भगवान गौतम बुद्ध उस समय वैशाली में थे। उनके धर्मोपदेश जनता बड़े ध्यान से सुनती और अपने आचरण में उतारने का प्रयास करती थी। बुद्ध का विशाल शिष्य वर्ग भी उनके वचनों को यथासंभव अधिकाधिक लोगों तक पहुंचाने के सत्कार्य में लगा हुआ था। एक दिन बुद्ध के शिष्यों का एक समूह घूम-घूमकर उनके उपदेशों का प्रचार कर रहा था कि मार्ग में भूख से तड़पता एक भिखारी दिखाई दिया।
सम्पूर्ण कक्ष एक करुण-चीत्कार से गूँज उठा| अभी-अभी तो महाभारत युद्ध समाप्त हुआ है और विजय की इस वेला में यह करुण-क्रन्दन? सभी पाण्डवपक्ष के वीर पांचली के कक्ष से आती चीत्कार की ओर दौड़े पड़े|
किसी शहर में एक सेठ रहता था| किसी कारणवश उस बेचारे को अपने कारोबार में घाटा पड़ गया| गरीब होने के कारण उसे बहुत दुःख था| इस दुःख से तंग आकर उसने सोचा कि इस जीवन का उसे क्या लाभ? इससे तो मर जाना अच्छा है|
मिस्र के प्रसिद्ध संत जुन्नून के पास एक शिष्य दीक्षा लेने आया, किंतु चार वर्ष वहां रहकर भी वह जुन्नून से यह नहीं कह सका कि मैं धर्म की दीक्षा लेने आया हूं। एक दिन संत ने उससे पूछा- क्या चाहते हो? तब युवक यूसुफ हुसैन ने कहा- मैं आपका शिष्य बनकर धर्म की दीक्षा लेना चाहता हूं।
माँ! पहले विवाह मैं करूँगा| एकदन्त के सहसा ऐसे वचन सुनकर पहले तो शिवा हँसीं और अपने प्रिय पुत्र विनायक से स्नेहयुक्त स्वर में बोलीं-‘हाँ, हाँ! विवाह तो तेरा भी होगा ही, पर स्कन्द तुझसे बड़ा है| पहले उसका विवाह होगा|’
सागर के किनारे से थोड़ी दूर पर एक बड़ा वृक्ष था, जिस पर एक बन्दर रहता था| उस सागर में रहने वाला एक बड़ा मगरमच्छ एक दिन उस वृक्ष के नीचे ठंडी-ठंडी हवा का आनन्द ले रहा था|
मगध की राजधानी में भगवान बुद्ध के प्रवचन सुनने भारी तादाद में लोग जुटते और उनके अमृत वचनों से लाभान्वित होते। थोड़े दिनों बाद बुद्ध ने अगले शहर जाने का विचार किया। अगले दिन के प्रवचन की समाप्ति पर बुद्ध ने वहां से जाने की घोषणा कर दी।
शाम का समय था| आंध्र प्रदेश के खम्माम जिले के माल्लेपानी जगह की बात है| दिन-भर पढ़ने के बाद एक चौदह वर्ष का बालक घर वापस आ रहा था|
जब पाँचों पाण्डव द्रौपदी सहित वन में अज्ञातवास कर रहे थे, तब उनके कष्टों को देखकर भगवान् श्रीकृष्ण तथा महर्षि व्यासजी ने अर्जुन से भगवान् शिव को प्रसन्न करके वर प्राप्त करने के लिये कहा तथा उसके लिये उपाय बताया|
अपने साधना-काल में एक दिन महावीर एक ऐसे निर्जन स्थान पर ठहरे, जहां एक यक्ष का वास था| वहां वे कोयोत्सर्ग मुद्रा में ध्यान-मग्न हो गए| रात को यक्ष आया तो वह अपने स्थान पर एक अपरिचित व्यक्ति को देखकर आग-बबूला हो गया| वह बड़े जोर से दहाड़ा| उसकी दहाड़ से सारी वनस्थली गूंज उठी|
बारह वर्ष का वनवास तथा एक वर्ष के अज्ञातवास के बाद जब पांडवों को उनका जुएँ में धोखे से छीना गया राज्य वापस न मिला, धृतराष्ट्र ने तब संजय को दूत बनाकर पांडवों के पास भेजा|
गुजरात की राजमाता मीणलदेवी सदा दान-परोपकार में लगी रहती थी| वह एक बार सोमनाथ जी का दर्शन करने गई| अपने साथ वह सवा करोड़ सोने की मोहरें ले गई थी| उन्होंने वहाँ जाकर अपने भार का स्वर्ण तुला दान करवाया|
एक जिज्ञासु था। उसके मन में कई तरह के प्रश्न उठते थे। जिनके समाधान के लिए वह इस संत के पास तो कभी उस महात्मा के पास जाया करता था।
गौरैया चिड़िया का एक जोड़ा पीपल के पेड़ में घोंसला बनाकर रहता था| नर गौरैया अपनी मादा से बहुत प्यार करता था|
हिमालय पर्वत पर एक बड़ी पवित्र गुफा थी, जिसके समीप ही गंगा जी बह रहीं थीं| वहाँ का दृश्य बड़ा मनोरम तथा पवित्र था| देवर्षि नारद एक बार घूमते-घामते वहाँ पहुँचे तो आश्रम की पवित्रता देखकर उन्होंने वहीं तप करने की ठानी|
