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परी का कोप (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा

परी का कोप (अलिफ लैला) - शिक्षाप्रद कथा

“हे दैत्यराज! ये दोनों काले कुत्ते मेरे सगे भाई हैं| हमारे पिता ने मरते समय हम तीनों भाइयों को तीन हजार अशर्फियां दी थीं| हम लोग उस पैसे से व्यापार चलाने लगे| मेरे भाई को विदेशों में जाकर व्यापार करने की इच्छा हुई, सो उसने अपना सारा माल बेच डाला और जो वस्तुएं विदेशों में महंगी बिकती थीं, उन्हें यहां से खरीदकर व्यापार के लिए चल दिया|

इसके लगभग एक वर्ष बाद मेरी दूकान पर एक भिखमंगा आकर बोला, “भगवन तुम्हारा भला करे|” मैंने उस पर ध्यान दिए बगैर जवाब दिया, “भगवान तुम्हारा भी भला करे|”

उसने कहा, “क्या तुमने मुझे पहचाना नहीं?”

मैंने उसे ध्यानपूर्वक देखा और फिर उसको गले लगाकर फूट-फूटकर रोने लगा| दरअसल, वह मेरा वही सगा भाई था, जो परदेश में व्यापार करने गया था| जब रोने के बाद मन कुछ हलका हुआ तो मैंने उसके विदेश में व्यापार के मुतल्लिक पूछा तो उसने बताया कि वह सब कुछ लुटाकर वापस आया है और भाग्य ने उसका साथ नहीं दिया| खैर, मैंने उससे कहा कि पिछली बातों को भूल जाए और नए सिरे से जीवन आरंभ करे| मैंने उसे तीन हजार अशर्फियां देकर नया व्यापार करवा दिया|

कुछ दिन बाद मेरे दूसरे भाई को भी विदेश जाने की सनक सवार हुई| मैंने उसे बहुत मना किया, मगर वो नहीं माना और अपना सब कुछ बेचकर विदेश चला गया| मगर कुछ दिन बाद उसका भी वही हश्र हुआ जो बड़े भाई का हो चुका था| फिर मैंने उस पर भी दया करके तीन हजार अशर्फियां दीं और नया व्यापार शुरू करवा दिया|

इसी तरह काफी समय गुजर गया| एक दिन दोनों भाई इकट्ठे मेरे पास आए और बोले कि क्यों न हम विदेश चलकर व्यापार करें| मैंने उन्हें याद दिलाया कि विदेश जाकर उनकी क्या हालत हुई थी| इस पर वह बोले, “छोटे! इसीलिए तो हम चाहते हैं कि हम तुम्हें लेकर विदेश चलें| हो सकता है तुम्हारे भाग्य और बुद्धिमानी से हमारे नसीब भी जाग जाएं| मगर मैंने स्पष्ट इनकार कर दिया|”

हालांकि मैंने इनकार कर दिया था, मगर वो तो जैसे मुझे लेकर विदेश जाने की कसम ही खा चुके थे| उन्होंने विदेश जाने की बात रोज-रोज कहकर जब मेरी नाक में दम कर दिया तो मुझे उनकी बात माननी पड़ी| उस समय मेरे पास नौ हजार अशर्फियां थीं| मैंने तीन हजार व्यापार के लिए उन्हें दीं| तीन हजार अपने पास रखीं और बाकी तीन हजार अपने घर में एक कोने में गाड़ दीं ताकि वक्त जरूरत काम आ सकें|

फिर हमने बहुत सा सामान खरीदा और एक जहाज द्वारा विदेश रवाना हो गए| वहां हमने अच्छा व्यापार किया और अच्छा मुनाफा कमाया| इसके बाद हमने वहां से कुछ सामान खरीदा जिसकी हमारे मुल्क में अच्छी कीमत मिलती, तत्पश्चात हम वापस आने की तैयारी करने लगे|

अभी हम सराय से बाहर निकले ही थे कि फटे-पुराने कपड़ों में लिपटी एक बेहद खूबसूरत लड़की ने मेरा रास्ता रोक लिया| उसने पहले धरती पर लेटकर मुझे सलाम किया फिर उठकर मेरा हाथ चूमा और बोली, “तुम्हें खुदा का वास्ता है, मेरे साथ शादी कर लो|”

मैंने इनकार कर दिया तो वह बुरी तरह गिड़गिड़ाने लगी| मुझे उस पर दया आ गई| फिर मैंने उससे वहीं एक काजी बुलाकर विधिवत निकाह कर लिया|

