HomePosts Tagged "शिक्षाप्रद कथाएँ" (Page 130)

बादशाह अकबर ने बीरबल से सवाल किया – “इस संसार में इंसान-इंसान में भेद क्यों है, कोई तो भूखे पेट सो जाता है और किसी के पास इतना है कि पेट भरने के बाद फेंकना पड़ता है| सभी को ऊपर वाले ने ही बनाया है तो फिर यह भेद क्यों है?”

कक्षा के विद्यार्थियों के अंग्रेजी ज्ञान की परीक्षा के लिए शिक्षा विभाग के अंग्रेज इंस्पेक्टर आए हुए थे| कक्षा के समस्त विद्यार्थियों को उन्होंने एक-एक बार पाँच शब्द लिखाए| कक्षा के अध्यापक ने बालक मोहनदास की कॉपी देखी, उसमें एक शब्द गलत लिखा था|

उत्तर प्रदेश में इलाहाबाद जिले में एक तहसील है – हड़िया| हड़िया को मुंशीगंज भी कहते हैं| हड़िया से एक सड़क गंगा के तट की ओर एक बहुत बड़े गांव की ओर जाती है| उस गांव का नाम लाक्षागृह है|

एक बंदर एक मनुष्य के घर प्रतिदिन आता था और ऊधम करता था| वह कभी कपड़े फाड़ देता, कभी कोई बर्तन उठा ले जाता और कभी बच्चों को नोच लेता| वह खाने-पीने की वस्तुएँ ले जाता था, इसका दुःख उन घरवालों को नहीं था; किंतु उस बंदर के उपद्रव से वे तंग आ गये थे|

एक बार अकबर की ओर से बीरबल किसी शाही दावत में गया हुआ था| अगले दिन जब बीरबल दरबार में लौटा तो बादशाह ने उससे शाही दावत और उसमें बने भोजन के बारे में पूछा|

कौरव और पांडव राजकुमारों ने शस्त्र विद्या तो सीख ही ली थी, शास्त्रों का ज्ञान भी प्राप्त कर लिया था| वे सब वयस्क हो गए थे, जनता में अपना वर्चस्व स्थापित करने लगे थे| कौरव और पांडव दोनों हस्तिनापुर के विशाल साम्राज्य के दावेदार थे|

एक गाँव में दो बिल्लियाँ रहती थीं| वे आपस में मेल से रहती थीं| उन्हें जो कुछ मिलता था, उसे आपस में बाँटकर खाया करती थीं| एक दिन उन्हें एक रोटी मिली| उसे बराबर-बराबर बाँटते समय उनमें झगड़ा हो गया| एक कहती थी कि तुम्हारी रोटी का टुकड़ा बड़ा है और दूसरी कहती थी कि मेरा टुकड़ा बड़ा नहीं है|

एक बार महर्षि गालव जब प्रात: सूर्यार्घ्य प्रदान कर रहे थे, उनकी अंजलि में आकाश मार्ग में जाते हुए चित्रसेन गंधर्व की थूकी हुई पीक गिर गई| मुनि को इससे बड़ा क्रोध आया| वे उए शाप देना ही चाहते थे कि उन्हें अपने तपोनाश का ध्यान आ गया और वे रुक गए| उन्होंने जाकर भगवान श्रीकृष्ण से फरियाद की| श्याम सुंदर तो ब्रह्मण्यदेव ठहरे ही, झट प्रतिज्ञा कर ली – चौबीस घण्टे के भीतर चित्रसेन का वध कर देने की| ऋषि को पूर्ण संतुष्ट करने के लिए उन्होंने माता देवकी तथा महर्षि के चरणों की शपथ ले ली|

किसी जंगल में एक शेर और एक चिता रहता था| वैसे तो शेर बहुत बलवान होता है; किंतु वह शेर बूढ़ा हो गया था| उससे दौड़ा कम जाता था| चिता मोटा और बलवान था| इतने पर भी चिता बूढ़े शेर से डरता था और उससे मित्रता रखता था; क्योंकि बूढ़ा होने पर भी शेर चीते से तो कुछ अधिक बलवान था ही|