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शिक्षाप्रद कथाएँ (1569)

एक था सिंह, जो जंगल का राजा था| वह खूब लम्बा- चौड़ा और बलवान था| वह बहुत रोबीला था और भयानक भी|

एक बार की बात है| बंगाल के सुप्रसिद्ध विद्वान पंडित ईश्वरचन्द्र विद्यासागर गर्मी की छुट्टियों में अपने गाँव आए| वह रेल की तीसरी श्रेणी के डिब्बे में बैठे थे| गाँव के स्टेशन पर पहुँचकर वह रेल से उतरे| उनके ही डिब्बे से कॉलेज का एक छात्र भी उतरा| स्टेशन के बाहर पहुँचकर वह कॉलेज का विद्यार्थी अपन सूटकेस जमीन पर रखकर चिल्लाने लगा-

पाँचों पाण्डव – युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव – पितामह भीष्म तथा विदुर की छत्रछाया में बड़े होने लगे। उन पाँचों में भीम सर्वाधिक शक्तिशाली थे। वे दस-बीस बालकों को सहज में ही गिरा देते थे। दुर्योधन वैसे तो पाँचों पाण्डवों ईर्ष्या करता था किन्तु भीम के इस बल को देख कर उससे बहुत अधिक जलता था। वह भीमसेन को किसी प्रकार मार डालने का उपाय सोचने लगा। इसके लिये उसने एक दिन युधिष्ठिर के समक्ष गंगा तट पर स्नान, भोजन तथा क्रीड़ा करने का प्रस्ताव रखा जिसे युधिष्ठिर ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

यह घटना प्राचीन समय की है| देवताओं और दानवों का युद्ध चलता रहता था| एक बार की लड़ाई में देवों ने दानवों को हरा दिया| इस पर देवता घमंड में भर गए| उन्होंने सोचा कि यह विजय हमारी ही है|

बहुत दिनों की बात है| हाथियों का एक बड़ा झुण्ड एक जंगल में रहता था| एक बड़े दांतों वाला विशालकाय हाथी उस दल का राजा था| यह गजराज अपने दल की देखभाल बड़े प्यार और ध्यान से करता था|

एक बार की घटना है| स्वामी रामतीर्थ ने 1903 से 1906 तक अपने चमत्कारी व्यक्तित्व से भारत, जापान और अमेरिका को चमत्कृत किया था|

बहुत पुरानी बात है| एक खटमल था| उसका बड़ा भारी कुटुम्ब था| ढेरों बच्चे थे| फिर उन सबके भी बहुत सारे बाल-बच्चे थे|

गौतम ऋषि के पुत्र का नाम शरद्वान था। उनका जन्म बाणों के साथ हुआ था। उन्हें वेदाभ्यास में जरा भी रुचि नहीं थी और धनुर्विद्या से उन्हें अत्यधिक लगाव था। वे धनुर्विद्या में इतने निपुण हो गये कि देवराज इन्द्र उनसे भयभीत रहने लगे।

एक बार की बात है एक विद्यालय में एक भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया| प्रतियोगिता का विषय था- “हम प्राणियों की सेवा कैसे कर सकते हैं?” विद्यालय में प्रतियोगिता शुरु हो गई|

एक बार की बात है तीन नवयुवक एक शहर में रहते थे| तीनों बड़े गहरे मित्र थे| उनमें से एक राजकुमार था, राजा का सबसे छोटा बेटा| दूसरा राजा के मन्त्री का पुत्र था और तीसरा था एक धनी व्यापारी का लड़का|

पंडित पुरचुरे शास्त्री महाराष्ट्र प्रदेश के शास्त्रों के बड़े पंडित थे, परंतु वह महारोग कोढ़ से पीड़ित हो गए थे, फलतः अपनी कुरुपती के बावजूद, परिवार, समाज, जनसमाज से लगभग उपेक्षित हो गए थे|

