पहले फकीर की कहानी (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा
मैं एक बड़े बादशाह का बेटा हूं| मेरा चाचा भी एक समीपवर्ती राज्य का स्वामी था| मेरे चाचा का एक बेटा मेरी उम्र का था और उसकी दूसरी संतान एक पुत्री थी| मैं अपने पिता के आदेशानुसार प्रतिवर्ष अपने चाचा के यहां जाया करता था और महीने-दो-महीने वहां रहा करता था| कई बार इस प्रकार आने-जाने से मेरे अपने चचेरे भाई से मैत्री और प्रीति बहुत बढ़ गई|
एक दिन मैंने देखा कि मेरा चचेरा भाई प्रसन्न है| उसने सदा से अधिक मेरा सत्कार किया, स्वादिष्ट भोजन कराया और भांति-भांति के खेल-तमाशों से मेरा मनोरंजन किया| फिर मुझसे कहने लगा, “पिछली बार तुम्हारे जाने के बाद मैंने बड़ी जल्दी और बहुत सुंदर ढंग से एक महल बनवाया है| अब रात हो गई है, मैं सोना चाहता हूं, फिर भी तुम्हें वह नया महल दिखाऊंगा| लेकिन शर्त यह है कि तुम कसम खाओ कि यह भेद किसी से नहीं कहोगे|”
मैंने ऐसे करने की सौगंध खाई| वह उठकर गया और कुछ ही देर में एक सुंदर स्त्री को साथ लेकर आया| न उसने बताया कि यह स्त्री कौन है और न ही मैंने उसके बारे में पूछा| हम तीनों बैठकर इधर-उधर की बातें करने लगे और पात्रों में भर-भरकर मदिरा पीने लगे| कुछ देर बाद मेरे चचेरे भाई ने कहा कि चलो यहां से चलें| उसने मुझसे कहा, “तुम इस स्त्री को लेकर कब्रिस्तान जाओ और कब्रिस्तान में जहां कहीं भी गुबंद वाली नई कब्र देखो, तो समझ लो कि यह उसी महल का प्रवेश मार्ग है| तुम दोनों गुबंद के अंदर पहुंचकर मेरी राह देखना|”
मैं उस स्त्री के हाथ में हाथ देकर बाहर निकला और कब्रिस्तान की ओर चल दिया| चांदनी रात थी, इसलिए हम लोगों को गुबंद वाली नई कब्र ढूंढने में कोई कठिनाई नहीं हुई| हम गुबंद के अंदर गए तो देखा कि राजकुमार अकेला ही एक चूने की टोकरी, पानी की गागर और जरूरी औजार लिए खड़ा है| हमारे पहुंचने पर उसने फावड़े से जमीन खोदी| मिट्टी के नीचे पत्थरों की सिलें थीं, जिन्हें निकालकर उसने एक ओर रखा| पत्थरों के नीचे एक दरवाजा दिखाई दिया| दरवाजे का किवाड़ ऊपर उठाया तो नीचे जाने के लिए एक लकड़ी की सीढ़ी दिखाई दी|
मेरे चचेरे भाई ने तब उस स्त्री से कहा, “इसी रास्ते पर चलकर वह द्वार मिलेगा, जिसका मैंने तुमसे उल्लेख किया था|”
यह सुनकर वह स्त्री सीढ़ी से नीचे उतर गई| राजकुमार भी उसके पीछे चला गया| जाने के पहले मुझसे बोला, “तुमने हम लोगों के लिए जो परिश्रम किया, उसके लिए मैं तुम्हारा आभारी हूं, लेकिन अब मैं तुमसे विदा लेता हूं| हां, भगवान के लिए इस बात को गुप्त ही रखना|”
मैंने पूछा, “तुम कहां जा रहे हो और यह सब क्या हो रहा है?”
परंतु उसने कुछ न बताया| जाते हुए केवल इतना ही कहा, “दरवाजे पर मिट्टी डालकर भूमि को समतल कर देना और जिस रास्ते से आए हो, उसी से वापस चले जाना|”
विवशत: मैं दरवाजे पर मिट्टी डालकर अपने चाचा के महल को वापस हुआ| मुझ पर नशा उतरने के बाद खुमारी की हालत जारी थी और मेरे सिर में पीड़ा हो रही थी, इसलिए मैं अपने कमरे में जाकर सो गया| सुबह उठने पर रात के वृत्तांत का स्मरण करके मैं बड़ा चिंतित था और यह भी सोचता था कि मैंने रात को जो देखा, वह स्वप्न था या सत्य?