उसके बाद हम जहाज द्वारा अपने मुल्क के लिए चल दिए| जहाज में ही मुझे पता चला कि मेरी पत्नी खालिस खूबसूरत ही नहीं, जहीन भी थी| मेरा उसके साथ प्रेम बढ़ता ही जा रहा था| यह देखकर मेरे भाइयों को मुझे जलन होने लगी|

पता नहीं उनके मन में क्या था कि एक रात उन्होंने हमें जहाज से उठाकर समुद्र में फेंक दिया| तब मुझे पता चला कि मेरी पत्नी के पास कुछ अलौकिक शक्तियां भी हैं क्योंकि उसके प्रभाव से हम डूबे नहीं| उसने मेरा हाथ पकड़ा और पलक झपकते ही एक टापू पर ले गई| वहां ले जाकर उसने मुझे बताया कि वह एक परी थी और मुझ पर मोहित होकर ही उसने मुझसे शादी की थी| फटे-पुराने कपड़े उसने इसलिए धारण किए थे कि वह मेरी परीक्षा लेना चाहती थी कि मुझमें गरीबों के लिए दया-भाव भी है या नहीं| फिर उसने बताया कि मेरे भाइयों के मन में कपट है और अब वह उन्हें जीवित नहीं छोड़ेगी|

उसकी बातें सुनकर मुझे आश्चर्य तो बहुत हुआ, मगर भाइयों की मौत की बात सुनकर मैं डर गया और मैंने उससे निवेदन किया कि वह मेरे भाइयों को कुछ न कहे| यदि वह चाहे तो उन्हें कोई और दंड दे दे, मगर जान से न मारे|

फिर उसने पलक झपकने भर की देरी में मुझे मेरे देश में मेरे घर की छत पर पहुंचा दिया और खुद गायब हो गई|

मैं दूसरे दिन से ही अपने कारोबार में लग गया| जो तीन हजार अशर्फियां मैंने गुप्त रूप से छिपाकर रखी थीं, ऐसे में वे मेरे बहुत काम आईं| अब हर दिन मुझे अपने भाइयों का इंतजार रहता|

एक दिन शाम को मैं जैसे ही घर लौटकर आया तो इन दो काले कुत्तों को अपने आंगन में बंधे देखा| ये भी मुझे देखते ही मेरे कदमों में लोटने लगे| मैं हैरान था कि मेरे घर में ये कुत्ते कहां से आ गए| तभी वही परी हाजिर हुई और बोली, “घबराओ मत! यह दोनों कुत्ते तुम्हारे भाई हैं| मैंने इन्हें दस-दस साल के लिए इस योनि में डाल दिया है|”

हे दैत्यराज! अपने इन्हीं भाइयों के साथ मैं इधर से गुजर रहा था कि मैंने इन्हें यहां बैठे देखा तो रुक गया| अब बताओ, तुम्हें मेरी यह कहानी पसंद आई या नहीं? अगर पसंद आई हो तो इस व्यापारी की एक तिहाई सजा और माफ करो|”

दैत्य ने कहा, “वाकई तेरी कहानी बड़ी अद्भुत है| परी ने तेरे भाइयों को सही सजा दी| मैं खुश होकर व्यापारी का अपराध का दूसरा तिहाई भाग भी माफ करता हूं|”

उन दिनों की कहानी समाप्त होने के बाद तीसरा वृद्ध बोला, “हे दैत्यराज! अब अगर इजाजत हो तो मैं भी अपनी कहानी सुनाऊं, मगर मेरी भी वही शर्त है| आप कहानी पसंद आने पर व्यापारी की सजा का बाकी तिहाई भाग भी माफ कर दें|”

“ठीक है|” दैत्य ने उसकी बाद स्वीकार कर ली|

तब वृद्ध ने अपनी कहानी आरंभ की, “हे दैत्यराज! मेरे साथ जो यह गाढ़ी आप देख रहे हैं, यह मेरी पत्नी है| मैं एक व्यापारी हूं| एक बार मैं व्यापार के लिए परदेस गया| जब मैं एक वर्ष बाद लौटकर आया, तो मैंने देखा कि मेरी पत्नी एक हब्शी गुलाम के पास बैठी हास-विलास और प्रेमालाप कर रही है| मुझे यह सब देखकर आश्चर्य भी हुआ और क्रोध भी बहुत आया| मैंने चाहा कि उन दोनों को दंड दूं|

तभी मेरी पत्नी एक पात्र में जल ले आई और उस पर एक मंत्र फूंककर उसने मुझ पर वह अभिमंत्रित जल छिड़क दिया, जिससे मैं कुत्ता बन गया| पत्नी ने मुझे घर से भगा दिया और फिर अपने हास-विलास में लग गई|

मैं इधर-उधर घूमता रहा, फिर भूख से व्याकुल होकर एक कसाई की दुकान पर जा पहुंचा और उसकी फेंकी हुई हड्डियां उठाकर खाने लगा| कुछ दिन तक मैं ऐसा ही करता रहा| फिर एक दिन कसाई के साथ उसके घर जा पहुंचा| कसाई की पुत्री मुझे देखकर अंदर चली गई और बहुत देर तक बाहर नहीं निकली|

कसाई ने कहा, “तू अंदर क्या कर रही है, बाहर क्यों नहीं आती?”

