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तीन रहस्मयी सुंदरियां (अलिफ लैला) – शिक्षाप्रद कथा

तीन रहस्मयी सुंदरियां (अलिफ लैला) - शिक्षाप्रद कथा

खलीफा फारुन-अल-रशीद के शासन में बगदाद में एक मजदूर रहता था| वह बड़ा हंसमुख और बातूनी था| एक दिन प्रात:काल वह बाजार में एक बड़ा टोकरा लिए मजदूरी की आशा में खड़ा था| कुछ देर बाद एक परम सुंदर स्त्री, जिसके मुंह पर जाली का नकाब पड़ा हुआ था, वहां आई और मुस्कराकर मजदूर से बोली, “अपना टोकरा उठा और मेरे साथ चल|”

मजदूर अच्छी मजदूरी मिलने की आशा और स्त्री के मधुर व्यवहार से प्रसन्न होकर उसके साथ चल दिया| वह इस बात से बहुत प्रसन्न था कि सुबह-सुबह ही अच्छा काम मिल गया था|

कुछ दूर जाकर स्त्री ने एक मकान के सामने खड़े होकर ताली बजाई| कुछ ही देर में एक सफेद दाढ़ी वाले ईसाई ने दरवाजा खोला| स्त्री ने उसे कुछ रुपये दिए और ईसाई बूढ़े ने उसका आशय समझकर घर के अंदर से उत्तम मदिरा का एक घड़ा उसे दे दिया| स्त्री ने वह घड़ा मजदूर के टोकरे में रखवाया और बाजार में आ गई|

बाजार में उसने बहुत-सी वस्तुएं खरीदीं| उसने स्वादिष्ट फल यथा सेब, नाशपाती आदि तथा भांति-भांति के सुंदर सुगंध वाले फूल, इत्र, स्वादिष्ट अचार, चटनियां और मुरब्बे, मांस, सूखे मसाले आदि घूम-घूमकर कई दुकानों से खरीदे| उसने इतनी खरीददारी कर ली कि टोकरे में बिलकुल जगह नहीं रही| यह देखकर मजदूर बोला, “अगर मुझे मालूम होता कि आप इतना सामान खरीदेंगी, तो मैं अपने साथ एक घोड़ा या ऊंट लेकर आता|”

खैर, मजदूर टोकरा उठाकर स्त्री के साथ चलता रहा| वह स्त्री उसे एक बड़े ही भव्य महल में ले गई जहां उस स्त्री से भी सुंदर-सुंदर स्त्रियां मौजूद थीं| वहीं एक सिंहासन पर एक ऐसी स्त्री बैठी थी जिसका सौन्दर्य उन सभी स्त्रियों पर भारी पड़ रहा था|

मजदूर उसका अनुपम सौंदर्य देखकर बेसुध हो गया और सामान लदा टोकरा उसके सिर से गिरने को होने लगा| जो स्त्री उसे बाजार से लाई थी, वह कौतुहलपूर्वक उसकी बदहवासी को तमाशा देखने लगी|

तभी सिंहासन पर बैठी स्त्री ने कहा, “तू खड़ी-खड़ी देख क्या रही है? यह बेचारा सामान के भार से दबा जा रहा है| तू जल्दी से सब सामान उतरवा|”

यद्यपि मजदूर दूर तक भारी बोझ लेकर चलने के कारण बहुत थक गया था, तथापि वहां की भव्यता देखकर वह अपना श्रम भूल गया और प्रसन्नचित्त रूप से वहां की शोभा को देखने लगा|

सिंहासन पर बैठी उस अप्रितम सुंदरी को देखकर तो वह अपनी सुध-बुध ही खो बैठा था| उसे बाद में मालूम हुआ कि उसका नाम जुबैदा था और वह उस घर की मालकिन है|

जो स्त्री बाजार से उसके सिर पर सामान लदवाकर लाई थी, उसका नाम अमीना था|

जुबैदा ने उस मजदूर को मजदूरी का इतना पैसा दिया जो उसकी कई दिनों की मजदूरी से भी अधिक था| मगर मजदूरी पाकर भी मजदूर वहां से न हटा|

जुबैदा ने पहले तो सोचा कि वह कुछ देर और सुस्ताना चाहता है, लेकिन जब उसे बहुत देर हो गई, तो उसने पूछा, “क्या बात है, तू जाता क्यों नहीं? क्या तुझे मजदूरी कम मिली है? अमीना, इसे कुछ और पैसे देकर विदा करो|” उसने उसी औरत को सम्बोधित किया जो उसे बाजार से लेकर आई थी|

मजदूर ने कहा, “मालकिन, मैंने मजदूरी आशा से अधिक पाई है, किंतु आपके सम्मुख कुछ निवेदन करना चाहता हूं| मैं जानता हूं कि जो मैं कहना चाहता हूं वह मेरी उद्दंडता है, किंतु मुझे आशा है आप मुझे क्षमा करेंगी और मेरी बातों पर नाराज नहीं होंगी| मुझे यहां बहुत-सी बातें आश्चर्यजनक लग रही हैं| मैंने आप जैसी रूपवती कोई नहीं देखी| मुझे यह देखकर भी बड़ा आश्चर्य हुआ है कि यहां कोई पुरुष नहीं है| बगैर पुरुष के स्त्रियों का रहना और बगैर स्त्रियों के पुरुषों का रहना दोनों ही बहुत अजीब बातें हैं|”

