Homeशिक्षाप्रद कथाएँशहरजाद का बादशाह से निकाह (अलिफ लैला)- शिक्षाप्रद कथा

शहरजाद का बादशाह से निकाह (अलिफ लैला)- शिक्षाप्रद कथा

शहरजाद का बादशाह से निकाह (अलिफ लैला)- शिक्षाप्रद कथा

यह कहानी सुनाकर मंत्री ने शहरजाद से कहा, “अगर तुमने जिद्द न छोड़ी तो मैं तुम्हें ऐसा ही दंड दूंगा, जैसा उस व्यापारी ने अपनी स्त्री को दिया था|”
अपने पिता की बात सुनकर शहरजाद ने कहा, “आपकी बातें अपनी जगह ठीक है, किंतु मैं किसी भी प्रकार अपना मंतव्य बदलना नहीं चाहती| अपनी इच्छा का औचित्य सिद्ध करने के लिए मुझे भी कई ऐतिहासिक घटनाएं और कथाएं मालूम हैं, लेकिन उन्हें कहना बेकार है|”

अंतत: मंत्री विवश हो गया| उसे शहरजाद की बात माननी पड़ी| वह बादशाह के पास पहुंचा और अत्यंत शोक संतप्त स्वर में निवेदन करने लगा, “मेरी पुत्री आपके साथ निकाह करना चाहती है|”

बादशाह को इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुआ| उसने कहा, “तुम सबकुछ जानते हो, फिर भी तुमने अपनी पुत्री के लिए ऐसा भयंकर निर्णय क्यों लिया?”

मंत्री ने कहा, “लड़की ने खुद ही मुझे इसके लिए जोर दिया है| उसकी खुशी इस बात में है कि वह एक रात के लिए आपकी दुल्हन बने और सुबह मृत्यु के मुख में जाए|”

बादशाह को इस बात से और भी अधिक आश्चर्य हुआ| वह बोला, “तुम इस धोखे में न रहना कि तुम्हारा खयाल करके मैं अपनी प्रतिज्ञा बदल दूंगा| सवेरा होते ही तुम्हें ही अपने हाथों से अपनी पुत्री का कत्ल करना पड़ेगा| यह भी याद रखना कि यदि तुमने संतान प्रेम के कारण उसके वध में विलंब किया तो मैं उसके साथ-साथ तुम्हारे वध का भी हुक्म दे दूंगा|”

बादशाह की ऐसी कठोर बात सुनकर मंत्री ने कहा, “मैं आपका दास हूं| यह सही है कि वह मेरी बेटी है और उसकी मृत्यु से मुझे बहुत ही दुख होगा, लेकिन मैं आपकी आज्ञा का पालन अवश्य करूंगा|”

मंत्री की बात सुनकर बादशाह ने कहा, “अगर ऐसी बात है तो फिर वही करो, जो तुम्हारी बेटी चाहती है| तुम आज ही रात अपनी बेटी का निकाह मुझसे कर दो|”

मंत्री बादशाह से विदा लेकर अपने घर आया और शहरजाद को सारी बात बताई|

शहरजाद यह सुनकर बहुत प्रसन्न हुई और अपने शोकाकुल पिता के प्रति कृतज्ञता प्रकट करके कहने लगी, “आप मेरा निकाह करके कोई पश्चाताप न करें| अगर खुदा ने चाहा तो इस मंगल कार्य से आप जीवनपर्यंत प्रसन्न रहेंगे|”

फिर शहरजाद ने अपनी छोटी बहन दुनियाजाद को एकांत में ले जाकर उससे कहा, “मैं तुमसे एक सहायता चाहती हूं| आशा है, तुम इनकार नहीं करोगी|”

उसकी बातें सुनकर दुनियाजाद रो पड़ी| रोते हुए वह बोली, “दीदी! तुम ये कैसे बात करती हो| तुमने खुद ही तो अपनी मौत बुलाई है| फिर भी अगर मैं तुम्हारे कोई काम आ सकी तो ये मेरा सौभाग्य होगा| बताओ मुझसे कैसी सहायता की उम्मीद करती हो|”