सुरंग के रास्ते लाक्षागृह से निकल कर पाण्डव अपनी माता के साथ वन के अन्दर चले गये। कई कोस चलने के कारण भीमसेन को छोड़ कर शेष लोग थकान से बेहाल हो गये और एक वट वृक्ष के नीचे लेट गये। माता कुन्ती प्यास से व्याकुल थीं इसलिये भीमसेन किसी जलाशय या सरोवर की खोज में चले गये। एक जलाशय दृष्टिगत होने पर उन्होंने पहले स्वयं जल पिया और माता तथा भाइयों को जल पिलाने के लिये लौट कर उनके पास आये। वे सभी थकान के कारण गहरी निद्रा में निमग्न हो चुके थे अतः भीम वहाँ पर पहरा देने लगे।

यूनान के विवरण में लिखा है कि सिकंदर के शासन के विरुद्ध भारत का बुद्धिजीवी वर्ग अपना उग्र रोष हर दृष्टि से प्रकट करने के लिए तत्पर था| सिकंदर के विरुद्ध एक भारतीय राजा को भड़काने वाले ब्राह्मण से यवनराज सिकंदर ने पूछा- “तुम क्यों इस राजा को मेरे विरुद्ध भड़काते हो?”

एक घने जंगल में एक बहुत ऊंचा पेड़ था| उसकी शाखायें छतरी की तरह फैली हुई थीं और बहुत घनी थीं|

जीवन में उन्नति के लिए जरुरी है कि प्रत्येक आदमी प्रतिदिन अपने जीवन का आत्म-निरिक्षण करे| वह कम-से-कम सोने से पहले अपने दिन-भर के कामों का लेखा-जोखा करे| वह देखे कि दिन-भर में मैंने कौन-सी भूलें की?

एक ब्राह्मण को एक दिन दान में एक बकरी मिली| वह बकरी को कंधे पर रखकर घर की ओर चल पड़ा| रास्ते में तीन धूर्तो ने उस ब्राह्मण को बकरी ले जाते देखा तो उनके मूंह में पानी भर आया| उन्हें भूख लग रही थी|

एक बार की बात है, एक धनी पिता ने अपने नालायक बेटे से कहा- “आज कुछ अपनी मेहनत से कमाकर लाओ, नहीं तो शाम को खाना नहीं मिलेगा|”

एक बार एक सियार भोजन की तलाश में भटक रहा था| आज का दिन उसके लिए बहुत बुरा साबित हुआ था, क्यों की उसे खाने को कुछ भी नहीं मिला था| 

प्राचीन समय की बात है| एक फकीर के पास एक कम्बल था| एक चोर ने फकीर का वह कम्बल चुरा लिया| फकीर इस चोरी से दुखी होकर पास के थाने में गया| वहाँ उसने थानेदार को चोरी की गई वस्तुओं की एक लंबी सूची लिखवा दी| रपट में उसने लिखाया- “उसकी रजाई, मसनद, छतरी, गद्दा, कोट, पाजमा और अनेक वस्तुएँ खो गई हैं|”

एक घने जंगल में एक झील थी| उसके किनारे चार मित्र रहते थे| उनमें से एक छोटा-सा भूरा चूहा था| उसकी लम्बी पूंछ और काली चमकीली आंखे थी| वह झील के किनारे एक बिल बना कर रहता था|

एक बार की घटना है| 30 मार्च, 1919 के दिन दिल्ली में एक अभूतपूर्व हड़ताल हुई| सब ट्रामगाडियाँ और टाँगें बंद थे| दोपहर के समय स्वामी श्रद्धानंद जी को सूचना मिली कि दिल्ली स्टेशन पर गोली चल गई है|

एक बहुत बड़े और घने पीपल के तले एक तीतर ने अपना घोंसला बनाया| उस पीपल के इर्द-गिर्द और भी अनेक छोटे-बड़े पशु-पक्षी रहते थे| उन सभी से तीतर की अच्छी मित्रता थी|