मजदूर बातूनी तो था ही, इसलिए बोलता चला गया| उसने बगदाद नगर में प्रचलित तरह-तरह की कहावतें सुनाई| इसमें से एक यह थी कि जब तक चार व्यक्ति एक साथ भोजन न करें, भोजन में स्वाद नहीं आता और खाने वाले तृप्त नहीं होते| उसका आशय यह था कि उन स्त्रियों के बीच में वही पुरुष और दूसरी उन तीन स्त्रियों के अलावा चौथा व्यक्ति भी वही है, इसलिए भोजन के समय उसे भी खाने के लिए बैठा लिया जाए|

जुबैदा उसकी बातें सुनकर हंसने लगी और बोली, “तू अपनी बेकार की बातें और सलाहें अपने पास रख, हम तीनों स्त्रियां बहने हैं और अपने सारे काम खुद ही अच्छी तरह चलाती हैं और इस तरह चलाती हैं कि किसी को पता नहीं चलता| हम लोग नहीं चाहते कि कोई हमारे भेद को जाने|”

मजदूर ने कहा, “मालकिन! आप तो अत्यन्त चतुर और बुद्धिमान हैं, लेकिन आप मुझे भी निरक्षर और गंवार न समझें| यह तो भाग्य की बात है कि मुझे पेट पालने के लिए मजदूरी करनी पड़ती है, वरना मैंने बहुत-सी इतिहास और ज्ञान की पुस्तकें पढ़ी हैं| आप कहें तो एक कहावत आपकी सेवा में प्रस्तुत करूं| यह कहावत है कि बुद्धिमान को चाहिए कि वह किसी चतुर व्यक्ति का भेद छुपाए रखे| अगर आप मुझ पर अपना कोई भेद प्रकट करेंगी, तो वह ऐसे ही होगा, जैसे कोई चीज किसी कमरे में बंद करके ताला लगा दिया जाए और ताले की चाबी खो जाए|”

जुबैदा समझ गई कि यह मजदूर बुद्धिमान और पढ़ा-लिखा है और इसका हाथ करने में कोई बुरानी नहीं, इसे अपने साथ बिठाकर खाना भी खिलाया जा सकता है| फिर भी उसने उसकी बुद्धि की परीक्षा लेने के लिए मजाक में कहा, “देखो भाई, हमने तो पैसा और मेहनत लगाकर इस भोजन को तैयार किया है, तुमने तो इस पर कुछ खर्च नहीं किया, फिर हम तुम्हें अपने भोजन में क्यों सम्मिलित करें?”

इन बातों को बेचारे मजदूर के पास कोई उत्तर नहीं था, तब उसने कहा, आप ठीक कहती हैं, मैं जा रहा हूं|”

लेकिन अमीना ने अपनी बहनों से उसकी वकालत की और कहा, “इसे यहीं रहने दो| यह अपनी बातों से हमारा मनोरंजन करेगा और अपने विनोदी स्वभाव के कारण हमें हंसाता रहेगा| इसकी बातों से जाहिर होता है कि यह जबरदस्त किस्म का मसखरा है| वैसे भी बाजार से यहां तक सारे रास्ते यह हंसी-मजाक की बातों से मुझे हंसाता आया है|”

मजदूर को अमीना की बातें सुनकर बड़ा संतोष हुआ| उसने कहा, “आप लोगों की बड़ी कृपा होगी, अगर आप मुझे अपने साथ रहने दें| मैं गरीब बेशक हूं किंतु किसी का उपकार मुफ्त में नहीं लेना चाहता| और तो मेरे पास कुछ नहीं है लेकिन जो मजदूरी आपने मुझे दी है, वह स्वीकार कर लीजिए|”

यह कहकर मजदूर ने मजदूरी के पैसे जुबैदा की ओर बढ़ा दिए|

जुबैदा ने मुस्कराकर कहा, “हम दी हुई चीज वापस नहीं लेते| तुम हमारे साथ रहकर हमारे खान-पान में सम्मिलित हो सकते हो| लेकिन शर्त यह है कि हम लोग चाहे जो कुछ करें, उसके बारे में तुम हमसे कुछ नहीं पूछोगे|”

मजदूर ने यह स्वीकार कर लिया|

इतने में अमीना ने अपनी बाहर जाने वाली पोशाक उतार दी और सामान्य कपड़े पहनकर उसने नाना प्रकार के व्यंजन – दलिया, कीमा, कोफ्ता, कोरमा, कबाब, अन्य स्वादिष्ट वस्तुएं और मदिरा की सुराही तथा प्याले लाकर उचित स्थानों पर रख दिए| फिर तीनों बहनें वहां आकर बैठ गई और चौथी ओर मजदूर को भी बिठा लिया| इससे मजदूर बड़ा ही प्रसन्न हुआ|

उसने थोड़ा-सा भोजन किया| फिर अमीना ने मदिरा की सुराही उठाकर प्याला भरा और उसने प्रचलित रीति के अनुसार पहले स्वयं पिया, फिर अपनी बहनों को दिया और चौथा प्याला मजदूर को दे दिया|

