बेटी का दहेज

बेटी का दहेज

इस्लाम के पैगंबर हजरत मुहम्मद जब अपनी इकलौती बेटी फातिमा की शादी के लिए तैयार हुए, तब उन्होंने अपने दामाद अली को बुलाया| अपने दामाद से उन्होंने पूछा- “बेटा तुम्हारे घर में कुछ खाने का सामान होगा?”

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युवक अली ने बड़ी आजिजी से जवाब दिया- “हजरत, हाँ, कुछ खाने को जरुर होगा| याद आया, कुछ खजूरें होंगी और थोड़ा-सा सतू भी होगा|” हजरत ने कहा- “बेटा, यही सामान ले आओ|” निकाह के बाद वे ही खजूरें और सतू मेहमानों में बाँट दिया गया| सब मेहमानों ने पूरी तरह इज्जत से उसे मंजूर किया|

हजरत मुहम्मद ने भी अपनी बेटी फातिमा के साथ दहेज में आटा पीसने की एक चक्की, पानी भरने के लिए एक मश्क और पैबन्द लगे पहने हुए लेकिन धुले कपड़ों के साथ विदा कर दिया|

बुखारी नहीं लिखा है- पैगंबर मुहम्मद का कहना था- “दे खुदा की राह पर|” सबसे अच्छा दान वह है, जिसमें बायाँ हाथ भी नहीं जानता कि दाहिने हाथ ने क्या दिया है| सबसे अच्छा दान वह है जिसे दिल से दिया जाता है; सबसे अच्छे हैं वे शब्द जो घायलों के घाव भरने के लिए होठों से निकाले जाते हैं|

सबसे अच्छा दान वह है, जो कोई गरीब अपनी मेहनत की कमाई में से अपनी औकात के मुताबिक देता है| इससे हमें जान लेना चाहिए कि हर इंसान को अपनी हैसियत के मुताबिक देना चाहिए|