बात प्राचीन महाभारत काल की है। महाभारत के युद्ध में जो कुरुक्षेत्र के मैंदान में हुआ, जिसमें अठारह अक्षौहणी सेना मारी गई, इस युद्ध के समापन और सभी मृतकों को तिलांज्जलि देने के बाद पांडवों सहित श्री कृष्ण पितामह भीष्म से आशीर्वाद लेकर हस्तिनापुर को वापिस हुए तब श्रीकृष्ण को रोक कर पितामाह ने श्रीकृष्ण से पूछ ही लिया, “मधुसूदन, मेरे कौन से कर्म का फल है जो मैं सरसैया पर पड़ा हुआ हूँ?”

एक बार की बात है एक उत्साही युवक रामकृष्ण परमहंस की सेवा में गया| वह रामकृष्ण परमहंस के कदमों में झुक गया| उसने भक्तिभाव से परमहंस से प्रार्थना की, “महात्मन्! मुझे अपना चेला बना लो| मुझे गुरुमंत्र की दीक्षा दीजिए|”

वर्षो पहले किसी गांव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था| वह नौकरी की खोज में था| पर कोशिश करने पर भी उसे कोई ढंग का काम नहीं मिला पाया|

परशुराम रामायण काल के दौरान के मुनी थे। पूर्वकाल में कन्नौज नामक नगर में गाधि नामक राजा राज्य करते थे। उनकी सत्यवती नाम की एक अत्यन्त रूपवती कन्या थी। राजा गाधि ने सत्यवती का विवाह भृगुनन्दन ऋषीक के साथ कर दिया। सत्यवती के विवाह के पश्‍चात् वहाँ भृगु जी ने आकर अपने पुत्रवधू को आशीर्वाद दिया और उससे वर माँगने के लिये कहा।

प्राचीन समय की बात है| नदी की एक सूखी तलहटी थी| कंकड़-पत्थरों में हीरा-मणिक खोजने वाला खोजी थकान से चूर-चूर हो गया था| अत्यंत परेशान होकर वह अपने साथियों से बोला- “अपनी इस खोज में मैं पूरी तरह से निराश हो चुका हूँ| मैंने कई दिनों की लगातार मेहनत से निन्यानवें हजार नौ सौ निन्यानवें पत्थर इकट्ठा कर लिये होंगे, परंतु मुझे अपने ढेर में हीरे-मणिक एक कण भी नहीं मिला|”

बहुत दिनों की बात है| किसी गांव में एक किसान रहता था| उसका घर गांव के छोर पर था| वह अपनी पत्नी और बच्चे के साथ रहता था| किसान और उसकी पत्नी बच्चे को बहुत चाहते थे| एक दिन शाम को किसान लौटकर घर आया तो अपने साथ नेवले का बच्चा लेकर आया| पत्नी के पूछने पर उसने कहा, “मैं इसे बच्चे के खेलने-दुलारने के लिए लाया हूं|”

सूर्य के वर से सुवर्ण के बने हुए सुमेरु में केसरी का राज्य था। उसकी अति सुंदरी अंजना नामक स्त्री थी। एक बार अंजना ने शुचिस्नान करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किए। उस समय पवनदेव ने उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर आते समय आश्वासन दिया कि तेरे यहाँ सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्वन्द्य महाबली पुत्र होगा। और ऐसा ही हुआ भी।

एक बार की बात है| स्वामी रामतीर्थ संयुक्त राज्य अमेरिका गये| बंदरगाह निकट आ रहा था| हर एक व्यक्ति अपना सामान एकत्रित करने लगा| लेकिन स्वामी रामतीर्थ उसी प्रकार बैठे रहे| जबकि दूसरे व्यक्ति अपना सामान इकट्ठा कर रहे थे, और इधर से उधर भाग रहे थे|