Homeशिक्षाप्रद कथाएँनकल का दण्ड – शिक्षाप्रद कथा

नकल का दण्ड – शिक्षाप्रद कथा

नकल का दण्ड - शिक्षाप्रद कथा

एक बार जंगल में एक पेड़ पर एक कौआ बैठा था| सामने ही हरी-भरी चरागाह में कुछ भेड़ें और मेमने चर रहे थे| तभी उड़ता हुआ एक उकाब आया| थोड़ी देर तक वह पंख फैलाए आकाश में मंडराता रहा| फिर नीचे की ओर आकर मेमनों के झुण्ड पर झपट्टा मारा और एक मोटे ताजे मेमने को उठाकर ले गया|

कौआ यह देखकर आश्चर्यचकित रह गया| वह उकाब को उस समय तक देखता रहा, जब तक वह नजरों से ओझल नहीं हो गया| उसके लिए उकाब का करतब बहुत ही रोमांचकारी था| वह उसके बारे में सोच-सोचकर इतना उत्तेजित हो गया कि उसने स्वयं भी उकाब के समान ही शिकार करने का निश्चय कर लिया|

उसने मन ही मन सोचा कि जब उकाब ऐसा कर सकता है तो मैं क्यों नहीं कर सकता| यह सोचकर वह हरी-भरी चरागाह की ओर उड़ चला|

कुछ ही देर में वह चरागाह में चर रही भेड़ों के सिर पर आकाश में उड़ने लगा और फिर किसी उकाब के समान ही वह एक बड़ी-सी भेड़ पर झपटा| वह यह भूल गया कि उसके पंजे उतने शक्तिशाली नहीं थे, जितने उकाब के होते हैं| नतीजा यह हुआ कि उसके पंजे भेड़ के बालों में फंस गए| उसने बहुत प्रयत्न किया अपने पंजों को भेड़ के बालों से निकालने का, मगर सफल नहीं हुआ| अंत में जब चरवाहा आया तभी उसने उसके पंजे भेड़ के बालों से निकाले| चरवाहे ने कौए को आजाद करके उसे इतनी जोर से जकड़ लिया कि बेचारा उड़ नहीं सकता था|

चरवाहा कौए को घर लाया और उसके पंख काट दिए| अब बिना पंखों का कौआ उसके बच्चों का खिलौना बन गया| बच्चे उस कौए के इर्द-गिर्द जमा होकर तरह-तरह के प्रश्न पूछते – “पिताजी, यह कौन-सा पक्षी है? इसका नाम क्या है?”

चरवाहा इन प्रश्नों के उत्तर में हंसकर कहता – “अगर इससे पूछोगे तो यह कहेगा कि मैं उकाब हूं| जबकि असलियत यह है कि यह मात्र एक कौआ है|”

शिक्षा: अपनी क्षमता के अनुसार ही कार्य करना चाहिए|

 

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