उसकी बात सुनकर शहरजाद उसे गले लगाकर बोली, “मैं जानती हूं कि मेरे इस निर्णय से तुम बहुत दुखी हो, लेकिन दुखी न हो – खुदा ने चाहा तो सब अच्छा ही होगा|” थोड़ी देर चुप रहने के उपरांत वह बोली, “अब मेरी बात ध्यान से सुनो| बादशाह के साथ विवाह हो जाने के बाद तुम दुखी न होना, बल्कि जैसा में कहूं, वैसा ही करना| विवाह की रात मैं तुम्हें अपने पास यह कहकर बुलाऊंगी कि तुम मेरे मरने से बहुत दुखी हो और मैं तुम्हें धैर्य बंधाना चाहती हूं| वहां आने के बाद तुम मेरे पास वहीं सोने की जिद्द करना| इसके लिए मैं भी बादशाह से विनती करूंगी| फिर जब एक घड़ी रात शेष रह जाए तो तुम मुझे जगाकर कहना कि नींद आ रही है, कोई अच्छी-सी कहानी सुनाओ| फिर मैं तुम्हें कहानी सुनाऊंगी|” यह कहकर थोड़ी देर के लिए शहरजाद चुप हो गई| फिर दोनों हाथ ऊपर उठाकर बोली, “मुझे अपने खुदा पर विश्वास है| इस उपाय से मेरी जान अवश्य ही बच जाएगी|”

दुनियाजाद इस अजीबो-गरीब बात पर, असमंजस में पड़ गई, फिर भी बड़ी बहन की खातिर उसने कहा, “तुम जैसा चाहती हो, मैं वैसा ही करूंगी|”

थोड़ी देर बाद ही मंत्री अपनी पुत्री शहरजाद को लेकर राजमहल में गया| उसने धर्मानुसार पुत्री का निकाह बादशाह के साथ कर दिया|

एक कक्ष में शहरजाद दासियों के साथ बैठी थी| अंधेरा होने पर बादशाह ने उस कक्ष में प्रवेश किया| उसके आते ही सारी दासियां वहां से उठकर चली गई| एकांत होने के बाद बादशाह ने शहरजाद से कहा, “अपने मुंह से नकाब हटाओ|”

शहरजाद ने नकाब हटा दिया| नकाब हटते ही उसके अप्रतिम सौदंर्य से बादशाह स्तंभित रह गया| लेकिन तभी उसकी नजर शहरजाद की आंखों से गिरते आंसुओं की तरफ पड़ी| उसने उससे पूछा, “तुम रो क्यों रही हो?”

योजनानुसार शहरजाद बोली, “मेरी एक छोटी बहन है, जो मुझे बहुत प्यार करती है और मैं भी उसे बहुत प्यार करती हूं| मैं चाहती हूं कि आज रात वह भी यहां रहे – ताकि सूर्योदय होने पर हम दोनों बहनें अंतिम बार गले मिल लें| यदि आप अनुमति दें, तो वह भी पास के कमरे में आकर सो रहे|”

इस पर बादशाह ने कहा, “क्या हर्ज है, उसे बुलवा लो और पास के कमरे में क्यों, इसी कमरे में दूसरी तरफ सुला लो|”

फिर दुनियाजाद को भी महल में बुला लिया गया| शहरयार, शहरजाद के साथ ऊंचे शाही पलंग पर सोया और दुनियाजाद पास ही दूसरे छोटे पलंग पर लेटी रही| जब एक घड़ी रात रह गई तो दुनियाजाद ने शहरजाद को जगाया और बोली, “दीदी! मैं तो तुम्हारे जीवन की चिंता से रात भर सो न सकी| मेरा चित्त बड़ा व्याकुल है| तुम्हें भी अगर नींद न आ रही हो तो कोई अच्छी-सी कहानी सुनाओ ताकि मेरा जी बहले|”

शहरजाद ने बादशाह से कहा, “यदि आपकी अनुमति हो तो मैं जीवन के अंतिम क्षणों में अपनी प्रिय बहन की इच्छा पूरी कर दूं|”

बादशाह ने अनुमति दे दी| तब शहरजाद कहानी सुनाने लगी|

 

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