शिबि अपनी त्याग बुद्धि के लिए बहुत प्रसिद्ध थे। उनकी त्याग भावना तात्कालिक और अस्थायी है या उनके स्वभाव का स्थायी गुण, इसकी परीक्षा करने के लिए इंद्र और अग्नि ने एक योजना बनायी।
किसी देश में एक राजा राज करता था| वह बहुत ही अभिमानी था| वह अपने बराबर किसी को नहीं समझता था| कारण, उसका राज्य बड़ा विशाल था|
एक व्यापारी को नींद न आने की बीमारी थी। उसका नौकर मालिक की बीमारी से दुखी रहता था। एक दिन व्यापारी अपने नौकर को सारी संपत्ति देकर चल बसा।
यह एक पौराणिक कथा है। कुबेर तीनों लोकों में सबसे धनी थे। एक दिन उन्होंने सोचा कि हमारे पास इतनी संपत्ति है, लेकिन कम ही लोगों को इसकी जानकारी है। इसलिए उन्होंने अपनी संपत्ति का प्रदर्शन करने के लिए एक भव्य भोज का आयोजन करने की बात सोची। उस में तीनों लोकों के सभी देवताओं को आमंत्रित किया गया।
किसी नगर में एक आदमी रहता था| उसने परदेश के साथ व्यापार किया| मेहनत फली, कमाई हुई और उसकी गिनती सेठों में होने लगी| महल जैसी हवेली बन गई| वैभव और बड़े परिवार के बीच उसकी जवानी बड़े आनंद से बीतने लगी|
“सुकन्या! जंगल में सतर्क रहना| तुम ऐसी चीजें देखोगी और ऐसी समस्याओं से तुम्हारा सामना होगा, जिन्हें तुमने कभी देखा न होगा|” राजा शर्याति ने राजकुमारी सुकन्या को अंतिम सीख दी| सुकन्या सहेलियों के साथ जंगल में एक स्थान पर चली गयी|
पुराने जमाने की बात है। एक गुरुकुल के आचार्य अपने शिष्य की सेवा भावना से बहुत प्रभावित हुए। विद्या पूरी होने के बाद शिष्य को विदा करते समय उन्होंने आशीर्वाद के रूप में उसे एक ऐसा दिव्य दर्पण भेंट किया, जिसमें व्यक्ति के मन के भाव को दर्शाने की क्षमता थी।
प्राचीन समय में भद्राचलम नाम का एक राज्य था| उस राज्य का स्वामी महेन्द्रादित्य नाम का एक राजा था| राजा महेन्द्रादित्य के दो बेटे थे| बड़े बेटे का नाम सुबल कुमार और छोटे बेटे का नाम निर्मल कुमार था|
एक सिंह का शावक युवा हो गया| तब उसने जाना कि शेर जंगल का राजा होता है| उसने इसकी सत्यता जाननी चाही| वह अपनी माँद से निकला, गरजा और भागते हुए जानवरों को देख प्रसन्न हो गया|
पुराने जमाने की बात है। एक राजा ने दूसरे राजा के पास एक पत्र और सुरमे की एक छोटी सी डिबिया भेजी। पत्र में लिखा था कि जो सुरमा भिजवा रहा हूं, वह अत्यंत मूल्यवान है। इसे लगाने से अंधापन दूर हो जाता है। राजा सोच में पड़ गया। वह समझ नहीं पा रहा था कि इसे किस-किस को दे। उसके राज्य में नेत्रहीनों की संख्या अच्छी-खासी थी, पर सुरमे की मात्रा बस इतनी थी जिससे दो आंखों की रोशनी लौट सके।
प्राचीन काल में हिमालय की तलहटी में विलासपुर नाम का एक नगर बसा हुआ था| उस नगर का राजा था – विनयशील! विनयशील की आयु जब ढलने लगी तो उसकी जवान रानियों ने उसकी उपेक्षा करनी शुरू कर दी|
एक बार देवर्षि नारद ने भगवान विष्णु से पूछा, भगवान आप का सबसे बड़ा भक्त कौन है। भगवान विष्णु नारद के मन की बात समझ गए।
प्राचीन काल में पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) नगर में राजा विक्रमसेन का शासन था| इस प्रतापी राजा के पास ‘विदग्ध चूणामणि’ नाम का एक ऐसा तोता था, जिसे अपने दिव्य ज्ञान से समस्त शास्त्रों का ज्ञान था| वह विलक्षण लक्षणों से युक्त तोता बड़े ही सहज रूप में मनुष्यों की भाषा बोल और समझ लेता था| राजा उस तोते से बहुत प्यार करता था और उसे चूणामणि कहकर संबोधित करता था|
एक व्यक्ति ने सर्वाधिक मूल्यवान एक किलो अंगूर ख़रीद| जब वह जाने लगा, तब दुकानदार ने पैसे माँगे| उसने कहा कि रुपये नहीं है| दुकानदार ने मूल्य को तीन बार कम किया, किन्तु उस व्यक्ति के पास वह भी देने के लिए पैसे न थे| गुस्से से दुकानदार ने पूछा, “जब तुम्हारे पास पैसे न थे, तब तुमने महँगे अंगूर क्यों ख़रीदे?”
