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मक्कार चमगादड़

प्राचीनकाल की बात है| उस समय जानवरों का कोई राजा नही था| इसी बात को लेकर अक्सर पशु और पक्षियों में झगड़ा भी हो जाता था| जहाँ कुछ जानवर शेर को राजा बनाने की पेशकश करते, वहीं पक्षी बाज के नाम को आगे बढ़ाते| लेकिन सहमति न होने के कारण हमेशा लड़ाई-झगड़े की नौबत आ जाती थी|

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इस लड़ाई-झगड़े में चमगादड़ अपनी मक्कारी के चलते जिधर पलड़ा भारी होता वहीं चले जाते| जानवरों के बीच वह स्वयं को स्तनधारी बताते जबकि पक्षियों में अपने पंखों का वास्ता देकर पक्षी बन जाते|

दिन-प्रतिदिन के लड़ाई-झगड़ों से सभी तंग आ चुके थे| अन्ततः दोनों पक्षों में समझौता हुआ और दोनों ही पक्ष अपना अलग-अलग राजा बनाए जाने पर सहमत हो गए|

शेर को जानवरों का राजा बनाया गया तथा बाज को पक्षियों का| समझौता हो जाने के कारण दोनों पक्ष बहुत खुश हुए|

इसी खुशनुमा माहौल में अचानक वहाँ चमगादड़ आ गए| पशु और पक्षी दोनों ही उन्हें ताने मारने लगे| उनकी मक्कारी से दोनों पक्ष वाकिफ़ हो चुके थे और उन्होंने चमगादड़ों को वहाँ से मार भगाया|

चमगादड़ उनसे बचते-बचाते एक खंडर में जा छिपे| जब रात हुई तो भोजन की तलाश में बाहर निकले और तब से अपनी मक्कारी का फल भोगते वे आज भी दिनभर पशु-पक्षियों से छिप कर रहते है और रात को उनके सो जाने के बाद भोजन की तलाश में निकलते है|


कथा-सार

दो नावों पर सवार होने वाला सदैव डूबता ही है| लक्ष्य व प्रतिबद्धता किसी एक ओर होना आवश्यक है| इधर जाऊँ या उधर जाऊँ वाली स्थिति न आने दे| चमगादड़ अपनी इसी फितरत के चलते न पशु ही माने गए और न पक्षी| इसलिए आज भी अभिशप्त जीवन बिताने को विवश हैं|