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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

दो पेड़ अगल-बगल में थे और उनमें गहरी मित्रता थी| जिस जंगल में यह दोनों पेड़ थे उसी जंगल में कुछ खूंखार शेर भी थे| वे प्रायः जानवरों का शिकार करते और बचा-खुचा माँस और हडिड्याँ वहीं छोड़ देते| जिससे वहाँ का वातावरण दूषित हो गया था|

बादशाह अकबर शिकार से लौट रहे थे| हमेशा की तरह बीरबल भी उनके साथ था| लौटते समय अचानक बादशाह अकबर की नजर एक पेड़ पर पड़ी, जिस पर बैठे दो उल्लू आपस में बहस कर रहे थे|

विदर्भ देश के राजा भीष्मक के पांच पुत्र और एक पुत्री थी| पुत्री का नाम रुक्मिणी था जो समकालीन राजकुमारियों में सर्वाधिक सुंदर और सुशील थी| उससे विवाह करने के लिए अनेक राजा और राजकुमार आए दिन विदर्भ देश की राजधानी की यात्रा करते रहते थे|

यह बात उस समय की है जब गुरु गोविंद सिंह जी मुगलों से संघर्ष कर रहे थे। युद्ध में उनके सभी शिष्य अपने-अपने तरीके से सहयोग कर रहे थे। शाम को युद्ध समाप्त हो जाने के बाद गुरु गोविंद सिंह जी के सभी सेनानी उनके साथ बैठकर उनसे उपदेश ग्रहण करते और आगे की रणनीति पर विचार-विमर्श करते थे। हर सेनानी को गुरु जी ने निश्चित जिम्मेदारी सौंप रखी थी ताकि वे अपना ध्यान युद्ध पर लगा सकें।

एक बकरी का छोटा सा मेमना (बच्चा) बहुत ही शरारती था| उसकी माँ दिनभर उसके आगे-पीछे भगती रहती और उसे शरारतें करने को मना करती| लेकिन वह अपनी माँ का कहना नही मानता था|

अकबर और बीरबल शाम के समय सैर कर रहे थे, तभी बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा-“ऊपर क्या है?”

सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे।

ब्रहापुर नगरवासी एक ब्राह्मण की पत्नी इतनी अधिक झगड़ालू थी कि प्रतिदिन उसके कारण ब्राह्मण को अपने बंधु-बांधवों से भला-बुरा सुनना पड़ता था| यहाँ तक कि उस नगर में ब्राह्मण से कोई बोलना तक पसंद नही करता था|

एक गरीब अनपढ़ ब्राह्मण मांगकर अपना गुजारा चलाता था| उस ब्राह्मण की हार्दिक इच्छा यह थी कि लोग उसे पंडितजी कहें किंतु उस अनपढ़ को पंडितजी कौन कहता|

उपनिषद् की कथा है| प्रजापति ब्रह्मा की तीन प्रकार की संतानें थी| पहले देवता थे जिन्हें सब प्रकार के सुख-वैभव प्राप्त थे, परंतु वे सदा भोग-विलास में लीन रहते थे|

एक बार अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा, 'मैंने आज तक संसार में बड़े भ्राता युधिष्ठिर जितना दानवीर कोई दूसरा नहीं देखा।' श्रीकृष्ण बोले, 'पार्थ, यह तुम्हारा भ्रम है। इस दुनिया में कई दानवीर ऐसे हैं जो बिना सोचे-समझे मूल्यवान से मूल्यवान वस्तु का दान देने से नहीं हिचकते।' श्रीकृष्ण की इस बात पर अर्जुन ने आपत्ति की, 'भला कोई व्यक्ति स्वयं को नुकसान पहुंचा कर किसी को मूल्यवान से मूल्यवान वस्तु दान में क्यों देने लगा?' "सच्चा दानवीर"

राजगढ़ के राजा शक्ति सिंह की दो रानियाँ थी- प्रेमलता और सुमनलता| दोनों सगी बहनें थी| कुछ समय बाद प्रेमलता ने एक पुत्र को जन्म दिया| प्रेमलता द्वारा पुत्र को जन्म देने के बाद सुमनलता मन-ही-मन उससे जल उठी| उसे लगा कि अब महाराज की नजरों में उसका महत्व समाप्त हो जाएगा| वह यह चाहती थी कि भविष्य में उसका होने वाला पुत्र ही राजा बने|

बादशाह अकबर से मिलने कुछ विदेशी मेहमान आए हुए थे| वे अभी दरबार में उपस्थित नहीं हुए थे| कुछ देर बाद एक सेवक आया और बोला – “हुजूर की मां का देहान्त हो गया है, अत: उन्हें आने में देर लगेगी|”

एक दिन दरबार में बादशाह अकबर ने बीरबल से कहा – “कोई ऐसा आदमी दरबार में पेश करो जिसके तीन रूप हों|”

एक बैल था| जब वह बूढ़ा हो गया तो उसका मालिक उसे जंगल में छोड़ आया| बैल बूढ़ा ज़रूर था लेकिन था बहुत समझदार| जंगल में वह सबसे पहले अपने रहने-खाने का बंदोबस्त देखने लगा|

उत्तराखंड में प्रचलित पौराणिक गाथा के अनुसार पृथ्वी में सर्वप्रथम निरंकार विद्यमान था। उनके द्वारा सोनी और जंबू गरुड़ की उत्पत्ति के पश्चात ही सृष्टि की रचना मानी गयी है। आइए जाने उत्तराखंड के लोगों के बीच, सृष्टि के निर्माण के बारे में कौन सी कहानी प्रचलित है।

