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श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-27 (श्रावण में करने योग्य कार्य)

श्रावण मास माहात्म्य

भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! अब आगे मैं तुम्हें श्रावण मास में कर्क, सिंह व संक्रांति होने पर जो भी कार्य किए जाते हैं, वह सब, सविस्तार बतलाता हूँ|
कर्क-संक्रांति से सिंह-संक्रांति तक सभी नदियाँ के रजस्वला हो जाने के कारण उनमें स्नान नहीं करना चाहिए| परन्तु जो नदियाँ समुद्र में विलीन हो जाती हैं| उनमें ऐसा कोई दोष नहीं होता है| अतः उनमें स्नान किया जा सकता है| कुछ पुण्यात्माओं और ऋषियों व महर्षि अगस्त्य के मतानुसार कर्क-संक्रांति से दक्षिण दिशाओं में मौजूद अगस्त्य के उदय-काल तक नदियाँ रजस्वला होती हैं| गर्मियों में पृथ्वी पर ही सूख जाने वाली नदियाँ तब तक रजस्वला ही रहती हैं| जिन नदियों की गति स्वयं में आठ हजार (बत्तीस हाथ) न हो उनमें इस दिन तक स्नान करना निषिद्ध है| ऐसी नदियाँ गर्त कहलाती है|

कर्क-संक्रांति की शुरूआत से महा नदियाँ रजस्वला हो जाती हैं| स्त्रियों की भांति नदियाँ तीन दिन तक रजस्वला रह कर चौथे दिन से शुद्ध होती जाती हैं| और ग्यारहवें दिन अति पवित्र हो जाती हैं| अब मैं तुम्हें उन नदियों के बारे में बतलाता हूँ| वह तुम ध्यान से सुनो| तुंगभद्रा, गोदावरी, तापी, वेणिका और पयोराठी, ये छः महानदी विन्ध्याचल पर्वत के दक्षिण भाग में चलायमान रहती हैं| भागीरथी, यमुना, सरस्वती, नर्मदा, विशोका और विस्तता, ये छः महानदियाँ विन्धयाचल पर्वत से चलायमान होती हैं| ये 12 महानदियाँ देवर्षि क्षेत्र में प्रादुर्भूत रहती हैं| चार नदियाँ (देविका, कावेरी, बंजरा, और कृष्णा) कर्क-संक्रांति पड़ने पर केवल एक दिन के लिए ही रजस्वला होती हैं| गौतमी तीन दिन तक और चन्द्रमागा, सती, सिन्धु, सरयू, नर्मदा, गंगा, प्लक्षधारा तथा सरस्वती आदि यह नौ नदियाँ तथा प्रसिद्ध नद शोण, हिरण्य, कोकिल, अहित, घर्घर शतद् सदैव पवित्र रहती हैं तथा रजस्वला नहीं होती हैं|

धर्मद्रवा गंगा, यमुना व सरस्वती सदैव गुप्त रजोदोष वाली रहती हैं| नदी तट पर रहने वालों को रजस्वला दोष नहीं लगता है| रजो-जल भी गंगा में मिल जाने पर दोषमुक्त हो जाता है| बकरी, गाय, भैंस, प्रसूता औरत तथा पृथ्वी में नवीन जल, ये सब 10 दिनों में पवित्र और अमृत तुल्य होता है| ग्रामवासियों को रजोदोष समय में नदियों का जल प्रयोग करने से पाप नहीं लगता है| अन्न के साथ जल के निर्गत होने पर भी रजोदोष पाप नहीं लगता है| चन्द्र-ग्रहण व सूर्य-ग्रहण काल में भी रजोदोष व पापदोष नहीं लगता है|

शिव बोले-हे सनत्कुमार! अब मैं तुम्हें सिंह-संक्रांति के अवसर पर होने वाले गौ-प्रसव फल के बारे में बतलाता हूँ| सिंह का सूर्य होने पर गाय का प्रसव हो तो निश्चित रूप से वह गाय एक या दो मास के भीतर ही मर जाती है| उस समय की गौ-प्रसव शान्ति की विधि में तुम्हें कहता हूँ जिसके करने से मनुष्य सुखी हो जाता है, उस समय में ब्याही हुई गौ ब्राह्मण को दान कर देनी चाहिए| उस समय पीली सरसों व गाय के शुद्ध घी से होम कराना चाहिए|

