Homeशिक्षाप्रद कथाएँ (Page 47)

शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

राजा उपरिचर एक महान प्रतापी राजा था| वह बड़ा धर्मात्मा और बड़ा सत्यव्रती था| उसने अपने तप से देवराज इंद्र को प्रसन्न करके एक विमान और न सूखने वाली सुंदर माला प्राप्त की थी| वह माला धारण करके, विमान पर बैठकर आकाश में परिभ्रमण किया करता था| उसे आखेट का बड़ा चाव था| वह प्राय: वनों में आखेट के लिए जाया करता था|

दिल्ली में एक विद्वान पंडित रहते थे| उनका दरबार में बहुत सम्मान था| पंडितजी बिना सोचे-समझे किसी काम में हाथ नहीं डालते थे और जो वह कह देते उसका पालन करते|

एक समय स्वर्गलोक में सबसे बड़ा कौन के प्रश्न को लेकर सभी देवताओं में वाद-विवाद प्रारम्भ हुआ और फिर परस्पर भयंकर युद्ध की स्थिति बन गई। सभी देवता देवराज इंद्र के पास पहुंचे और बोले, हे देवराज! आपको निर्णय करना होगा कि नौ ग्रहों में सबसे बड़ा कौन है? देवताओं का प्रश्न सुनकर देवराज इंद्र उलझन में पड़ गए। और कुछ देर सोच कर बोले, हे देवगणों! मैं इस प्रश्न का उत्तर देने में असमर्थ हूं। पृथ्वीलोक में उज्ज्यिनी नगरी में राजा विक्रमादित्य का राज्य है। हम राजा विक्रमादित्य के पास चलते हैं क्योंकि वह न्याय करने में अत्यंत लोकप्रिय हैं। उनके सिंहासन में अवश्य ही कोई जादू है कि उस पर बैठकर राजा विक्रमादित्य दूध का दूध और पानी का पानी अलग करने का न्याय करते हैं।

एक महाजन ने चित्रकार से अपना चित्र बनवाया| बड़ी मेहनत के बाद जब चित्र तैयार हुआ तो महाजन ने चित्रकार से कहा कि ठीक से नहीं बना है, दुबारा बनाकर लाए| चित्रकार दुबारा चित्र बनाकर लाया किंतु इस बार फिर महाजन ने पहले वाली हरकत की और चित्रकार को फिर से चित्र बनाने को कहा|

प्राचीनकाल की बात है| उस समय जानवरों का कोई राजा नही था| इसी बात को लेकर अक्सर पशु और पक्षियों में झगड़ा भी हो जाता था| जहाँ कुछ जानवर शेर को राजा बनाने की पेशकश करते, वहीं पक्षी बाज के नाम को आगे बढ़ाते| लेकिन सहमति न होने के कारण हमेशा लड़ाई-झगड़े की नौबत आ जाती थी|

प्राचीन समय की घटना है| गजनी के बादशाह मुहम्मद गोरी ने भारत पर हमला किया था| उन दिनों देश में कोई केंद्रीय सत्ता मजबूत नहीं थी|

स्वतंत्रता का मंत्र, राष्ट्रगीत बना

अकबर बादशाह अपने घोड़े पर सवार होकर बाग की सैर कर रहे थे, बीरबल भी उनके साथ था| बाग में हरे-भरे पेड़ थे और हरी घास की ही चादर-सी बिछी थी|

एक राजा था| उसका पुत्र बेहद आवारा किस्म का था| राजा अपने पुत्र की आवारागर्दी से बहुत परेशान था| उसने कई बार अपने पुत्र को समझाया कि वह इस राज्य का होने वाला राजा है और अगर उसकी ऐसी ही हरकतें रही तो प्रजा उसे नकार देगी| लेकिन उस पर अपने पिता की सीख का कोई असर नही पड़ा|

ब्रह्मा हिन्दू धर्म में एक प्रमुख देवता हैं। वे हिन्दुओं के तीन प्रमुख देवताओं (ब्रह्मा, विष्णु, महेश) में से एक हैं। ब्रह्मा को सृष्टि का रचयिता कहा जाता है। सृष्टि का रचयिता से आशय सिर्फ ‍जीवों की सृष्टि से है। पुराणों ने इनकी कहानी को मिथकरूप में लिखा।