इस पर लड़की बोली, “मैं किसी गैर-मर्द के सामने कैसे आऊं?”

कसाई ने इधर-उधर देखकर कहा, “यहां तो कोई गैर-मर्द नहीं दिखाई देता, तू किसकी बात कर रही है?”

लड़की ने कहा, “यह कुत्ता जो तुम्हारे साथ घर में आया है, तुम्हें इसकी कहानी मालूम नहीं है| यह आदमी है, इसकी पत्नी जादू करने में पारंगत है| उसी ने मंत्रशक्ति से इसे कुत्ता बना दिया है| अगर तुम्हें इस बात का विश्वास न हो तो मैं तुरंत ही इसे मनुष्य बनाकर दिखा सकती हूं|”

कसाई आश्चर्य से बोला, “भगवान के लिए ऐसा ही कर| तू इसे आदमी बना दे|”

यह सुनकर वह लड़की अंदर से एक पात्र में जल लेकर आई और जल को अभिमंत्रित करके मुझ पर छिड़ककर बोली, “तू इस देह को छोड़ दे और अपने पूर्व रूप में आ जा|”

उसके इतना कहते ही मैं दोबारा मनुष्य के रूप में आ गया और लड़की फिर परदे के अंदर चली गई|

मैंने उसके उपकार से अभिभूत होकर कहा, “हे भाग्यवती! तुने मुझ पर जो उपकार किया है, उससे तुझे लोक-परलोक का सतत सुख प्राप्त हो| अब मैं चाहता हूं कि मेरी पत्नी को भी कुछ ऐसा ही दंड मिले|”

यह सुनकर लड़की ने अपने पिता को अंदर बुलाया और उसके हाथ थोडा-अभिमंत्रित जल बाहर भिजवाकर बोली, “तुम इस जल को अपनी पत्नी पर छिड़क देना, फिर उसे जो भी देह देना चाहो उस पशु का नाम लेकर स्त्री से कहना कि, तू यह हो जा, वह उसी पशु की देह धारण कर लेगी|”

मैं उस जल को अपने घर ले गया| उस समय मेरी पत्नी सो रही थी| मैंने अभिमंत्रित जल के कई छीटें उसके मुंह पर मारे और कहा, “तू स्त्री की देह छोड़कर खच्चर बन जा|” मेरे ऐसा कहते ही वह खच्चर बन गई और तबसे मैं इसे इसी रूप में अपने साथ लिए घूमता हूं|”

जब तीसरा वृद्ध अपनी कहानी कह चुका तो दैत्य को बड़ा आश्चर्य हुआ| उसने खच्चर से पूछा, “क्या यह बात सच है जो बूढा कहता है?” खच्चर ने सिर हिलाकर संकेत दिया कि बात सच्ची है| तत्पश्चात दैत्य ने व्यापारी के अपराध का बचा हुआ भाग भी क्षमा कर दिया और उसे बंधन-मुक्त कर दिया| उसने व्यापारी से कहा, “तुम्हारी जान आज इन्हीं तीनों के कारण बची है| यदि ये लोग तुम्हारी सहायता न करते तो आज तुम मारे ही गए थे| अब तुम इन तीनों के प्रति कृतज्ञता प्रकट करो|” यह कहने के बाद दैत्य अंतर्धान हो गया|

व्यापारी उन तीनों के चरणों में गिर पड़ा| वे लोग उसे आशीर्वाद देकर अपनी राह चले गए और व्यापारी भी घर लौट गया| उसने हंसी-खुशी अपने प्रियजनों के साथ रहकर अपनी आयु भोगी|

शहजाद ने इतना कहने के बाद कहा, “मैंने जो यह कहानी कही है, इससे भी अच्छी एक कहानी जानती हूं, जो एक मछुवारे की है|”

बादशाह ने इस पर कुछ नहीं कहा, लेकिन दुनियाजाद बोली, “दीदी! अभी तो कुछ रात बाकि है| तुम मछुवारे की कहानी भी शुरू कर दो| मुझे आशा है कि बादशाह सलामत उस कहानी को सुनकर प्रसन्न होंगे|” शहरयार ने वह कहानी सुनाने की स्वीकृति दे दी, तब बादशाह ने मछुवारे की कहानी आरंभ की|

 

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