फिर मैंने एक सेवक को बुलाकर कहा, “तू जाकर देख कि मेरे भाई ने उठकर कपड़े बदले हैं या सो ही रहा है?”
सेवक चला गया| फिर थोड़ी देर बाद लौटकर उसने बताया, “वे रात को अपने शयनकक्ष में थे ही नहीं और किसी को यह भी नहीं मालूम है कि वे कहां गए हैं, इसलिए उनके सेवक और संबंधी सबको बड़ी चिंता है| किसी को समझ में नहीं आ रहा है कि वे क्या करें|”
मुझे भी इस बात पर बड़ी चिंता हुई और मैं फिर कब्रिस्तान को गया| मैंने सारा दिन गुबंद वाली कब्र को खोजने में लगा दिया, किंतु वह कब्र नहीं मिली| इसी प्रकार चार दिन तक मैं कब्रिस्तान जा-जाकर अपने भाई की तलाश करता रहा, लेकिन उसका या उसके मकान का कुछ पता न चला|
सुंदरियों! यहां यह बता देना भी आवश्यक है कि उन दिनों मेरा चाचा यानी वहां का बादशाह कई दिन से राजधानी में नहीं था, क्योंकि वह शिकार पर गया हुआ था| उसकी वापसी में देर थी, इसलिए मैं अत्यंत व्याकुल हुआ| मेरी इच्छा हुई कि अपने पिता के राज्य वापस चला जाऊं|
मैंने मंत्री से कहा, “अबकी बार मैं हर बार से अधिक समय यहां पर रहा| अब मेरे पिता को मेरी चिंता हो रही होगी, इसलिए मैं जा रहा हूं| आप बादशाह के आने पर उनसे यही कह दें|”
मंत्री स्वयं बड़ी चिंता में था, क्योंकि शहजादे की कोई खोज-खबर नहीं मिल रही थी| मैं स्वयं उसे कुछ नहीं बता सकता था, क्योंकि शहजादे ने मुझे कुछ न कहने की कसम दे रखी थी|
जब मैं अपने पिता की राजधानी आया, तो महल के चारों ओर सेना की बड़ी जमात देखी| सैनिकों ने मुझे देखते ही बंदी बना लिया|
मैंने बिगड़कर पूछा, “यह क्या करते हो?”
एक सरदार ने आगे बढ़कर कहा, “शहजादे, यह सेना तुम्हारी नहीं, तुम्हारे शत्रु की है| तुम्हारे पिता के मरने के बाद मंत्री ने तुम्हारे राज्य पर अधिकार कर लिया है| उसने तुम्हें गिरफ्तार करने की आज्ञा दी है और कहा है कि तुम जहां भी मिलो, तुम्हें पकड़ लिया जाए| अब तुम भाग्य से स्वयं ही हमारे पास आ गए|”
यह कहकर वह सरदार मुझे अत्याचारी मंत्री के पास ले गया, जो अब राज-सिंहासन पर बैठा हुआ था| वह दुरात्मा आरंभ से ही मेरा शत्रु था| इसका कारण यह था कि बचपन में मुझे गुलेल चलाने का बड़ा शौक था| एक दिन मैं महल की छत पर गुलेल लिए खड़ा था कि एक चिड़िया सामने से उड़ती हुई निकली| मैंने गुलेल से उस पर पत्थर का टुकड़ा मारा| संयोगवश वह पत्थर का टुकड़ा उसी मंत्री की आंख पर लगा, क्योंकि वह भी अपने निकटवर्ती भवन की छत पर टहल रहा था| उसकी एक आंख फूट गई| मुझे मालूम हुआ तो मैं स्वयं उसके पास गया और अनजाने में हुए अपराध के लिए उससे क्षमा मांगी| वह कुछ बोला नहीं, किंतु उसने मुझे कभी क्षमा नहीं किया और बराबर इस ताक में रहा कि कब अवसर पाए और मुझसे बदला ले|
अब जब उसने मुझे असहाय और अशक्त देखा तो पुरानी बात याद करके क्रोध में भरकर सिंहासन से उतरा और झपटकर मेरे पास पहुंच गया| उस दुष्ट ने मेरी दाईं आंख में उंगली घुसेड़ दी| उसने इतने पर ही बस नहीं की| उसने मुझे एक पिंजरे में बंद कर दिया और जल्लाद को आज्ञा दी कि नगर के बाहर ले जाकर मेरा वध कर दिया जाए और मेरे शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके पशु-पक्षियों को खिला दिए जाए| जल्लाद घोड़े पर पिंजरा रखकर ले चला, जिसमें मैं बंद था| उसकी सहायता के लिए अन्य सेवक भी साथ थे| जंगल में जाकर उसने मेरे हाथ-पांव बांधकर मुझे मारने के लिए तलवार निकाली|
