किए का फल (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा
मंत्री गरीक बादशाह को यह किस्सा सुनाकर कहने लगा, “जहांपनाह! आप मेरी बात को इतने हल्के तौर पर न लें और मेरा विश्वास करें|”
मंत्री गरीक बादशाह को यह किस्सा सुनाकर कहने लगा, “जहांपनाह! आप मेरी बात को इतने हल्के तौर पर न लें और मेरा विश्वास करें|”
प्राचीन काल में एक राजा था| उसके राजकुमार को मृगया का बड़ा शौक था| राजा उसे बहुत चाहता था| वह राजकुमार की किसी भी इच्छा को अस्वीकार नहीं करता था|
किसी गांव में एक बड़ा ही शरीफ आदमी रहता था| उसकी पत्नी बेहद सुंदर थी और वह आदमी उससे बहुत प्रेम करता था|
फारस देश में रुमा नामक एक नगर था| उस नगर के बादशाह का नाम गरीक था|
किसी समय धार्मिक प्रवृत्ति का एक वृद्ध मुसलमान मछुआरा नियमित रूप से प्रतिदिन सवेरे उठकर नदी के किनारे जाता और चार बार नदी में जाल फेंकता था|
“हे दैत्यराज! ये दोनों काले कुत्ते मेरे सगे भाई हैं| हमारे पिता ने मरते समय हम तीनों भाइयों को तीन हजार अशर्फियां दी थीं| हम लोग उस पैसे से व्यापार चलाने लगे|
“हे दैत्यराज! जिस हिरणी को आप मेरे साथ देख रहे हैं, यह वास्तव में मेरी पत्नी है| जब यह बारह वर्ष की थी, तभी इसके साथ मेरा निकाह हुआ था|
एक व्यापारी था| वह बहुत ही ईमानदार था| व्यापार के सिलसिले में वह अकसर दूसरे शहरों में जाता रहता था| एक बार व्यापार के सिलसिले में वह कहीं जा रहा था|
यह कहानी सुनाकर मंत्री ने शहरजाद से कहा, “अगर तुमने जिद्द न छोड़ी तो मैं तुम्हें ऐसा ही दंड दूंगा, जैसा उस व्यापारी ने अपनी स्त्री को दिया था|”
एक बड़ा व्यापारी था, गांव में जिसके पास बहुत से मकान, पालतू पशु और कारखाने थे|