मजदूर ने अमीना का आदरपूर्वक हाथ चूमकर प्याला ले लिया और उसे पीने के पहले इस आशय का एक गीत गाया कि जिस प्रकार इत्र से वायु सुगंधित हो जाती है, उसी प्रकार अगर पिलाने वाला मनोरम हो तो मदिरा में नई सुगंध आ जाती है|

यह गीत सुनकर तीनों स्त्रियां बहुत प्रसन्न हुई और उन्होंने एक-दूसरे के बाद कई गीत शराब के नशे में गाए| इस राग-रंग में बहुत देर हो गई और रात हो गई|

जुबैदा ने अपनी बहनों से कहा, “अब तो इस मजदूर को हमने खिला-पिला दिया है, अब इसको यहां कोई काम नहीं है, इससे कहो कि अपने घर जाए|”

मजदूर को ऐसा सुखद संग छोड़ने की बात सुनकर बड़ा दुख हुआ| उसने कहा, “यह तो मेरे लिए बड़े दुर्भाग्य की बात है कि ऐसी हालत में मुझे घर से निकाला जा रहा है, मैं इस नशे की दशा में किस प्रकार अपने घर पहुंच सकूंगा? कृपया रात भर मुझे यहां रहने की अनुमति दें, मैं यहीं किसी कोने में पड़ा रहूंगा|”

अमीना ने फिर उसकी वकालत की और कहा, “यह बेचारा ठीक कहता है, कहां अंधेरे में ठोकरें खाता फिरेगा| हम लोगों ने पहले भी इसे अपने साथ खाने-पीने की अनुमति दे ही रखी है| अब इसे निराश न करो, यहीं पड़ा रहने दो|”

जुबैदा ने अमीना के कहने पर उसे रहने की अनुमति दे दी, लेकिन फिर कहा, “शर्त यह है कि हम भला-बुरा जो भी करें तुम उसके बारे में पूछताछ नहीं करोगे|”
मजदूर बोला, “मुझ पर जो भी शर्त लगाएंगी, मैं मानूंगा|”

फिर अमीना रात का भोजन लाई और चारों ओर दीपक और सुगंधियां जलाईं| इससे सारा भवन आलोकित और सुवासित हो गया| इसके बाद तीनों स्त्रियां और वह मजदूर भोजन करने लगे| थोड़ी ही देर में उन्हें महसूस हुआ जैसे कोई दरवाजा खोलने के लिए कह रहा है|

यह शब्द सुनकर साफी नामक बहन खड़ी हो गई| उसने जाकर दरवाजा खोला और कुछ देर में वापस आकर कहा, “दरवाजे पर एक ही जैसे लगने वाले तीन फकीर खड़े हैं| जुबैदा, तुम उन्हें देखकर बहुत हंसोगी| वे तीनों ही दाहिनी आंख से काने हैं और सभी के सिर, दाढ़ी मूंछे यहां तक कि भवें भी मुड़ी हुई हैं| वे कुछ ही समय पहले बगदाद में प्रविष्ट हुए हैं और चाहते हैं की उन्हें एक रात ठहरने के लिए जगह दे दी जाए, सुबह वे चले जाएंगे| बहन, मेरी प्रार्थना है की उन्हें यहां रहने की अनुमति दे दो| वे रात को यहां रहकर हम लोगों का कुछ भला ही करेंगे, हमें किसी प्रकार का कष्ट नहीं पहुंचाएंगे|”

जुबैदा ने साफी से कहा, “अगर तुम यही चाहती हो, तो उन्हें ले आओ| लेकिन उन्हें भी हमारे घर पर मेहमान रहने की शर्त बता देना और कह देना कि बाहर जो कुछ लिखा है, उसे पढ़ लें|”

साफी जुबैदा से अनुमति पाकर प्रसन्नतापूर्वक चली गई और तीनों फकीरों को लेकर अंदर आ गई| फकीरों ने जुबैदा और अमीना को झुककर सलाम किया| दोनों ने सलाम का जवाब देकर उसकी कुशल-क्षेम पूछी| इसके बाद उन्होंने फकीरों से भोजन करने को कहा|

फकीरों ने मजदूर को देखकर कहा, “यह तो अरब का मुसलमान मालूम होता है| अरब के लोग धर्म के बड़े पक्के होते हैं, किंतु यह तो धर्मविरुद्ध मदिरा पान कर रहा है|”

मजदूर यह सुनकर बड़ा क्रुद्ध हुआ और बोला, “तुम लोग कौन से बड़े धर्मात्मा हो? क्या तुम लोगों ने दाढ़ी-मूंछें मुंडाकर इस्लाम के नियमों को उल्लंघन नहीं किया?”

स्त्रियों ने कहा, “तुम लोग यह बेकार की बहस छोड़ो और रंग-में-भंग न करो|” फकीर लोग बोले, “यहां कोई बाजा हो तो हम लोग कुछ गाएं-बजाएं|”

साफी ने उन्हें वाद्य यंत्र लाकर दिए और तब वे उन्हें बजाने लगे और उन्होंने वाद्यों के सुरों से सुर मिलाकर गाना शुरू किया| वे लोग इस गाने-बजाने के दरमियान हंसी-ठट्ठा भी करते और ऊंचे स्वर में वाह-वाह भी करते थे| इस सबसे बड़ा शोर होने लगा और सारा भवन गूंजने लगा| इसी बीच उन्होंने सुना कि दरवाजे पर फिर कोई ताली बजा रहा है|

साफी पहले की भांति दौड़कर गई कि देखें, अब कौन दरवाजे पर आया है?

