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युवक और मृत स्त्री की कहानी

युवक और मृत स्त्री की कहानी

‘जहाँपनाह! मरने वाली औरत मेरी पत्नी और इन वृद्धजन की बेटी थी| यह मेरे चाचा है| ग्यारह वर्ष पूर्व मेरा विवाह हुआ था| हमारे तीन बेटे थे जो जीवित है| मेरी पत्नी अत्यंत सुशील और पतिव्रता थी| वह हर प्रकार से मेरा ख्याल रखती थी और मैं भी उससे बहुत प्रेम करता था| करीब एक महीने पहले वह बीमार पड़ गई| दो-चार दिन की दवा से वह अच्छी तो हो गई और उस दिन उसने स्नान भी किया|

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उसके बाद उसने मुझसे कहा- ‘मैं बहुत अशक्त हो गई हूँ| अगर तुम मुझे कही से एक सेब ला दो तो मैं ठीक हो जाऊँगी वरना मुझे शक है कि मैं कही फिर से बीमार न पड़ जाऊ|’

मैं उसके लिए सेब लाने के लिए बाज़ार गया किन्तु वहाँ एक भी सेब दिखाई न दिया| मैं बागों में घूमा किन्तु वहाँ भी किसी मूल्य पर सेब न मिला| तत्पश्चात मैं बगदाद से बसरा गया और शाही बागों से चार-चार दीनारों के तीन सेब लाया| सेब लाकर मैंने अपनी पत्नी को दिए| वह बहुत खुश हुई| उसने उन्हें सूँघकर अपनी चारपाई के नीचे खिसका दिया और फिर आंख बंद करके लेट गई| मैं बाज़ार जाकर अपनी कपड़ों की दुकान पर जा बैठा| कुछ देर में मैंने देखा कि एक हब्शी गुलाम एक सेब उछालता जा रहा है| मुझे आश्चर्य हुआ कि ‘इसे सेब कहाँ से मिला है? मैं तो बड़ी मुश्किल से बसरा से तीन सेब लाया हूँ|’

मैंने हब्शी को बुलाकर पूछा, ‘तुझे यह सेब कहाँ से मिला है?’

वह हँसकर बोला, ‘यह मुझे मेरी प्रेमिका ने दिया है| उसका पति दो सप्ताह की यात्रा करके बसरा के शाही बाग़ से तीन सेब लाया था जिनमें से एक उसने मुझे दे दिया|’ हब्शी ने यह भी बताया कि मैंने और सुंदरी ने मिलकर भोजन आदि भी किया|

हब्शी तो यह कहकर चला गया| मगर क्रोध से मेरी बुरी हालत हो गई| मैं दुकान बंद करके घर गया और अपनी पत्नी के पास पहुँचा| वहाँ देखा कि चारपाई के नीचे दो ही सेब है|

मैंने उससे पूछा, ‘तीसरा सेब कहाँ है?’

उसने झुककर सेबों को देखा और उपेक्षा से बोली, ‘मुझे नही मालूम|’

यह कहकर वह आँखें बंद करके लेट गई| मुझे विश्वास हो गया कि हब्शी सच कहता था| इसका उससे अनुचित संबंध है और अचानक मुझे यहाँ देखकर बहाना भी नही बना पा रही है| मैं क्रोध और अपमान की भावना से अँधा हो गया और मैंने तलवार निकालकर अपनी पत्नी के जिस्म के टुकड़े-टुकड़े कर दिए| मैंने इस डर से कि मुझे हत्या के अभियोग में पकड़ न ले, उसके शव को एक नारियल के पत्ते की बनी चटाई में लपेट दिया और लाल डोरे से उस चटाई को बाँध दिया| फिर एक संदूक में रखकर पीछे के दरवाज़े से संदूक लेकर निकला और उसे नदी में डाल दिया क्योंकि तब तक अँधेरा हो गया था| जब मैं लौटकर घर आया तो देखा कि मेरा बड़ा लड़का दरवाज़े पर बैठा रतो रहा है और दो लड़के एक कोठरी में सो रहे है|

मैंने लड़के से पूछा, ‘तू क्यों रो रहा है?’

