त्याग, मोह और मुक्ति (भगवान शिव जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
एक बार भगवती पार्वती के साथ भगवान शिव पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे| भ्रमण करते हुए वे एक वन-क्षेत्र से गुजरे|
एक बार भगवती पार्वती के साथ भगवान शिव पृथ्वी पर भ्रमण कर रहे थे| भ्रमण करते हुए वे एक वन-क्षेत्र से गुजरे|
एक बार भगवान शिव कैलाश पर्वत पर वेदों का रहस्य पार्वती को समझाने लगे| पार्वती बड़े ध्यान से सुन रही थीं, किंतु बीच-बीच में वे ऊंघने भी लगती थीं|
दैत्यराज बलि के सौ पुत्र थे| जिनमें वाणासुर सबसे बड़ा था|
ऋषि उपमन्यु बड़े प्रेम-व्रती थे| दिन-रात अपने प्रेम के प्रसून शिवजी के चरणों पर चढ़ाया करते थे| न खाने की सुधि, न विश्राम की चिंता|
प्राचीन काल में कांपिल्य नगर में यज्ञदत नामक एक परम तपस्वी एवं सदाचारी ब्राह्मण रहते थे| वे संपूर्ण वेद-वेदांगों के ज्ञाता और सर्वदा श्रोत-स्मार्त्त कर्मों में प्रवृत्त रहते थे|
त्रेता युग की बात है| कैलाश पर्वत पर पार्वती भगवान शिव के साथ प्रात: भ्रमण कर रही थीं| शिव बड़े प्रसन्नचित थे|
एक बार भगवन शिव भगवती पार्वती के साथ कैलास के शिखर पर विहार कर रहे थे| उस समय पार्वती का सौंदर्य खिल रहा था|
ब्रह्मा जी के पौत्र क्षुप एवं महर्षि-च्यवन के पुत्र दधीचि आपस में घनिष्ठ मित्र थे| एक बार दोनों में एक विवाद उठ खड़ा हुआ|
प्राचीनकाल में नंदी नामक वैश्य अपनी नगरी के एक धनी-मानी और प्रतिष्ठित पुरुष थे| वे बड़े सदाचारी और वर्णाश्रमोचित धर्म को दृढ़ता से पालन करते थे|