एक भिखारी था| वह न ठीक से खाता था, न पीता था, जिस वजह से उसका बूढ़ा शरीर सूखकर कांटा हो गया था| उसकी एक-एक हड्डी गिनी जा सकती थी| उसकी आंखों की ज्योति चली गई थी| उसे कोढ़ हो गया था| बेचारा रास्ते के एक ओर बैठकर गिड़गिड़ाते हुए भीख मांगा करता था| एक युवक उस रास्ते से रोज निकलता था|
एक राजा समय-समय पर प्रतियोगिताएं आयोजित करवाता और विजेता को सम्मान सहित पारितोषिक भी देता। प्रजा इससे उत्साहित रहती थी। एक बार उसने राजपुरुष के चयन की प्रतियोगिता रखी। उसने एक वाटिका बनवाई जिसमें हर तरह की वस्तुएं रखी गईं। लेकिन उन पर उनका मूल्य नहीं लिखा था।
एक खरगोश बेहद आलसी और कामचोर था| एक बार वह पेड़ के नीचे बैठा था| वही एक डंडा भी पड़ा था| खरगोश ने वह डंडा उठा लिया और उसे ज़मीन पर मारने लगा| ज़मीन पर डंडा मारते हुए वह सोच रहा था कि काश मुझे ढेर सारी गाजरें मिल जाती|
भारत के संत स्वामी विवेकानंद ‘विश्व धर्म’ सम्मेलन में भाग लेने अमेरिका पहुँचे| वह सादे वस्त्रों में एकाकी एक बगीचे में बैठे थे कि एक भद्र अमेरिकी महिला उनके पास पहुँची| वह थोड़ी ही बातचीत से प्रभावित हो उठी|
एक बार भगवान् श्रीकृष्ण हस्तिनापुर से दुर्योधन के यज्ञ से निवृत होकर द्वारका लौटे थे| यदुकुल की लक्ष्मी उस समय ऐन्द्री लक्ष्मी की भी मात कर रही थी| सागर के मध्य स्थित श्रीद्वारकापुरी की छटा अमरावती की भी तिरस्कृत कर रही थी|
महर्षि रमण को कौन नहीं जानता! वे बहुत महान संत थे| अपने पास कुछ भी नहीं रखते थे| उनके तन पर कोपीन को छोड़कर कोई अन्य कपड़ा नहीं रहता था|
एक चोर अक्सर एक साधु के पास आता और उससे ईश्वर से साक्षात्कार का उपाय पूछा करता था। लेकिन साधु टाल देता था। वह बार-बार यही कहता कि वह इसके बारे में फिर कभी बताएगा। लेकिन चोर पर इसका असर नहीं पड़ता था। वह रोज पहुंच जाता। एक दिन चोर का आग्रह बहुत बढ़ गया। वह जमकर बैठ गया। उसने कहा कि वह बगैर उपाय जाने वहां से जाएगा ही नहीं। साधु ने चोर को दूसरे दिन सुबह आने को कहा। चोर ठीक समय पर आ गया।
किसी गाँव में दीनू नाम का एक लोहार अपने परिवार के साथ रहता था| उसका एक पुत्र था, जिसका नाम शामू था| जैसे-जैसे शामू बड़ा होता जा रहा था, उसके दिल में अपने पुश्तैनी धंधे के प्रति नफ़रत बढ़ती जा रही थी| शामू के व्यक्तित्व की एक विशेषता यह थी कि उसके माथे पर गहरे घाव का निशान था, जो दूर से ही दिखाई देता था|
भारतेंदु हरिश्चन्द्र आधुनिक हिंदी निर्माताओं में गिने जाते हैं| उनका संबंध बनारस के एक समृद्ध परिवार से था|
एक बार कुछ मुनि मिलकर विचार करने लगे कि किस समय में थोड़ा सा पुष्प भी महान् फल देता है और उसका सुखपूर्वक अनुष्ठान कर सकते हैं? वे जब कोई निर्णय नहीं कर सके, तब निर्णय के लिये व्यास जी के पास पहुँचे| व्यास जी उस समय गंगा जी में स्नान कर रहे थे|
एक आदमी के पास बहुत जायदाद थी| उसके कारण रोज कोई-न-कोई झगड़ा होता रहता था| बेचारा वकीलों और अदालत के चक्कर के मारे परेशान था|
जमशेदजी मेहता कराची के प्रसिद्ध सेठ व समाजसेवी थे। अपार धन के साथ उन्होंने उदार हृदय भी पाया था। असहायों के लिए मुक्त हस्त से व्यय करना उनकी प्रकृति में था।
एक बहुत ही सुंदर हरा-भरा वन था और वन के एक किनारे पर सुरम्य सरोवर था| उस सरोवर में बहुत-से हंस रहते थे| उन हंसों के राजा का नाम हंसराज था| वन में भी बहुत से पक्षी रहते थे, उन्हीं में एक था कनकाक्ष नामक उल्लू| उस उल्लू और हंसराज की प्रगाढ़ मित्रता थी|
पुत्र के लिये माता-पिता की भक्ति ही एकमात्र धर्म है| इसके अतिरिक्त पुत्र के लिये और कोई धर्म नहीं है| एक वर्ष, एक मास, एक पक्ष, एक सप्ताह अथवा एक दिन जो भी पुत्र माता-पिता की भक्ति करता है, वह वैकुण्ठलोक की प्राप्त करता है|
एक सेठ था| उसने एक नौकर रखा| रख तो लिया, पर उसे उसकी ईमानदारी पर विश्वास नहीं हुआ| उसने उसकी परीक्षा लेनी चाही|