इस बार ताली बजाने वाला स्वयं खलीफा फारुन-अल-रशीद था| खलीफा का यह नियम था कि अकसर रात को वेश बदलकर शहर में निकलता था कि प्रजा का हाल खुद अपनी आंखों से देखे| उस रात को वह अपने महामंत्री जाफर और जासूसों के सरदार मसरूर के साथ बगदाद की गलियों में घूम रहा था| उन तीनों ने व्यापारियों जैसे वस्त्र पहने हुए थे|

जब वे लोग उस मकान के पास से गुजरे, तो उन्होंने हंसी की ध्वनि और गाने-बजाने का स्वर सुना|

खलीफा ने कहा, “घर का दरवाजा खुलवाओ ताकि मैं देखूं कि यहां क्या हो रहा है|”

जाफर ने दरवाजे से भीतर झांका और कहा, “यहां कुछ स्त्रियां शराब पीकर हंसी-दिल्लगी कर रही हैं, गा-बजा रही हैं|आपका अंदर जाना शोभनीय नहीं है| यह भी हो सकता है कि वे अपने रंग में भंग पड़ते देखकर नशे की हालत में आपका कुछ अपमान कर बैठें|”

किंतु खलीफा ने उसकी सलाह नहीं मानी और आदेश दिया कि तुम जाकर दरवाजा खुलवाओ|

जाफर ने दरवाजा खुलवाया| साफी ने दरवाजा खोला तो जाफर उसके रूप को देखता रह गया| फिर उसने जल्दी से एक कहानी गढ़ी| उसने कहा, “सुंदरी! हम तीनों व्यापारी मोसिल नगर के निवासी हैं| हम व्यापार की वस्तुएं लेकर यहां आए हैं और एक सराय में ठहरे हैं| आज की रात को यहां के एक व्यापारी ने हमें दावत दी थी| हम उसके घर गए| उसने हमें बड़ा स्वादिष्ट भोजन कराया और उत्तम मदिरा पीने को दी| हम लोग नशे में आ गए, तो उसने नृत्यांगनाओं को बुलाकर नाचने की आज्ञा दी| इस राग-रंग में काफी समय हो गया और नशे की हालत में जोर-जोर से हंसने और नाच-गाने से बाहर काफी आवाज जाने लगी| उसी समय संयोगवश शहर का कोतवाल गश्त लेकर उधर से निकला और उसने उस घर पर छापा मार दिया| दरवाजा खुलवाकर उसने सब उलट-पुलट कर दिया और कई आदमियों को गिरफ्तार कर लिया| हम लोग जान बचाकर एक दीवार से बाहर कूद गए| हम लोग इस शहर में किसी को नहीं जानते, न यहां रास्ते पहचानते हैं| हमें डर लग रहा है कि हम इधर-उधर भटकते हुए सराय पर कैसे पहुंचेंगे? यह भी संभव है कि वही कोतवाल गश्त लगाता हुआ आ निकले और हम लोगों को पकड़कर हवालात में डाल दे| सुंदरी! तुम दया करके अनुमति दो तो हम रात भर के लिए तुम्हारे मकान में किसी कोने में पड़े रहें| अगर तुम हमें संगीत के योग्य समझो तो हमें अपने गाने-बजाने में शामिल कर लो| हम लोग यह तो समझ गए हैं कि तुम लोग गाने-बजाने में अति निपुण हो| हमें भी संगीत में रुचि है और हम भी अपनी कला से तुम्हारे आमोद-प्रमोद में हिस्सा ले सकते हैं|”

साफी ने कहा, “मैं इस घर की मालकिन नहीं हूं, तुम लोग जरा देर यहीं ठहरो| मैं मालकिन से तुम्हारे बारे में बात करती हूं| अगर उसने अनुमति दे दी तो फिर कोई दिक्कत नहीं रहेगी और तुम लोग आराम से यहां रात बिता सकोगे|” यह कहकर साफी अंदर गई और अपनी बहनों से नए व्यापारियों की दशा और उनकी प्रार्थना की बात की|

उन दोनों ने आपस में और साफी के साथ मंत्रणा की और कहा, “उन्हें भी अंदर ले आओ|”

साफी जाकर खलीफा, जाफर और मसरूर को अंदर ले आई| तीनों ने बड़ी शिष्टता और सम्मान से स्त्रियों और फकीरों को प्रणाम किया| उन सबने उन्हें व्यापारी समझकर उनके अभिवादन का यथायोग्य उत्तर दिया| जुबैदा, जो तीनों बहनों में बड़ी और सबसे बुद्धिमान थी, ने उनसे उनकी कुशलक्षेम पूछी और कहा, “हम लोग जो कुछ कहें, उसका तुम लोग बुरा न मानना|”

जाफर ने कहा, “तुम सुंदरियों के मुंह से ऐसी कौन-सी बात निकल सकती है जिसका किसी को भी बुरा लगे?”