प्राचीन समय की बात है| दो साधु थे| किसी भक्त ने दोनों को बहुमूल्य कम्बल तोहफे में दिए| पूरे-दिन यात्रा करने के बाद दोनों साधु रात्रि के विश्राम के लिए एक धर्मशाला में रुके|

एक पंडित बादशाह अकबर के दरबार में आया और चुनौतीपूर्ण स्वर में दरबारियों से बोला – “मैं आप लोगों को चुनौती देता हूं कि मेरी मातृभाषा के बारे में बताएं में बताएं या हार स्वीकार करें|”

शिवाजी मराठा एक सर्वश्रेष्ट योद्धा थे| उन्हे एक महान योद्धा , देशभगत, कुशलप्रशासक एवं राष्ट्र निर्माता के रूप मै याद किया जाता है| वास्तव मे इनका व्यक्तितत्व बड़ा धनी अथवा बहुमुखी था| वे एक आदर्श देश भगत के साथ साथ मात्र भगत भी थे| वास्तव मै वे एक आदर्श पुत्र थे और अपनी माता जीजा भाई के प्रति श्रद्धा भाव रखते थे| उनका व्यक्तित्व इतना धनी था की उनसे मिलने वाला हर कोइ उनसे प्रभावित हुए बगैर नहीं रहता था| वास्तव मे शोर्ये , साहस तथा तीव्र बुदी के धनी शिवाजी का जनम १९ फरवरी , १६३० को शिवनेरी दुर्ग मे हुआ था| इनकी जन्मतिथि के बारे मे के मतभेद प्रचलित हैं | कुछ विद्वानों के अनुसार इनकी जन्मतिथि २० अप्रैल १६२७ है| 

एक किसान को अपने खेत में खुदाई के दौरान एक बहुत बड़ा देग (बड़ा पतीला) मिला| वह देग इतना बड़ा था कि उसमें एक साथ पाँच सौ लोगों के लिए चावल पकाए जा सकते थे| किसान के लिए वह देग बेकार ही थी| उसने वह देग एक तरफ़ रख दी और पुनः खुदाई में जुट गया|

एक बार राजा अजातशत्रु एक साथ कई मुसीबतों से घिर गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि इन आपदाओं को कैसे दूर किया जाए। वह दिन-रात इसी चिंता में डूबे रहते। तभी एक दिन उनकी मुलाकात एक वाममार्गी तांत्रिक से हुई। उन्होंने उस तांत्रिक को अपनी आपदाओं के बारे में बताया।

एक बार अकबर बादशाह युद्ध के बाद दिल्ली की तरफ वापस आ रहे थे| रास्ते में उन्हें इलाहाबाद में गंगा किनारे पर पड़ाव डालना पड़ा|

चित्रनगर में वीरवर नामक एक रथकार रहता था| वह सीधा-सादा और व्यवहार-कुशल था| वह जितना भोला था, उसकी पत्नी कामदमनी उतनी ही दुष्ट और चरित्रहीन थी| उसकी दुष्टता के चर्चे हर किसी की जुबान पर थे| वीरवर पत्नी के दुराचरण से बहुत दुखी था|

एक फूल को मे प्रेम करता हूँ, इतना प्रेम करता हूँ की मुझे डर लगता है कि कही सूरज की रोशनी मे कुम्हला न जाए, मुझे डर लगता है की कही जोर की हवा आए तो इसकी पंखुडिया गिर न जाए | मुझे डर लगता है की कोई जानवर आकर इसे चर न जाए| मुझे डर लगता है की पडोसी के बच्चे इसको उखाड़ न ले, अतः मे फूलो के पोधे को मय गमले के तिजोरी मे बंद करके ताला लगा देता हूँ | प्रेम तो मेरा बहुत है, लेकिन करुणा मेरे पास नही हैं|

बीरबल से जलने वाले बहुत थे| एक बार किसी ईर्ष्यालु ने चौराहे पर एक कागज चिपका दिया| उसमें शुरू से आखिर तक बीरबल कोसा गया था| उस पर हर आने-जाने वाले की नजर पड़ती थी|

एक आदमी बहुत बड़े संत-महात्मा के पास गया और बोला, ‘हे मुनिवर! मैं राह भटक गया हूँ, कृपया मुझे बताएँ कि सच्चाई, ईमानदारी, पवित्रता क्या है?’