उसने कहा, ‘आज दिन के समय आपके लाए हुए सेबों में से एक को मैं चुपके से उठा लाया था और दरवाज़े पर आकर उसे खाना ही चाहता था कि इधर से निकलते हुए एक हब्शी गुलाम ने मेरे हाथ से सेब छीन लिया| मैंने उससे कहा कि यह सेब मेरी बीमार माँ के लिए है, उन्हीं में से एक यह है| गुलाम ने मेरी बात अनसुनी कर दी और चल दिया|

मैंने दौड़कर उसे रोकने का प्रयत्न किया लेकिन उसने मुझे मार-पीटकर भगा दिया और चला गया| मैं घंटों उसे ढूँढ़ने के बाद अब वापस आया हूँ| आपको आते देखा तो डर से रोने लगा कि सेब न मिलने पर आप मेरी माँ पर नराज़ होंगे| मैं आपसे हाथ जोड़कर कहता हूँ कि माँ से कुछ न कहिएगा, वह कुछ नही जानती|’ यह कहकर लड़का फूट-फूटकर रोने लगा|

यह सुनकर मुझे लकवा मार गया| दिमाग पर सन्नाटा छा गया| मैंने अपनी सती-साध्वी पत्नी को झूठे संदेह में मार डाला था| मैं दुख और पश्चाताप के कारण अचेत हो गया| जब होश आया तो मैंने लड़के से कोठरी में जाकर सोने को कहा और स्वंय एकांत में बैठकर दुख में निमग्न हो गया|

मैं कभी सिर पीटता और कभी आँसू बहाता| मैं स्वयं को लाख बार धिक्कारता कि मुर्ख तेरी बुद्धि क्या बिलकुल भ्रष्ट हो गई थी कि तूने अपनी सुशीला और पतिव्रता पत्नी को एक अनजान हब्शी गुलाम की बात पर विश्वास करके मार डाला और इतना भी धैर्य न दिखाया कि इस बारे में पूछताछ कर लेता|

मैं इस शोक और पश्चाताप की दशा में बैठा था कि उसी समय मेरा चाचा अपनी बेटी की तबीयत का हाल जानने के लिए आया|

मैंने उसे पूरा किस्सा बता दिया| उसने अपनी बेटी की हत्या के बारे में मुझसे कहा-सुनी या लानत-मलानत नही की, बल्कि इसे विधि का विधान समझकर शोकाकुल हो गया और रोने-पीटने लगा|

मैं भी उसके साथ रोने-पीटने लगा| लेकिन रोने-पीटने से क्या होना था, मेरी स्त्री और इसके पुत्री तो अब इस दुनिया में नही रही| मैं तब से अत्यंत शोक संतप्त हूँ और किसी प्रकार चैन नही पा रहा हूँ| मैंने सारा हाल सच-सच आपके सामने रख दिया| अब आप आज्ञा दे कि मुझे फाँसी पर चढ़ाया जाए|

बादशाह को यह सारा वृतांत बड़ा आश्चर्यजनक लगा|

किन्तु जब बूढ़े आदमी ने भी इस बात की पुष्टि की तो उसने कहा- ‘अगर कोई व्यक्ति अनजाने में अपराध करे तो वह मेरी और अल्लाह की नज़र में क्षमा योग्य है| मैं तो इस आदमी कि सत्यप्रियता और न्यायप्रियता से भी प्रसन्न हूँ कि इसने निरपराधों को मृत्यु से बचाने के लिए स्वयं मृत्यु का आहान किया और अपना अपराध स्वीकार किया| मृत्युदंड का भागी वह गुलाम है जिसके झूठ के कारण यह दुखद घटना हुई| वजीरेआजम! तुम अभी अपने को मुक्त समझो| तुम्हें तीन दिन के अंदर उस दुष्टात्मा को खोजकर लाना है, जिसके कारण यह सब हुआ| तीन दिन में ऐसा न कर सके तो तुम्हें फाँसी पर चढ़ना पड़ेगा|’

मंत्री ने सोचा कि एक बार मौत से छुटकारा मिला तो वह दुबारा पीछे पड़ गई| वह रोता-पीटता घर आया| उसे विश्वास था कि अबकी बार जान नही बच सकती क्योंकि लाखों गुलाम बगदाद में है| अभियुक्त गुलाम कैसे मिलेगा? फिर उसने सोचा, ‘परमात्मा की दया से निराश न होना चाहिए| जिस प्रकार अकस्मात ही उसने अनजान स्त्री के हत्यारे को प्रकट किया, वैसे ही संभव है कि इस बार भी जान बच जाए|’