जूतों से ही संबंधित बादशाह अकबर और बीरबल का एक और किस्सा मशहूर है| हुआ यूं कि एक दिन बादशाह अकबर, बीरबल तथा कुछ अन्य दरबारी किसी दावत में गए थे| दावत के बाद जब वे लोग कक्ष से बाहर निकले तो वहां बादशाह को अपने जूते नहीं मिले| जूतों की काफी तलाश की गई पर नहीं मिले… शायद किसी ने चुरा लिए थे|

सुंदन वन में एक शेर रहता था| एक दिन भूख के मारे उसका बुरा हाल था| उस दिन उसे आसपास कोई शिकार नहीं मिला था| अभी वह थककर बैठा ही था कि कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक खरगोश का शावक दिखाई दिया| वह पेड़ कि छाया में उछल-कूद रहा था| शेर उसे पकड़ने के लिए धीरे-धीरे आगे बढ़ा| खरगोश शावक ने शेर को अपनी ओर आते देखा तो वह जान बचाने के लिया दौड़ा|

एक बार भगवान श्रीकृष्ण बलरामजी के साथ हस्तिनापुर गए। उनके हस्तिनापुर चले जाने के बाद अक्रूर और कृतवर्मा ने शतधन्वा को स्यमंतक मणि छीनने के लिए उकसाया। शतधन्वा बड़े दुष्ट और पापी स्वभाव का मनुष्य था।

शाम के समय बादशाह अकबर और बीरबल महल के बुर्ज पर टहल रहे थे| तभी उन्हें ‘पकड़ो-पकड़ो, चोर-चोर’ आदि की आवाजें सुनाई दीं| पता करने पर मालूम हुआ कि कोई चोर एक परदेसी को महल के सामने से ही लूट कर भाग गया है|

एक भेड़िया था, वह बड़ा ही धूर्त था| एक दिन जंगल में घूमते-घूमते उसे एक मोटा-ताजा मर हुआ बैल पड़ा दिखा| जंगली जीवों ने जगह-जगह से उसे नोंच रखा था| बैल का माँस देखकर भेड़िए के मुहँ में पानी भर आया|

प्राचीन समय की बात है, सिंधुसेन नामक एक दैत्य ने देवताओं को परास्त कर यज्ञ छीनकर उसे रसातल में छिपा दिया। यज्ञ के अभाव में देवताओं का बल, ऐश्वर्य और वैभव नष्ट होने लगा। तब उन्होंने भगवान विष्णु से सहायता की प्रार्थना की।

बादशाह अकबर ने दरबार में बीरबल से कहा – “मैंने पढ़ा था कि एक बार श्रीकृष्ण हाथी की पुकार पर उसे बचाने पैदल ही दौड़ पड़े थे? ऐसा क्यों… वे नौकर-चाकर भी साथ ले सकते जा थे, रथ पर भी जा सकते थे|”

भारत एक त्योहारों का देश है| यहां भिन्न भिन्न जाती , वर्णों , समुदाए और भाषाओँ के लोग आपस मे सह अस्तित्व की भावना से मिल जुल कर रहते हैं| यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख और इसाई धरम के लोग पर्वो और त्योहारों को धूम धाम से मनाते हैं| फिर भी इसाई धर्म के त्योहार बाकी मतावलंबियों के लिए बहुत हद तक अनजाने ही बने रहते हैं। हालांकि बड़ा दिन यानी २५ दिसम्बर सभी धर्म के लोग मनाते हैं| लेकिन गुड फ्राइडे अभी भी बहुत से लोगों के लिए एक रहस्य है।

पाटिलपुत्र नगर में चार ब्राह्मण मित्र रहते थे| वे निर्धन थे| एक दिन नगर में महात्मा भैरवानन्द का आगमन हुआ| भैरवानन्द की ख्याति सुन चारों ब्राह्मण मित्र उनके पास पहुँच कर बोले- ‘आप त्रिकालदर्शी सिद्ध महात्मा है| आपकी कृपादृष्टि हम जैसे अभागों का भाग्य बदल सकती है|’

किसी नगर में द्रोण नाम का एक निर्धन ब्राह्मण रहा करता था। उसका जीवन भिक्षा पर ही आधारित था। अतः उसने अपने जीवन में न कभी उत्तम वस्त्र धारण किए थे और न ही अत्यंत स्वादिष्ट भोजन किया था। पान-सुपारी आदि की तो बात ही दूर है। इस प्रकार निरंतर दुःख सहने के कारण उसका शरीर बड़ा दुबला-पतला हो गया था।

एक दिन बादशाह अकबर ने बीरबल से पूछा – “इस दुनिया में सबसे बड़ा मुर्ख कौन है?”

घने जंगल में एक पेड़ पर सोन चिड़िया रहती थी| जब वह गाना गाती थी तो उसकी चोंच से मोती झड़ते थे| एक दिन एक चिड़ीमार ने यह देख लिया| वह बड़ा प्रसन्न हुआ| उसने मन-ही-मन में सोचा, ‘वाह! आज तो मेरी किस्मत ही खुल गई| यदि मैं इस चिड़िया को पकड़ लूँ तो मुझे नित्य ही मोती प्राप्त होंगे| इस तरह मैं जल्दी ही धनवान बन जाऊँगा|’

इस्लाम के पैगंबर हजरत मुहम्मद जब अपनी इकलौती बेटी फातिमा की शादी के लिए तैयार हुए, तब उन्होंने अपने दामाद अली को बुलाया| अपने दामाद से उन्होंने पूछा- “बेटा तुम्हारे घर में कुछ खाने का सामान होगा?”

हमहि तुम्हहि सरिबरि कस नाथा, कहहु न कहां चरन कहं माथा। 
राम मात्र लघु नाम हमारा, परसु सहित बड़ नाम तोहारा।।