तभी मैंने जल्लाद को याद दिलाया कि उसने बरसों मेरे पिता का नमक खाया है| यह सुनकर जल्लाद को मुझ पर दया आ गई| उसने मुझे छोड़ते हुए कहा, “तुम तुरंत ही यह देश छोड़कर चले जाओ और दोबारा इधर की तरफ भूलकर भी मुंह न करना| अगर तुम यहां आए तो तुम तो मारे ही जाओगे, मुझे भी प्राणदंड मिलेगा|”
मैंने जल्लाद का बड़ा अहसान माना और खुदा को लाख-लाख धन्यवाद दिया कि भले ही मेरी एक आंख गई, लेकिन मेरी जान बच गई| काना होना मुर्दा होने से तो अच्छा है|
भूख-प्यास और आंख की तकलीफ से मेरी बुरी हालत थी| मैं चलने-फिरने के लायक नहीं था| अत: दिनभर जंगल की झाड़ियों में छुपा रहा| रात को धीरे-धीरे छुपता-छुपाता अनजाने रास्तों पर धीरे-धीरे चलता हुआ कई दिनों बाद मैं अपने चाचा की राजधानी पहुंचा| जब मैंने चाचा को अपने दुर्भाग्य का पूरा हाल बताया तो वह जैसे पछाड़ें खाने लगे और बोले, “हाय! मुझसे अधिक अभागा कौन होगा| पहले मुझे अपने पुत्र के, जिसे मैं प्राणों से भी अधिक चाहता था, प्राणांत की सूचना मिली| अब मैंने अपने पुत्र को कहां खोजूं?”
वह बहुत देर तक अपने पुत्र को याद करते रोते रहे| उनके निरंतर रुदन से मेरे धैर्य का बांध टूट गया| मुझमें इतनी क्षमता न रही कि मैं अपने चचेरे भाई को दिए हुए वचन को निभाए रखता| अत: मैंने वह सारा वृत्तांत अपने चाचा को कह सुनाया, जो मैंने उस रात को देखा था|
चाचा को यह सुनकर ढाढ़स हुआ और उन्होंने कहा, “बेटे! तुम ठीक कहते हो! मुझे भी मालूम हुआ था कि उसने यहां से समीप ही एक गुंबदाकार कब्र यानी मजार बनवाया है| वह वहीं हो सकता है, लेकिन उसने यह भेद किसी को नहीं बताया|”
रात को वेश बदलकर मैं और चाचा महल के दरवाजे से निकलकर कब्रिस्तान में पहुंचे| मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि हम लोगों को थोड़ी ही देर में कब्र मिल गई| शायद अकेले आने पर मैं ठीक स्थान पर नहीं पहुंच सका था|
मैंने कब्र को फौरन पहचान लिया| हम लोग गुबंद के अंदर गए| वह लोहे का दरवाजा जिसके नीचे सीढ़ी गई थी, बड़ी कठिनाई से खुला – क्योंकि शहजादे ने उसे अंदर से चूना आदि लगाकर मजबूती से बंद कर दिया था| दरवाजा खुलने पर पहले चाचाजी नीचे उतरे, फिर मैं गया| कुछ दूर जाकर देखा कि ड्योढ़ी में बदबूदार धुंआ भरा है|
आगे बढ़े तो देखा कि अंदर बैठने का स्थान है और वहां कई दीपक यथेष्ट प्रकाश दे रहे थे| बीच में एक हौज बना हुआ था, जिसके चारों ओर खाने-पीने की वस्तुएं रखी थीं, किंतु वह स्थान बिलकुल निर्जन था| फिर हमने देखा कि एक ओर चबूतरा-सा बना है और उसके बाद एक कक्ष है, जिसके द्वार पर परदा पड़ा है|