प्राचीन समय की बात है| अनेक वर्षों तक गुरु चाणक्य ने चंद्रगुप्त को अनेक विधाएँ सिखाने के बाद सैन्य संचालन और युद्ध-विद्या की शिक्षा दी| उन्होंने जब देखा कि चंद्रगुप्त सैन्य-संचालन में योग्य हो गया है, तब उन्होंने संचित धन से सेना एकत्र की|

बाइबिल में एक कथा है। एक कपूत घर छोड़कर भाग जाता है। उसके पिता के घर में सभी प्रकार की सुविधाएँ बहुलता से प्राप्त थीं। लालसा की आवश्यकता नहीं थी, क्योंकि सब कुछ उपलब्ध था।

मिथिला नगर में मनसुख नामक जुलाहा रहता था| एक दिन काम करते समय उसका करघा टूट गया| करघा बनाने के लिए लकड़ी की आवश्यकता थी, अतः वह कुल्हाड़ी लेकर वन में पहुँचा और एक सूखे शीशम के पेड़ को काटने लगा|

बादशाह अकबर के पुत्र शहजादा सलीम तथा दिल्ली के एक व्यापारी के पुत्र की आपस में गहरी मित्रता हो गई थी| वे दोनों अक्सर सारा-सारा दिन साथ ही बिताते थे| जिस कारण दोनों के ही पिता परेशान थे| व्यापारी के पुत्र ने मित्रता के कारण व्यापार में ध्यान देना छोड़ दिया था तथा शहजादा सलीम भी राज-काज की तरफ ध्यान नहीं देता था|

एक सुरम्य वन में स्थित झील में बहुत से जलचर बड़े ही प्रेमभाव से रहते थे| उन्हीं में एक केकड़ा और सारस भी थे| दोनों में अच्छी मित्रता थी| सारस को कोई दुख था तो बस यह कि एक साँप आकर उसके अंडे खा जाया करता था|

मैं से बड़ी और कोई भूल नहीं। प्रभु के मार्ग में वही सबसे बड़ी बाधा है। जो उस अवरोध को पार नहीं करते, सत्य के मार्ग पर उनकी कोई गति नहीं होती।

दरबार में एक दिन बीरबल उपस्थित नहीं था, इसलिए कई दरबारी बीरबल की बुराइयां करने लगे| उनमें से चार दरबारी जो बीरबल के खिलाफ कुछ अधिक ही जहर उगल रहे थे, उनसे बादशाह अकबर ने एक सवाल पूछा-“इस संसार में सबसे बड़ी चीज क्या है?”

एक शिकारी ने बहुत से जानवरों का शिकार किया था| खासतौर पर वह खरगोशों का शिकार करता था| वह खरगोश को पकड़ता, बड़े से चाकू से उसकी गर्दन काटता और भून कर खा जाता|

एक बार एक महात्मा ने एक कहानी सुनाई। उनके दो शिष्य थे। उनमें से एक वृद्ध था, उनका बहुत पुराना और पक्का अनुयायी कड़ी साधना करने वाला एक दिन उसने गुरु से पूछा, ‘‘मुझे मोक्ष या बुद्धत्व की प्राप्ति कब होगी ?’’ गुरु बोले, ‘‘अभी तीन जन्म और लगेंगे।’’

बीरबल दोपहर को खाना खाने के बाद कुछ देर लेटकर आराम करता था| यह उसकी आदत में शुमार था और बादशाह अकबर भी इस बात को जानते थे| एक बार बादशाह अकबर ने बीरबल से खाने के बाद लेटने का कारण भी पूछा था|