और फिर, इस बार निश्चित अवधि में हत्यारा गुलाम नही मिला| मंत्री जाफ़र फाँसी पर चढ़ाने के लिए बुलाया गया| उसके संबंधी उससे मिलकर रोने लगे| मंत्री की बच्चे खिलाने वाली सेविका मंत्री की एक पाँच-छह बरस की बेटी को लाई| वह इस बच्ची से बहुत प्यार करता था|

मंत्री ने उन सिपाहियों से कहा, ‘मैं मरने से पहले अपनी इस बच्ची को प्यार कर लूँ|’

उन्होंने अनुमति दे दी| मंत्री ने जब बच्ची को उठाकर सीने से लगाया तो उसके सीने में रखी हुई कोई चीज़ अड़ी| मंत्री ने बच्ची के सीने के ऊपर देखा तो एक बंधी हुई गोल चीज़ महसूस हुई|

मंत्री के पूछने पर बच्ची ने बताया, ‘यह सेब है जिस पर शाही बाग़ की मोहर लगी हुई है|’

यह पूछने पर कि यह तुम्हारे पास कहाँ से आया? बच्ची ने कहा, ‘मेरा हब्शी गुलाम जिसका नाम रेहान है, लाया था और मैंने उससे चार सिक्कों में इसे खरीदा था|’

मंत्री ने सेब को खोलकर देखा और उस पर शाही बाग़ की मोहर पाई तो गुलाम से डांटकर पूछा, ‘तुझे यह सेब कहाँ से मिला? क्या तुमने मेरे या बादशाह के महल में चोरी की है?’

गुलाम ने हाथ जोड़कर कहा-’मैंने इसे न आपके यहाँ से चुराया है, न शाही महल से| मैं आपको सच्ची बात बता रहा हूँ| कुछ दिन पहले मैं एक गली से निकला, जहाँ एक घर के सामने तीन-चार बच्चे खेल रहे थे| उनमे सबसे बड़े लड़के के हाथ में यह सेब था| मैंने उससे छीन लिया| वह रोता हुआ मेरे पीछे भागा और कहने लगा कि यह सेब मेरे पिता मेरी बीमार माता के लिए बहुत दूर से लाए है| मैं इसे माता से बगैर पूछे उठा लाया हूँ? तुम इसे दे दो| लेकिन मैंने सेब नही दिया और लाकर आपकी बेटी को चार सिक्कों में बेच दिया|’

मंत्री को बड़ा आश्चर्य हुआ कि सेब का चोर उसके ही घर का गुलाम है| चुनांचे वह अपने साथ उस गुलाम को ले गया और सिपाहियों से कहा, ‘मुझे बादशाह के पास ले चलो|’

खलीफ़ा के सामने जाकर उसने गुलाम को उनके सामने खड़ा कर दिया| बादशाह के पूछने पर गुलाम ने वही कहानी दोहराई| बादशाह को यह अजीब किस्सा सुनकर हँसी आई किन्तु उसकी अपराधी को मृत्युदंड देने की इच्छा बनी हुई थी|

उसने मंत्री से कहा- ‘सारी दुखद घटना तुम्हारे गुलाम के कारण हुई इसलिए यही मृत्युदंड का भागी है| इसे फाँसी पर चढ़ाओ ताकि लोगों को शिक्षा मिले|’

मंत्री ने कहा- ‘आपका आदेश उचित है यह अभागा उसी योग्य है| किन्तु यह मेरा पुराना गुलाम है| मैं आपको मिस्र के बादशाह के मंत्रियों नूरुदीन अली और बदरुदीन हसन की कहानी सुनाना चाहता हूँ| यदि इससे आपका मनोरंजन हो तो इसके बदले में कृपया गुलाम को इतना बड़ा दंड देने का आदेश वापस ले ले|’

खलीफ़ा ने कहानी सुनाने को कहा| तब मंत्री जाफ़र ने खलीफ़ा को वो कहानी सुनाई|