जुबैदा ने कहा, “मुझे यह कहना है कि तुम जहां तक हो सके, चुप रहना और जिस बात का तुमसे सीधा संबंध न हो उसके बारे में कोई प्रश्न न करना| अगर तुमने ऐसा न किया तो हम तुमसे क्रुद्ध हो जाएंगे और इसका परिणाम तुम्हारे हक में अच्छा नहीं होगा|”

मंत्री बोला, “अगर तुम्हारा ऐसा ही आदेश है, तो हम ऐसा ही करेंगे और किसी के बारे में प्रश्न नहीं करेंगे|”

यह वादा लेकर जुबैदा ने उन सबके आगे खाद्य-सामग्री रखी और उन्हें मदिरा परोसी|

जब मंत्री जुबैदा से बातें कर रहा था, उस समय खलीफा आश्चर्यचकित होकर उन स्त्रियों के सौंदर्य और तीक्ष्ण बुद्धि को देख रहा था| उसे इस बात से भी बहुत आश्चर्य हो रहा था कि तीनों फकीर दाहिनी आंख से क्यों काने हैं? उसकी प्रबल इच्छा थी कि वह फकीरों से इस बात का रहस्य पूछे किंतु उसके दोनों साथियों ने इशारों ही में उसे ऐसा न करने के लिए कहा|

मकान के अंदर की सारी रुपहली और सुनहरी सजावट को देखकर वह मन-ही-मन कह रहा था कि ये चीजें जादू ही की हो सकती हैं, वास्तविक नहीं हो सकती| इतने में फकीरों ने उठकर अपने-अपने ढंग से नाचना शुरू कर दिया| स्त्रियों को वह नाच पसंद आया और सबने उनकी नृत्य कला की प्रशंसा की|

जब फकीरों का नाच हो चुका, तो जुबैदा अपने स्थान से उठी और अमीना का हाथ पकड़कर बोली, “बहन, यह तुम जानती ही हो कि यहां पर उपस्थित सब लोग हमारे अधीन हैं और इनकी उपस्थिति हमारे रोज के काम नहीं रोक सकती|”

अमीना ने उसका अभिप्राय समझकर इस जगह की सफाई शुरू कर दी| उसने भोजन के पात्र और मदिरा की सुराहियों और प्याले उठाकर बावर्चीखाने में रख दिए और गाने बजाने का सामान हटाकर फर्श पर झाड़ू लगाई| इसके बाद उसने सारे दीयों की बत्तियों के गुल काटे और कुछ सुगंधित तेल के दीए जलाए व कमरे को नए ढंग से सजा दिया|

फकीरों और खलीफा तथा उसके साथियों को दालान में बिठा दिया गया था| मजदूर से उन्होंने कहा, “तुझ जैसे हट्टे-कट्टे आदमी को इन लोगों की तरह बैठना नहीं चाहिए| तू उठकर हमारे काम में हाथ बंटा|”

मजदूर रास-रंग में शामिल नहीं हुआ था अत: फौरन उठ खड़ा हुआ और अपने चोगे को कसकर कमर से बांधने के बाद बोला, “बताओ क्या काम है? जो तुम चाहोगी मैं करूंगा|”
साफी ने कहा, “तुम कुरते की आस्तीन भी चढ़ा लो, क्योंकि हाथों से काम करना है|”

कुछ देर बाद अमीना ने दालान में एक चौकी बिछाई और मजदूर को साथ ले जाकर एक कोठरी से दो काली कुतियां खींचती हुई लाई| दोनों कुतियों के गले में पट्टे और पट्टे में जंजीरें बंधीं थीं|

मजदूर उसकी आज्ञा के अनुसार दोनों कुतियों को दालान में ले गया| अब जुबैदा गुस्से से झटके के साथ उठ खड़ी हुई| उसने एक ठंडी सांस भरी और आस्तीन ऊपर चढ़ाई| फिर उसने साफी के हाथ से एक चाबुक लिया और मजदूर से कहा, “एक कुतिया की जंजीर अमीना के हाथ में दे और दूसरी को मेरे पास ले आ|”

मजदूर उसकी आज्ञानुसार एक कुतिया को खींचकर जुबैदा के पास ले गया, तो कुतिया बड़े आर्त स्वर में चिल्लाने लगी| वह दयनीय दृष्टि से जुबैदा की तरफ देखती जाती थी और उसके पैरों पर अपना सिर भी रगड़ती जाती थी|

जुबैदा ने उसके इस अनुनय पर कुछ ध्यान न दिया और उसे चाबुक मारना शुरू किया| मारते-मारते जब जुबैदा का दम फूल गया, तो उसने मारना बंद कर दिया| फिर मजदूर के हाथ से कुतिया की जंजीर लेकर उसके अगले पंजे पकड़कर पिछले पैरों पर खड़ा किया|

कुतिया और जुबैदा एक-दूसरे को देखकर बड़े दुख के साथ आंसू बहाने लगीं, फिर जुबैदा ने रूमाल से कुतिया के आंसू पोंछे और उसे प्यार करके मुंह चूमा| फिर मजदूर को उसकी जंजीर थमाकर कहा, “इसे वापस दालान में ले जा और दूसरी को यहां ले आ|”

