली औरत मेरी पत्नी और इन वृद्धजन की बेटी थी| यह मेरे चाचा है| ग्यारह वर्ष पूर्व मेरा विवाह हुआ था| हमारे तीन बेटे थे जो जीवित है| मेरी पत्नी अत्यंत सुशील और पतिव्रता थी| वह हर प्रकार से मेरा ख्याल रखती थी और मैं भी उससे बहुत प्रेम करता था| करीब एक महीने पहले वह बीमार पड़ गई| दो-चार दिन की दवा से वह अच्छी तो हो गई और उस दिन उसने स्नान भी किया|

भगवान का दरबार लगा था। सभी लोगों ने उनसे विभिन्न प्रार्थनाएँ की थीं। एक-एक कर वे उनके सामने प्रस्तुत की जा रही थीं। एक सेठ की प्रार्थना सुनकर परमात्मा को बडा आश्चर्य हुआ।

बुंदेलखण्ड में ओरछा के निकट एक नदी बहती है, जिसे सातार नदी कहते हैं| उस नदी के किनारे पर एक छोटी-सी कुटिया थी, जिसमें एक आदमी रहता था| घर-बार तो उसका कुछ था नहीं|

बादशाह अकबर एक बार खाना खाते समय बैंगन की सब्जी की बहुत तारीफ करने लगे| बीरबल ने भी बादशाह अकबर के सुर में सुर मिलाकर बैंगन की सब्जी को अच्छा बता दिया|

एक नगर में एक धनवान सेठ रहता था। अपने व्यापार के सिलसिले में उसका बाहर आना-जाना लगा रहता था। एक बार वह परदेस से लौट रहा था। साथ में धन था, इसलिए तीन-चार पहरेदार भी साथ ले लिए। लेकिन जब वह अपने नगर के नजदीक पहुंचा, तो सोचा कि अब क्या डर। इन पहरेदारों को यदि घर ले जाऊंगा तो भोजन कराना पड़ेगा। अच्छा होगा, यहीं से विदा कर दूं। उसने पहरेदारों को वापस भेज दिया। 

किसी नगर में एक साधु रहता था| उसके चेहरे पर हर घड़ी प्रसन्नता छाई रहती थी, उसके जीवन में मस्ती का साम्राज्य था| लोग अपनी-अपनी समस्याएं लेकर उसके पास आते थे और संतुष्ट होकर जाते थे|

छठी यात्रा के बाद जब मेरा सम्बन्ध अमीर के मुल्क से जुड़ गया तो मैंने सोच लिया कि अब मैं जीवन में कभी यात्रा नही करुँगा और जो बेशुमार धन आज तक मैंने कमाया है, उसी के सहारे जीवन गुजारूँगा| दूसरी यात्राओं से तौबा करने वाली बात यह थी कि अब मेरा शरीर बुढ़ाने लगा था| हिम्मत और साहस की मुझमें कमी नही थी, मगर मेरा शरीर अब मुझे यात्राओं की इजाजत नही देता था| कुछ छोटे-मोटे रोग भी अब मुझ पर हावी होने लगे थे|