Homeश्रावण मास माहात्म्यश्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-26 (श्रावण मावस्या प्रत)

श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-26 (श्रावण मावस्या प्रत)

श्रावण मास माहात्म्य

भगवान शिव बोले-हे सनत्कुमार! श्रावण मास की अमावस्या को जो कुछ किया जाता है| वह मैं तुम्हें बतलाता हूँ| पूर्व काल में मैंने अनेक बार रमणीय वृषभ पर बैठकर महाबली, बलशाली और दुष्ट राक्षसों से युद्ध करना पड़ा है| इस वृषभ ने सदैव ही मेरा साथ दिया है| मैं इसका बहुत आभारी हूँ| युद्ध में राक्षसों ने इस वृषभ को बहुत शारीरिक क्षति पहुँचाई है| तब भी उसने मेरा साथ नहीं छोड़ा| मैंने अन्धक राक्षस का वध किया तो मैं बहुत खुश हुआ था| मैंने अपने नन्दी वृषभ से कहा-हे नन्दी! तू मुझसे वरदान ले| तेरे सभी घाव स्वस्थ हों और तू महाबली बन जा| तू पहले से भी अधिक रूपवान हो जा| वीर्यवान व बलशाली हो जो वर तू मांगेगा वह में अवश्य दूंगा|

नन्दी बोला! हे देवाधिदेव! हे महादेव! आपके सिवाय कुछ नहीं चाहिए| आप केवल मुझ पर दयावान रहें| सभी कुछ तो मुझे प्राप्त है| तब भी मैं आपसे संसार के कल्याणार्थ निवेदन करता हूँ| आज श्रावण मास की अमावस्या है| आज मेरा कामधेनु रूप में जन्म हो| आप इस अमावस्या को वरदान दें, जो इच्छादायक हो| जो भक्ति व श्रद्धा से गौ तथा बैल की पूजा करे, गेरू तथा अन्य धतुओं से बैल का शरीर शोभित करे, उसके सींगों पर रजत-पत्र लगवाये तथा उनको रेशम के गुच्छों से आच्छादित कर पीठ को रंग-बिरंगे परिधानों से ढके और उसके गले में मधुर ध्वनि वाली घंटी बाँधकर आठवें पहर में गाँव से बाहर ले जाकर सायंकाल को वापस गांव में ले आये| यदि कोई खली-बिनौले आदि गौ-बैलों को खाने को देगा उसके यहाँ पशु-धन वृद्धि होगी| जिस घर में गौ-बैल का सम्मान नहीं होता वह श्मशान-तुल्य होता है| गोरस बनाने के लिए पंचामृत व पंचगव्य आवश्यक होता है| जो घर गोमूत्र से पवित्र नहीं होता उसमें रेंगने वाले जीवों का वास रहता है|

हे देवाधिदेव! भोजन का रस गोरस से है मिलता है| अतः हे प्रभु! यदि आप मुझ पर बहुत प्रसन्न हैं तो मुझे भी वरदान दें फलतः शिव ने नंदी पर प्रसन्न होकर उसे वरदान दिया – हे सुव्रत! हे नन्दी! तुमने जो कुछ भी मांगा है वह सब तुम्हें मिलेगा|

अब प्रभु बोले-हे नन्दी! आज के दिन जो भी वृषभ केवल भूसा ग्रहण करता है और पानी पीता है वह ‘पोला’ कहलाता है| इस दिन व्रती को अपने परिवारजनों और रिश्तेदारों के साथ महोत्सव मनाना चाहिए| हे नन्दी! मैंने तुम्हारे सब वरदान पूरे किए आज का दिन पोला’ नाम से प्रसिद्ध होगा| समस्त मनोकामनाओं को पूरा करने वाला बैलों का महोत्सव आज के दिन ही मनाना चाहिए|

हे वत्स! अब मैं तुम्हें कुशोत्पाटिनी विधि बतलाता हूँ| श्रावण मास में अमावस्या के दिन प्रातः ही स्नानादि कृत्यों से निवृत हो स्वयं को कुशा से पवित्र कर लें| तब यह विचार करें कि प्रभु ब्रह्माजी द्वारा यह प्राकृतिक उत्पत्ति (जो कि कुश, काश, भव, दूर्वा, खश, कुदंरू, गेहूं, चावल, मुंज और घास हैं) मेरे समस्त दोषों को दूर कर देगा| ‘स्वस्तिकारक’ बोलकर उत्तर दिशा के मध्य में ईशान-कोण की ओर मुंह करके ‘हुँ घट’ का भी उच्चारण कर कुशा को एक बार में समूल उखाड़ लें| जो कुशा उग्र भाग में हरे हों और जड़वान हों, उन्हें जपादि शुभ कार्यों में प्रयोग किया करें| देवकार्य और पितृकार्य के लिए सात पत्ते वाले कुशा सर्वोत्तम हैं| जिन कुशों के बीच में पत्र न हों| ऐसे कुशा पत्र के साथ ग्रहण करें| ब्राह्मण को चार कुशा, क्षत्रिय को तीन कुशा दिये जाने चाहिए अथवा सभी के लिए दो का प्रयोग शोभायमान कहा गया है| उत्पन्न काज हेतु, वर्गों हेतु दो का प्रयोग पवित्र होता है|

ब्रह्मा 50, विष्टर 25 का होता है| पवित्रा को आचमन करते समय हाथ में ही रखें| तब अग्निकारण, विकिट तथा पाद्य की पूर्ति के बाद पवित्रा को छोड़| समस्त देव और पितृकार्य दर्भ के अधीन हैं| अमावस्या वाले दिन इन सभी को ग्रहण कर लें| ये कभी भी बासी नहीं होते|

श्रावण मास माहात्म्य – अध्याय-25 (पिठोर उपवास) का फलः- 

इस छब्बीसवें अध्याय के पाठ-श्रवण से पशुधन की वृद्धि होती है|