मजदूर ने उस कुतिया को ले जाकर दालान में बांधा और अमीना के हाथ से दूसरी कुतिया लेकर जुबैदा के पास ले आया| जुबैदा ने इस कुतिया को भी पहली कुतिया की भांति खूब मारा, फिर उसकी आंखों-में-आंखें डालकर रोई और उसके आंसू पोंछकर और मुंह चूमकर प्यार किया| इसके बाद मजदूर ने इस कुतिया को भी दालान में ले जाकर बांध दिया|

तीनों फकीरों, खलीफा और उसके साथियों को यह सब देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि पहले तो जुबैदा ने अत्यन्त निर्दयता से कुतियों को पीटा, फिर उनके साथ मिलकर रोई भी| इसके अलावा मुसलमानों के धर्म में कुत्ते अपवित्र जीव माने जाते हैं| जुबैदा जैसी सुसंस्कृत महिला का कुतियों के आंसू पोंछकर उनका मुंह चूमना किसी की समझ में नहीं आ रहा था| विशेषत: खलीफा अपनी उत्सुकता नहीं रोक पा रहा था|

जुबैदा कुतियों को पीटने के बाद कुछ देर तक सुस्तानी रही| फिर साफी ने उससे कहा, “बहन! तुम अपने स्थान पर आ बैठो, तो हम अगला काम करें|”

जुबैदा ‘अच्छा’ कहकर दालान में आकर पहले से बिछी हुई एक चौकी पर बैठ गई| उसने खलीफा और उसके साथियों को अपने दाईं ओर और फकीरों व मजदूर को बाईं ओर बिठा लिया| चौकी पर बैठकर वह कुछ सुस्ताती रही| इसके बाद अमीना से कहा, “बहन उठो, तुम्हें मालूम है कि तुम्हें अब क्या करना है?”

अमीना यह सुनकर उठी और बगल वाली कोठरी में जाकर वहां से एक संदूक उठा लाई, जिस पर पीली साटन मढ़ी थी और इसके ऊपर हरी कारचोबी का एक गिलाफ चढ़ा था| उसमें से एक बांसुरी निकालकर अमीना ने साफी को दी| साफी उस बांसुरी को कुछ देर तक बजाती रही| खलीफा और अन्य उपस्थित लोग उसका कौशल देखकर अत्यंत प्रसन्न हुए| फिर साफी ने अमीना से कहा, “अब तुम बांसुरी बजाओ| मैं बजाते-बजाते थक गई हूं|”

अमीना ने बांसुरी लेकर कुछ देर तक सुर मिलाया, फिर एक बड़ा मधुर राग बजाना शुरू किया और बजाते-बजाते उसमें मगन हो गई| जुबैदा ने उसके वादन की बड़ी प्रशंसा की और कहा, “अब बस करो, तुम्हारे दुख के कारण मेरी बड़ी दुखद दशा हो रही है|”

अमीना इतनी भाव-विह्वल हो उठी कि जुबैदा की बात का कोई उत्तर न दे सकी, बल्कि जान पड़ता था कि वह अपने होशो-हवास खो बैठी है, क्योंकि उसने अपने उर्ध्व वस्त्र को उतार फेंका| अब सब लोगों ने देखा कि उस सुंदरी के दोनों कंधों पर काले-काले दाग पड़े हैं, जैसे किसी ने उसे निर्दयता से मारा हो| दाग उसके कंधों पर ही नहीं, बांहों पर भी पड़े थे| सब लोग यह दृश्य देखकर और भी हैरान हुए| अमीना की हालत इतनी खराब हो गई थी कि वह डगमगाने लगी और गिरने को हुई, तब जुबैदा और साफी ने दौड़कर उसे संभाला|

एक फकीर ने धीमे से कहा, “कितने दुख की बात है कि हम इतनी अद्भुत घटनाएं देख रहे हैं और उनके बारे में किसी से पूछ भी नहीं सकते|”

खलीफा ने यह बात सुन ली और उन फकीरों के पास जाकर उनसे पूछा, “क्या तुम लोगों में किसी को इन स्त्रियों और कुतियों का रहस्य ज्ञात है?”

फकीरों ने कहा, “हममें से कोई भी इन बातों को नहीं जानता| हम लोग आज ही रात को तुम्हारे यहां आने से कुछ ही पहले यहां पहुंचे हैं|”

खलीफा की उत्सुकता और बढ़ी| उसने कहा, “हो सकता है कि यह आदमी, जो तुम्हारे पास बैठा है, इसे कुछ ज्ञात हो|”

फकीरों ने इशारे से मजदूर को अपने निकट बुलाकर पूछा, क्या तुम्हें मालूम है कि जुबैदा ने दोनों कुतियों को क्यों पीटा और अमीना के कंधे तथा बांहों पर काले दाग कैसे हैं?”

