बोरा भर सिंदूर (भगवान हनुमान जी की कथाएँ) – शिक्षाप्रद कथा
हनुमान जी बड़े आश्चर्य में थे| अब तक श्रीराम ने उनकी किसी भी बात पर कभी ‘ना’ नहीं की थी| किंतु उस दिन न जाने क्यों वह बार-बार हनुमान जी के प्रस्ताव को ठुकरा रहे थे|
हनुमान जी बड़े आश्चर्य में थे| अब तक श्रीराम ने उनकी किसी भी बात पर कभी ‘ना’ नहीं की थी| किंतु उस दिन न जाने क्यों वह बार-बार हनुमान जी के प्रस्ताव को ठुकरा रहे थे|
समुद्र पार जाने के लिए पुल के निर्माण का काम प्रगति पर था| राम की सेना उत्साह से फूली नहीं समा रही थी| भालू-वानर भाग-भागकर काम कर रहे थे|
लंका युद्ध की समाप्ति के पश्चात श्रीराम सभी वानरों तथा राक्षसों के साथ अयोध्या की ओर पुष्पक विमान द्वारा चले|
एक दिन की बात है कि भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तीनों भाई माता जानकी के पास पहुंचे| माता जानकी ने पूछा – “आज तीनों भाई एक साथ कैसे पधारे?”
जगजननी जानकी और जगत्त्राता प्रभु श्रीराम को अयोध्या के सिंहासन पर आसीन देखकर सर्वत्र हर्ष व्याप्त हो गया|
एक बार हनुमान जी ने अपने प्रभु श्रीराम से अपनी माता अजना के दर्शनार्थ जाने की आगया मांगी| प्रभु ने उन्हें सहर्ष आज्ञा प्रदान कर दी|
श्रीरामश्वमेध का अश्व भ्रमण करता हुआ महर्षि वाल्मीकि के पुनीत आश्रम के समीप पहुंचा| प्रातःकाल का समय था|
श्रीराम के अश्वमेध का अश्व भ्रमण करता हुआ प्रख्यात कुंडलपुर के समीप पहुंचा| वहां के अत्यंत धर्मात्मा नरेश का नाम सुरथ था|
भगवान श्रीराम के अश्वमेध का अश्व घूमता हुआ हेमकूट पर्वत के एक विशाल उद्यान में पहुंचा ही था कि वहां अकस्मात उसका सारा शरीर अकड़ गया|
महाराज वीरमणि देवपुर नामक नगर के नरेश थे|