चाचा सीढ़ी से चबूतरे पर चढ़ गए और परदा उठाकर अंदर गए| मैं भी पीछे-पीछे चला गया| हम लोगों ने देखा कि शहजादा उसी स्त्री के साथ, जिसे पहले मैंने देखा था, एक पलंग पर लेटा है| किंतु उन पर भगवान का ऐसा कोप हुआ था कि वे दोनों कोयले की तरह काले हो गए थे| ऐसा मालूम होता था, जैसे किसी ने उन्हें जीवित ही धधकती आग में डाल दिया हो और उनके राख हो जाने के पहले उन्हें निकालकर पलंग पर लिटा दिया हो|
मेरे तो यह देखकर रोंगटे खड़े हो गए, लेकिन मेरे चाचा यह देखकर बिलकुल विचलित नहीं हुए| उनके चेहरे पर न दुख का चिह्न था, न आश्चर्य का| हां, उनका क्रोध बढ़ता जा रहा था| उन्होंने शहजादे के मुंह पर थूक दिया और कहा, “अभागे! तूने यहां तो दुख पाया ही है, परलोक में इससे भी अधिक दुख पाएगा|” इस पर भी उनका क्रोध शांत न हुआ, तो उन्होंने पांव से जूती निकालकर कई बार शहजादे के मुंह पर मारी|
इस पर मैंने क्रोध में आकर कहा, “एक तो मुझे वैसे ही भाई के मरने का दुख है, फिर आप मेरे सामने उसका अपमान कर रहे हैं| ऐसा क्या अपराध किया है इसने, जिससे आपकी क्रोधाग्नि इतनी भड़क रही है?”
बादशाह बोले, “बेटे! तुम नहीं जानते कि यह क्या किस्सा है? यह आदमी इससे कहीं अधिक भर्त्सना और दंड का भागी है| यह शहजादा बचपन से ही अपनी सगी बहन पर आसक्त था| जब दोनों छोटे थे, तो मैंने बच्चा समझकर इनकी बातों पर कुछ ध्यान नहीं दिया – किंतु जब दोनों बड़े हो गए, तब भी दोनों में घनिष्ठता रही, बल्कि और बढ़ गई| तब मैंने उनके संबंध को रोकना चाहा| मैंने कई पहरे बिठाए कि भाई-बहन एक दूसरे के सामने न आएं| शहजादा अकेला ही कुमार्गगामी होता तो बात आगे न बढ़ती, लेकिन यह अभागी लड़की उससे भी अधिक नीच निकली| यह अपने भाई से मिलने के लिए तड़पती रहती थी| अत: बहन से सलाह करके शहजादे ने अपने लिए खासतौर से यह गुप्त आवास बनवाया, ताकि अवसर मिलते ही वे दोनों यहां विहार करें| जब मैं शिकार पर गया तो शहजादे को अवसर मिला और वह किसी तरह अपनी बहन को महल से निकालकर यहां ले आया, ताकि उसके साथ हमेशा यहां रहे| यही कारण था कि उसने बहुत अधिक मात्रा में खाद्य सामग्री भी यहां ला रखी थी|”
कुछ देर के लिए रुकने के उपरांत बादशाह ने फिर कहना शुरू किया, “कुछ दिनों तक ये लोग एक-दूसरे के साथ आनंद से रहे, फिर इन पर ईश्वरीय प्रकोप हुआ और दोनों ने अपने पाप का समुचित फल पाया|” यह कहकर बादशाह चुप हो गया|
अब बादशाह के गुस्से का गुब्बार बाहर निकल गया था| थोड़ी देर बाद ही वे अपने बेटे तथा बेटी की मृत्यु से दुखी होकर विलाप करने लगे| मैं भी उनके साथ रोने लगा| हम लोग बहुत देर तक रोते रहे| फिर उन्होंने मुझे अपने सीने से लगाकर कहा, “अच्छा हुआ कि ये पापी मर गए| अब तुम ही मेरे पुत्र और मेरे उत्तराधिकारी हो|”
फिर मैं और चाचा दोनों मृतक शहजादे की याद करके रोने लगे| कुछ देर बाद हम लोग सीढ़ी से ऊपर चढ़ आए और दरवाजा बंद करके उस पर मिट्टी डालकर बाहर आ गए| जब हम लोग राजमहल के पास पहुंचे तो हमने देखा कि फौजियों के घोड़ों के दौड़ने से उड़ी हुई धूल से आकाश अटा जा रहा है और युद्ध के बाजों की ध्वनि से कान फटे जा रहे हैं| मालूम हुआ कि मेरे पिता का वही मंत्री, जिसने मेरा राज्य हड़प लिया था, एक बड़ी सेना लेकर मेरे चाचा के राज्य पर भी चढ़ आया है| मेरे चाचा की सेना उसकी सेना से कम थी| उसकी सेना ने बगैर किसी कठिनाई के राजधानी और महल पर अधिकार कर लिया| मेरे चाचा ने अपने अधिकार की रक्षा का भरसक प्रयत्न किया| वह उनसे युद्ध करने के लिए युद्धक्षेत्र में कूद पड़ा, परंतु वह युद्ध में मारा गया|