मजदूर ने कहा, “मैं भगवान की सौगंध खाकर कहता हूं कि मुझे कुछ भी नहीं मालूम| मैं तो इस घर में आज ही आया हूं और इस घर में यही तीन स्त्रियां रहती हैं|”

खलीफा और फकीरों ने सोचा था कि वह आदमी उन स्त्रियों का सेवक होगा|

अब सबको विश्वास हो गया कि भेद खुलने की कोई संभावना नहीं है|

लेकिन खलीफा हार मानने को तैयार नहीं हुआ| उसने कहा, “हम लोग सात मर्द हैं और ये सिर्फ तीन औरत| हम सब मिलकर इनसे इस भेद को क्यों न पूछें? अगर ये लोग खुशी-खुशी बता दें, तो ठीक है, नहीं तो हम जोर-जबरदस्ती करके भी इनसे बात उगलवा लेंगे|”

मंत्री की राय इसके विपरीत थी| उसने खलीफा के कान में कहा, “जहांपनाह! हम सबका यहां बड़ा स्वागत – सत्कार किया गया है और गाने-बजाने से भी हमारा मनोरंजन हुआ है| ऐसी दशा में जोर-जबरदस्ती ठीक नहीं है, फिर आप यह भी देखें कि इन स्त्रियों ने किस शर्त पर हमें अपना अतिथि बनाया है| हमने भी उनकी यह शर्त मानी है कि हम कुछ पूछताछ नहीं करेंगे| अगर हम अपना यह वायदा तोड़ेंगे तो ये लोग क्या हमें बेईमान नहीं कहेंगी? यदि उन्होंने हमारे लिए ऐसा कहा, तो हमारे लिए डूब मरने की बात होगी|”

मंत्री ने आगे भी समझाया, “आप यह भी विचार करें कि जब इन स्त्रियों ने हमारे सामने इतने विश्वास से चुप रहने की शर्त रखी है, तो मालूम होता है कि इनके पास कोई ऐसी शक्ति है, जिससे ये लोग शर्त तोड़ने वाले को दंड भी दे सकती हैं| ऐसा हुआ तो हमारे लिए और भी शर्म की बात हो जाएगी| चाहे हम बाद में इन्हें कितना भी दंड दे दें… मुझे यह भी कहना है कि अब रात बीतना ही चाहती है| इस समय आप कुछ न कहें| सवेरा होने पर मैं इन सारी स्त्रियों को पकड़कर आपके दरबार में ले जाऊंगा, फिर आप जो चाहें इनसे पूछ लीजिएगा|”
लेकिन खलीफा को ऐसी जिद्द सवार हो गई कि उसने मंत्री के ऐसे सत्परामर्श पर कान न दिए और उसे झिड़क दिया, “तुम चुप रह! मैं सुबह तक प्रतीक्षा नहीं कर सकता|” फिर उसने फकीरों से कहा, “तुम जुबैदा से यह बात पूछो|”

मगर फकीरों ने इनकार कर दिया और बोला, “हमारा इतना साहस नहीं है|”

फिर बादशाह ने जोर देकर मजदूर को यह पूछने पर राजी कर लिया|

जुबैदा ने इन लोगों को खुसर-फुसर करते देखा तो उसने पूछ ही लिया, “तुम लोग आपस में क्या बात कर रहे हो?”

इस पर मजदूर ने कहा, “सुंदरी! यह सब लोग जानना चाहते हैं कि आप दोनों कुतियों को निर्दयतापूर्वक पीटकर क्यों रोईं और जो स्त्री अपनी सुध-बुध खो बैठी उसके कंधे और बांहों पर काले दाग कैसे हैं?”

जुबैदा यह सुनकर आग-बबूला हो गई| बिफरकर उसने उन लोगों से पूछा, “क्या तुम सबने मजदूर से कहा था कि यह बातें मुझसे पूछे?”

सबने एक मत होकर कहा, “जाफर को छोड़कर हम सभी ये बातें जानना चाहते थे और हमने मजदूर से कहा था कि आपसे ये बातें पूछें|”

“तुम सभी लोग बेईमान हो| तुम सबने प्रतिज्ञा की थी कि यहां की किसी बात के बारे में कुछ न पूछोगे, पर तुम अपनी उत्सुकता पर बिलकुल संयम न रख सके| अब तुम्हारा सत्कार मेरे लिए बिलकुल आवश्यक नहीं है| अब तुम लोगों को अपने किए का परिणाम भुगतना पड़ेगा|” यह कहकर जुबैदा ने धरती पर पांव पटककर तीन बार ताली बजाई और जोर से कहा, “तुरंत आओ|”

उसके ऐसा कहते ही एक द्वार खुला और उसमें से सात बलवान हब्शी नंगी तलवारें लिए वहां हाजिर हो गए| तब एक-एक हब्शी ने एक-एक आदमी को जमीन पर पटक दिया और उसके सीने पर चढ़ बैठे| उन हब्शियों ने अपनी-अपनी तलवारें म्यान से बाहर निकाल लीं| खलीफा क्षोभ और लज्जा के मारे मरा जा रहा था| उसे ऐसे व्यवहार की कतई भी आशा नहीं थी|

हब्शियों के मुखिया ने जुबैदा से पूछा, “श्रेष्ठ सुंदरी! आपकी क्या आज्ञा है? क्या हम इन लोगों को यहीं खत्म कर दें?”

जुबैदा न कहा, “नहीं, कुछ देर ठहर जाओ| पहले इन लोगों से यह तो पूछ लें कि ये कौन हैं और यहां क्यों आए थे?”

