सही रास्ता

किसी नगर में एक साधु रहता था| उसके चेहरे पर हर घड़ी प्रसन्नता छाई रहती थी, उसके जीवन में मस्ती का साम्राज्य था| लोग अपनी-अपनी समस्याएं लेकर उसके पास आते थे और संतुष्ट होकर जाते थे|

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एक दिन एक सेठ साधु के पास आया और उन्हें प्रणाम करके बोला – “महाराज मेरे पास किसी चीज की कमी नहीं है, धन-दौलत, बाल-बच्चे सब कुछ हैं| फिर भी मेरा मन बड़ा अशांत रहता है| मैं क्या करूं?”

साधु ने कोई जवाब नहीं दिया| वह चुपचाप बैठा रहा, फिर उठकर चल दिया| सेठ भी उसके पीछे-पीछे चल दिया| आश्रम के एक कोने में जाकर साधु ने आग जलाई और एक-एक करके लकड़ी उसमें डालता रहा| आग तेज होती रही| कुछ देर के बाद वह बिना सेठ की ओर देखे उठ खड़ा हुआ| सेठ को बड़ी हैरानी हुई| वह तो अपना दुख लेकर साधु के पास आया था, पर साधु अपने काम में लगा रहा और फिर बिना कुछ कहे वहां से जा रहा था|

सेठ ने आगे बढ़कर कहा – “स्वामीजी, मैं बड़ी आशा लेकर आपकी सेवा में आया हूं| मुझे कुछ रास्ता तो बताइए|”

साधु बड़े जोर से हंसते हुए बोला – “अरे, मुर्ख मैं इतनी देर से कर क्या रहा था? तुझे रास्ता ही तो बता रहा था| देख, हर आदमी के अंदर एक आग होती है| अगर उसमें प्यार की आहुति दो तो वह आनंद देती है, घृणा की आहुति दो तो वह जलती है| तू अपनी आग में रात-दिन काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद-मत्सर की लकड़ियां डाल रहा है| भले आदमी अगर बीज अशांति के बोएगा तो शांति का फल कैसे पाएगा? अपनी अंतरात्मा को टटोल, सुख और दुख बाहर नहीं, बल्कि भीतर हैं|

सेठ की आंखें खुल गईं| उसे सही रास्ता मिल गया| जिससे उसका जीवन नई दिशा में मुड़ गया|

नहले पर
दो घड़ी