Homeशिक्षाप्रद कथाएँझूठ के पैर नही होते

झूठ के पैर नही होते

किसी गाँव में दीनू नाम का एक लोहार अपने परिवार के साथ रहता था| उसका एक पुत्र था, जिसका नाम शामू था| जैसे-जैसे शामू बड़ा होता जा रहा था, उसके दिल में अपने पुश्तैनी धंधे के प्रति नफ़रत बढ़ती जा रही थी| शामू के व्यक्तित्व की एक विशेषता यह थी कि उसके माथे पर गहरे घाव का निशान था, जो दूर से ही दिखाई देता था|

जब शामू पूरी तरह युवा हो गया तो एक दिन अपने पिता से बोला, ‘बापू! मैं यह लोहा कूटने और धौंकनी चलाने का काम नही कर सकता, मैं तो राजा की सेना में जाना चाहता हूँ| सुना है, सैनिकों के ठाट-बाट निराले ही होते है|’

दीनू ने अपने पुत्र की बात सुनी तो माथा पीटकर रह गया| बोला, ‘बेटा! यह तो संभव ही नही है| तुम्हें शायद पता नही कि हमारे राज्य के कानून ने केवल क्षत्रियों को ही सेना में प्रवेश करने का अदिकार दिया है, फिर तुम सेना में कैसे जा पाओगे?’

‘बापू! इसकी चिंता आप न करे, मैंने उपाय खोज लिया है| मैं राजा को अपनी जाति बताऊँगा ही नही बल्कि कह दूँगा कि मैं शूरवीरों का वंशज हूँ|’ शामू पिता को समझते हुए बोला|

दीनू ने उसे बहुत समझाया, झूठ बोलने के दुष्परिणामों का भय दिखाया लेकिन वह न माना और सेना में प्रवेश पाने के लिए शहर की ओर चल दिया|

उस समय वहाँ रिपुदमन नामक राजा राज करता था| शामू ने राजा के सम्मुख पहुँचकर अभिवादन किया और अपने आने का मंतव्य बताया| राजा ने जब उसके माथे पर घाव का निशान देखा तो सोचा- युवक तो पराक्रमी लगता है, शायद किसी युद्ध में इसके माथे पर यह घाव लगा होगा|

‘नाम क्या है तुम्हारा?’ राजा ने पूछा|

‘ज…जी भयंकर सिंह|’ शामू ने जवाब दिया|

‘किस जाति-वंश के हो?’

‘श…शूरवीरों के वंश से हूँ|’ शामू फिर सफ़ेद झूठ बोल गया|

रिपुदमन उसकी बातों से बहुत प्रभावित हुआ और उसे सेना में प्रवेश मिल गया| अब शामू को अच्छा वेतन और सुख-सुविधाएँ मिलने लगी| सब कुछ ठीक-ठाक ही चल रहा था कि एक दिन पड़ोसी देश के राजा ने रिपुदमन के राज्य पर हमला बोल दिया| रिपुदमन की सेना जब मैदान में उतरी तो उसके पाँव उखड़ते देर न लगी| सैनिकों की हार की बात सुनकर रिपुदमन के क्रोध की सीमा न रही, उसने तुरंत शामू को, जो भंयकर सिहं के छदम नाम से सेना में आया था, बुला भेजा|

उसके आते ही रिपुदमन ने कहा, ‘राज्य पर शत्रु ने आक्रमण कर दिया है| हमारी सेना पीछे हट रही है| तुम जाओ और शत्रुओं का संहार करके अपने नाम को सार्थक करो|’

राजा की बात सुनते ही शामू के तो होश ही उड़ गए| वह हकलाता- सा बोल उठा, ‘म…महाराज! मैं कुछ कहना चाहता हूँ|

‘जो कुछ कहना है, जल्दी कहो और युद्ध क्षेत्र की ओर प्रस्थान करो|’ राजा के स्वर में क्रोध भर आया था|

‘महाराज! मैं शूरवीरों के वंश का नही हूँ| युद्धक्षेत्र में जाने की बात तो दूर, मैं तो युद्ध के नाम से काँप उठता हूँ|’

सुनकर राजा रिपुदमन का क्रोध भड़क उठा| उसने उसी क्षण उसे मृत्युदंड की सज़ा सुनाते हुए फौरन तलवार से उसकी गर्दन काट दी|

शिक्षा: काठ की हांडी एक ही बार आँच पर चढ़ पाती है| शामू सेना में जाना चाहता था, पर उसमें वीरता नही थी| अतः उसका झूठ पकड़ा गया| एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने पड़ते है, फिरे भी वह पकड़ा जाता है क्योंकि झूठ के पैर नही होते|