मजदूर रोने लगा और बोला, “भगवान के लिए मुझे छोड़ दो| मेरा कोई दोष नहीं है| मैं तो इन लोगों के बहकावे में आ गया| काने फकीर जहां जाएंगे, वहीं दुर्भाग्य लाएंगे|”

जुबैदा को यह सुनकर हंसी आ गई| वह बोली, “ऐसे कोई नहीं छुटेगा| पहले हर आदमी अपना हाल बताए कि वह वास्तव में कौन है?” कहां से आया है? उसमें क्या-क्या गुण हैं और यहां आने का क्या कारण है? इन बातों में जरा-सा भी झूठ हुआ तो फौरन उसकी गरदन काट दी जाएगी|”

परेशान तो सभी थे, लेकिन खलीफा हारुन-अल-रशीद सबसे अधिक व्याकुल दिखाई दे रहा था| उसने एक बार सोचा, “ऐसे तो इस स्त्री के पंजे से निकला नहीं जा सकता, किंतु यदि वह अपना ठीक-ठीक परिचय तुरंत दे दे, तो यह जरूर मेरा सम्मान करेगी|’ उसने धीमे से मंत्री से सलाह ली| मंत्री ने कहा, “अभी हम लोग चुप रहें|”

जुबैदा ने तीनों फकीरों से पूछा, “क्या तुम तीनों भाई हो?”

एक ने उत्तर दिया, “हम भाई नहीं हैं परंतु एक-से कपड़े जरूर पहनते हैं और साथ रहते हैं|”

जुबैदा ने फिर पूछा, “क्या तुम लोग जन्म से ही काने हो?”

उनमें से एक ने कहा, “ऐसा नहीं है| हम पर ऐसी विपत्तियां पड़ीं, जो न केवल जानने बल्कि इतिहास में लिखे जाने के योग्य हैं, उन्हीं के कारण हमारी आंखें जाती रहीं और हमने अपनी-दाढ़ी-मूंछें और भवें मुंडवा डालीं और फकीर बन गए|”

जुबैदा ने एक-एक करके शेष दो फकीरों से भी यही प्रश्न किए और दोनों ने वही उत्तर दिए जो पहले फकीर ने दिए थे| तीसरे ने यह भी कहा, “आप अनुमति दें तो हम लोग अपना वृत्तांत विस्तृत रूप में कहें? हम तीनों की भेंट आज ही शाम को इस नगर में हुई है क्योंकि हम तीनों ही बाहर से आए हैं| विश्वास मानिए कि हम तीनों ही राजकुमार हैं और हमारे पिता बड़े प्रख्यात बादशाह हैं| हम सब चाहते हैं कि अपना वृत्तांत विस्तृत रूप में आपसे कहें|”

उन लोगों की बातें सुनकर जुबैदा का क्रोध कुछ कम हुआ| उसने हब्शियों से कहा, “तुम लोग इनके सीने से उतर जाओ| ये लोग बैठकर अपना-अपना हाल कहेंगे| जो-जो अपना पूरा हाल और इस घर में आने का कारण बताता जाए, उसे छोड़ते जाओ, ताकि वह जहां चाहे चला जाए| जो ऐसा न करे, तुम उसका सिर उड़ा दो| अभी तुम इन लोगों के पीछे नंगी तलवारें लिए खड़े रहो|”

चुनांचे उसी दालान में खलीफा और अन्य छ: लोगों को एक कालीन पर बिठा दिया गया| हर आदमी के पीछे एक-एक हब्शी नंगी तलवार लेकर खड़ा हो गया, ताकि जुबैदा का इशारा होते ही वह उसका वध कर दे| सबसे पहले मजदूर ने अपनी बात कही|

मजदूर बोला, “हे सुंदरी! आज सवेरे मैं अपना टोकरा लिए काम की तलाश में बाजार में खड़ा था, तभी तुम्हारी बहन ने मुझे बुलाया| मुझे लेकर पहले वह शराब बेचने वाले के यहां गई, फिर कुंजड़े की दुकान पर से उसने ढेर-सी तरकारियां खरीदीं और फल वाले के यहां से बहुत से फल लिए| गोश्त वाले के यहां से उसने तरह-तरह का मांस खरीदा और अन्य दुकानों से भी बहुत कुछ लिया| फिर सारा सामान मेरे सिर पर लदवाकर आपके घर में लाई| आपने कृपा करके मुझे अब तक ठहरने दिया और खानपान दिया, जिसके लिए मैं आपका आजीवन आभारी रहूंगा| यही मेरी राम कहानी है|”

मजदूर की बातें सुनकर जुबैदा ने कहा, “तेरी बातें ठीक मालूम होती हैं| अब तू तुरंत यहां से चला जा और खबरदार! आगे भी मेरे सामने न आना|”

मजदूर यद्यपि मुसीबत से छूटा था किंतु उसकी चपलता न गई|

उसने कहा, “यदि आप अनुमति दें, तो मैं इन शेष महानुभावों की कहानियां भी सुन लूं, फिर घर चला जाऊंगा|”

जुबैदा ने अनुमति दे दी और कहा, “दालान के एक कोने में खड़ा होकर चुपचाप सुन ले, कुछ बोलना-चालना नहीं|”

मजदूर ने ऐसा ही किया|

फिर जुबैदा ने फकीरों को अपनी-अपनी आत्मकथाएं सुनाने का इशारा किया|

पहले फकीर ने अदब से घुटनों के बल खड़े होकर कहा, “सुंदरी! अब ध्यान लगाकर सुनो कि मेरी एक आंख किस प्रकार गई और मैं क्यों फकीर बना!”

 

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