चाचा के मरने के बाद भी मैं शत्रु का सामना करता रहा, किंतु जब मैंने देखा कि शत्रु सेना से बिलकुल ही घिर गया हूं तो निकल भागने की सोची| मंत्री की सेना के एक सरदार ने मुझे पहचाना और पुराने बादशाह की नमकहलाली के खयाल से मुझे बच निकलने का अवसर दें दिया|
मैंने युद्ध भूमि से निकलकर पहला काम तो यह किया कि दाढ़ी-मूंछें और भवें सफाचट करवा दीं, ताकि दुश्मन मुझे पहचान न सके और फिर फकीरों जैसे कपड़े पहन लिए| फिर कई नगरों में फकीर बनकर घूमता रहा| घूमता-घूमता मैं अति प्रतापी, दयावान, दीनवत्सल न्यायप्रिय खलीफा हारूं रशीद की राजधानी में आ पहुंचा| मेरा इरादा था कि मैं उदारमना खलीफा की सेवा में पहुंचकर अपनी व्यथा सुनाऊं, किंतु जब इस नगर में पहुंचा तो शाम ढल चुकी थी| मैं इस चिंता में आगे बढ़ा कि कहीं ठिकाना मिले तो रात व्यतीत करने का प्रबंध करूं|
कुछ दूर जाने पर मुझे यह दूसरा फकीर मिला| उसने मुझे अभिवादन किया| मैंने उसके अभिवादन का उत्तर देकर कहा, “तुम भी मेरी तरह परदेसी लगते हो?”
इसने कहा, “हां, मैं भी अभी-अभी इस नगर में आया हूं|”
हम लोग बातें कर ही रहे थे कि यह तीसरा फकीर भी आ गया और हम दोनों को अभिवादन करके पास बैठ गया| इसने भी कहा कि मैं परदेसी हूं और इस नगर में अभी आया हूं|
हम लोग चूंकि एक ही वेश में थे और तीनों की एक-सी दशा थी, इसलिए हमने तय किया कि भाइयों की तरह मिलकर रहें और जहां जाएं, एक साथ ही जाएं| हम लोग इस चिंता में निमग्न हो गए कि रात कहां बिताएं, क्योंकि हम तीनों में कोई भी यहां निवासी को नहीं जानता था और न कभी पहले यहां आया ही था| अपने सौभाग्य से हम लोग घूमते-फिरते तुम्हारे दरवाजे पर आ पहुंचे| तुमने भोजन और मनोरंजन से हमारा चित्त प्रसन्न किया, इसके लिए हम सदा ही तुम्हारे आभारी रहेंगे| यही मेरा वृत्तांत है, जिसे मैंने पूरी तरह बता दिया है|
पहले फकीर की कहानी सुनने के बाद जुबैदा ने कहा, “हमने तुम्हें क्षमा किया, अब तुम जा सकते हो|”
इस पर उस फकीर ने कहा, “अगर तुम्हारी अनुमति हो तो मैं भी एक ओर बैठकर अपने दोनों साथियों की राम कहानी सुन लूं और इन तीनों व्यापारियों की आपबीती भी सुनूं| इसके बाद मैं तुम्हारे घर से चला जाऊंगा|”
जुबैदा ने उसे एक ओर बैठकर दूसरों का वृत्तांत सुनने की अनुमति दे दी| तब वह फकीर उस मजदूर के पास जा बैठा|
अभी पहले फकीर की अद्भुत आपबीती सुनकर पैदा होने वाले आश्चर्य से वे लोग उबरे भी नहीं थे कि जुबैदा ने दूसरे फकीर से कहा, “अब तुम बताओ कि तुम कौन हो और कहां से आए हो?”
दूसरे फकीर ने कहा, “आपकी आज्ञानुसार मैं आपको बताता हूं कि मैं कौन हूं, कहां से आया हूं और मेरी आंख कैसे फूटी?
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