HomePosts Tagged "बीमारीयों के लक्षण व उपचार" (Page 10)

होंठ प्राय: पेट की गरमी से जाड़े की ऋतु में फटते हैं| लेकिन कभी-कभी अत्यधिक गरमी में लू के कारण होंठ शुष्क होने पर भी फट जाते हैं| होंठ फटने पर उन्हें नाखून से नहीं नोचना चाहिए| इससे विषक्रमण होने का भय रहता है|

गरमी के दिनों में पसीना मरने या त्वचा में सूख जाने के कारण शरीर पर छोटे-छोटे दाने निकल आते हैं| इन्हीं को घमौरियां या अंधौरी कहते हैं| यह धूप में अधिक देर तक काम करने के कारण निकलती हैं|

नवजात शिशु माता के दुग्ध पर ही अपना भरण-पोषण करता है| लेकिन कभी-कभी किन्हीं कारणों से माता के स्तनों में पर्याप्त दुग्ध का निर्माण नहीं हो पाता| ऐसे में माता को चिंताएं घेर लेती हैं|

युवावस्था में जब शरीर में खून की गरमी पैदा हो जाती है तो वायु और कफ उस गरमी को शरीर से बाहर नहीं निकलने देते| उस दशा में त्वचा में गांठें या फुंसियां निकल आती हैं जो मुंहासे कहलाते हैं| ये उन लोगो को ज्यादा

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इस रोग में व्यक्ति को बेहोशी छा जाती है| वह निष्प्राण-सा पड़ा रहता है| ऐसे समय में रोगी को किसी आरामदायक एवं सुरक्षित स्थान पर लिटाना चाहिए| उसके चारों ओर भीड़ नहीं लगनी चाहिए|

पेशाब के साथ निकलने वाले भिन्न-भिन्न प्रकार के क्षारीय तत्त्व जब किन्हीं कारणवश नहीं निकल पाते और मूत्राशय, गुर्दे अथवा मूत्र नलिका में एकत्र होकर कंकड़ का रूप ले लेते हैं, तो इसे पथरी कहा जाता है|

विविध परेशानियों एवं कष्टों के कारण जब मस्तिष्क कमजोर हो जाता है तो व्यक्ति को वहम घेर लेता है| ऐसे में वह हर समय नकारात्मक बातें सोचता रहता है| उसके अंदर आत्मविश्वास की कमी, हीन भावना, निराशा एवं चिंता व्यापक रूप से अपनी जड़ जमा लेती है|

पित्त बच्चे के अंग-प्रत्यंग अत्यंत कोमल होते हैं| फलस्वरूप वे जल्दी ही बीमारियों के शिकार हो जाते हैं| इसी कारण उन्हें खांसी भी होने लगती है| यह मौसम बदलने, कब्ज रहने, अधिक भोजन करने, खट्टी चीजें और मैदे की चीजें अधिक खाने से हो जाती हैं|