उस में श्रीसूक्त व शान्तिसूक्त से स्नान सर्वोत्तम रहता है| तब घी व तिल की 1008 आहुतियाँ दें| व्रत के पश्चात् ब्राह्मण को उचित मात्रा में दक्षिणा अवश्य ही दें| सिंह-राशि में सूर्य आ जाने पर यदि गौ-प्रसव हो तो वह अवश्य ही अनिष्टकारी होता है| अतः ‘अस्यावाम्’ व ‘तद्विष्णो’ अर्थात् इन दो सूक्तों से भी तिल व घी से 108 होम करना चहिए| मत्युञ्जय नियम से 10,000 होम भी कराये जाने चाहिए| इससे मनुष्य को किसी प्रकार का भय नहीं रहा| इसी तरह श्रावण मास में घोड़ी ब्याही हो तो शांति करने से दोष मिट जाता है|

अब हे पुत्र! मैं तुम्हें श्रावण मास में कर्क या सिंह की संक्रांति में दिये जाने वाले शुभ दान को बतलाता हैं| कर्क के सूर्य में संक्रांति होने पर घी का, सिंह-संक्रांति होने पर छाता या सोना दानस्वरूप दें| वस्त्र-दान से भी इस मास में शुभ फल प्राप्त होता है| इस मास में प्रभु-प्रेम के लिए व्रती को घृत, घृत कलश, घृत धेनु व फल दानस्वरूप देने चाहिए|

वर्ष के अन्य महीनों की अपेक्षा इस मास में किए गये दान अनंत व अमर फलदायक होते हैं| प्रभु को यह मास सर्वाधिक प्रिय है| मुझे तो इस मास के आने की सर्वदा प्रतीक्षा रहती है| जो प्राणी इस मास में व्रत करता है वह तो मेरी कृपा का विशेष अधिकारी होता है| उसका कारण यह है कि ब्राह्मणों के नरेश चन्द्रमा और प्रत्यक्ष देव सूर्य मेरी दो आँखें हैं। इस मास में प्रातः ही उठकर स्नान करने वाला पूरे वर्ष के स्नान का फल पा जाता है| जो ऐसा नहीं करता है उसके वर्ष के सभी स्नान पुण्यफल व्यर्थ हो जाते हैं|

व्रती प्राणी को यह संकल्प करना चाहिए-हे महाप्रभु! हे कृपा सिन्धु! मेरे कार्य निर्विघ्न सम्पूर्ण हों’ व्रती को स्नान के बाद शिवपूजन करना चाहिए और पूरे मास श्रद्धा और भक्तिभाव से कथा और माहात्म्य का श्रवण करना चाहिए| यह श्रावण मास जो प्रभु को भी प्यारा, सभी अभीष्टों को पूरा करने वाला है| इसके पुण्य-प्रताप से जो सात प्रकार की बंध्यायें बतलाई गई हैं उन्हें भी पुत्र प्राप्त होता है| निर्बल को बल, विद्यार्थी को विद्या तथा बीमार निरोगी हो जाता है| भवबन्धन में बंधा हुआ भी संसार से निर्मुक्त हो जाता है| धनेच्छ को धन और अविवाहिता अथवा विधुर को पत्नी मिल जाती है|

शिव बोले-हे वत्स! व्रती की समस्त अभिलाषायें पूर्ण हो जाती हैं| वह मरणोपरान्त भी मेरे धाम में स्थान पाता है| व्यास-पूजा के लिए प्राणी को सुन्दर वस्त्र व आभूषण धारण करने चाहिए| श्रावण मास का पुण्यफल जानकर भी जो व्यासजी का पूजन नहीं करता है, वह यमराज द्वारा घोर यातनायें पाता है| उसके कर्ण औरा चाक्षु नष्ट कर दिये जाते हैं| वह बधिरा और नेत्रहीन हो जाता है|

अतः व्रती को इस मास में प्रभु-पूजन अवश्य करना चाहिए| भक्तिभाव और श्रद्धापूर्वक श्रावण- मासात्म्य को पढ़ने और सुनने वाला महान पुण्य प्राप्त करता है|

श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-27 (श्रावण में करने योग्य कार्य) का फलः- 

इस सत्ताईसवें अध्याय के पाठ-श्रवण से वांझ को पुत्र प्राप्ति व भक्त को पुण्य प्राप्ति होती है|