सवाल उठते है कि आदमी किस प्रकार शिष्ट अथवा सज्जन बन सकता है? एक सीख तो यही है कि शिष्टों या सज्जनों का अनुसरण किया जाए तो व्यक्ति सज्जन बन सकता है|
एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनकी इस भावना को श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए।
प्राचीन काल में मालव देश में एक ब्राह्मण रहता था, जो बहुत ही धर्मनिष्ठ एवं भद्र पुरुष था| उसका नाम था – यज्ञदत्त! यज्ञदत्त के दो बेटे भी थे, जिनके नाम कालेनेमी एवं विगतभय थे|
एक व्यक्ति ने कबूतर और गाय पाल रखे थे| एक दिन कबूतर गाय के पास दाना से अन्न चुगने लगा| गाय बोली, “तुम मार भोजन नहीं खा सकते| जाओ तथा कुछ और खोजो|” कबूतर को आपत्ति अच्छी नहीं लगी|
एक धनी किसान था। उसे विरासत में खूब संपत्ति मिली थी। ज्यादा धन-संपदा ने उसे आलसी बना दिया। वह सारा दिन खाली बैठा हुक्का गुड़गुड़ाता रहता था।
ताम्रलिप्ति नगर में धनदत्त नामक एक धनवान वैश्य रहता था| अत्यंत धनी होने पर भी वह संतानहीन था| पुत्र प्राप्त करने के लिए उसने अनेक उपाय किए| अंत में अनेक विद्वान ब्राह्मणों को बुलाकर उसने इस विषय में कुछ करने के लिए उनसे आग्रह किया| ब्राह्मणों ने कहा कि ऐसा करना कोई कठिन कार्य नहीं है| इसके बाद वे एक कथा सुनाने लगे –
अपने प्रिय नौकर को स्टेशन पर देखकर मालिक प्रसन्न हो गया| नौकर उन्हें लेने आया था|
गौतम बुद्ध के एक शिष्य पूर्ण ने सीमाप्रांत में धर्म प्रचार करने की अनुमति मांगी। बुद्ध ने कहा, ‘उस प्रांत के लोग अत्यंत कठोर तथा क्रूर हैं। वे तुम्हें गाली देंगे।’ पूर्ण ने कहा, ‘मैं समझूंगा वे भले लोग हैं कि वे मुझे थप्पड़-घूंसे नहीं मारते।’ बुद्ध बोले, ‘यदि वे तुम्हें थप्पड़-घूंसे मारने लगे तो…।’ पूर्ण ने कहा, ‘वे शस्त्र-प्रहार नहीं करेंगे इस कारण मैं उन्हें दयालु मानूंगा।’
यह कथा उस समय की है, जब वर्धमान नगर में राजा वीरभुज का शासन था| राजा वीरभुज को संसार के सभी भौतिक सुख उपलब्ध थे, किंतु संतान न होने का दुख उसे विदग्ध किए रहता था| संतान की लालसा में उसने एक-एक करके सौ विवाह किए थे, किंतु उसकी कोई भी रानी अपनी कोख से राज्य के उत्तराधिकारी को जन्म न दे सकी|
सेन नामक एक ठग ने अपने मित्र दीना के साथ मिलकर लोगों को मिलकर लोगों को ठगने की योजना बनायी| वह नकली महात्मा बन गया| दीना को उसके बारे में झूठा प्रचार करना था|
एक रानी नहाकर अपने महल की छत पर बाल सुखाने के लिए गई। उसके गले में एक हीरों का हार था, जिसे उतार कर वहीं आले पर रख दिया और बाल संवारने लगी।
पूर्व काल में हर्षपुर नाम का एक विशाल नगर था| इस समृद्ध नगर का स्वामी राजा हर्षदत्त था, जिसके सुप्रबंध के कारण नगर की प्रजा बड़े सुख से रहती थी|
एक समय एक हाथी ने एक आदमी का पीछा करना आरम्भ कर दिया| परेशान आदमी भागा, मगर हाथी निकट आता जा रहा था| आदमी ने एक सूखे कुएँ को देखा| उसमें छलाँग लगा दी| तभी नीचे घुमते हुए सर्पों पर दृष्टि गयी| पीपल की एक मोटी डाली निकट थी| आदमी ने उसे पकड़ लिया|
बात उन दिनों की है जब महाराज युधिष्ठिर इंद्रप्रस्थ पर राज्य करते थे। राजा होने के नाते वे काफी दान आदि भी करते थे। धीरे-धीरे उनकी प्रसिद्धि दानवीर के रूप में फैलने लगी और पांडवों को इसका अभिमान होने लगा।
बहुत समय पहले की बात है, तब दक्षिण देश के कम्बुक नाम के नगर में एक ब्राह्मण रहता था| उसका नाम था – हरिदत्त|
एक बार एक ऋषि ने अपने शिष्य से कहा कि वह एक रेंगते हुए कीड़े से ‘ओम नमः शिवाय’ कहे| शिष्य ने ऐसा ही कहा| कीड़ा अदृश्य हो गया और उसकी जगह केंचुआ दिखने लगा|