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चन्द्र-सरोवर

चन्द्र-सरोवर

बहुत दिनों की बात है| हाथियों का एक बड़ा झुण्ड एक जंगल में रहता था| एक बड़े दांतों वाला विशालकाय हाथी उस दल का राजा था| यह गजराज अपने दल की देखभाल बड़े प्यार और ध्यान से करता था|

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एक बार वहां अकाल पड़ा| बरसों तक वर्षा न हुई तो सारी नदियां और तालाब सुख गये|

पशु-पक्षी प्यासे मरने लगे| बहुत सारे पानी की तलाश में दूसरी जगह चले गये| बिना पानी के हाथियों को भी बड़ा कष्ट उठाना पड़ रहा था| गजराज ने देखा कि यदि उन्हें जल्दी ही पानी न मिला तो बहुत सारे हाथी प्यासे मर जायेंगें| जैसे भी हो, उसे जल्दी ही पानी की खोज करनी होगी|

उसने कुछ हाथियों को बुलाया और उन्हें अलग-अलग दिशाओं में पानी की खोज में भेज दिया| कुछ समय बाद हाथी लौट आया| उसने बताया कि वहां से बहुत दूर एक जंगल में बहुत बड़ी पानी से भरी हुई झील है| गजराज बहुत प्रसन्न हुआ| उसने सब हाथियों को बुलाया और झील पर चलने की आज्ञा दी|

उस झील के किनारे बहुत से खरगोश रहते थे| झील तक पहुंचने के लिए हाथियों को खरगोशों की इस बस्ती में से ही गुजरना था| जैसे ही हाथियों का दल वहां से गुजरा सैकड़ो खरगोश उनके पैरों तले कुचले गये और न जाने कितने ही घायल हो गये|

खरगोशों में बड़ा आतंक फैल गया| उनके राजा ने दरबार बुलाया| उसने कहा, “हमारी बस्ती में से हाथियों का एक दल गुजरा है| हमारे सैकड़ो साथी उनके पैरों तले दबकर मर गये और घायल हो गये हैं| हमें जल्दी ही अपने साथियों को बचाने का कोई रास्ता निकालना चाहिए| मैंने इसलिए तुम्हें इकट्ठा किया है कि सब मिलकर इस मुसीबत से बचने का कोई उपाय सोचें|”

सब खरगोश तरह-तरह की बातें सोचने लगे| मगर किसी को भी ऐसा कोई उपाय न सूझा जिससे फिर उस रास्ते से हाथियों का आना-जाना बंद किया जा सके|

उनमें एक नन्हा-खरगोश बहुत तेज और चालाक था| वह खड़ा हो गया और बोला, “हे राजन, यदि आप मुझे गजराज के पास दूत बनाकर भेजें तो शायद मै कोई रास्ता निकाल सकूं|”

खरगोशों का राजा बोला, “बहुत अच्छा| तुम मेरे दूत बनकर जाओ और देखो कि तुम क्या कर सकते हो|”

नन्हा खरगोश हाथियों के राजा से मिलने चल दिया|

उसने देखा कि गजराज बड़े-बड़े हाथियों से घिरा हुआ है| वे सब गर्व से बड़ी झील से  वापस आ रहे हैं| वह डरा कि गजराज के पास पहुँचने से पहले ही कही वह दूसरे हाथियों के पैरों तले न दब जाये| लेकिन सन्देश तो उसे पहुंचाना ही था|

नन्हे खरगोश ने क्षणभर सोचा| फिर वह एक ऊंची चट्टान पर चढ़ गया और जोर से चिल्लाया, “सुनिये गजराज, मेरी बात सुनिये|”

गजराज ने जब खरगोश को चिल्लाते सुना तो उसकी तरफ देखा|

“अच्छा महाशय आप कौन है?” उसने पूछा|

“मैं दूत हूं,” खरगोश ने उत्तर दिया|

“दूत? किसका?” गजराज ने प्रश्न किया|

खरगोश बोला, “मैं महाबली चन्द्रमा का दूत हूं|”

गजराज बोला, “बहुत ठीक! क्या चन्द्रमा ने मेरे लिए कोई सन्देश भेजा है?”

खरगोश बोला, “जी हां राजन्, कृपाकर याद रखियेगा कि दूत को सन्देश सुनाने के लिए सजा नहीं दी जाती| वह तो केवल अपने कर्तव्य का पालन करता है|”

राजा ने कहा, “बहुत ठीक, जो कुछ कहने  के लिए तुम्हें भेजा गया है बेधड़क कहो|”

नन्हा खरगोश बोला, “राजन्, चन्द्रमा ने यह सन्देश भेजा है-

‘ओ गजराज! तुमने अपने दल सहित यहां आकर मेरी झील का पवित्र पानी गन्दा कर दिया है| तुमने झील पर जाते हुए हजारों खरगोशों को अपने पैरों तले रौंद डाला है| यह याद रखो कि यहां सारे खरगोश मेरे आश्रित हैं और उनका राजा मेरे साथ रहता है| महाबली चन्द्रमा ने कहलाया है कि अब आगे कोई भी खरगोश मारा न जाये| अन्यथा तुम लोगों पर भयंकर विपत्ति आयेगी|”

यह सन्देश सुनकर गजराज घबरा गया| उसने नन्हे खरगोश की तरफ देखकर कहा, “यह सच हो सकता है कि झील की ओर आते हुए हमने शायद बहु से खरगोश मार दिये हों| मैं आगे से ध्यान रखूंगा कि फिर ऐसी घटना न हो| मैं चन्द्रमा से प्रार्थना करूंगा कि मेरे अपराधों को क्षमा कर दें| दया करके मुझे बताओ कि मै अब क्या करूं?”

नन्हे खरगोश ने उत्तर दिया, “मेरे साथ चलिये, लेकिन अकेले ही| आइये, मैं आपको चन्द्रमा से मिलाने ले चलूँ|”

नन्हा खरगोश भारी-भरकम गजराज को झील के पास ले गया| वहां उन दोनों ने झील के स्थिर पानी चन्द्रमा की परछाईं देखी|

नन्हे खरगोश ने कहा, “चन्द्रमा से मिलिए|”

गजराज बोला, “मैं चन्द्रमा की पूजा करूंगा|” फिर उसने पानी में अपनी सूंड़ डाल दी|

पानी एकदम से हिल गया| पानी के हिलते ही लगा कि मानो चन्द्रमा इधर से उधर आ-जा रहे हैं|

नन्हा खरगोश बोला, “अब तो चन्द्रमा तुम पर और अधिक गुस्सा हो गये हैं|”

गजराज ने पूछा, “क्यों? मैनी ऐसा क्या किया है?”

“तुमने चन्द्रमा की झील के पवित्र पानी को छू दिया है|”

यह सुनकर गजराज ने अपना सिर झुका लिया और बोला, “मुझे क्षमा कर दो खरगोश, कृपया चन्द्रमा से कहो कि वे मुझे क्षमा कर दें| अब फिर कभी झील के इस पवित्र पानी को कोई हाथी नहीं छुयेगा| और कोई भी हाथी चन्द्रमा के प्यारे खरगोशों को कभी भी हानि नहीं पहुंचायेगा|”

इतना कह गजराज अपने दल सहित वहां से चला गया| इसके बाद शीघ्र ही वर्षा भी हुई और वे सब अपने जंगल में सुख से रहने लगे|

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